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हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) और भारतीय धर्मग्रन्थ

  
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हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) और भारतीय धर्मग्रन्थ
 
 सत्य हमेशा स्पष्ट होता है। उसे किसी तरह के दलील की ज़रूरत नहीं होती। यह बात और है कि हमउसे समझ न पाएं या कुछ लोग हमें इससे दूर रखने का कुप्रयास करें। अब यह बात छिपी नहीं रही कि वेदों, उपनिषदों और पुराणोंमें इस सृष्टि के अंतिम पैग़म्बर (संदेष्टा) हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आगमन की भविष्यवाणियां की गई हैं। मानवतावादी सत्य गवेषी विद्वानों ने ऐसे अकाट्य प्रमाण पेश कर दिए, जिससे सत्य खुलकर सामने आ गया है। 
वेदों में जिस उष्ट्रारोही (ऊंट की सवारी करनेवाले) महापुरुष के आने की भविष्यवाणी की गई है, वे मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। वेदों के अनुसार उष्ट्रारोही का नाम ‘नराशंस’ का अरबी अनुवाद ‘मुहम्मद’ होता है। ‘नराशंस’ के बारे में वर्णित समस्त क्रियाकलाप हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आचरणों और व्यवहारों से आश्चर्यजनक साम्यता रखते हैं। पुराणों और उपनिषदों में कल्कि अवतार की चर्चा है, जो हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही सिद्ध होते हैं। कल्कि का व्यक्तित्व और चारित्रिक विशेषताएं अंतिम पैग़म्बर (सल्ल) के जीवन-चरित्र को पूरी तरह निरूपित करती है। यही नहीं उपनिषदों में साफ़ तौर से हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) का नाम आया है और उन्हें अल्लाह का रसूल (संदेशवाहक) बताया गया है। पुराण और उपनिषदों में यह भी वर्णित है कि ईश्वर एक है। उसका कोई भागीदार नहीं है। इनमें ‘अल्लाह’ शब्द का उल्लेख कई बार किया गया है। बौद्धों और जैनियों के धर्मग्रन्थों में भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के बारे में भविष्यवाणियां की गई हैं। 
 
इन सच्चाइयों के आलोक में मानव मात्र को एक सूत्र में बांधने और मानव एकता एवं अखंडता को मज़बूत करने के लिए सार्थक प्रयास हो सकते हैं। यह समय की मांग भी है। वैमनस्यता और सांप्रदायिकता के इस आत्मघाती दौर में यह सच्चाइयां मील का पत्थर साबित हो सकती हैं। भाई-भाई को गले मिलवा सकती है और एक ऐसे नैतिक और सद् समाज का निर्माण कर सकती हैं, जहां हिंसा, शोषण, दमन और नफ़रत लेशमात्र भी न हो। इन्हीं उद्देश्यों को लेकर सभी सच्चाइयों को एक साथ आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है। इस कोशिश में हमें कितनी सफलता मिली यह आप ही बताएंगे। उम्मीद है कि यह सच्चाइयां दिल की गहराइयों में उतर कर हम सभी को मानव कल्याण के लिए प्रेरित करेंगी। प्रस्तुत पुस्तिका में डॉ. वेद प्रकाश उपाध्याय के शोध ग्रन्थों ‘नराशंस और अंतिम ऋषि’ और ‘कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब’ के अलावा अन्य स्रोतों से प्राप्त तथ्यों एवं सामग्रियों का समावेश किया गया है। 

मुहम्मद (सल्ल.) और वेद
 
 वेदों में नराशंस या मुहम्मद (सल्ल.) के आने की भविष्यवाणियां कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है, बल्कि धार्मिक ग्रन्थों में ईशदूतों (पैग़म्बरों) के आगमन की पूर्व सूचना मिलती रही है। यह ज़रूर चमत्कारिक बात है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आने की भविष्यवाणी जितनी अधिक धार्मिक ग्रन्थों में की गई है उतनी किसी अन्य पैग़म्बर के बारे में नहीं की गई। ईसाइयों, यहूदियों और बौद्धों के धार्मिक ग्रन्थों में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के अन्तिम ईशदूत के रूप में आगमन की भविष्यवाणियां की गई हैं।
 
वेदों का ‘नराशंस’ शब्द ‘नर’ और ‘आशंस’ दो शब्दों से मिल कर बना है। ‘नर’ का अर्थ मनुष्य होता है और ‘आशंस’ का अर्थ ‘प्रशंसित’। सायण ने ‘नराशंस’ का अर्थ ‘मनुष्यों द्वारा प्रशंसित’ बताया है।1 यह शब्द कर्मधारय समास है, जिसका विच्छेद ‘नरश्चासौआशंसः’ अर्थात प्रशंसित मनुष्य होगा। डॉ. वेद प्रकाश उपाध्याय कहते हैं कि “इसी लिए इस शब्द से किसी देवता को भी न समझना चाहिए। ‘नराशंस’ शब्द स्वतः ही इस बात को स्पष्ट कर 
1. नराशंस : यो नरै : प्रशस्यते। (सायण भाष्य, ऋगवेद संहिता,5/5/2। मूल मंत्र इस प्रकार है—“नराशंसः सुषूदतीमं यज्ञमदाभ्यः। कविर्हि मधुहस्त्य।” “नराशंस” शब्द का अर्थ स्वामी दयानन्द सलस्वती ने भी मनुष्यों द्वारा प्रशंसित बताया है।   (ऋगवेद हिन्दी भाष्य, पृ. 25, प्रकाशक : सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा) 
 
देता है कि प्रशंसित शब्द जिसका विशेषण है, वह मनुष्य है। यदि कोई ‘नर’ शब्द को देववाचक माने तो उसके समाधान में इतना स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि ‘नर’ शब्द न तो देवता का पर्यायवाची शब्द ही है और न तो देवयोनियों के अन्तर्गत कोई विशेष जाति।”2
‘नर’ शब्द का अर्थ मनुष्य होता है, क्योंकि ‘नर’ शब्द मनुष्य के पर्यायवाची शब्दों में से एक है। ‘नराशंस’ की तरह ‘मुहम्मद’ शब्द का अर्थ ‘प्रशंसित’ होता है। ‘मुहम्मद’ शब्द ‘हम्द’ धातू से बना है, जिसका अर्थ प्रशंसा करना होता है। ऋगवेद में ‘कीरि’ नाम आया है, जिसका अर्थ है ईश्वर प्रशंसक। अहमद शब्द का भी यही अर्थ है। अहमद, मुहम्मद साहब का एक नाम है।1
वेदों में ऋगवेद सबसे पुराना है। उसमें ‘नराशंस’ शब्द से शुरु होने वाले आठ मंत्र हैं। ऋगवेद के प्रथममंडल, 13वें सूक्त, तीसरे मंत्र और 18वें सूक्त, 9वें मंत्र तथा 106वें सूक्त, चौथे मंत्र में ‘नराशंस’ का वर्णन आया है। ऋगवेद के द्वितीय मंडल के तीसरे सूक्त, दूसरे मंत्र, 5वें मंडल के पांचवें सूक्त, दूसरे मंत्र, सातवें मंडल के दूसरे सूक्त, दूसरे मंत्र, 10वें मंडल के 64वें सूक्त, तीसरे मंत्र और 142वें 
 
2.‘नराशंस और अन्तिम ऋषि’, पृ. 5।
1.पं. रविन्द्रनाथ त्रिपाठी ‘कान्ति’ के 28 अक्तूबर—4 नवंबर 1990 के अंक में। ऋगवेद का मूल श्लोक यह है—यो रघ्रस्योचोदितायः कृशस्य यो ब्रह्मणो नाधमानस्य कीरेः।।   (ऋगवेद, 2/12/6)
सूक्त, दूसरे मंत्र में भी ‘नराशंस’ विषयक वर्णन आए हैं। सामवेद संहिता के 1319वें मंत्र में और वाजसनेयी संहिता के 28वें अध्याय के 27वें मंत्र में भी ‘नराशंस’ के बारे में ज़िक्र आया है। तैत्तिरीय आरण्यक और शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थों के अलावा यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वेद में भी ‘नराशंस’ का उल्लेख किया गया है।
नराशंस’ की चारित्रिक विश्षताओं की 
 हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से साम्यता 
वेदों में ‘नराशंस’ की स्तुति किए जाने का उल्लेख है। वैसे ऋगवेद काल या कृतयुग में यज्ञों के दौरान ‘नराशंस’ का आह्वान किया जाता था। इसके लिए ‘प्रिय’ शब्द का इस्तेमाल होता था। ‘नराशंस’ की चारित्रिक विशेषताओं की हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से तुलना इस प्रकार है— 
 
वेदों में ‘नराशंस’ की स्तुति किए जाने का उल्लेख है। वैसे ऋगवेद काल या कृतयुग में यज्ञों के दौरान ‘नराशंस’ का आह्वान किया जाता था। इसके लिए ‘प्रिय’ शब्द का इस्तेमाल होता था। ‘नराशंस’ की चारित्रिक विशेषताओं की हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से तुलना इस प्रकार है—
1.वाणी में मधुरता
ऋगवेद में ‘नराशंस’ को ‘मधुजिव्ह’ कहा गया है2, यानि उसमें वाणी की मधुरता होगी। मधुर-भाषिता उसके व्यक्तित्व की ख़ास पहचान होगी। सभी जानते हैं कि मुहम्मद (सल्ल.) की वाणी में काफ़ी मिठास थी। 
2.नराशंस मिहप्रियम स्मिन्यज्ञ उपहव्ये। मधुजिह्वं हविष्कृतम्।   (ऋगवेद संहिता 1/13/3)
3.अप्रत्यक्ष ज्ञान रखनेवाला
‘नराशंस’ को अप्रत्यक्ष ज्ञान रखनेवाला बताया गया है। इस ज्ञान को रखनेवाला कवि भी कहलाता है। ऋगवेद संहिता से ‘नराशंस’ को कवि बताया गया है।3 मुहम्मद (सल्ल.) को अल्लाह ने कुछ अवसरों पर परोक्ष बातों की जानकारी प्रदान की थी अतः पैग़म्बरे इस्लाम (सल्ल.) ने रूमियों और ईरानियों के युद्ध में रूमियों की हार और नव वर्ष के अन्दर ही रूमियों की होने वाली विजय की पूर्व जानकारी दी थी। नैनवा की लड़ाई में रूमियों की जीत 657 ई. में हुई थी। पवित्र क़ुरआन की सूरा रूम इसी से सम्बंधित है। रूमियों की पराजय के पश्चात पुनः विजय प्राप्त कर लेने का उल्लेख है। इसके साथ ही निकट भविष्य में इनकार करनेवालों पर मुसलमान के विजयी होने की भविष्यवाणी की गई है। 
वे ईश्वर को सबसे अधिक प्यारे और उसे जानने वाले थे। वे नबी थे। ‘नबी’ शब्द ‘नबा’ धातू से बना हुआ शब्द है, जिसका अर्थ सन्देश देनेवाला होता है। आप (सल्ल.) ईश्वर के सन्देशवाहक थे। आचार्य रजनीश के शब्दों में “आप ईश्वर तक पहुंचने की ‘बांसुरी’ हैं जिसमें फूंक किसी और की है।” 
3.  ‘नराशंस’
 
3. सुन्दर कान्ति के धनी
‘नराशंस’ को सुन्दर कान्तिवाला बताया गया है। इस विशेषता को उल्लेख करते हुए ऋगवेद में ‘स्वर्चि’ शब्द आया है।1
‘स्वर्चि’ शब्द का विच्छेद है ‘शोभना अर्यिर्यस्य सः’ यानि सुन्दर दीप्ति या कान्ति से युक्त। इस शब्द का तात्पर्य यह है कि इतने सुन्दर स्वरूप का व्यक्ति जिसके चेहरे से रौशनी-सी निकलती हो। ऋगवेद में ही बताया गया है कि वह अपने महत्व से घर-घर को प्रकाशित करेगा।2 स्पष्ट है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने घर-घर में ज्ञान की ज्योति जलाई, अज्ञान को ख़त्म कर दिया और अंधकार में भटक रहे लोगों को नई रौशनी दी।
ऋगवेद में ही कहा गया है कि ‘अहमिधि पितुष्परि मेधामृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजनि।। 
(ऋगवेद : 8,6,10) 
सामवेद में भी है :  अहमिधि पितुः परिमेधामृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजनि।। (सामवेद : प्र. 2 द. 6 मं. 8) अर्थात, अहमद (मुहम्मद) ने अपने रब से हिकमत से भरी जीवन व्यवस्था को हासिल किया। मैं सूरज की तरह रौशन हो रहा हूं।
1.नराशंस : धामान्यञ्ञन तिस्रो दिव : प्रति मह्त्र स्वर्चिः ।। (ऋगवेद संहिता 2/3/2
2.नराशंस : धामान्यञ्ञन तिस्रो दिव : प्रति मह्त्र स्वर्चिः ।। (ऋगवेद संहिता 2/3/2

मुहम्मद साहब इतने सुन्दर थे कि लोग स्वतः आप की तरफ़ खिंच जाते थे। इस संदर्भ में रेवरेंड बासवर्थ स्मिथ ने ‘मुहम्मद एंड मुहम्मदेनिज़्म’ में लिखा है कि मुहम्मद साहब के विरोधी भी उनकी आकर्षण शक्ति तथा उनकी गरिमा से प्रभावित होकर उनका सम्मान करने को बाध्य हो जाते थे। तमाम बाधाओं और विरोध के बावजूद मुहम्मद साहब घर-घर में ज्ञान की ज्योति प्रकाशित करते रहे।“
4. पापों का निवारक
ऋगवेद में नराशंस को ‘पापों से लोगों को हटानेवाला’ बताया गया है।1 यह कहने की ज़रूरत ही नहीं है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की समस्त शिक्षाएं और आप पर अवतरित क़ुरआन समग्र जीवन को पापों से उबार देता है। यह सन्मार्ग का आईना (दर्पण) है जिसे ‘देखकर’ और उस पर अमल करके व्यक्ति को तमाम पापों से छुटकारा मिल जाता है। उसकी दुनियावी और मरने के बाद की ज़िन्दगी ख़ुशहाल हो जाती है। इस्लाम जुआ, शराब और अन्य नशीले पदार्थों के सेवन से लोगों को रोकता है तथा अवैध कमाई से प्राप्त धन को खाने, ब्याज लेने और किसी का हक़ मारने को निषिद्ध ठहराता है। वह अत्याचार, दमन और शोषण से मुक्त समाज की स्थापना करता है।
1.नराशंस वाजिनं वाजयन्निह क्षयद्वीरं पूषणं सुम्नैरीमहे। --ऋगवेद, 1/106/4
रथं न दुर्गाद् वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अहंसो निषिपपर्तन।। 
5. पत्नियों की साम्यता
‘नराशंस’ के पास 12 पत्नियां होंगी, इस बात की पुष्टि भी अथर्ववेद के उसी मंत्र से होती है जिस मंत्र में उसके द्वारा सवारी के रूप में ऊंट के प्रयोग करने की बात का उल्लेख है। यह मंत्र इस प्रकार है—
उष्ट्रा यस्य प्रवाहिणो वधूमन्तों द्विर्दश।
        वषर्मा रथस्य नि जिहीडते दिव ईषमाण उपस्पृशः।
        अथर्ववेद कुन्ताप सूक्त 20/127/2
अर्थात, जिसकी सवारी में दो ख़ूबसूरत ऊंटनियां हैं। या जो अपनी बारह पत्नियों समेत ऊंटों पर सवारी करता है उसकी मान-प्रतिष्ठा की ऊंचाई अपनी तेज़ रफ़्तार से आसमान छूकर नीचे उतरती है।
इस मंत्र के अनुरूप हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की बारह पत्नियां थीं।
आप (सल्ल.) की पत्नियों के नाम क्रम से इस प्रकार हैं 1. हज़रत ख़दीजा (रज़ि,), 2. हज़रत सौदा (रज़ि,), 3. हज़रत आईशा (रज़ि,), 4. हज़रत हफ़्सा (रज़ि,), 5. हज़रत उम्मे सलमा (रज़ि,), 6. हज़रत उम्मे हबीबा (रज़ि,), 7 हज़रत ज़ैनब बिन्त जहश (रज़ि,), 8. हज़रत ज़ैनब बिन्त ख़ुज़ैमा (रज़ि,), 9. हज़रत जुवैरिया (रज़ि,), 10. हज़रत सफ़िया (रज़ि,), 11. हज़रत रैहाना (रज़ि,) और 12. हज़रत 
मैमूना (रज़ि,)।1 उल्लेखनीय है कि और किसी भी धार्मिक व्यक्ति की बारह पत्नियां नहीं थीं। हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में कुछ महापुरुषों के पास सैंकड़ों पत्नियां होने का विवरण मिलता है।
6. स्थानगत साम्यताएं
अथर्ववेद में अन्योक्ति अलंकार के माध्यम से नराशंस के बारे में पहचान की कतिपय बातें भी बताई गईं हैं।
कुन्ताप सूक्त में है—
इदं जना उप श्रुत नराशंस स्तविष्यते।
इसका अर्थ बताते हुए पं. क्षेम करण दास त्रिवेदी लिखते हैं—“है मनुष्यो ! यह आदर से सुनो कि मनुष्यों में प्रशंसावाला पुरुष बढ़ाई किया जाएगा।”2
एक अन्य मंत्र में कहा गया है—
एष इषाय मामहे शतं निष्कान् दश स्रजः
त्रीणि शतान्यवर्तां सहस्रा दश गोनाम्   (अथर्ववेद 20,127,3)

1.अल्लामा इब्ने ज़री की किताब में यही क्रम है।
2.अथर्ववेद हिन्दी भाष्य, पृ. 1401, सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, नई दिल्ली। 
अर्थात्, ईश्वर मामहे ऋषि को सौ सोने के सिक्के देगा, दस हज़ार गायें देगा, तीन सौ अरबी घोड़े देगा और दस हार।
यहां मामहे ऋषि से मतलब मुहम्मद (सल्ल.) से है। आप (सल्ल.) को ईश्वर द्वारा सौ स्वर्ण मुद्राएं देने का तात्पर्य ऐसे श्रेष्ठ व्यक्ति से है जो रत्नवत महत्व के हों। मुहम्मद (सल्ल.) जो शिक्षाएं लोगों को देते थे उनकी सुरक्षा का कार्य सौ व्यक्ति करते थे। ये अस्हाबे सुफ़्फः कहलाते थे। ये लोगों को शिक्षाओं की जानकारी भी देते थे और शिक्षाओं की रक्षा भी करते थे। 
 
इसी प्रकार दस हज़ार गौ प्रदान किए जाने का अर्थ ‘अच्छे व्यक्ति दिए जाने से है। ‘गो’ अलंकारिक शब्द है, जो साधारणतया अच्छे व्यक्ति के अर्थ में प्रयुक्त होता है। मुहम्मद (सल्ल.) की शिक्षाओं के अनुयायियों की संख्या आपके जीवन काल के अन्तिम चरण में दस हज़ार थी। मक्का को जीतने के लिए मदीना से जाते समय आपके सहायकों की संख्या दस हज़ार थी। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के दस हज़ार अनुयायी जब मक्का पहुंचे तो वहां न किसी प्रकार का युद्ध हुआ न ही किसी अनुयायी ने किसी को नष्ट किया, इसी कारण उन दस हज़ार लोगों को गो कहा गया।
 
नराशंस को तीन सौ अर्वन की प्राप्ति का अर्थ ऐसे वीर योद्धाओं की प्राप्ति है जो घोड़े की तरह तेज़ हों। ‘अर्वन’ शब्द का शाब्दिक अर्थ घोड़ा होता है। यह भी गो की भांति अलंकारिक शब्द है। बद्र की लड़ाई में मुहम्मद (सल्ल.) के साथियों (सहाबा) की संख्या तीन सौ थी।
नराशंस को दस स्रजः या गले का हार दिए जाने से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति हैं जो गले के हार के समान हों और नराशंस को प्रिय हों। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के दस ऐसे व्यक्ति थे, जो उनपर अपने प्राणो को भी समर्पित करने को तैयार रहते थे। वे गले के हार की तरह मुहम्मद (सल्ल.) के चारों तरफ़ हमेशा रहते थे। ये दसों व्यक्ति अशरः मुबश्शरः कहे जाते थे। ये हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के वे साथी (सहाबी) हैं, जिन्हें जन्न्त की ख़ुशख़बरी दी गई।
 
अथर्ववेद के एक मंत्र में कहा गया है कि ‘ऐ लोगों, यह (ख़ुशख़बरी) ध्यानपूर्वक सुनो, नराशंस की प्रशंसा की जाएगी। साठ हज़ार नब्बे दुश्मनों में से इस हिजरत करनेवाले, अमन फैलानेवाले को हम (सुरक्षा) में लेते हैं। ऋगवेद के एक मंत्र में भी मामहे ऋषि के दस हज़ार साथियों का ज़िक्र आया है। मंत्र इस प्रकार है—
अनस्वनता सतपतिर्मामहे मे गावा चेतिष्ठो अशुरो मघोनः।
त्रैवृष्णो अग्ने दशभिः सहस्रैर्वैश्वानरः त्र्यरुणाश्चिकेत।।    (ऋगवेद म. 5, सू. 27, मंत्र 1)
अर्थात्, हक़परस्त अत्यन्त विवेकशील, शक्तिशाली, दानी, मामहे ऋषि ने कलाम (वाणी) के साथ मुझे सुशोभित किया। सर्वशक्तिमान, सब ख़ूबियां रखनेवाला, सारे संसार के लिए ‘कृपामय’ दस हज़ार सहयोगियों (सहाबा) के साथ मशहूर हो गया।
मामहे ऋषि हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। डॉ. वेद प्रकाश उपाध्याय ने भी मामहे ऋषि को मुहम्मद (सल्ल.) ही माना है। 

पुराणों के प्रमाण
भविष्य पुराण और हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) 
 
केवल वेद ही नहीं बल्कि पुराणों में भी मुहम्मद साहब का कार्यस्थल रेगिस्तानी क्षेत्र में होने का उल्लेख आता है। भविष्य पुराण में स्पष्टतः कहा गया है कि ‘एक दूसरे देश में एक आचार्य अपने मित्रों के साथ आएंगे। उनका नाम महामद होगा। वे रेगिस्तानी क्षेत्र में आएंगे।1 इस अध्याय को श्लोक 6,7,8 भी मुहम्मद साहब के विषय में है। इस्लाम के पैग़म्बर (सल्ल) का जन्म स्थान-सहित अन्य साम्यताएं कल्कि अवतार में भी मिलती है, जिनका वर्णन कल्कि पुराण में है। इसकी चर्चा बाद में की जाएगी। 
यहां यह उल्लेख कर देना उचित होगा कि भविष्य पुराण में कई नबियों (ईशदूतों) की जीवन गाथा है। इस्लाम पर भी विस्तृत अध्याय है। इस पुराण में एकदम सटीक तौर पर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के
 
1.एतिस्मिन्नन्तिरे म्लच्छ आयाय्योंण समन्वितः ।। महामद इति ख्यातः शिष्य शाखा सममन्विः ।। 
 
बारे में बातें आई हैं। इसमें जहां महामद आचार्य के नाम की ‘मुहम्मद’ शब्द से निकटता है, वहीं इस्लाम के पैग़म्बर (सल्ल.) की पहचान की अन्य बातें बिल्कुल सत्य उतरती हैं। इनमें ज़रा भी व्याख्या की ज़रूरत नहीं। भविष्य पुराण के अनुसार, शालिवाहन (सात वाहन) वंशी राजा भोज दिग्विजय करता हुआ समुद्र पार (अरब) पहुंचेगा। इसी दौरान (उच्च कोटि के) आचार्य शिष्यों से घिरे हुए महामद (मुहम्मद सल्ल.) नाम से विख्यात आचार्य को देखेगा। भविष्य पुराण (प्रतिसर्ग पर्व 3, अध्याय 3, खंड 3, कलियुगियेतिहास समुच्चय) में कहा गया है—
लिंड्गच्छेदी शिखाहीन श्मश्रुधारी स दूषकः ।
         उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनो मम ।।
विना कौलं च पशवस्तेषां भक्ष्या मता मम ।
         मुसलेनैव संस्कारः कुशैरिव भविष्यति ।।
         तस्मान्मुसलवन्तो हि जातयो धर्मदूषकः ।
इति पैशाचधर्मश्च भविष्यति मया कृतः ।। (श्लोक 25-27)
इन श्लोकों का भावार्थ इस प्रकार है— ‘हमारे लोगों का ख़तना होगा, वे शिखाहीन होंगे, वे दाढ़ी रखेंगे, ऊंचे स्वर में आलाप करेंगे यानि आज़ान देंगे। शाकाहारी-मांसाहारी (दोनों) होंगे, किन्तु उनके लिए बिना कौल यानि मंत्र से पवित्र किए बिना कोई पशु भक्ष्य (खाने योग्य) नहीं होगा (वे हलाल मांस खाएंगे। इस प्रकार हमारे मत के अनुसार -हमारे अनुयायियों का मुस्लिम संस्कार होगा। उन्हीं से मुसलवन्त यानि निष्ठावानों का धर्म फैलेगा और ऐसा मेरे कहने से पैशाच धर्म का अंत होगा।’1
भविष्य पुराण की इन भविष्यवाणियों की हर चीज़ इतनी स्पष्ट है कि ये स्वतः ही हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) पर खरी उतरती हैं। अतः आप (सल्ल.) की अंतिम ऋषि के रूप में पहचान भी स्पष्ट हो जाती है। ऐसी भी शंका नहीं है कि इन पुराणों की रचना इस्लाम के आगमन के बाद हुई हो। वेद और इस तरह के कुछ पुराण इस्लाम के काफ़ी पहले के हैं। 
 
पं. धर्मवीर उपाध्याय का शोध 
डॉ. कमला कान्त तिवारी और डॉ. रमेश प्रताप गर्ग ने अपनी प्रकाशित पुस्तक ‘कलयुग के अन्तिम नबी’ में संस्कृत के उद्भट 
 
1.‘Similarities Between Hinduism & Islam’ (By Dr. Zakir naik P.37; 38 Publisher : M.S.S New Delhi-25), ‘अन्तिम सन्देष्टा कब कहां और कौन?’ पृष्ठ, 52, 53 लेखक : मुफ्ती मुहम्मद सरवर फ़ारूक़ी नदवी (आचार्य, B.H.U., वाराणसी) प्रकाशक : मक्तबा पयामे अमन, 504/38/2 फ़ारूक़ी मन्ज़िल, नदवा रोड़, लखनऊ (उ.प्र.)
2.यह पुस्तक 1927 ई. में नेशनल प्रिंटिंग प्रेस, दरिया गंज, दिल्ली से सर्वप्रथम प्रकाशित हुई थी।
 
विद्वान पं. धर्मवीर उपाध्याय की पुस्तक ‘अंतिम ईशदूत’2 के कतिपय अंशों को उद्धृत करते हुए लिखा है—
“पंडित जी ने एक और अनोखी बात लिखी है कि कागभुसुन्डि एवं गरुड़ दोनों ही श्री रामचंद्र की सेवा में दीग्घकाल तक रहे एवं उनके उपदेशों को न केवल सुनते ही रहे अपितु अन्य जिज्ञाशु श्रोताओं को भी सुनाते रहे। इन उपदेशों की चर्चा श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘संग्राम पुराण’ के अनुवाद में (जिसमें ईश्वर ने अपने पुत्र शण्मुख की आने वाले धर्म और अवतार के प्रति भविष्यवाणी की है। लिखा है, जिसका अनुवाद इस प्रकार है—
   यहां न पक्षपात कछु राखहुं। वेद पुराण संत मत भाखहुं।।
अर्थात् मैने यहां किसी का पक्ष न लेकर वेदों, पुराणों और संतों के मत को प्रकट किया।
   संवत विक्रम दोउ अनग्ड़ा। महांकोक नस चतुर्पतग्ड़ा।।
अर्थात्, सातवीं विक्रम सदी के चारों सूर्यों की ज्योति के साथ वह जन्म लेगा।
   राजनीति भव प्रीती दिखावे। आपन मत सबका समझावै।।
अर्थात्, राज्य करने में जैसी स्थिति हो प्रेम से अथवा कठोरता से अपना मत सभी को समझा सकेगा।
   सुरन चतुसुदर शतचारी। तिनको वंश भयो अतिभारी।।
 
अर्थात्, उनके चारों देव साथ होंगे जिनकी सहायता से उसके अनुयायियों की संख्या बढ़ेगी।
   तब तक सुंदरमाद्दिकोंया। बिना महामद पार न होय।।
जब तक उसका पत्र रहेगा महामद के बिना पार नहीं होगा—
   तबसे मानहु जन्तु भिखारी। समरथ नाम एहि ब्रत धारी।।
अर्थात, मानव, भिक्षुक एवं जन्तु सभी इस व्रतधारी का नाम जपते1 ईश्वर के भक्त हो जाएंगे।
   हर सुंदर निर्माण को होई। तुलसी वचन सत्य सचसोई।।
अर्थात्, फिर कोई उसकी तरह जन्म न लेगा गोस्वामी तुलसी जी वह कह रहे हैं जो सत्य है। (संग्राम पुराण, स्कंद 12 काण्ड 6)। 
पं. धर्मवीरजी ने इसी प्रकार अन्य कथा भी लिखी है वह इस प्रकार है—
जब श्री शंकर जी पृथ्वी को त्याग हिमालय पर्वत की ओर जाने लगे तो उन लोगों को संबोधित करते हुए बोले, जिन्होंने उन्हें सताया होगा कि आप लोग कुमार्ग पर न चलें अपितु सतमार्ग पर चलें
 
1. मूल पाठ में ‘मानहु’ शब्द प्रयुक्त हुआ है, अतः इसका अर्थ ‘मानना’ हुआ। इसलिए अर्थ यह होगा कि ‘इस व्रत धारी को मानते ही ईश्वर के भक्त हो जाएंगे’। 
 
अन्यथा द्वापर के अंत में एक ऐसा ईश्वर-भक्त जन्म लेगा जो आप जैसे आततायियों का अंत कर देगा।
जब श्री शंकर जी कैलाश पर्वत की चोटी पर पहुंच कर ध्यानावस्थित हुए तो किसी दिन उनकी प्रिय पत्नी पार्वती जी ने प्रश्न पूछा कि हे महादेव ! द्वापर के अंत में ऐसा पराक्रमी कौन होगा जो धर्मभ्रष्टों का अंत करेगा। श्री शंकर जी ने उन्हें उत्तर दिया आदाम (आदम) के 6000 वर्षों बाद शम्बल द्वीप के समीप मंदरीने में ईश्वर का अंश आदम की संतान चमत्कारिक रूप में अवतरित होगा जिस धरती पर वह जन्म लेगा वह मेरी प्रिय धरती होगी। उसके सिर पर मेघ आच्छादित रहेंगे और धरती पर उसकी परछाई नहीं पड़ेगी।
उपरोक्त कथा को श्री रामचंद्र के गुरु (श्री वशिष्ठ मुनि) ने भगवान शंकर जी से सुनकर रामचंद्र जी को बतलाया। मुनि वशिष्ठ श्री शिव के भक्त तो थे ही, रामचंद्र के गुरु भी थे। श्री हरगोविन्द लाल ने अपनी लिखित ‘राम कथा’ के पृष्ठ 112 पर इन सभी बातों की चर्चा की है। पं. धर्मवीरजी भागवत पुराण, स्कंद दस के अंतर्गत लिखते हैं कि कल्कि अवतार की सवारी विद्युत सरीखी तीव्रगामी होगी एवं उसका मुखमंडल स्त्री की भांति एवं शेष शरीर घोड़े की तरह होगा 
आखिल भारतीय हिन्दु महासभा के पूर्व अध्यक्ष लाला हंसराज ने बतलाया है कि राजा सामरी की अंतिम इच्छा केरल के एक मठ में
 
अन्यथा द्वापर के अंत में एक ऐसा ईश्वर-भक्त जन्म लेगा जो आप जैसे आततायियों का अंत कर देगा।
जब श्री शंकर जी कैलाश पर्वत की चोटी पर पहुंच कर ध्यानावस्थित हुए तो किसी दिन उनकी प्रिय पत्नी पार्वती जी ने प्रश्न पूछा कि हे महादेव ! द्वापर के अंत में ऐसा पराक्रमी कौन होगा जो धर्मभ्रष्टों का अंत करेगा। श्री शंकर जी ने उन्हें उत्तर दिया आदाम (आदम) के 6000 वर्षों बाद शम्बल द्वीप के समीप मंदरीने में ईश्वर का अंश आदम की संतान चमत्कारिक रूप में अवतरित होगा जिस धरती पर वह जन्म लेगा वह मेरी प्रिय धरती होगी। उसके सिर पर मेघ आच्छादित रहेंगे और धरती पर उसकी परछाई नहीं पड़ेगी।
उपरोक्त कथा को श्री रामचंद्र के गुरु (श्री वशिष्ठ मुनि) ने भगवान शंकर जी से सुनकर रामचंद्र जी को बतलाया। मुनि वशिष्ठ श्री शिव के भक्त तो थे ही, रामचंद्र के गुरु भी थे। श्री हरगोविन्द लाल ने अपनी लिखित ‘राम कथा’ के पृष्ठ 112 पर इन सभी बातों की चर्चा की है। पं. धर्मवीरजी भागवत पुराण, स्कंद दस के अंतर्गत लिखते हैं कि कल्कि अवतार की सवारी विद्युत सरीखी तीव्रगामी होगी एवं उसका मुखमंडल स्त्री की भांति एवं शेष शरीर घोड़े की तरह होगा 
आखिल भारतीय हिन्दु महासभा के पूर्व अध्यक्ष लाला हंसराज ने बतलाया है कि राजा सामरी की अंतिम इच्छा केरल के एक मठ में लिखित प्रमाण स्वरूप सुरक्षित है, जिसका अवलोकन करने से ही स्पष्ट हो जाता है कि राजा मदीना गया था एवं राजा ने हज़रत मुहम्म्द के धर्म को स्वीकार किया। “ {‘कलयुग के अंतिम ऋषि’, पृ. 7-9 प्रकाशक, हिन्दी-उर्दू साहित्य संगम, (रजिस्टर्ड) ए 25/42, मछोदरी, वाराणसी, 221001}  

कल्कि अवतार और हज़रत मुहम्मद (सल्ल.)
 
संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान डॉ. वेद प्रकाश उपाध्याय ने अपने शोधपत्र में मुहम्मद (सल्ल.) को कल्कि अवतार बताया है। कल्कि और मुहम्मद (सल्ल.) की विशेषताओं का तुल्नात्मक अध्ययन करके डॉ. उपाध्याय ने यह सिद्ध कर दिया कि कल्कि का अवतार हो चुका है और वे हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। इस शोधपत्र की भूमिका में वे लिखते हैं—
“वैज्ञानिक अणु विस्फोटों से जो सत्यानाश संभव है, उसका निराकरण धार्मिक एकता सम्बन्धी विचारों से हो जाता है। जल में रहकर मगर से बैर उचित नहीं, इस कारण मैने वह शोध किया जो धार्मिक एकता का आधार है। राष्ट्रीय एकता के समर्थकों द्वारा इस शोधपत्र पर कोई आपत्ति नहीं होगी। आपत्ति होगी तो कूपमण्डुक लोगों को, यदि वे कूप के बाहर निकलकर संसार को देखें तो कूप को ही संसार मानने की उनकी भावना हीन हो जाएगी।“. . . . “मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस शोध पुस्तक के अवलोकन से भारतीय समाज में ही नहीं बल्कि अखिल भूमण्डल में एकता की लहर दौड़ पड़ेगी और धर्म के नाम पर होने वाले कलह शांत होंगे।”
यहां पर इस शोध की ख़ास बातें और अन्य स्रोतों से प्राप्त तद् विषयक सामग्री पेश की जा रही है।

अवतार का तात्पर्य
अवतार शब्द ‘अव’ उपसर्गपूर्वक ‘तृ’ धातु में ‘घञ्’ प्रत्यय लगाकर बना है। इसका अर्थ पृथ्वी पर आना है। ‘ईश्वर का अवतार’ शब्द का अर्थ— सबको संदेश देने वाले महात्मा का पृथ्वी पर जन्म लेना। कल्कि अवतार को ईश्वर का अन्तिम अवतार बताया गया है। ‘ईश्वर का अवतार’ शब्द में ‘का’ शब्द सम्बंधकारक चिन्ह है, अतः ज़ाहिर है कि ईश्वर से सम्बद्ध व्यक्ति का अवतीर्ण होना। ईश्वर से सम्बद्ध कौन है? उसका भक्त ही उससे सम्बद्ध हो सकता है। ऋगवेद में ऐसे व्यक्ति को ‘कीरि’ कहा गया है। हिन्दी में ‘कीरि’ शब्द का अर्थ ‘ईश्वर का प्रशंसक’ और अरबी में ‘अहमद’ होता है। लेकिन क्या ईश्वर का प्रशंसक ‘किरी’ या ‘अहमद’ एक नहीं हो सकता। हर देश और समय के लिए अलग-अलग अवतार हुए हैं क्योंकि एक अवतार से पूरे विश्व का कल्याण नहीं हो सकता था। क़ुरआन में ही हर भाग में रसूल (संदेशवाहक) भेजे गए। अंतिम अवतार कल्कि की अलग विशेषता है। वे किसी एक हिस्से के लिए नहीं वरन् समग्र विश्व के लिए भेजे गए।
जब लोग वास्तविक धर्म से विमुख होकर अधर्म की राह पकड़ लेते हैं या धर्म को अपने स्वार्थ के लिए तोड़-मरोड़ देते हैं, तो उन्हें फिर सही मार्ग दिखाने के लिए ईश्वर अपने अवतार या पैग़म्बर भेजता है।
अंतिम अवतार के आने का लक्षण
कल्कि के अवतरित होने का समय उस माहौल में बताया गया है, जबकि बर्बरता का साम्राज्य होगा। लोगों में हिंसा व अराजकता का बोलबाला होगा। पेडों का न फलना, न फूलना। अगर फल-फूल आएं भी तो बहुत कम। दूसरों को मारकर उनका धन लूट लेना और लड़कियों के पैदा होते ही उन्हें पृथ्वी में गाड़ देना। एक ईश्वर को छोड़कर कई देवी-देवताओं की पूजा, पेड़-पौधों एवं पत्थरों को भगवान मानने की प्रवृत्ति, भलाई की आड़ में बुराई करने की प्रवृत्ति, असमानता आदि है। ऐसे ही नाज़ुक दौर में हज़रत मुहम्म्द (सल्ल.) भेजे गए थे।
सातवीं शताब्दी के शुरु में रोमन और पर्सियन साम्राज्यों की जितनी बुरी अवस्था थी, उतनी शायद कभी नहीं हुई। बाइजेन्टाइन साम्राज्य के क्षीण हो जाने से सम्पूर्ण शासन भ्रष्ट हो चुका था। पादरियों के दुष्कर्मों और दुष्टताओं के फलस्वरूप ईसाई धर्म बहुत गिर गया था। पारस्परिक संघर्षों और शत्रुता के कारण अफ़रा-तफ़री का आलम था। इस समय हज़रत मुहम्म्द (सल्ल.) भेजे गए। इस्लाम धर्म रोमन साम्राज्यों के संघर्षों से दूर था। इस धर्म के भाग्य में यही लिखा था कि यह तूफ़ान की तरह से सम्पूर्ण पृथ्वी पर छा जाएगा और अपने समक्ष बहुत-से साम्राज्यों, शासकों और प्रथाओं को इस तरह उड़ा देगा जैसे कि आंधी मिट्टी को उड़ा देती है।1 इसी प्रकार सेल ने क़ुरआन के अनुवाद की प्रस्तावना में लिखा है—“गिरजाघर के पादरियों ने धर्म के टुकड़े-टुकड़े कर डाले थे और शांति प्रेम एवं अच्छाइयां लुप्त हो गई थीं। वे मूल धर्म को भूल गए थे। धर्म के विषय में अपने तरह-तरह के विचार बनाए हुए परस्पर कलह करते रहते थे। इसी पृथ्वी पर रोमन गिरजाघरों में बहुत-सी भ्रम की बातें धर्म के रूप में मानी जाने लगीं और मूर्ति पूजा बहुत ही निर्लज्जता से की जाने लगी।1 इसके परिणामस्वरूप एक ईश्वर के स्थान पर तीन ईश्वर हो गए और मरयम को ईश्वर की मां समझा जाने लगा। अज्ञानता के इस दौर में अल्लाह ने अपना अन्तिम रसूल भेजा।” 
दूसरी बात ध्यान देने कि यह है कि अन्तिम अवतार उस समय होगा जबकि युद्धों में तलवार का इस्तेमाल होता होगा और घोड़ों की सवारी की जाती हो। भागवत् पुराण में उल्लेख है कि ‘देवताओं द्वारा दिए गए वेगगामी घोड़े पर चढ़कर आठों ऐश्वर्यों और गुणों से युक

1.‘Apology for Mohammed’, by Gofrey Higgins, Pages.2
1.Translation of the Qur’an, by Gorage sale, First Translation/Preface on page 25/26

जगत्पति तलवार से दुष्टों का दमन करेंगे।2 तलवारों और घोड़ों का युग तो अब समाप्त हो चुका है। आज से लगभग चौदह सौ वर्ष पूर्व तलवारों और घोड़ों का प्रयोग होता था। उसके लगभग सौ वर्ष बाद से बारूद का निर्माण सोडा और कोयला मिलाकर होने लगा था। वर्तमान में तो घोड़ो और तलवारों का स्थान टैंकों और मिसाइलों आदि ने ले लिया है।  

कल्कि का अवतार-स्थान
कल्कि के अवतार का स्थान शम्भल ग्राम में होने का उल्लेख कल्कि एवं भागवत् पुराण में किया गया है। यहां पहले यह निश्चय करना आवश्यक है कि शम्भल ग्राम का नाम है या किसी ग्राम का विशेषण। डॉ. वेद प्रकाश उपाध्याय के मतानुसार ‘शम्भल’ किसी ग्राम का नाम नहीं हो सकता, क्योंकि यदि केवल किसी ग्राम विशेष को ‘शम्भल’ नाम दिया गया होता तो उसकी स्थिति भी बताई गई होती। भारत में खोजने पर यदि कोई ‘शम्भल’ नामक ग्राम मिलता है तो वहां आज से लगभग चौदह सौ वर्ष पहले कोई ऐसा पुरुष पैदा नहीं हुआ जो लोगों का उद्धारक हो। फिर अन्तिम अवतार कोई खेल तो नहीं कि 

2.अश्वमाशुगमारुह्या देवदत्तं जगत्पतिः। 
असिनासाधुदमनमष्टैश्वर्य गुणान्वितः।।            (भागवत् पुराण, 12 स्कन्ध, 2 अध्याय, 19वां श्लोक)
अवतार हो जाए और समाज में ज़रा-सा परिवर्तन भी न हो। अतः ‘शम्भल’ विशेषण मानकर उसकी व्युत्पत्ति पर विचार करना आवश्यक है। ‘शम्भल’ शब्द ‘शम्’ (शांत करना) धातु से बना है अर्थात्, जिस स्थान में शान्ति मिले।
(1) सम् उप सर्गपूर्वक ‘वृ’ धातु में अप् प्रत्यय के संयोग से निष्पन्न शब्द ‘संवर’ हुआ। वबयोरभेदः और रलयोरभेदः के सिद्धांत से शम्भल शब्द की निष्पत्ति हुई, जिसका अर्थ हुआ ‘जो अपनी ओर लोगों को खींचता है या जिसके द्वारा किसी को चुना जाता है’।
(2) ‘शम्वर’ शब्द का निघण्टु (1/12/88) में उदकनामों के पाठ हैं। ‘र’ और ’ल’ में अभेद होने के कारण शम्भल का अर्थ होगा जल के समीपवर्ती स्थान’।1
इस प्रकार वह स्थान जिसके आसपास जल हो और वह अत्यंत आकर्षक और शांतिदायक हो, वही शम्भल होगा। अवतार की भूमि पवित्र होती है। ‘शम्भल’ का शाब्दिक अर्थ है—शांति का स्थान। मक्का को अरबी में ‘दारुल अमन’ कहा जाता है, जिसका अर्थ शांति का घर होता है। मक्का मुहम्मद (सल्ल.) का कार्यस्थल रहा है।
1. कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, (पृ. 30) 
 
2.जन्म तिथि
कल्कि पुराण में अन्तिम अवतार के जन्म का भी उल्लेख किया 
गया है। इस पुराण के द्वीतीय अध्याय के श्लोक 15 में वर्णित है—
द्वादश्यां शुक्ल पक्षस्य, माधवे मासि माधवम् ।
जातो ददृशतुः पुत्रं पितरौ ह्रष्टमानसौ ।।
अर्थात् “जिसके जन्म लेने से दुखी मानवता का कल्याण होगा, उसका जन्म मधुमास के शुक्ल पक्ष और रबी फसल में चन्द्रमा की 12वीं तिथि को होगा।“ एक अन्य श्लोक में है कि कल्कि शम्भल में विष्णुयश नामक पुरोहित के यहां जन्म लेंगे।2 मुहम्मद साहब (सल्ल.) का जन्म 12 रबीउल अव्वल को हुआ। रबीउल अव्वल का अर्थ होता है : मधुमास का हर्षोल्लास का महीना। आप मक्का में पैदा हुए। विष्णुयशसः कल्कि के पिता का नाम है, जबकि मुहम्मद साहब के पिता का नाम अब्दुल्लाह था। जो अर्थ विष्णुयश का होता है वही अब्दुल्लाह का। विष्णु यानी अल्लाह और यश यानी बन्दा = अर्थात अल्लाह का बन्दा = अब्दुल्लाह।
इसी तरह कल्कि की माता का नाम सुमति (सोमवती) आया है 
3.शम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।
भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।   (भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, 2 अध्याय, 18वां श्लोक)

जिसका अर्थ है - शांति एवं मननशील स्वभाववाली। आप (सल्ल.) की माता का नाम भी आमिना था जिसका अर्थ है शांतिवाली।
अन्तिम अवतार की विशेषताएं
कल्कि की विशेषताएं हज़रत मुहम्मद साहब (सल्ल.) के जीवन (सीरत) से मिलती-जुलती हैं। इन विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन यहां पेश किया जा रहा है।
1. अश्वारोही और खड्गधारी—पहले लिखा जा चुका है कि भागवत पुराण में अंतिम अवतार के अश्वारोही और खड्गधारी होने का उल्लेख है। उसकी सवारी ऐसे घोड़े की होगी जो तेज़ गति से चलने वाला होगा और देवताओं द्वारा प्रदत्त होगा। तलवार से वह दुष्टों का संहार करेगा। घोड़े पर चढ़कर तलवार से दुष्टों का दमन करेगा। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को भी फ़रिश्तों द्वारा घोड़ा प्राप्त हुआ था, जिसका नाम बुर्राक़ था। उसपर बैठकर अंतिम रसूल ने रात्रि को तीर्थयात्रा की थी। इसे ‘मेराज’ भी कहते हैं। इस रात आपकी अल्लाह से बातचीत हुई थी और आपको बैतुलमक्‍किदस (यरूशलम) भी ले जाया गया था।
मुहम्मद साहब को घोड़े अधिक प्रिय थे। आपके पास सात घोड़े थे। हज़रत अनस (रजि.) से रिवायत है कि मैंने मुहम्मद (सल्ल.) को देखा कि घोड़े पर सवार थे और गले में तलवार लटकाए हुए थे।1 
1.बुख़ारी शरीफ़ की हदीस

आपके पास नौ तलवारें थीं। कुल परम्परा से प्राप्त तलवारें जुल्फ़िक़ार नामक तलवार, क़लईया नामवाली तलवार।
2. दुष्टों का दमन— कल्कि के प्रमुख विशेषताओं में एक विशेषता यह भी है कि यह दुष्टों का ही दमन करेगा।2 धर्म के प्रसार और दुष्टों के दमन में मदद के लिए देवता भी आकाश से उतर आएंगे।3 हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने दुष्टो का दमन किया। उन्होंने डकैतों, लुटेरों और अन्य असामाजिक तत्वों को सुधारकर मानवता का पाठ पढ़ाया और उन्हें सत्य मार्ग दिखाया। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने ऐसे कुसंस्कृत लोगों का सुसंस्कृत से रहना सिखाया। औरतों को उनका हक़ दिलाया। एकेश्वर के साथ तमाम देवताओं के घालमेल का आपने ज़ोरदार खंडन किया तथा कहा कि इस्लाम कोई नया धर्म नहीं है, बल्कि सनातन धर्म है। दुष्टों के दमन में आपको फ़रिश्तों की मदद मिली। कुरआन मजीद में अल्लाह कहता है कि अल्लाह ने तुमको बद्र की लड़ाई में मदद दी और तुम बहुत कम संख्या में थे, तो तुमको चाहिए कि तुम अल्लाह ही से डरो और उसी के शुक्रगुज़ार होओ। जब तुम मोमिनों से कह रहे थे कि क्या तुम्हारे लिए काफ़ी नहीं है कि तुम्हारा रब तुमको तीन हज़ार फरिश्ते भेजकर मदद करे, बल्कि अगर उसपर सब्र करो और अल्लाह से डरते रहो, तो अल्लाह तुम्हारी मदद 
2. भागवत पुराण 12-2-19
3. यात यूयं भुवं देवाः स्वांशावतरणे रताः (कल्कि पुराण, अध्याय 2, श्लोक 7)

पांच हज़ार फ़रिश्तों से करेगा। सूरा अहज़ाब में भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को ईश्वर की मदद मिलने का उल्लेख है। इस सूरह की आयत संख्या 9 में वर्णित है कि ‘‘ऐ ईमानवालों! अल्लाह की उस कृपा का स्मरण करो, जब तुम्हारे विरूद्ध सेनाएं आईं तो हमने भी उनके विरुद्ध पवन और ऐसी सेनाएं भेजीं, जिनको तुम नहीं देखते थे, और जो कुछ तुम कर रहे थे, वह अल्लाह देख रहा था।’’ इस प्रकार दुष्टों का नाश करने में ईश्वर ने हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की मदद के लिए अपने फ़रिश्ते और अपनी सेनाएं भेजी।
3. जगत्पति—पति शब्द ‘पा’ (रक्षा करना) धातु में उति ‘प्रत्यय’ के संयोग से बना है। जगत का अर्थ है संसार। अतः जगत्पति का अर्थ हुआ संसार की रक्षा करने वाला। भागवत पुराण में अंतिम अवतार कल्कि को जगत्पति भी कहा गया है।2 
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) जगत्पति3 हैं, क्योंकि उन्होंने पतनशील

1. (कुरआन, सूरा आले इमरान, आयत संख्या 123, 124 और 125)।
2. भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 19 वां श्लोक)
3. संस्कृत के व्याकरणाचार्य वामन शिवराम आप्टे ने ‘‘पति’’ शब्द का अर्थ ‘‘प्रधानता करनेवाला’’ भी बताया है (देखिए, संस्कृत हिन्दी कोश, पृ. 568, मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स संस्करण 1989)। इस प्रकार जगत्पति का अर्थ हुआ: संसार में प्रधानता करनेवाला। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) जिस इस्लाम धर्म को लेकर आए, वह यद्यपि मानव जीवन के आरंभ से विद्यमान था, परन्तु आप (सल्ल.) के ज़रिए इसे पूर्णता और प्रधानता प्राप्त हुई। कुरआन में अल्लाह का कथन है: ‘‘आज मैंने तुम्हारे लिए पूर्ण कर दिया और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी, और तुम्हारे लिए इस्लाम को ‘‘दीन’’ (धर्म) की हैसियत से पसंद किया।’’ (5:3)
(अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने संसार में सत्य को प्रधानता दी, उसे फैलाया और लोगों को इसके लिए उभारा कि स्वयं भी सत्य का अनुसरण करें और दूसरों तक सत्य-संदेश पहुंचाएं। आप (सल्ल.) के द्वारा नेकियों और अच्छाइयों को प्रधानता मिली। अच्छे शील स्वभाव और नैतिकता की पूर्ति हुई। एक हदीस में आप (सल्ल.) ने कहा: ‘‘अल्लाह ने मुझे नैतिक गुणों और अच्छे कामों की पूर्ति के लिए भेजा है।’’ (शरहुस्सुन्नह)

समाज को बचाया। उसकी रक्षा की और संमार्ग दिखाया। आप सारे संसार के लोगों के लिए ईश्वर का संदेश लेकर आए। कुरआन में है-‘‘ऐ मुहम्मद एलान कर दो कि सारी दुनिया के लिए नबी होकर तुम आए हो।’’1 एक अन्य स्थान पर है—‘‘अत्यंत बरकतवाला है वह जिसने अपने बंदे पर पवित्रा ग्रन्थ कुरआन उतारा ताकि सम्पूर्ण संसार के लिए वह पापों का डर दिखानेवाला हो।’’2

1.कुरआन, सूरा आराफ़, आयत संख्या 158)
2.कुरआन, सूरा फुरक़ान, आयत संख्या 1)

4. चार भाइयों के सहयोग से युक्त— कल्कि पुराण के अनुसार चार भाइयों के साथ कल्कि कलि (शैतान) का निवारण करेंगे।3
मुहम्मद (सल्ल.) ने भी चार साथियों के साथ शैतान का नाश किया था। ये चार साथी थे-अबू बक्र (रजि.), उमर (रजि.), उसमान (रजि.) और अली (रजि.)।
5. अंतिम अवतार—कल्कि को अंतिम युग का अंतिम अवतार बताया है।4 मुहम्मद (सल्ल.) ने भी एलान किया था कि मैं अंतिम रसूल हूं।
‘कल्कि’ शब्द का अर्थ ‘वाचस्पत्यम्’ तथा ‘शब्दकल्पतरु’ में अनार का फल खानेवाले तथा कलंक को धोनेवाले किया गया है। पैग़म्बर (सल्ल.) भी अनार और खजूर का फल खाते थे तथा प्राचीन काल में आगत मिश्रण (शिर्क) और नास्तिकता (कुफ्र) को धो दिया।5
6. उपदेश और उत्तर दिशा की ओर जाना—कल्कि पैदा होने के पश्चात पहाड़ी की तरफ़ चले जाएंगे और वहां परशुराम जी से ज्ञान प्राप्त करेंगे। बाद में उत्तर की तरफ़ जाकर फिर लौटेंगे। मुहम्मद

3.चतुर्भिभ्र्रातृभिर्देव करिष्यामि कलिक्षयम्। (कल्कि पुराण अध्याय 2, श्लोक 5)
4.भागवत पुराण के 24 अवतारों के प्रकरण में कल्कि सबसे अंतिम अवतार हैं।        (भा.पु. प्रथम स्कंध, तृतीय अध्याय, 25वां श्लोक)
5.कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब पृ. 41

(सल्ल.) भी जन्म के कुछ समय बाद पहाड़ियों की तरफ़ चले गए और वहां जिबरील (अलैहि.) के ज़रिए अल्लाह का ज्ञान प्राप्त किया। उसके बाद वे उत्तर मदीने जाकर वहां से फिर दक्षिण लौटे और अपने को जीत लिया। पुराणों में कल्कि के बारे में ऐसा भी लिखा है।
7. आठ सिद्धियों और गुणों से युक्त—कल्कि अवतार को भागवत पुराण 12 स्कन्ध, द्वितीय अध्याय में ‘अष्टैश्वर्यगुणान्वितः’ (आठ ईश्वरीय गुणों से युक्त) बताया गया है। ये आठ ईश्वरीय गुण महाभारत में भी उल्लेख किए गए हैं। ये गुण निम्न हैं—
1. वह महान ज्ञानी होगा।
2. वह उच्च वंश का होगा।
3. वह आत्मनियंत्रक होगा।
4. वह श्रुतिज्ञानी होगा।
5. वह पराक्रमी होगा।
6. वह अल्पभाषी होगा।
7. वह दानी होगा और
8. वह कृतज्ञ होगा।1 
अब हम इन गुणों को पैग़म्बरे इस्लाम (सल्ल.) के गुणों से 
1.अष्टौगुणा: पुरुषं दीपयन्ति, प्रज्ञा च कौल्यं च दम श्रुतंच।
पराक्रमश्चा बहुभाषिता च, दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च।     –महाभारत

क्रमवार साम्यता करेंगे। मुहम्मद (सल्ल.) महान ज्ञानी थे। उनमें प्रज्ञा दृष्टि थी।
आप (सल्ल.) ने भूत और भविष्य की अनेक बातें बताईं, जो एकदम सत्य सिद्ध हुईं।
पहले उल्लेख किया गया है कि रूमियों की हार और बाद में उनकी जीत की भविष्यवाणी मुहम्मद (सल्ल.) ने की थी। आपकी दूरदर्शिता से संबंधित अनेक उदाहरण हैं, जो आपके उच्च ज्ञान को सिद्ध करते हैं।
मुहम्मद (सल्ल.) उच्च वंश में पैदा हुए। आपका जन्म 571 ई. में कुरैश की पंक्ति में हाशिम परिवार में हुआ था, जो अरब के निवासियों द्वार माननीय और काबा का परम्परागत संरक्षक था।
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को इन्द्रियदमन या आत्मनियंत्राण का ईश्वरीय गुण भी प्राप्त था। आप आम्प्रशंसा से हीन, दयालु, शांत, इन्द्रियजीत और उदार थे।1 आप श्रुतिज्ञानी भी थे। श्रुत का अर्थ है, ‘जो ईश्वर के द्वारा सुनाया गया और ऋषियों द्वारा सुना गया हो।’ मुहम्मद (सल्ल.) पर जिबरील (अलैहि.) नामक फ़रिश्ते के ज़रिए ईश्वरीय ज्ञान भेजा जाता था। लेनपूल अपनी पुस्तक ''Introduction,
(Modesty and kinliness, patience, self deanial and riveted the affections off all around him, p.525, Life of Mohamed' by Sir Willaim Muir.)
Speeches of Muhammad" में लिखते हैं कि मुहम्मद (सल्ल.) को देवदूत की सहायता से ईश्वरीय वाणी का भेजा जाना निस्संदेह सत्य है। सर विलियम म्योर ने भी लिखा है कि वे सन्देष्टा और ईश्वर के प्रतिनिधि थे।2
पराक्रम अष्टगुणों में पांचवां गुण है। रसूलुल्लाह (सल्ल.) काफ़ी पराक्रमी भी थे। आपके पराक्रम को दर्शाते हुए डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने एक घटना का ज़िक्र किया है जो इस प्रकार है—
‘किसी गुफा में अकेले उपस्थित पहलवान, जो कुरैश से सम्बंधित था, से मुहम्मद (सल्ल.) ने ईश्वर से न डरने और ईश्वर पर विश्वास ने करने का कारण पूछा, जिसपर पहलवान ने सत्य की स्पष्टता के लिए कहा। तब मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा कि तू बड़ा वीर है, यदि कुश्ती में मैं तुझे नीचा दिखाऊँ तो क्या विश्वास करेगा? उसने स्वीकारात्मक उत्तर दिया। तब हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने उसे हरा दिया। (अल्लामा क़ाज़ी सलमान मंसूरपुरी ने अपनी सीरत की किताब ‘‘रहमतुललिल आलमीन’’ में ‘‘शिफ़ा’’ नामक पुस्तक के पृष्ठ 64 के हवाले से लिखा है कि आप (सल्ल.) ने उसे तीन बार हराया, फिर भी उस पहलवान ने मुहम्मद (सल्ल.) को पैग़म्बर न माना तथा ईश्वर की सत्यता पर विश्वास ने किया।
2.He was now the Servant, the Prophet, the vice gerent of God.
आठ गुणों में अल्पभाषी होना एक विशिष्ट गुण है। अल्लाह के रसूल (सल्ल.) कम बोलते थे। अधिकतर मौन रहते परन्तु जो कुछ बोलते थे, वह इतना प्रभावोत्पादक होता था कि लोग आपकी बातें नहीं भूलते थे।3
दान देना महापुरुषों का एक प्रमुख गुण रहा है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) दान देने से पीछे नहीं हटते। यही कारण था कि आपके घर पर ग़रीबों की भीड़ लगी रहती थी। आपके घर से कभी कोई निराश होकर नहीं लौटा।
मुहम्मद (सल्ल.) के गुणों में कृतज्ञता भी थी। वे किसी के उपकार को नहीं भूलते। अनसार के प्रति कहे गए वाक्य आपकी कृतज्ञता का प्रमाण पेश करते हैं।1 इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि मुहम्मद (सल्ल.) में आठों ईश्वरीय गुणों का समावेश था।
8. शरीर से सुगन्ध का निकलना—भागवत पुराण में भविष्यवाणी की गई है कल्कि के शरीर से ऐसी सुगंध निकलेगी, जिससे लोगों के मन निर्मल हो जाएंगे। उनके शरीर की सुगंध हवा में मिलकर लोगों 
3.Introduction The speeches of Mohammad by Lane-Pool page-24
1.असह उस सियर, पृ. 343

के मन को निर्मल करेगी।2 शिमायल तिरमिज़ी में लिखा है कि मुहम्मद (सल्ल.) के शरीर की खुशबू तो प्रसिद्ध ही है। मुहम्मद (सल्ल.) जिससे हाथ मिलाते थे, उसके हाथ से दिनभर सुगन्ध आती रहती थी।3
एक बार उम्मे सुलैत ने मुहम्मद (सल्ल.) के शरीर का पसीना एकत्रा किया। आप (सल्ल.) के पूछने पर उन्होंने बताया कि इसे हम खुशबूओं में मिलाते हैं क्योंकि यह सभी सुगन्ध से बढ़कर है।
9. अनुपम कान्ति से युक्त—कल्कि अनुपम कान्ति से युक्त होंगे।4 बुख़ारी शरीफ़ की हदीस के मुताबिक़ मुहम्मद (सल्ल.) सभी व्यक्तियों में अधिक सुंदर थे और सभी मनुष्यों में अधिक आदर्शवान एवं योद्धा थे।5 सर विलियम म्योर ने भी मुहम्मद (सल्ल.) को बहुत 

2.अथ तेषां भविष्यन्ति मनांसि विशदानि वै।
वासु देवांगरागाति पुण्यगन्धानिल स्पृशाम्।    (भागवत पुराण., द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 20वां श्लोक)
3.पृष्ठ 208, शिमाएल तिरमिज़ी, अनुवाद: मौलाना मुहम्मद ज़करिया
4.विचरन्नाशुना क्षोण्यां हयेनाप्रतिमद्युतिः।
नृपलिंगच्छदो दस्यून्कोटिशोनिहनिष्यति।। (भा.पु., द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 20वां श्लोक)
हज़रत अनस (रजि.) की रिवायत, जमउल फ़वायद, पेज 178

सुंदर स्वरूपवाला, पराक्रमी और दीनी बताया है।6
10. ईश्वरीय वाणी का उपदेष्टा—डा. वेद प्रकाश उपध्याय ‘कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब’ के पृष्ठ 50, 51 पृष्ठ पर लिखते हैं कि ‘कल्कि के विषय में यह बात भारत में प्रसिद्ध ही है कि वह जो धर्म स्थापित करेंगे वह वैदिक धर्म होगा और उनके द्वारा उपदिष्ट शिक्षाएं ईश्वरीय शिक्षाएं होगी। मुहम्मद (सल्ल.) के द्वारा अभिव्यक्त कुरआन ईश्वरीय वाणी है, यह तो स्पष्ट ही है, भले ही हठी लोग इस बात को न मानें। क़ुरआन में जो नीति, सदाचार, प्रेम, उपकार आदि करने के लिए प्रेरणा के स्रोत विद्यमान हैं, वही वेद में भी है। कुरआन में मूर्ति पूजा भी खण्डन, एकेश्वरवाद (तौहीद) की शिक्षा, परस्पर प्रेम के व्यवहार का उपदेश है। वेद में ‘एकम् सत्’ तथा विश्वबन्धुत्व की उत्कृष्ट घोषणा है। वेदों में ईश्वर की भक्ति का आदेश है और कुरआन की शिक्षा के द्वारा मुसलमान दिन में पाँच बार नमाज़ अवश्य पढ़ते हैं, जबकि ब्राह्मण वर्ग में बिरले लोग ही त्रिकाल संध्या करनेवाले मिलेंगे।
यहाँ यह तथ्य उजागर करना उचित होगा कि वेदों और कुरआन की शिक्षाओं में भी बहुत कुछ समानता है। मिसाल के तौर पर वेद, गीता और स्मृतियों में एक ईश्वर की भक्ति करने का आदेश है और
6.'He was' says and admiring follwen, the handsomest and bravest, the bright faced and most generous of men, P. 523, The Life of Mohammad'
अपनी की हुई बुराइयों की क्षमा माँगने के लिए भी उसी ईश्वर से प्रार्थना करने का आदेश है। क़ुरआन में है: ‘‘ऐ नबी! कह दो, मैं तो केवल तुम्हारे जैसा एक मनुष्य हूं। मेरी ओर वह्य (प्रकाशना) की जाती है कि तुम्हारा पूज्य अकेला पूज्य है, तो तुम सीधे उसी की ओर मुख करो और क्षमा भी उसी से माँगो।1 डा. उपाध्याय कहते हैं कि कल्कि और मुहम्मद (सल्ल.) के विषय में जो अभूतपूर्व साम्य मुझे मिला उसे देखकर आश्चर्य होता है कि जिन कल्कि की प्रतीक्षा में भारतीय बैठे हैं, वे आ गए और वही मुहम्मद साहब हैं।2
1.हा. मीम. अस सजदा आयत संख्या 6।
2.कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, पृ. 59 

उपनिषद् में भी मुहम्मद (सल्ल.) की चर्चा
 
 उपनिषदों में भी मुहम्मद साहब और इस्लाम के बारे में जहाँ-तहाँ उल्लेख मिलता है। नागेंद्र नाथ बसु द्वारा संपादित विश्वकोष के द्वितीय खण्ड में उपनिषदों के वे श्लोक दिए गए हैं, जो इस्लाम और पैग़म्बर (सल्ल.) से ताल्लुक़ रखते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख श्लोक और उनके अर्थ प्रस्तुत किए जा रहे हैं ताकि पाठकों को वास्तविकता का पता चल सके-
अस्माल्लां इल्ले मित्रावरुणा दिव्यानि धत्ते
इल्लल्ले वरुणो राजा पुनर्द्दुदः।
हयामित्रो इल्लां इल्लां वरुणो मित्रास्तेजस्कामः ।। 1 ।।
होतारमिन्द्रो होतारमिन्द्र महासुरिन्द्राः।
अल्लो ज्येष्ठं श्रेष्ठं परमं पूर्ण बह्माणं अल्लाम् ।। 2 ।।
अल्लो रसूल महामद रकबरस्य अल्लो अल्लाम् ।। 3 ।।  (अल्लोपनिषद 1, 2, 3)

सबसे ज़्यादा पूर्ण और सबसे ज़्यादा पवित्रा है। मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के श्रेष्ठतर रसूल हैं। अल्लाह आदि, अंत और सारे संसार का पालनहार है। तमाम अच्छे काम अल्लाह के लिए ही हैं। वास्तव में अल्लाह ही ने सूरज, चांद और सितारे पैदा किए हैं।’’
उपयुक्त उद्धरणों से यह निर्विवाद रूप से स्पष्ट हुआ कि सर्वशक्तिमान अल्लाह एक है और मुहम्मद (सल्ल.) उसके सन्देशवाहक (पैग़म्बर) हैं। इस उपनिषद के अन्य श्लोकों में भी इस्लाम और मुहम्मद (सल्ल.) की साम्यगत बातें आई हैं। इस उपनिषद में आगे कहा गया है—

आदल्ला बूक मेककम्। अल्लबूक निखादकम् ।। 4 ।।
अलो यज्ञेन हुत हुत्वा अल्ला सूय्र्य चन्द्र सर्वनक्षत्राः ।। 5 ।।
अल्लो ऋषीणां सर्व दिव्यां इन्द्राय पूर्व माया परमन्तरिक्षा ।। 6 ।।
अल्लः पृथिव्या अन्तरिक्ष्ज्ञं विश्वरूपम् ।। 7 ।।
इल्लांकबर इल्लांकबर इल्लां इल्लल्लेति इल्लल्लाः ।। 8 ।।
ओम् अल्ला इल्लल्ला अनादि स्वरूपाय अथर्वण श्यामा हुद्दी जनान पशून सिद्धांत
जलवरान् अदृष्टं कुरु कुरु फट ।। 9 ।।
असुरसंहारिणी हृं द्दीं अल्लो रसूल महमदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्
इल्लल्लेति इल्लल्ला ।। 10 ।।
इति अल्लोपनिषद

अर्थात् ‘‘अल्लाह ने सब ऋषि भेजे और चंद्रमा, सूर्य एवं तारों को पैदा किया। उसी ने सारे ऋषि भेजे और आकाश को पैदा किया। अल्लाह ने ब्रह्माण्ड (ज़मीन और आकाश) को बनाया। अल्लाह श्रेष्ठ है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह सारे विश्व का पालनहार है। वह तमाम बुराइयों और मुसीबतों को दूर करने वाला है। मुहम्मद अल्लाह के रसूल (संदेष्टा) हैं, जो इस संसार का पालनहार है। अतः घोषणा करो कि अल्लाह एक है और उसके सिवा कोई पूज्य नहीं।’’1 
(बहुत थोड़े से विद्वान, जिनका संबंध विशेष रूप से आर्यसमाज से बताया जाता है, अल्लोपनिषद् की गणना उपनिषदों में नहीं करते और इस प्रकार इसका इनकार करते हैं, हालांकि उनके तर्कों में दम नहीं है। इस कारण से भी हिन्दू धर्म के अधिकतर विद्वान और मनीषी अपवादियों के आग्रह पर ध्यान नहीं देते। गीता प्रेस (गोरखपुर) का नाम हिन्दू धर्म के प्रमाणिक प्रकाशन केंद्र के रूप में अग्रगण्य है। यहां से प्रकाशित ‘‘कल्याण’’ (हिन्दी पत्रिका) के अंक अत्यंत प्रामाणिक माने जाते हैं। इसकी विशेष प्रस्तुति ‘‘उपनिषद अंक’’ में 220 उपनिषदों की सूची दी गई है, जिसमें अल्लोपनिषद् का उल्लेख 15वें नंबर पर किया गया है। 14वें नंबर पर अमत बिन्दूपनिषद् और 16वें नंबर पर अवधूतोपनिषद् (पद्य) उल्लिखित है। डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने भी अल्लोपनिषद को प्रामाणिक उपनिषद् माना है। ‘देखिए: वैदिक साहित्य: एक विवेचन, प्रदीप प्रकाशन, पृ. 101, संस्करण 1989।

प्राणनाथी (प्रणामी) सम्प्रदाय की शिक्षा
 
हिन्दुओं के वैष्णव समुदाय में प्राणनाथी सम्प्रदाय उल्लेखनीय है। इसके संस्थापक एंव प्रवर्तक महामति प्राणनाथ थे। आपका जन्म का नाम मेहराज ठाकुर था। प्राणनाथ जी का जन्म 1618 ई. में गुजरात के जामनगर शहर में हुआ था। आपने इन्सानों को एकेश्वरवाद की शिक्षा दी और एक ही निराकार ईश्वर की पूजा-उपासना पर बल दिया। आपने नुबूव्वत अर्थात ईशदूतत्व की धारणा का समर्थन किया और इसे सही ठहराया। प्राणनाथ जी कहते हैं— कै बड़े कहे पैगमंर, पर एक महमंद पर खतम।
अर्थात, धर्मग्रंथों में अनेकों पैग़म्बर बड़े कहे गए, किन्तु मुहम्मद साहब पर ईशदूतों की श्रृंखला समाप्त हुई। रसूल मुहम्मद (सल्ल.) आख़िरी पैग़म्बर हुए। प्राणनाथ जी ने एक स्थान पर लिखा— रसूल आवेगा तुम पर, ले मेरा फुरमान।
आए मेर अरस की, देखी सब पेहेचान।।
अर्थात, (ईश्वर ने कहाः) मेरा रसूल मुहम्मद तुम्हारे पास मेरा संदेश लेकर आएगा। वह संसार में आकर तुम्हें मेरे अर्श या परमधाम की सब तरह से पहचान कराने के लिए कुछ संकेत देगा।2
1.मारफ़त सागर, पृ. 39, श्री प्राणनाथ मिशन, नई दिल्ली।
2.मारफ़त सागर, पृ. 19, श्री प्राणनाथ मिशन, नई दिल्ली।
 
 हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) और बौद्ध धर्म ग्रन्थ
अंतिम बुद्ध-मैत्रेय और मुहम्मद (सल्ल.) 
बौद्ध ग्रन्थों में जिस अंतिम बुद्धि मैत्रेय के आने की भविष्यवाणी की गई है, वे हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही सिद्ध होते हैं। ‘बुद्ध’ बौद्ध धर्म की भाषा में ऋषि होते हैं। गौतम बुद्ध ने अपने मृत्यु के समय अपने प्रिय शिष्य आनन्दा से कहा था कि ‘‘नन्दा! इस संसार में मैं न तो प्रथम बुद्ध हूं और न तो अंतिम बुद्ध हूं। इस जगत् में सत्य और परोपकार की शिक्षा देने के लिए अपने समय पर एक और ‘बुद्ध’ आएगा। यह पवित्र अन्तःकरणवाला होगा। उसका हृदय शुद्ध होगा। ज्ञान और बुद्धि से सम्पन्न तथा समस्त लोगों का नायक होगा। जिस प्रकार मैंने संसार को अनश्वर सत्य की शिक्षा प्रदान की, उसी प्रकार वह भी विश्व को सत्य की शिक्षा देगा। विश्व को वह ऐसा जीवन-मार्ग दिखाएगा जो शुद्ध तथा पूर्ण भी होगा। नन्दा! उसका नाम मैत्रेय होगा।1 बुद्ध का अर्थ ‘बुद्धि से युक्त’ होता है। बुद्ध मनुष्य ही होते हैं, देवता आदि नहीं।2  मैत्रेय का अर्थ 'दया से युक्‍त' होता है।
1.Gospel of Buddha, by Carus, P-217
2.It is only a human being tha can be a Buddha, a deity can not. 'Mohammad in the Buddist Scriputures P.1' 
मैत्रेय की मुहम्मद (सल्ल.) से समानता 
अंतिम बुद्ध मैत्रेय में बुद्ध की सभी विशेषताओं का पाया जाना स्वाभाविक है। बुद्ध की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं।

1. वह ऐश्वर्यवान् एवं धनवान होता है।
2. वह सन्तान से युक्त होता है।
3. वह स्त्री और शासन से युक्त रहता है।
4. वह अपनी पूर्ण आयु तक जीता है।1 
5. वह अपना काम खुद करता है।2
6. बुद्ध केवल धर्म प्रचारक होते हैं।3
7. जिस समय बुद्ध एकान्त में रहता है, उस समय ईश्वर उसके साथियों के रूप में देवताओं और राक्षसों को भेजता है।4
8. संसार में एक समय में केवल एक ही बुद्ध रहता है।5 
 
1.Warren,P. 79
2.The Dhammapada, S.B.E Vol. X.P.P. 67
3.The Tathgatas are only preaches, 'The Dhammapada S.B.E. Vol X. P.67
4.Saddharma-Pundrika, S.B.E. Vol XXI., P. 225
The life and teachings of Buddha, Anagarika Dhammapada P. 84) 
9. बुद्ध के अनुयायी पक्के अनुयायी होते हैं, जिन्हें कोई भी उनके मार्ग से विचलित नहीं कर सकता।1 
10. उसका कोई व्यक्ति गुरु न होगा।2
11. प्रत्येक बुद्ध अपने पूर्णवर्ती बुद्ध का स्मरण कराता है और अपने अनुयायियों को ‘मार’ से बचने की चेतावनी देता है।3 मार का अर्थ बुराई और विनाश को फैलनेवाला होता है। इसे शैतान कहते हैं।
12. सामान्य पुरुषों की अपेक्षा बुद्धों की गर्दन की हड्डी अत्यधिक दृढ़ हाती थी, जिससे वे गर्दन मोड़ते समय अपने पूरे शरीर को हाथी की तरह घुमा लेते थे।
अंतिम बुद्ध मैत्रेय की इनके अलावा अन्य विशेषताएं भी हैं। मैत्रेय के दयावान होने और बोधि वृक्ष के नीचे सभा का आयोजन करनेवाला भी बताया गया है। इस वृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति होती है।
डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने यह सिद्ध किया है ये सभी विशेषताएँ मुहम्मद (सल्ल.) के जीवन में मिलती है। तथा अंतिम  
 
1.Dhammapada, S.B.E. Vol. X. P. 67
2.Romantic History of Buddha, by Beal, P.241
Dhammapada, S.B.E. Vol. X1, P. 64 
 
बुद्ध मैत्रेय हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। डा. उपाध्याय द्वारा इस विषय में प्रस्तुत तथ्य यहाँ ज्यों के त्यों प्रस्तुत किए जा रहे हैं—
‘कुरआन में मुहम्मद साहब के ऐश्वर्यवान और धनवान होने के विषय में यह ईश्वरीय वाणी है कि ‘तुम पहले निर्धन थे, हमने तुमको धनी बना दिया।’ मुहम्मद साहब ऋषि पद प्राप्त करने के बहुत पहले धनी हो गए थे।1 मुहम्मद साहब के पास अनेक घोड़े थे। उनकी सवारी के रूप में प्रसिद्ध ऊंटनी ‘अलकसवा’ थी, जिस पर सवार होकर मक्का से मदीना गए थे और बीस की संख्या में ऊंटनियां थीं, जिसका दूध मुहम्मद साहब और उनके बाल-बच्चों के पीने के लिए पर्याप्त था, साथ ही साथ सभी अतिथियों के लिए भी पर्याप्त था। ऊंटनियों का दूध ही मुहम्मद साहब व उनके बाल-बच्चों का प्रमुख आहार था। मुहम्मद साहब के पास सात बकरियां थीं, तो दूध का साधन थीं। मुहम्मद साहब दूध की प्राप्ति के लिए भैंसे नहीं रखते थे, इसका कारण यह है कि अरब में भैंसे नहीं होती।2 उनकी सात बाग़ें खजूर की थीं जो बाद में धार्मिक कार्यों के लिए मुहम्मद साहब द्वारा दे दी गई थीं। 
 1.‘व-व-ज-द-क-आ-इलन फ़अग्ना’ (और तुमको निर्धन पाया, बाद में तुमको धनी कर दिया)
2.Life of Mohomet-Sir William Muir 'Cambridge, Edition P. 545-54
मुहम्मद साहब के पास के पास तीन भूमिगत सम्पत्तियां थीं, जो कई बीघे के क्षेत्रा में थीं। मुहम्मद साहब के अधिकार में कई कुएं भी थे। इतना स्मरणीय है कि अरब में कुआँ का होना बहुत बड़ी सम्पत्ति समझी जाती थी, क्योंकि वहां रेगिस्तानी भू-भाग है। मुहम्मद साहब की 12 पत्नियां, चार लड़कियां और तीन लड़के थे। बुद्ध के अंतर्गत पत्नी और संतान का होना द्वितीय गुण है। मुहम्मद साहब के पूर्ववर्ती भारतीय बुद्धों में यह गुण नाम मात्र को पाया जाता था, परन्तु मुहम्मद साहब के पास उसका 12 गुना गुण विद्यमान था।1
मुहम्मद साहब ने शासन भी किया। अपने जीवनकाल में ही उन्होंने बड़े-बड़े राजाओं को पराजित करे उनपर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। अरब के सम्राट होने पर भी उनका भोज्य पदार्थ पूर्ववत् था।2
मुहम्मद साहब अपनी पूर्ण आयु तक जीवित रहे। अल्पायु में उनका देहावसान नहीं हुआ और न तो वे किसी के द्वारा मारे गए।
मुहम्मद साहब अपना काम स्वयं कर लेते थे। उन्होंने जीवन भर धर्म का प्रचार किया। उनके धर्म प्रचारक स्वरूप की पुष्टि अनेक 
 
1.Life of Mahomet-Sir William Muir (Cambridge Edition) P. 547
2.‘The fare of the desert seemed most congenial to hi, even 
when he was sovereign of Arabia.’
The speeches an table talk of the Prophet Mohammad by Lanepole 
इतिहासकारों ने भी की है।1 मुहम्मद साहब ने भी अपने पूर्ववर्ती ऋषियों का समर्थन किया, इस बात के लिए आप पूरा कुरआन देख सकते हैं। उदाहरण के रूप में कुरआन में दूसरी सूरा में उल्लेख है-
‘‘ऐ आस्तिको! (मुसलमानों) तुम कहा कि हम ईश्वर पर पूर्ण आस्था रखते हैं और जो पुस्तक हम पर अवतीर्ण हुई, उसपर और जो-जो कुछ इब्राहीम, इसमाईल और याकूब पर और उनकी संतान (ऋषियों) पर और जो कुछ मूसा और ईसा को दी गई उन पर भी और जो कुछ अनेक ऋषियों को उनके पालक (ईश्वर) की ओर से उपलब्ध हुई, उन पर भी हम आस्था रखते हैं और उन ऋषियों में किसी प्रकार का अंतर नहीं मानते हैं, और हम उसी एक ईश्वर के माननेवाले हैं।’’2
 मुहम्मद साहब ने अपने अनुयायियों को शैतान से बचने की चेतावनी बार-बार दी थी। कुरआन में शैतान से बचने के लिए यह कहा गया है कि जो शैतान को अपना मित्र बनाएगा, उसे वह भटका देगा और नारकीय कष्टों का मार्ग प्रदर्शित करेगा।3
मुहम्मद साहब के अनुयायी कभी भी मुहम्मद साहब के बताए हुए मार्ग से विचलित न होते हुए उनकी पक्की शिष्यता अथवा मैत्री में आबद्ध रहते हैं। मुहम्मद साहब के अनुयायियों ने आमरण उनका 
 
1.Mohammad and Mohammadenism by Bosworth smith, P. 98
2.कुरआन, सूरा-2, आयत 236
3.कुरआन, सूरा-22, आयत 4 
संग नहीं छोड़ा, भले ही उन्हें कष्टों का सामना करना पड़ा हो। संसार में जिस समय मुहम्मद साहब बुद्ध थे, उस समय किसी भी देश में कोई अन्य बुद्ध नहीं था। मुहम्मद साहब के बुद्ध होने के समय सम्पूर्ण संसार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी।
मुहम्मद साहब का कोई भी गुरु संसार का व्यक्ति नहीं था। मुहम्मद साहब पढ़े-लिखे भी नहीं थे, इसीलिए उन्हें, ‘उम्मी’ भी कहा जाता है। ईश्वर द्वारा मुहम्मद साहब के अंतःकरण में उतारी गई आयतों की संहिता कुरआन है। प्रत्येक बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष का होना आवश्यक है। किसी बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष के रूप में अश्वत्थ (पीपल), किसी के लिए न्यग्रोध (बरगद) तथा किसी बुद्ध के लिए उदुम्बर (गूलर) प्रयुक्त हुआ है। बुद्ध के लिए जिस बोधिवृक्ष का होना बताया गया है, वह कड़ी और भारयुक्त काष्ठवाला वृक्ष है।1 
हज़रत मुहम्मद साहब के लिए बोधिवृक्ष के रूप में हुदैबिया स्थान में एक कड़ी और भारयुक्त काष्ठवाला वृक्ष था, जिसके नीचे मुहम्मद  साहब ने सभा भी की थी।
‘मैत्रेय’ का अर्थ होता है-दया से युक्त। 16 अक्तूबर सन् 1930 ‘लीडर’ पृ. 7 कालम 3 में एक बौद्ध ने ‘मैत्रेय’ का अर्थ ‘दया’ किया है। 
According to some of the modern Buddhist Scholars the Bo-tree of the Buddha Maierya is the Iron wood-tree (Mohammad in the Buddhist scriptures. P. 64) ।
 
मुहम्मद साहब दया से युक्त थे। इसी कारण मुहम्मद साहब को ‘‘रहमतुललिल आलमीन’’ कहा जाता है।1 जिसका अर्थ है-‘समस्त संसार के लिए दया से युक्त।’ (‘नराशंस और अंतिम ऋषि’ पृष्ठ 54 से 58)
स्वर्गीय बोधिवृक्ष बहुत ही विस्तृत क्षेत्र में है। कहा गया है कि बुद्ध स्थिर दृष्टि से उस बोधिवृक्ष को देखता है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने भी जन्नत में एक वृक्ष देखा था, जो ईश्वर के सिंहासन के दाहिनी ओर विद्यमान था। यह वृक्ष इतने बड़े क्षेत्र में था जिसे एक घुड़सवार लगभग सौ वर्षों में भी उसकी छाया को पार नहीं कर सकता।2 हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने भी स्वर्गीय वृक्ष को आँख गड़ाए हुए देखा था।
मैत्रेय के बारे में यह भी कहा गया है कि किसी भी तरफ़ मुड़ते समय वह अपने शरीर को पूरा घुमा लेगा। मुहम्मद साहब भी किसी मित्र की ओर देखते समय अपने शरीर को पूरा घुमा लेते थे।3  
 
1.वमा अर्सल्ना-क-इल्ला रहमतलिल आलमीन (कुरआन, सूरा-11, आयत 107) 
ऐ मुहम्मद! हमने तुमको सारी दुनिया के लिए दया बनाकर भेजा।)
2.In Paradise there is a tree (such) that a rider can not cross its shade in hundred years.(Mohammad in the Buddhist Scriptures, Page 79)।
3.If the turned in conversation towards a friend he turned not partially but with his full face and his whole body. (The Life of Mahomma by William Muir, Page 511, 512)। 
इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि बौद्ध ग्रन्थों में जिस मैत्रेय के आने की भविष्यवाणी की गई है वह हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। 

जैन धर्म और हज़रत मुहम्मद (सल्ल.)
डॉ. पी. एच. चौबे ने लिखा है—
‘‘मैं मुहम्मद (सल्ल.) को कल्कि अवतार मानता हूं। पुराणों में इस अवतार (पैग़म्बर) का वर्णन है। कहा गया है कि कल्कि अवतार बुद्धावतार के बाद होगा, जिसका जन्म शम्भल नामक नगर में एक पुजारी परिवार में होगा, उसकी सवारी घोड़ा और हथियार तलवार होगा। वह सम्पूर्ण पृथ्वी पर अपने सत्य धर्म की विजय करेगा।                (विस्तृत विवरण के लिए देखें कल्कि पुराण)
जैन धर्म के ग्रंथकारों ने भी कल्कि अवतार का वर्णन किया है और उसके आने का काल महावीर स्वामी ने निर्वाण के एक हज़ार वर्ष बाद माना है। महावीर स्वामी के निर्वाण का वर्ष प्रायः 571 ई.पू. निश्चित किया जाता है। इस प्रकार एक हज़ार वर्ष बाद कल्कि अवतार का आगमन होता है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) का जन्मकाल वही वर्ष पड़ता है जो कल्कि अवतार के आने का काल है। कल्कि अवतार की अन्य विशेषताएं और उसके गुण हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से साम्यता रखते हैं। एक प्रसिद्ध जैन लेखक जिसने अपने ग्रंथ  हरिवंश पुराण में लिखा है कि महावीर के निर्वाण के 605 वर्ष 5 माह बाद शक राज का जन्म हुआ तथा गुप्त संवत 231 वर्ष के शासन के बाद कल्कि अवतार का जन्म हुआ। इस आशय का श्लोक इस प्रकार है—
‘‘गुप्तानां चश्त दूयम।
एक विंवश् च वर्षाणि कालविद् भिरुदा हृतम ।। 490 ।।
चित्वा रिंश देवातः कल्किराजस्य राजता।
ततोड जिटंजयों राजा स्यादिन्द्रपुर संस्थितः ।। 491 ।।
 
 जिनसेन कृत हरिवंश पुराण अ. 60
दूसरे जैन ग्रंथकार गुणभद्र ने उत्तर पुराण में लिखा है कि महावीर निर्वाण के 1000 वर्ष बाद कल्किराज का जन्म हुआ। (Indian Antiquary Vol. X V.V. 143)
तीसरे जैन ग्रंथकार नेमिचंद्र अपने ग्रंथ ‘त्रिलोकसागर’ में लिखते हैं, ‘‘शकराज निर्वाण के 605 वर्ष 5 माह बाद तथा शककाल से 394 वर्ष 7 माह पश्चात कल्कि राज पैदा हुआ।’’ इस ग्रंथ में इस भाव का वाक्य है—
 
‘‘पणछस्सयं वस्संपण मासजदं गमिय वीर णिवुइ दो।
सगराजो सो कल्कि चतुणवतिय महिप सगमासं।।’’
-त्रिलोकसार, पृ. 32
इस प्रकार ऐसा लगता है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) वही थे, धर्माचायों ने जिनके बारे में बताया।
सचमुच जिस प्रकार जब तक एक शासक शासन करता है तब तक उसके द्वारा बताए नियम का पालन जनता करती है, परन्तु उसके शासन के समाप्त होते ही दूसरे शासक के आदेशों को लोग शिरोधार्य करते हैं, ठीक उसी प्रकार जब तक जिस शास्ता, अवतार, पैग़म्बर का काल रहता है उसकी आज्ञाओं-उपदेशों का फैलाव होता है परन्तु उसके उपदेशों में विकृति आते ही ईश्वर की तरफ़ से जब दूसरा पैग़म्बर, अवतार आता है तो उसका शासन चलता है। इस लिहाज़ से आज हम हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) अन्तिम ‘रसूल’ अथवा आख़िरी अवतार ‘कल्कि’ के ‘शासन काल’ में हैं और अब प्रलय (क़ियामत) तक उनका शासन रहेगा, जिनका प्रमाण पुराण, कुरआन और अन्य ग्रन्थ दे चुके हैं। अतएव हमारे लिए अन्तिम शास्ता (हज़रत मुहम्मद) के ही ‘शासन’ में रहकर आपके उपदेशों व आचारों का अनुगमन करना ही आध्यात्मिक और व्यावहारिक दोनों पक्षों से उचित है। इससे हमारा संसार व परलोक दोनों सुधर सकता है।
अतः अंतिम संदेष्टा, पैग़म्बर, ‘कल्कि अवतार’ हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के उपदेशों का अनुगमन ही आपके प्रति सही एवं सच्चे अर्थों  में श्रद्धा-अर्पण होगा। यही ईश समर्पण के लिए सच्चा मार्ग होता है।’’1
1.कान्ति मासिक (दिल्ली), जुलाई 1997, पृ. 33-34