अज़ान- दिन में पाँच बार हर नमाज़ से पहले अज़ान दी जाती है। कुछ लोग जानकारी न होने की वजह से यह समझते हैं कि अज़ान में चीख़-चीख़कर ईश्वर को पुकारा जाता है। यह विचार बिलकुल ग़लत और अज्ञानता पर आधारित है। परिभाषा में ‘अज़ान' का अर्थ है ‘लोगों को नमाज़ के लिए बुलाना'। एक व्यक्ति, जिसे ‘मुज़्ज़िन’ यानी अज़ान देनेवाला कहा जाता है बुलन्द आवाज़ से ईश्वर का वास्ता देकर लोगों को सामूहिक रूप से मसजिद में नमाज़ पढ़ने के लिए पुकारता है।
अज़ान के बोल-
अज़ान देनेवाला अज़ान में निम्न बोल बोलता हैः
अल्लाहु-अकबर । अल्लाहु-अकबर।
‘‘ईश्वर ही महान है। ईश्वर ही महान है।''
अश्हदु-अंल्ला इला-ह इल्लल्लाह। अशहदु अंल्ला इला-ह इल्लल्लाह।
‘‘मैं गवाही देता हूँ कि ईश्वर के सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं है। मैं गवाही देता हूँ कि ईश्वर के सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं है।''
अश्हदु अन-न मुहम्मदर-रसूलुल्लाह। अश्हदु अन-न मुहम्मदर-रसूलुल्लाह।
‘‘ मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (सल्ल०) ईश्वर के सन्देष्टा हैं।
मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (सल्ल०) ईश्वर के सन्देष्टा हैं।
हय-य अलस्सलाह। हय-य अलस्सलाह।
‘‘ आओ नमाज़ की ओर। आओ नमाज़ की ओर''।
हय-य अलल फ़लाह। हय-य अलल फ़लाह।
‘‘आओ सफलता एवं कल्याण की ओर। आओ सफलता एवं कल्याण की ओर।''
अल्लाहु-अकबर। अल्लाहु-अकबर।
‘‘ईश्वर ही महान है। ईश्वर ही महान है।''
ल इला-ह इल्लल्लाह
‘‘ईश्वर के सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं है।''
नोट: सूर्योदय से पूर्व की नमाज़ के लिए जो अज़ान दी जाती है उसमें ये बोल शामिल किए जाते है:
अस्सलातु ख़ैरुम्मिनन-नौम। अस्सलातु ख़ैरुम्मिनन-नौम।
‘‘नमाज़ नींद से उत्तम है। नमाज़ नींद से उत्तम है।''
यह है अज़ान और उसके मंगलकारी बोल। इसके द्वारा उन सभी लोगों को नमाज़ के लिए पुकारा जाता है जो एक ईश्वर में आस्था रखते हैं और मुहम्मद (सल्ल०) को ईश्वर का पैग़म्बर और सन्देष्टा मानते हैं।
नमाज़ में क्या पढ़ते हैं?
नमाज़ के लिए खड़े होने के बाद सबसे पहले दिल में यह इरादा किया जाता है कि हम दुनिया से कटकर ईश्वर के सामने नमाज़ के लिए खड़े हैं। फिर नमाज़ शुरू की जाती है। नमाज़ में जो कुछ पढ़ा जाता है, उसके अरबी बोल और उनका अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा हैः
खड़े होकर पढ़ते हैं:-
अल्लाहु-अकबर
‘‘ईश्वर ही महान है।''
सुब्हा-न कल्ला हुम-म व बि हमदि-क व तबा-र कस्मु-क व तआला जददु-क वला इला-ह ग़ैरु-क
‘‘ऐ परमेश्वर, तू महिमावान है। प्रशंसा तेरे ही लिए है। तेरा नाम शुभ और मंगलकारी है। तेरी शान सर्वोच्च है। तेरे सिवा कोई पूज्य-प्रभू नहीं है।''
अऊज़ू बिल्लाहि मिनश्शैतानिर्रजीम।
‘‘ मैं धुतकारे हुए शैतान से बचने के लिए ईश्वर की शरण में आता हूँ।''
बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम।
‘‘ईश्वर के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील, बड़ा ही दयावान है।''
अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आ-लमीन। अर्रहमा-निर्रहीम। मालिकि यौमिददीन। इय्या-क-नअबुदु व इय्या-क- नस्तईन। इहदिनस्सिरातल मुस्तक़ीम। सिरातल्लज़ी-न अन अम-त अलैहिम,ग़ैरिल मग़ज़ूबि अलैहिम वलज़्ज़ाल्लीन।
आमीन!
‘‘स्तुति एवं प्रशंसा ईश्वर ही के लिए है, जो सारे जहानों का रब (स्वामी, पालनहार एवं शासक) है। अत्यन्त कृपाशील बड़ा ही दयावान है। फ़ैसले के दिन (प्रलय दिवस) का स्वामी वही है। (ऐ प्रभू!) हम तेरी ही उपासना करते हैं और तुझी से सहायता चाहते हैं। हमें संमार्ग दिखा। उन लोगों का मार्ग जिनपर तेरी अनुकम्पा रही, जिन पर तेरा प्रकोप नहीं हुआ और जो पथभ्रष्ट नहीं हुए।''
‘‘ऐ प्रभु ऐसा ही हो! हमारी प्रार्थना सुन ले।''
इसके बाद क़ुरआन का कुछ भाग पढ़ते हैं। यहाँ क़ुरआन के कुछेक अंश प्रस्तुत हैं:
बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
वल अस्र, इन्नल इन्सा-न लफ़ी ख़ुस्र, इल्लल-लज़ी-न आ-मनू व अमिलुस्सालिहाति व तवासौ बिलहक़्क़ि व तवासौ बिस्सब्र।
‘‘ ईश्वर के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील, बड़ा ही दयावान है।''
‘‘ज़माना गवाह है कि वास्तव में मनुष्य बड़े घाटे में है। सिवाय उन लोगों के जो आस्थावान हैं और भले और अच्छे कर्म करते हैं। एक-दूसरे को सत्य का उपदेश देते हैं और एक-दूसरे को धैर्य का उपदेश देते हैं।''
बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
क़ुल हुवल्लाहु अहद। अल्लाहुस्समद। लम यलिद व लम यूलद। व-लम यकुंल्लहू कुफ़ुवन अहद।
‘‘ईश्वर के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील, बड़ा ही दयावान है।''
‘‘ कहो, वह परमेश्वर है अकेला (उस जैसा कोई अन्य नहीं)। परमेश्वर किसी का मोहताज नहीं (और सब उसके मोहताज हैं) उसकी कोई संतान नहीं और न वह किसी की संतान है, और उसके समकक्ष कोई नहीं।''
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
क़ुल अऊज़ू बि रब्बिल फ़लक़, मिन शर्रि मा ख़लक़, व मिन शर्रि ग़ासिक़िन इज़ा वक़ब, व मिल शर्रिन-नफ़्फ़ासाति फ़िल उक़द, व मिन शर्रि हासिदिन इज़ा हसद।
‘‘ईश्वर के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील, बड़ा ही दयावान है।''
कहो, मैं शरण लेता हूँ सुबह के प्रभू की, हर उस वस्तु की बुराई से बचने के लिए जो उसने पैदा की, और रात के अंधकार की बुराई से बचने के लिए जबकि वह छा जाए, और गाँठों में फूँकनेवालों (फूँकनेवालियों) की बुराई से, और ईर्ष्या करने वाले की बुराई से बचने के लिए, जब वह ईर्ष्या करे।''
बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
क़ुल अउज़ू बि रब्बिन्नास, मलिकिन्नास, इलाहिन्नास, मिन शर्रिल वस्वासिल ख़न्नास, अल-लज़ी युवस्विसु फ़ी सुदूरिन्नास, मिनल जिन्नति वन्नास।
‘‘ ईश्वर के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील, बड़ा ही दयावान है।''
‘‘कहो, मै शरण लेता हूँ मनुष्यों के प्रभु की, मनुष्यों के सम्राट की, मनुष्यों के उपास्य की, उस वसवसे (भ्रष्ट विचार) डालने वाले की बुराई से बचने के लिए जो बारम्बार पलटकर आता है जो मुनष्यों के मन में वसवसे (भ्रष्ट विचार) डालता है, चाहे वह जिन्न हो या मनुष्य।''
यह पढ़ने के बाद ‘‘अल्लाहु-अकबर'' ( ईश्वर ही महान है) कहते हुए ईश्वर के समक्ष घुटनों पर हाथ रखकर झुक जाते हैं और निम्न शब्दों में उसका गुणगान करते हैं।
सुब्हा-न रब्बियल अज़ीम। सुब्हा-न रब्बियल अज़ीम। सुब्हा-न रब्बियल अज़ीम।
‘‘मेरा महान प्रभु बड़ा ही महिमावान है। मेरा महान प्रभु बड़ा ही महिमावान है। मेरा महान प्रभु बड़ा ही महिमावान है।''
फिर खड़े होते हुए यह पढ़ते हैं:
समिअल्लाहुलिमन हमिदह
‘‘ ईश्वर ने उसकी सुन ली जिसने उसका गुणगान एवं स्तुति की।''
फिर खड़े-खड़े प्रभू का इन शब्दों में गुणगान एवं स्तुति करते हैं:
रब्बना ल-कल हम्द।
‘‘ ऐ हमारे प्रभु! तेरे ही लिए प्रशंसा है।''
अब ‘‘अल्लाहु अकबर'' (ईश्वर ही महान है) कहते हुए अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को प्रभु के समक्ष डाल देते हैं और अपना माथा धरती पर टेककर ईश्वर का गुणगान इन शब्दों में करते हैं:
सुब्हा-न रब्बियल आला। सुब्हा-न रब्बियल आला। सुब्हा-न रब्बियल आला।
‘‘ मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा ही महिमावान है। मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा ही महिमावान है। मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा ही महिमावान है।''
इसके बाद ‘‘ अल्लाहु-अकबर'' (ईश्वर ही महान है) कहते हुए धरती से माथा उठाते हैं और बैठकर प्रभु से प्रार्थना करते हैं:
अल्लाहुम्मग़फ़िरली वर-हमनी वहदिनी व आफ़िनी वरज़ुक़नी।
‘‘हे परमेश्वर, मुझे क्षमा कर और मोक्ष प्रदान कर, मुझपर दया कर, मुझे संमार्ग पर रख मुझे शान्ति और सुरक्षा दे और मुझे जीविका प्रदान कर।''
अपने पालनहार प्रभु, वास्तविक शासक और स्वामी से यह विनती और प्रार्थना करने के पश्चात ‘‘ अल्लाहु-अकबर'' (ईश्वर ही महान है) कहते हुए उस वास्तविक सम्राट के आगे फिर माथा टेक देते हैं और उस परमेश्वर का गुणगान करते हैं:
सुब्हा-न रब्बियल आला। सुब्हा-न रब्बियल आला। सुब्हा-न रब्बियल आला।
‘‘ मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा ही महिमावान है। मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा ही महिमावान है। मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा ही महिमावान है।''
इसके बाद ‘‘ अल्लाहु-अकबर'' (ईश्वर ही महान है) कहते हुए बैठ जाते हैं और फिर यह पढ़ते हैं:
अत्तहिय्यातु लिल्लाहि वस्स-ल-वातु अस्सलामु अलै-क अय्युहन-नबीयु व रहमतुल्लाहि व बरकातुह। अस्सलामु अलैना व अला इबादिल्लाहिस-सालिहीन, अशहदु अंल्लाइला-ह इल्लल्लाहु व अश्हदु अन-न मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुह।
‘‘ समस्त मौखिक उपासनाएँ, समस्त शारीरिक उपासनाएँ और समस्त आर्थिक उपासनाएँ ईश्वर के लिए हैं। हे सन्देष्टा! आप पर सुख-शान्ति हो और ईश्वर की कृपा और उसकी अनुकम्पा हो। सुख-शान्ति हो हम पर और ईश्वर के समस्त सदाचारी भक्तों पर। मैं गवाही देता हूँ कि ईश्वर के सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं है, और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद उसके दास (भक्त) और सन्देष्टा हैं।''
अल्लाहुम-म सल्लि अला मुहम्मदिवॅ व अला आलि मुहम्मदिन कमा सल्लै-त अला इबराही-म व अला आलि इबराही-म इन्न-क हमीदुम्मजीद।
‘‘ हे परमश्वर! दया और अनुकम्पा कर मुहम्मद पर और उनकी संतति और अनुयायियों पर, जिस प्रकार तूने दया और अनुकम्पा की इबराहीम पर और इबराहीम की संतति और अनुयायियों पर। निस्संदेह तू सर्वथा प्रशंसनीय और महान है।''
अल्लाहुम-म बारिक अला मुहम्मदिवॅ व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारक-त अला इबराही-म व अला आलि इबराही-म इन्न-क हमीदुम्मजीद।
‘‘हे परमेश्वर ! बरकत कर मुहम्मद पर और उनकी सन्तति और अनुयायियों पर, जिस प्रकार तूने बरकत की इबराहीम पर और इबराहीम की संतति और अनुयायियों पर। निस्सन्देह तू सर्वथा प्रशंसनीय और महान है।''