Total View : 662

Isa maseeh aur maryam

  
  • PART 1
  • PART 2
  • PART 3

ईसा मसीह (अलैहि॰)

ईसा मसीह (अलैहि॰) ईश्वरीय दूत
ईसा मसीह (अलैहि॰) ईश्वरीय दूत थे.....ईश्वरीय दूत के सिवा और कुछ न थे। न तो उनमें दैवी गुण थे, न ही उनकी माता मरयम में। वे दोनों ईश्वर के दूसरे प्राणियों की भांति प्रतिदिन भोजन करते थे। क़ुरआन में है—
मरयम का बेटा मसीह इसके सिवा कुछ नहीं कि बस एक रसूल (पैग़म्बर) था, उससे पहले और भी बहुत से रसूल हो चुके थे, उसकी माता एक सत्यवती1 स्त्री थी, और वे दोनों भोजन2 करते थे। देखो हम किस प्रकार उनके समक्ष यथार्थ की निशानियां स्पष्ट करते हैं, फिर देखो ये किधर उलटे फिरे जाते हैं। 
(क़ुरआन, 5:75)
वह (ईसा मसीह) बोल उठा, ‘‘मैं अल्लाह का बन्दा हूं, उसने मुझे किताब दी और नबी बनाया और बरकत वाला किया जहां भी मैं रहूं। और मुझे नमाज़ और ज़कात (दान) की पाबन्दी का आदेश दिया जब तक मैं जीवित रहूं। और अपनी मां का हक़ अदा करने वाला बनाया और मुझ को ज़ालिम और अत्याचारी नहीं बनाया। सलाम है मुझ पर जबकि मैं पैदा हुआ और जबकि मैं मरूं और जबकि मैं जीवित करके उठाया जाऊं।’’ यह है मरयम का बेटा ईसा और यह है उसके विषय में वह सच्ची बात जिसमें लोग सन्देह कर रहे हैं। अल्लाह का यह काम नहीं कि वह किसी को अपना बेटा बनाए। वह पवित्र ज़ात है, वह जब किसी बात का निर्णय करता है तो कहता है कि हो जा, और बस वह हो जाती है।                           (क़ुरआन, 19:30-35)
ईसा मसीह (अलैहि॰) को स्पष्ट निशानियां दी गईं
ईसा मसीह (अलैहि॰) का जन्म एक चमत्कार था। उनके कोई पिता नहीं थे, इसी कारण पवित्र क़ुरआन में उनका उल्लेख ‘मरयम का पुत्र’ कहकर किया गया है। परमेश्वर ने उन्हें आध्यात्मिक शक्ति और आदेश पवित्र आत्मा द्वारा प्रदान किया। ईसा मसीह (अलैहि॰) से सम्बन्धित कुछ असाधारण घटनाओं और चमत्कारों का वर्णन क़ुरआन स्पष्ट निशानियों द्वारा करता है।
हमने मूसा को ‘किताब’ (तौरात) दी, उसके पश्चात निरन्तर रसूल भेजे, अन्त में मरयम के बेटे ईसा को स्पष्ट निशानियां देकर भेजा और पवित्र आत्मा से उसकी सहायता की। फिर यह तुम्हारा क्या ढंग है कि जब भी कोई रसूल (ईश्वरीय दूत) तुम्हारी अपनी इच्छाओं के प्रतिकूल कोई चीज़ लेकर तुम्हारे पास आया, तो तुमने (उसके मुक़ाबले में) सरकशी ही की।  (क़ुरआन, 2:87)
और जब ईसा स्पष्ट निशानियां लिए हुए आया तो उसने कहा, ‘‘मैं तुम लोगों के पास तत्वदर्शिता लेकर आया हूं, और इसलिए आया हूं कि तुम पर कुछ उन बातों की वास्तविकता खोल दूं जिनमें तुम मतभेद कर रहे हो, अतः तुम अल्लाह से डरो और मेरी बात मानो।’’                        (क़ुरआन, 43:63)
ये रसूल ऐसे हुए हैं कि इनमें हमने कुछ को कुछ पर श्रेष्ठता प्रदान की। इनमें कोई ऐसा था जिससे अल्लाह ने स्वयं बातें कीं, किसी को उसने दूसरी हैसियतों से ऊंचे दरजे दिए, और अन्त में मरयम के बेटे ईसा को खुली निशानियां प्रदान कीं और पवित्र आत्मा से उसकी सहायता की।             (क़ुरआन, 2:253)
और मरयम के बेटे और उसकी मां को हमने एक निशानी बनाया और उनको एक उच्च धरातल पर रखा जो इत्मीनान की जगह थी और स्रोत उसमें प्रवाहित थे। (क़ुरआन, 23:50)
ईशदूतों में कोई भेदभाव नहीं
दूसरे धर्मों की मान्यताओं के विपरीत इस्लाम धर्म के अनुयायियों में ‘हमारे पैग़म्बर’, ‘तुम्हारे पैग़म्बर’ या ‘उनके पैग़म्बर’ जैसी धारणा नहीं पाई जाती। क़ुरआन के आदेशानुसार प्रत्येक मुस्लिम ईशदूतों पर बिना किसी अन्तर या भेदभाव के, अनिवार्य रूप से आस्था रखता है।
कहो, ‘‘हम ईमान लाए अल्लाह पर और उस मार्गदर्शन पर जो हमारी ओर उतरा है और जो इबराहीम, इसमाईल, इसहाक़, याक़ूब और याक़ूब की सन्तान की ओर उतरा था और जो मूसा और ईसा और दूसरे सभी पैग़म्बरों को उनके प्रभु की ओर से दिया गया था। हम उनके3 बीच कोई अन्तर नहीं करते और हम अल्लाह के मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं।’’        (क़ुरआन, 2:136)
(ऐ नबी) कहो, ‘‘हम अल्लाह को मानते हैं, उस शिक्षा को मानते हैं जो हम पर उतारी गई है। उन शिक्षाओं को भी मानते हैं जो इबराहीम, इसमाईल, इसहाक़, याक़ूब और याक़ूब की सन्तान पर उतरी थीं, और उन आदेशों को भी मानते हैं जो मूसा और ईसा और दूसरे पैग़म्बरों को उनके प्रभु की ओर से दिए गए। हम उनके बीच अन्तर नहीं करते और हम अल्लाह के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं।’’                   (क़ुरआन, 3:84)
ईसा मसीह (अलैहि॰) अन्य ईशदूतों की भांति ईशदूत
ईशदूत नूह (अलैहि॰) से मुहम्मद (सल्ल॰)4 तक आने वाले सभी ईशदूतों की भांति ईसा मसीह भी एक ईशदूत5 थे। उन सब में एक चीज़ सर्व सामान्य थी; और वह थी ईश-प्रकाशना।
(ऐ नबी) हमने तुम्हारी ओर उसी प्रकार प्रकाशना भेजी है जिस प्रकार नूह और उसके बाद के पैग़म्बरों की ओर भेजी थी। हमने इबराहीम, इसमाईल, इसहाक़, याक़ूब और याक़ूब की सन्तान, ईसा, अय्यूब, यूनुस, हारून और सुलैमान की ओर प्रकाशना भेजी। हमने दाऊद को ज़बूर दी।    (क़ुरआन, 4:163)
फिर हमने उसे (इबराहीम को) इसहाक़ और याक़ूब जैसे पुत्र दिए और हर एक का पथ-प्रदर्शन किया। (वही सीधा मार्ग जो) उससे पहले नूह को दिखाया था, और उसकी सन्तान में हमने दाऊद, सुलैमान, अय्यूब, यूसुफ़, मूसा और हारून को सीधा मार्ग दिखाया। इस प्रकार हम सत्कर्मी लोगों को उनकी नेकी का बदला देते हैं। (उसी की सन्तान में) ज़करिया, यह्या, ईसा और इलयास को मार्ग दिखाया। हर एक इनमें नेक था। (क़ुरआन, 6:84-85)
ईसा मसीह (अलैहि॰) की न हत्या हुई, न उन्हें सूली पर चढ़ाया गया
यह तथ्य विचारणीय है कि ईसाई धर्म के आरम्भिक समय में ईसाइयों का बेसीलीडन नामक गरोह इस पर विश्वास नहीं रखता था कि ईसा मसीह की मृत्यु सूली पर हुई है। उनकी धारणा यह थी कि किसी अन्य व्यक्ति को उनके स्थान पर सूली चढ़ाया गया। क़ुरआन का दृष्टिकोण यह है कि ईसा मसीह की यहूदियों द्वारा न तो हत्या की गई और न उन्हें सूली पर चढ़ाया गया, बल्कि कुछ ऐसी परिस्थितियां सामने आईं जिन्होंने उनके शत्रुओं को सन्देह में डाल दिया। क़ुरआन का उल्लेख है—
उन्होंने कहा, ‘‘हमने मरयम के बेटे ईशदूत ईसा मसीह की हत्या कर दी है’’—हालांकि वास्तव में इन्होंने न उसकी हत्या की, न सूली पर चढ़ाया बल्कि मामला इनके लिए सन्दिग्ध कर दिया गया। और जिन लोगों ने इसके विषय में मतभेद किया है वे भी वास्तव में सन्देह में पड़े हुए हैं, उनके पास इस मामले में कोई ज्ञान नहीं है, केवल अटकल पर चल रहे हैं। उन्होंने उस (मसीह) की निश्चय ही हत्या नहीं की।             (क़ुरआन, 4:157)
ईसा मसीह (अलैहि॰) ने अनेकेश्वरवाद से रोका
मरकु़स (12:29) के अनुसार ईशदूत ईसा (अलैहि॰) का कथन है कि ‘सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है : हे इस्राईल सुन! प्रभु हमारा परमेश्वर एक ही प्रभु है।’
किसी सरदार ने उससे (ईसा मसीह से) पूछा, ‘‘ऐ उत्तम गुरु, अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिए मैं क्या करूं?’’ यीशू ने उससे कहा, ‘‘तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? कोई उत्तम नहीं, केवल एक, अर्थात् परमेश्वर।’’(लूक़ा 18:18-19) यूहन्ना (20:17) के अनुसार, ईसा मसीह ने मरयम मगदलीनी से कहा, ‘‘मेरे भाइयों के पास जाकर उनसे कह दे कि मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता, और अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जाता हूं।’’ मत्ती (4:10) के अनुसार ईसा मसीह ने शैतान को, ईश्वर के सिवा किसी और देवी या देवता की उपासना करने की प्रेरणा देने पर फिटकारा।
क़ुरआन के अनुसार ईशदूत ईसा मसीह ने इसराईलियों को चेतावनी दी कि यदि वे ईश्वर की उपासना में दूसरों को साझी ठहराएंगे तो उनका परिणाम अत्यन्त दुखदायी होगा।
पवित्र क़ुरआन ईसा मसीह के कथन का वर्णन करता है—
‘‘निश्चय ही कुफ़्र (अधर्म) किया उन लोगों ने जिन्होंने कहा अल्लाह मरयम का बेटा मसीह ही है। हालांकि मसीह ने कहा था कि, ‘‘ऐ इसराईलियो, अल्लाह की बन्दगी करो जो मेरा प्रभु भी है तुम्हारा प्रभु6 भी। जिसने अल्लाह के साथ किसी को साझी ठहराया उसके लिए अल्लाह ने जन्नत वर्जित कर दी और उसका ठिकाना नरक है और ऐसे अत्याचारियों का कोई सहायक नहीं।’’ 
(क़ुरआन, 5:72)
प्राचीन अधर्मियों का अनुकरण
समस्त प्राचीनशास्त्रों में ऐसी नैतिक कथाएं मिलती हैं जिनमें मनुष्यों को ‘देवता’ या ‘ईशपुत्र’ का स्थान दिया गया है। जिस काल में ईशदूतों की शिक्षा भुला या मिटा दी गई थी, उस समय अज्ञान और अन्धविश्वास ने इन कथाओं को फलने-फूलने में ख़ूब सहायता की। किन्तु, जब ईशदूतों, विशेष रूप से ईशदूत मूसा (अलैहि॰) और ईशदूत ईसा मसीह (अलैहि॰), ने स्पष्ट शब्दों में ईश्वर से अपने सम्बन्ध की व्याख्या कर दी, तो इस अन्धविश्वास का कोई तर्क न बचा। यहूदियों का यह कथन कि उज़ैर ईश्वर के बेटे हैं और ईसाइयों की यह धारणा कि ईसा मसीह ईश्वर के बेटे हैं, पुराने अधर्मियों के अनुकरण में हैं। पवित्र क़ुरआन इस विश्वास का खण्डन करता है—
यहूदी कहते हैं कि उज़ैर अल्लाह का बेटा है, और ईसाई कहते हैं कि मसीह अल्लाह का बेटा है। ये असत्य बातें हैं जो वे अपनी ज़बानों से निकालते हैं उन लोगों की देखा-देखी जो इनसे पहले कुफ़्र (अधर्म) में ग्रस्त हुए थे। अल्लाह की मार इन पर, ये कहां से धोखा खा रहे हैं।’                       (क़ुरआन, 9:30)
ईशदूत ईसा मसीह (अलैहि॰) का मिशन
ईसा मसीह (अलैहि॰) का मिशन अन्य ईशदूतों से भिन्न नहीं था। यह उसी मिशन की श्रृंखला की एक कड़ी थी जो प्राचीन ईशदूतों पर अवतरित होने वाले धर्म-ग्रन्थों द्वारा ईश्वरीय मार्गदर्शन की पुष्टि करती थी और सत्य, सदियों के हस्तक्षेप से प्रभावित होने के बावजूद सुरक्षित था।
फिर हमने इन पैग़म्बरों के पश्चात् मरयम के बेटे ईसा को भेजा। तौरात में से जो कुछ उसके सामने मौजूद था, वह उसकी पुष्टि करने वाला था। और हमने उसे इंजील प्रदान की जिसमें मार्गदर्शन और प्रकाश था और वह भी तौरात में से जो कुछ उस समय मौजूद था उसकी पुष्टि करने वाली थी और अल्लाह से डरने वाले लोगों के लिए सर्वथा मार्गदर्शन और नसीहत थी। 
(क़ुरआन, 5:46)
ईसा मसीह (अलैहि॰) और त्रिईश्वरवाद
किसी व्यक्ति विशेष से अथाह श्रद्धा और उत्साह जनसाधारण को आधारहीन विश्वास और त्रुटिपूर्ण कर्म पर उभार सकता है। इसी प्रकार धर्म के मामले में लोगों का असन्तुलित व्यवहार और हद से निकल जाना उन्हें धर्म के वास्तविक विश्वास के विरुद्ध कर देता है। पवित्र क़ुरआन, जिसमें सत्य धर्म और उत्तम कर्मों की शिक्षा सुरक्षित है, ‘किताब वालों’ को आदेश देता है कि वे त्रिईश्वरवाद7 को छोड़ दें।
ऐ किताब वालो, अपने धर्म में हद से आगे न बढ़ो और अल्लाह से लगाकर सत्य के अतिरिक्त कोई बात न कहो। मरयम का बेटा ईसा मसीह इसके सिवा कुछ न था कि अल्लाह का एक रसूल था और एक आदेश था जो अल्लाह ने मरयम की ओर भेजा और एक आत्मा थी अल्लाह की ओर से (जिसने मरयम के गर्भाशय में बच्चे का रूप धारण किया)। अतः तुम अल्लाह और उसके रसूलों (दूतों) को मानो और न कहो कि ‘‘तीन’’ हैं। बाज़ आ जाओ, यह तुम्हारे ही लिए अच्छा है। अल्लाह तो बस एक ही ईश्वर है। वह पाक है इससे कि कोई उसका बेटा हो। धरती और आकाशों की सारी वस्तुओं का वही मालिक है, और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति और उनकी ख़बर रखने के लिए बस वही काफ़ी है।                       (क़ुरआन, 4:171)
परमेश्वर से ईसा मसीह (अलैहि॰) और अन्य ईशदूतों की प्रतिज्ञा
यूं तो समस्त जीवित प्राणी अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार ईश्वरीय नियम का पालन करने के लिए अन्तर्निहित रूप से वचन-बद्ध हैं किन्तु सभी ईशदूतों से परमेश्वर ने यह विशेष प्रतिज्ञा ली है कि वे सख़्ती और दृढ़ता से उसके मिशन को पूरा करेंगे। किसी भय या लालच में पड़े बिना ईश्वरीय सत्य का एलान करेंगे और कर्तव्य-पालन के लिए तैयार रहेंगे, अर्थात् ईश्वरीय आदेश को पूरी निष्ठा और आज्ञाकारिता से हर परिस्थिति में पूरा करेंगे। परमेश्वर ने ऐसा ही वचन ईसा मसीह (अलैहि॰) से भी लिया है—और (ऐ नबी) याद करो उस प्रतिज्ञा को जो हमने सब पैग़म्बरों से ली है; तुम से भी और नूह और इबराहीम और मूसा और मरयम के बेटे ईसा से भी। सबसे हम दृढ़ वचन ले चुके हैं। ताकि सच्चे लोगों से (उनका प्रभु) उनकी सच्चाई के बारे में पूछे और इन्कार करने वालों के लिए तो उसने दुखदायिनी यातना जुटा ही रखी है।        (क़ुरआन, 33:7-8)
उसने तुम्हारे लिए वही धर्म निर्धारित किया है जिसकी ताकीद उसने नूह को की थी, और जिसे (ऐ मुहम्मद) अब तुम्हारी ओर हमने प्रकाशना के द्वारा भेजा है, और जिसका आदेश हम इबराहीम और मूसा और ईसा को दे चुके हैं, इस ताकीद के साथ कि स्थापित करो इस धर्म को और इसमें अलग-अलग न हो जाओ। यही बात इन बहुदेववादियों को बहुत अप्रिय लगी है जिसकी ओर (ऐ मुहम्मद) तुम उन्हें बुला रहे हो। अल्लाह जिसे चाहता है अपने लिए चुन लेता है और वह अपनी ओर आने का मार्ग उसी को दिखाता है जो उसकी ओर रुजू करे।
(क़ुरआन, 42:13)
ईशदूत मुहम्मद (सल्ल॰) के प्रति ईशदूत ईसा मसीह (अलैहि॰) की भविष्यवाणी
क़ुरआन के अनुसार ईसा मसीह (अलैहि॰) ने अपने बाद ईशदूत मुहम्मद (सल्ल॰) के आगमन की स्पष्ट शब्दों में घोषणा की।
और याद करो मरयम के बेटे ईसा की वह बात जो उसने कही थी, ‘‘ऐ इसराईल के बेटो, मैं तुम्हारी ओर अल्लाह का भेजा हुआ रसूल हूं, पुष्टि करने वाला हूं उस तौरात की जो मुझ से पहले आई हुई मौजूद है, और शुभ सूचना देने वाला हूं एक रसूल (दूत) की जो मेरे बाद आएगा जिसका नाम अहमद8 होगा।’’ किन्तु जब वह उनके पास खुली-खुली निशानियां लेकर आया तो उन्होंने कहा, ‘‘यह तो खुला धोखा है।’’              (क़ुरआन, 61:6)
ईशदूत ईसा मसीह (अलैहि॰) के चमत्कार
पवित्र क़ुरआन में ईशदूत ईसा मसीह (अलैहि॰) के अनेक चमत्कारों का उल्लेख है। उदाहरणस्वरूप ईसा मसीह ने शैशवकाल में, पालने में भी लोगों से बातें कीं और बड़ी उम्र में पहुंचकर भी। वे मिट्टी से पक्षी का पुतला बनाते और उसमें फूंक मारते तो वह जीवित पक्षी बन जाता। पैदाइशी अन्धे और कोढ़ी को अच्छा कर देते और मुर्दों को जीवित कर देते। ये चमत्कार वे स्वयं अपनी इच्छा और सामर्थ्य से नहीं वरन् परमेश्वर की अनुमति और आदेश से दिखाते थे।
और जब फ़रिश्तों ने कहा, ‘‘ऐ मरयम, अल्लाह तुझे अपने एक आदेश की शुभ सूचना देता है। उसका नाम मरयम का बेटा ईसा मसीह9 होगा, लोक और परलोक में प्रतिष्ठित होगा, अल्लाह के निकटवर्ती सेवकों में उसकी गणना होगी, लोगों से पालने10 में भी बात करेगा और बड़ी उम्र को पहुंच कर भी, और वह एक नेक व्यक्ति होगा।’’                    (क़ुरआन, 3:45-46)
(और जब वह रसूल के रूप में इसराईलियों के पास आया तो उसने कहा,) ‘‘मैं तुम्हारे प्रभु की ओर से तुम्हारे पास निशानी लेकर आया हूं। मैं तुम्हारे सामने मिट्टी से पक्षी के रूप की एक आकृति बनाता हूं और उसमें फूंक मारता हूं, वह अल्लाह के आदेश से पक्षी बन जाती है। मैं अल्लाह की अनुमति से पैदाइशी अन्धे और कोढ़ी को अच्छा करता हूं और मुर्दे को जीवित करता हूं।’’11                                  (क़ुरआन, 3:49)
(फिर कल्पना करो उस अवसर की) जब अल्लाह कहेगा, ‘‘ऐ मरयम के बेटे ईसा, याद कर मेरी उस नेमत को जो मैंने तुझे और तेरी मां को प्रदान की थी। मैंने पवित्र आत्मा से तेरी सहायता की, तू पालने में भी लोगों से बातचीत करता था और बड़ी उम्र को पहुंच कर भी। मैंने तुझको ‘किताब’ और गहरी समझ और तौरात और इंजील की शिक्षा दी। तू मेरी अनुमति से मिट्टी का पुतला पक्षी के रूप का बनाता और उसमें फूंकता था और वह मेरी अनुमति से पक्षी बन जाता था। तू पैदाइशी अन्धे और कोढ़ी को मेरी अनुमति से अच्छा करता था, तू मुर्दों को मेरी अनुमति से निकालता (जीवित करता) था।12         (क़ुरआन, 5:110)
ईसा मसीह (अलैहि॰) परमेश्वर के पुत्र नहीं बल्कि उसकी रचना हैं
पवित्र क़ुरआन के अनुसार ईसा मसीह (अलैहि॰) परमेश्वर के पुत्र नहीं हैं, बल्कि परमेश्वर ने उनको वैसे ही पैदा किया, जैसे आदम को पैदा किया था। ईसा मसीह (अलैहि॰) के कोई पिता नहीं थे, जैसा कि आदम (और हव्वा) के न पिता थे और न माता थीं।13
निस्सन्देह अल्लाह की दृष्टि में ईसा की मिसाल आदम जैसी है कि अल्लाह ने उसे मिट्टी से पैदा किया और आदेश दिया कि हो जा और वह हो गया। यह मूल तथ्य है जो तुम्हारे प्रभु की ओर से बताया जा रहा है और तुम उन लोगों में सम्मिलित न हो जो इसमें सन्देह करते हैं। यह ज्ञान आ जाने के पश्चात् अब जो कोई इस विषय में तुमसे झगड़ा करे, तो ऐ नबी, उससे कहो, ‘‘आओ हम और तुम स्वयं भी आ जाएं और अपने-अपने बाल-बच्चों को भी ले आएं और ईश्वर से प्रार्थना करें कि जो झूठा हो उस पर अल्लाह की फिटकार हो।’’        (क़ुरआन, 3:59-61)
कहो, ‘‘ऐ किताब वालो! आओ एक ऐसी बात की ओर जो हमारे और तुम्हारे बीच समान है। यह कि हम अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करें, उसके साथ किसी को साझी न ठहराएं, और हम में से कोई अल्लाह के सिवा किसी को अपना प्रभु न बना ले।’’                               (क़ुरआन, 3:64)
और सोचो कि जब (यह एहसान याद दिलाकर) अल्लाह कहेगा, ‘‘ऐ मरयम के बेटे ईसा, क्या तूने लोगों से कहा था कि अल्लाह के सिवा मुझे और मेरी मां को भी ईश्वर बना लो?’’ तो वह उत्तर में कहेगा, ‘‘महिमावान है अल्लाह! मेरा यह काम न था कि वह बात कहता जिसके कहने का मुझे अधिकार न था। अगर मैंने ऐसी बात कही होती तो तुझे अवश्य मालूम होता। तू जानता है जो कुछ मेरे मन में है और मैं नहीं जानता जो कुछ तेरे मन में है। आप तो सारे छिपे तथ्यों के ज्ञाता हैं। मैंने उनसे उसके अतिरिक्त कुछ नहीं कहा जिसका तूने मुझे आदेश दिया था, यह कि ‘अल्लाह की बन्दगी और सेवा करो जो मेरा प्रभु भी है और तुम्हारा प्रभु भी।’ मैं उसी समय तक उनका निगरां था जब तक मैं उनके बीच था। जब तूने मुझे वापस बुला लिया तो फिर तू ही उनका निरीक्षक था। और तू तो सारी ही चीज़ों पर साक्षी है।’’       
(क़ुरआन, 5:116-117)
निश्चय ही कुफ़्र (अधर्म) की नीति अपनाई उन लोगों ने जिन्होंने कहा, मरयम का बेटा मसीह ही अल्लाह है। ऐ नबी, उनसे कहो कि अगर अल्लाह मरयम के बेटे मसीह को और उसकी मां और समस्त धरती वालों को विनष्ट कर देना चाहे तो किसकी शक्ति है कि उसको इस निश्चय से रोक सके? अल्लाह तो धरती और आसमानों का और उन सब चीज़ों का मालिक है जो धरती और आसमानों के बीच पाई जाती हैं, जो कुछ चाहता है पैदा करता है और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। 
(क़ुरआन, 5:17)
लोगों ने कह दिया कि अल्लाह ने किसी को बेटा बनाया है। पाक है अल्लाह! वह तो निस्पृह है, आकाशों और धरती में जो कुछ है वह सबका स्वामी है। तुम्हारे पास इसके लिए आख़िर क्या प्रमाण है? क्या तुम अल्लाह के बारे में ऐसी बातें कहते हो जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं है?               (क़ुरआन, 10:68)
उनका कहना है कि अल्लाह ने किसी को बेटा बनाया है। अल्लाह पाक है इन बातों से। वास्तविक तथ्य यह है कि धरती और आकाशों में पाई जाने वाली सभी चीज़ों का वह मालिक है, सबके सब उसके आज्ञाकारी हैं, वह आकाशों और धरती का आविष्कारक है, और जिस बात का वह निर्णय करता है, उसके लिए बस वह आदेश देता है कि ‘‘हो जा’’ और वह हो जाती है। 
(क़ुरआन, 2:116-117)
वे कहते हैं, ‘‘करुणामय प्रभु, सन्तान वाला है।’’ पाक है अल्लाह, वे (अर्थात् फ़रिश्ते) तो दास हैं जिन्हें प्रतिष्ठित किया गया है।                               (क़ुरआन, 21:26)
वे कहते हैं कि करुणामय (ईश्वर) ने किसी को बेटा बनाया है—बड़ी ही अनर्गल बात है जो तुम लोग गढ़ लाए हो। निकट है कि आकाश फट पड़ें, धरती फट जाए और पहाड़ गिर जाएं, इस बात पर कि लोगों ने करुणामय के लिए सन्तान होने का दावा किया। करुणामय प्रभु की प्रतिष्ठिा के प्रतिकूल है कि वह किसी को अपना बेटा बनाए। धरती और आकाशों में जो भी है सब उसकी सेवा में बन्दों के हैसियत से (पुनरुज्जीवन के दिन) पेश होने वाले हैं।                        (क़ुरआन, 19:88-93)
यहूदी कहते हैं कि उज़ैर अल्लाह का बेटा है, और ईसाई कहते हैं कि मसीह अल्लाह का बेटा है। ये असत्य बातें हैं जो वे अपनी ज़बानों से निकालते हैं उन लोगों की देखा-देखी जो इनसे पहले कुफ़्र (अधर्म) में ग्रस्त हुए थे। अल्लाह की मार इन पर, ये कहां से धोखा खा रहे हैं।                       (क़ुरआन, 9:30)
ईशदूत ईसा मसीह (अलैहि॰) ने पूर्ण एकेश्वरवाद की शिक्षा दी
पवित्र क़ुरआन की बुनियादी शिक्षा पूर्ण, निश्चित एवं व्यापक रूप में एकेश्वरवाद के मौलिक विश्वास पर आधारित है। क़ुरआन अनेक स्थानों पर उन लोगों से, जो इस ‘‘एक विश्वास’’ को टुकड़ों में बांटते या पृथक करते हैं, या वर्गों में बांट डालते हैं, अपील करता है कि इस्लाम उनका अपना धर्म है। इस सन्दर्भ में सूरा (अध्याय) 43, आयत 26-28 में यह अनुरोध अरब के विधर्मियों से किया गया है कि तुम्हारे पूर्वज इबराहीम ने जिस धर्म का उपदेश दिया था, वह ‘इस्लाम’ ही है। आयत 46 से 54 में वैसी ही अपील यहूदियों से मूसा (अलैहि॰) के सम्बन्ध में की गई है। और यही अपील ईसाइयों से आयत 57 से 65 में की गई है।
और जब ईसा स्पष्ट निशानियां लिए हुए आया था तो उसने कहा था, ‘‘मैं तुम लोगों के पास तत्वदर्शिता लेकर आया हूं, और इसलिए आया हूं कि तुम पर कुछ उन बातों की वास्तविकता खोल दूं जिनमें तुम मतभेद कर रहे हो। अतः तुम अल्लाह से डरो और मेरी बात मानो। सत्य यह है कि अल्लाह ही मेरा भी प्रभु है और तुम्हारा भी प्रभु। उसी की तुम बन्दगी करो, यही सीधा मार्ग है।’’                      (क़ुरआन, 43:63-64)
न तो रब्बी ख़ुदा हैं, न ईसा मसीह
परमेश्वर और मनुष्य के बीच पुरोहितवाद द्वारा सम्बन्ध स्थापित करने की धारणा अनुचित है। दावा किया जाता है कि ये पुरोहित परमेश्वर के रहस्यों के विशिष्ट पात्र होते हैं। यह धारणा परमेश्वर की महानता का निरादर करने वाली और इन्सान को उसकी दया-दृष्टि से दूर करने वाली है। पुरोहितों या सन्तों की उपासना धर्म से विचलन की गम्भीर घटना है। इस प्रवृत्ति को अन्धविश्वास के कारण ही हर युग में प्रोत्साहन मिला है। यहूदी अन्धविश्वास का विकास तलमूद में स्पष्ट रूप से दिखता है, जबकि ईसाई अन्धविश्वास इस तथ्य में निहित है कि चर्च के सन्त (पोप) कभी ग़लतियां नहीं कर सकते। ‘कई प्रभुवों, कई ईश्वरों’ की उपासना का (जो सिर्फ़ बहुदेववादियों तक ही सीमित नहीं है), तथा मसीह (अलैहि॰) के ईश्वर होने का, क़ुरआन खण्डन करता है।
इन्होंने अपने धर्मज्ञाताओं और संसार-त्यागी संतों को अल्लाह के सिवा अपना प्रभु14 बना लिया है और इसी प्रकार मरयम के बेटे मसीह को भी। हालांकि उनको ‘एक पूज्य’ के सिवा किसी की बन्दगी करने का आदेश नहीं दिया गया था; जिसके सिवा कोई बन्दगी का अधिकारी नहीं। पाक है वह उन शिर्क (बहुदेववाद) सम्बन्धी बातों से जो वे लोग करते हैं।       (क़ुरआन, 9:31)
ईसा मसीह (अलैहि॰) परमेश्वर के दास (बन्दे) से अधिक कुछ नहीं
क़ुरआन के अवतरण-काल में एकेश्वरवाद की धारणा का नवीनीकरण किया गया और एक ईश्वर की उपासना के अतिरिक्त किसी की भी उपासना वर्जित कर दी गई। इसी सन्दर्भ में अरब के बहुदेववादियों के समक्ष ईसा मसीह (अलैहि॰) का उदाहरण पेश किया गया जिनकी परमेश्वर या परमेश्वर के पुत्र के रूप में झूठी पूजा की जा रही थी। उन्होंने बड़ी सावधानी से विचार-विमर्श कर इस विषय में सन्देह व भ्रान्ति पैदा की, मज़ाक़ बनाया और खिल्ली उड़ाई। इस तथ्य को महत्व देने और इसके सत्य सन्देश को स्वीकार करने के स्थान पर उन्होंने सन्देह और उलझाव पैदा किए, बेबुनियाद झगड़े खड़े किए और बहुदेववाद के औचित्य को सिद्ध करने की कोशिश की। क़ुरआन का कथन है—
और ज्यों ही मरयम के बेटे की मिसाल दी गई, तुम्हारी जाति के लोगों ने उस पर शोर मचा दिया और लगे कहने कि हमारे पूज्य अच्छे हैं या वह? यह मिसाल तुम्हारे सामने केवल कुतर्क के लिए लाए हैं, वास्तविकता यह है कि ये हैं ही झगड़ालू लोग। मरयम का बेटा इसके सिवा कुछ न था कि एक बन्दा (दास) था जिसे हमने अपना कृपापात्र बनाया और इसराईल की सन्तान के लिए उसे अपने चमत्कार का एक नमूना बना दिया। 
(क़ुरआन, 43:57-59)
ईसा मसीह (अलैहि॰) क़ुरआन के प्रकाश में
क़ुरआन की उपर्युक्त आयतों के अतिरिक्त क़ुरआन की अनेक दूसरी आयतों में भी ईसा मसीह (अलैहि॰) का वर्णन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में मौजूद है। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं—
जब ईसा को उनके (बनी-इसराईल के) अविश्वास और इन्कार का आभास हुआ तो उसने कहा, ‘‘कौन अल्लाह के मार्ग में मेरा सहायक होता है?’’ हवारियों (साथियों) ने उत्तर दिया, ‘‘हम अल्लाह के सहायक हैं, हम अल्लाह पर ईमान लाए, गवाह रहो कि हम मुस्लिम (अल्लाह के आज्ञाकारी) हैं। ऐ हमारे रब, जो आदेश तूने अवतरित किया है हमने उसे मान लिया और रसूल का अनुसरण स्वीकार किया, हमारा नाम गवाही देने वालों में लिख ले।’’                            (क़ुरआन, 3:52-53)
फिर इसराईली (मसीह के विरुद्ध) गुप्त उपाय करने लगे। उत्तर में अल्लाह ने भी अपना गुप्त उपाय किया और ऐसे उपायों में अल्लाह सबसे बढ़कर है।                (क़ुरआन, 3:54)
(वह अल्लाह का छिपा उपाय ही था) जब उसने कहा, ‘‘ऐ ईसा, अब मैं तुझे वापस ले लूंगा और तुझ को अपनी ओर उठा लूंगा और जिन्होंने तेरा इन्कार किया है उनसे (अर्थात् उनकी संगत से और उनके गन्दे वातावरण में उनके साथ रहने से) तुझे पाक कर दूंगा और तेरे अनुयायियों को क़ियामत तक उन लोगों के ऊपर रखूंगा जिन्होंने तेरा इन्कार किया है। फिर तुम सबको अन्त में मेरे पास आना है, उस समय मैं उन बातों का निर्णय कर दूंगा जिनमें तुम्हारे बीच मतभेद हुआ है।’’  (क़ुरआन, 3:55)
इसराईल की सन्तान में से जिन लोगों ने इन्कार की नीति अपनाई उन पर दाऊद और मरयम के बेटे ईसा की ज़बान से लानत की गई क्योंकि वे सरकश और उद्दण्ड हो गए थे और ज़्यादतियां करने लगे थे, उन्होंने एक-दूसरे को बुरे कर्मों के करने से रोकना छोड़ दिया था।                (क़ुरआन, 5:78-79)
और जब मैंने ‘हवारियों’ (मसीह के साथ वालों) के दिलों में डाला कि मुझ पर और मेरे रसूल पर ईमान लाओ तब उन्होंने कहा कि ‘‘हम ईमान लाए और गवाह रहो कि हम मुस्लिम हैं’’—(हवारियों के सम्बन्ध में) यह घटना भी याद रहे कि जब हवारियों ने कहा, ‘‘ऐ मरयम के बेटे ईसा, क्या आपका प्रभु हम पर आकाश से भोजन से भरा थाल उतार सकता है?’’ तो ईसा ने कहा, ‘‘अल्लाह से डरो अगर तुम ईमान वाले हो’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम तो बस यह चाहते हैं कि उस थाल से भोजन करें और हमारे हृदय सन्तुष्ट हों और हमें मालूम हो जाए कि आपने जो कुछ हमसे कहा है वह सच है, और हम उस पर गवाह हों।’’ इस पर मरयम के बेटे ईसा ने प्रार्थना की, ‘‘ऐ अल्लाह, हमारे प्रभु! हम पर आकाश से एक थाल उतार जो हमारे लिए और हमारे अगलों और पिछलों के लिए हर्ष का कारण ठहरे और तेरी ओर से एक निशानी हो, हमें रोज़ी दे और तू उत्तम आजीविका-दाता है।’’                              (क़ुरआन, 5:111-114)
उनके बाद हमने एक के बाद एक अपने रसूलों को भेजा, और उन सबके बाद मरयम के बेटे ईसा को भेजा और उसको इंजील प्रदान की और जिन लोगों ने उसका अनुसरण किया उनके दिलों में हमने तरस और दयालुता डाल दी और रहबानियत (संन्यास) की प्रथा उन्होंने स्वयं गढ़ी थी, हमने उसे उनके लिए अनिवार्य नहीं किया था, किन्तु अल्लाह की ख़ुशी की तलब में उन्होंने स्वयं ही एक नई चीज़ निकाली और इसकी पाबन्दी करने का जो हक़ था उसे अदा न किया। उनमें से जो लोग ईमान लाए हुए थे उनका प्रतिदान हमने उनको प्रदान किया, किन्तु उनमें से अधिकतर लोग अवज्ञाकारी हैं।             (क़ुरआन, 57:27)
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, अल्लाह के सहायक बनो, जिस तरह मरयम के बेटे ईसा ने हवारियों को सम्बोधित करके कहा था, ‘‘कौन है अल्लाह की ओर (बुलाने में) मेरा सहायक?’’ और हवारियों ने उत्तर दिया था, ‘‘हम हैं अल्लाह के सहायक।’’ उस समय इसराईल की सन्तान का एक गरोह ईमान लाया और दूसरे गरोह ने इन्कार किया। फिर हमने ईमान लाने वालों का उनके शत्रुओं के मुक़ाबले में समर्थन किया और वही छा कर रहे। 
(क़ुरआन, 61:14)
फुटनोट
1. वे (मरयम) सत्यवती थीं और उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया कि वे प्रभु की मां हैं या उनका बेटा ईश्वर है।
2. ईश्वर के अन्य प्राणियों की भांति ‘प्रतिदिन भोजन करना’ दैवी गुण या ईश्वरीय गुण के विपरीत है।
3. ईशदूतों का मौलिक सन्देश एक ही रहा है। एकेश्वरवाद, परलोक की धारणा और ईशदूतों पर विश्वास रखना। यही इस्लाम का भी सन्देश है।
4. सल्ल॰ = ‘सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम’—अर्थात् ‘अल्लाह की करुणा और सलामती हो उन पर।’
5. ईसा मसीह के ईशदूत होने के सम्बन्ध में देखें मरकु़स 6:4, जहां उन्होंने स्वयं को एक ईशदूत कहा है।
6. परिशिष्ट क देखें
7. परिशिष्ट ‘क’ देखें
8. अरबी के अहमद (या मुहम्मद) शब्द का अर्थ वही है जो ग्रीक भाषा के शब्द ‘पेरिकलाइटॉस’ का है। प्रचलित बाइबिल की अंग्रेज़ी प्रति में शब्द ‘कमफ़ॉर्टर’ (Comforter) ग्रीक शब्द पेरसीलॉटॉस का अनुवाद है जिसके अर्थ वकील के हैं। वकील जो कि सहायक है, दोस्त है (यूहन्ना—14:16, 15:26, 16:7) पुराने नियम में हबक्कूक 3:3 एवं व्यवस्था विवरण 33:2 भी देखें।
9. लूका 2:21 देखें
10. पवित्र बाइबिल के उल्लेख के लिए परिशिष्ट ‘स’ देखें।
11. परिशिष्ट ‘ग’ देखें
12. परिशिष्ट ‘ग’ देखें
13. परिशिष्ट ‘घ’ देखें
14. यहूदी और ईसाई विद्वान और पुरोहित जिन चीज़ों को वैध कहते जन साधारण उन्हें वैध समझते और जिसे अवैध घोषित करते उसे अवैध समझते। ऐसा करके वे परमेश्वर की उपासना छोड़ अपने पुरोहितों की उपासना करने लगे क्योंकि किसी चीज़ को वैध या अवैध ठहराने का अधिकार केवल परमेश्वर को है।

मरयम (अलैहि॰)
मरयम (अलैहि॰) का जन्म
मरयम (अलैहि॰) की मां का उल्लेख क़ुरआन में ‘इमरान की स्त्री’ कहकर किया गया है। उन्होंने मरयम (अलैहि॰) के जन्म से पहले अपने बच्चे को (उस समय की प्रचलित परम्परा के अनुसार) परमेश्वर की सेवा में अर्पित करने का प्रण लिया था।
(अल्लाह उस समय सुन रहा था) जब इमरान की स्त्री कह रही थी, ‘‘मेरे पालनकर्ता! मैं उस बच्चे को जो मेरे पेट में है तुझे भेंट स्वरूप अर्पित करती हूं, वह तेरे ही कार्य के लिए अर्पित होगा। मेरी इस भेंट को स्वीकार कर। निस्सन्देह तू सुनता, जानता है।’’ फिर जब उसके यहां बच्ची ने जन्म लिया तो उसने कहा, ‘‘मेरे रब! मेरे यहां तो लड़की पैदा हो गई है—हालांकि जो कुछ उसने जना था अल्लाह उसे जानता ही था1 और लड़का लड़की की तरह नहीं होता2— ख़ैर, मैंने इसका नाम मरयम रख दिया है और मैं उसे और उसकी भावी सन्तान को तिरस्कृत शैतान (के उपद्रव) से तेरी शरण में देती हूं।’’ 
(क़ुरआन, 3:35-36)
चमत्कारिक आहार
अल्लाह के विशेष संरक्षण और ज़करिया की देख-रेख में मरयम (अलैहि॰) बड़ी हुईं। उनकी आध्यात्मिक और भौतिक आवश्यकताएं परमेश्वर द्वारा विशेष रूप से पूरी होती थीं।
अतः उसके रब ने उस लड़की को सहर्ष स्वीकार कर लिया। उसे बड़ी अच्छी लड़की बना कर उठाया और ज़करिया को उसका सरपरस्त बना दिया। ज़करिया जब कभी उसके पास मेहराब (इबादतगाह) में जाता तो उसके पास कुछ न कुछ खाने-पीने की चीज़ पाता। पूछता, ‘‘मरयम यह तेरे पास कहां से आया?’’ वह उत्तर देती, ‘‘अल्लाह के पास से आया है। निस्सन्देह अल्लाह जिसे चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है।’’       (क़ुरआन, 3:37)
मरयम (अलैहि॰) की अवस्था
मरयम अद्वितीय थीं। सारे संसार की स्त्रियों में वे एकमात्र ऐसी स्त्री थीं, जिनका चयन अल्लाह ने इसलिए किया कि वे किसी पुरुष से शारीरिक सम्बन्ध के बिना एक बच्चे को जन्म दें, तथा अपने चरित्र की पवित्रता और स्त्रीत्व की रक्षा करें।
(फिर वह समय आया जब मरयम से) फ़रिश्तों ने कहा, ‘‘ऐ मरयम, अल्लाह ने तुझे चुना और पवित्रता प्रदान की और सारे संसार की स्त्रियों में तुझे आगे रखकर अपनी सेवा के लिए चुन लिया है।’’                              (क़ुरआन, 3:42)
परमेश्वर का आदेश
मरयम (अलैहि॰) एक इन्सान थीं। परमेश्वर द्वारा चयन की गई थीं, किन्तु परमेश्वर की दास थीं और इससे अधिक कुछ और न थीं। अल्लाह ने उन्हें आदेश दिया था कि वे उसकी उपासना करें जैसा कि दूसरे आस्थावान उसकी उपासना करते हैं।
‘‘ऐ मरयम, अपने रब की आज्ञाकारी बनकर रह, उसके आगे सजदा कर और जो बन्दे उसके आगे झुकने वाले हैं उनके साथ तू भी झुक जा।’’                         (क़ुरआन, 3:43)
हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) से मरयम (अलैहि॰) के विषय में
ईसाई मिथ्यावली के अनुसार मरयम के संरक्षण और देख-रेख के प्रश्न पर पुरोहितों के बीच एक विवाद उठ खड़ा हुआ। इस घटना के लगभग सात शताब्दियों के पश्चात्, जबकि ईशदूत मुहम्मद (सल्ल॰) इस मतभेद के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे, और न जान सकते थे, उन्हें आख़िर यह जानकारी कहां से प्राप्त हुई। यह निस्सन्देह ईश्वरीय प्रकाशना थी जिसके द्वारा उन्हें इस घटना की विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई। अतः ईसाई धर्म के अनुयायियों के लिए यह आवश्यक था, और आज भी आवश्यक है कि वे मुहम्मद (सल्ल॰) के ईशदूत होने और क़ुरआन के अल्लाह की प्रकाशना होने का विश्वास करें।
(ऐ नबी) ये परोक्ष की सूचनाएं हैं जो हम तुमको प्रकाशना के द्वारा बता रहे हैं, अन्यथा तुम उस समय वहां मौजूद न थे जब हैकल (उपासना गृह) के सेवक यह निर्णय करने के लिए कि मरयम का सरपरस्त कौन हो, अपनी-अपनी क़लम3 फेंक रहे थे, और न तुम उस समय उपस्थित थे जब उनके बीच झगड़ा हो गया था।                               (क़ुरआन, 3:44)
शुभ सूचना
जब मरयम (अलैहि॰) को एक पुत्र की शुभ सूचना दी गई तो वे आश्चर्यचकित रह गईं क्योंकि उन्हें किसी पुरुष ने स्पर्श तक नहीं किया था। तब उन्हें बताया गया कि अल्लाह सर्वशक्ति सम्पन्न है, जो चाहता है उत्पन्न करता है।
और जब फ़रिश्ते ने कहा, ‘‘ऐ मरयम, अल्लाह तुझे अपने एक आदेश की शुभ सूचना देता है। उसका नाम मसीह मरयम का बेटा, ईसा होगा, लोक और परलोक में प्रतिष्ठित होगा, अल्लाह के निकटवर्ती बन्दों में उसकी गणना होगी; लोगों से पालने में भी बात करेगा और बड़ी उम्र को पहुंचकर भी; और वह एक नेक व्यक्ति होगा। यह सुनकर मरयम बोली, ‘‘पालनहार, मेरे यहां बच्चा कहां से होगा, मुझे तो किसी मर्द ने हाथ तक नहीं लगाया।’’ उत्तर मिला, ‘‘ऐसा ही होगा, अल्लाह जो चाहता है पैदा करता है। जब वह किसी कार्य के करने का निर्णय करता है तो वह कहता है कि ‘हो जा’ और वह हो जाता है।’’ 
(क़ुरआन, 3:45-47)
मरयम पर आरोप लगाने वालों का परिणाम
इस्लाम स्त्रियों के चरित्र के सम्मान और संरक्षण में अत्यन्त सख़्त एवं संवेदनशील है। क़ुरआन के अनुसार यदि स्त्री पर लांछन लगाने वाले चार गवाह प्रस्तुत नहीं कर सकें तो उन्हें अस्सी कोड़े मारे जाएं और किसी भी क़ानूनी मामले में उन्हें गवाह के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया जाए।
वे लोग, जिन्होंने परमेश्वर से किए हुए वचन को तोड़ डाला, अल्लाह की निशानियों को अस्वीकार किया और पैग़म्बरों की हत्या की, अल्लाह ने उनके दिलों पर उनके अधर्म के कारण मोहर लगा दी। फिर उन्होंने ईश्वरीय विश्वास का इन्कार किया और मरयम (अलैहि॰) पर चरित्रहीन होने का झूठा आरोप लगाया।
अन्ततः इनके प्रतिज्ञा भंग करने के कारण और इस कारण कि इन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठलाया और अनेक पैग़म्बरों की नाहक़ हत्या की और यहां तक कहा कि ‘हमारे हृदय आवरणों में सुरक्षित हैं।’ हालांकि वास्तव में इनके अधर्म के कारण अल्लाह ने इनके दिलों पर ठप्पा लगा दिया है और इसी कारण ये बहुत कम ईमान लाते हैं—फिर अपने इन्कार में ये इतने बढ़े कि मरयम पर बड़ा लांछन लगाया।              (क़ुरआन, 4:155-156)
ईसा मसीह—मरयम की ओर प्रेषित-परमेश्वर का एक ‘आदेश’ मात्र
परमेश्वर के आदेश से मरयम किसी पुरुष-सम्पर्क के बिना गर्भवती हुईं। आरम्भ में, ईसाई धर्म के अनुयायियों पर ईसा मसीह (अलैहि॰) के, बिना पिता के जन्म लेने का यह भेद स्पष्ट था। परन्तु समय बीतने के साथ-साथ उनके बीच ईसा मसीह (अलैहि॰) के ईश्वर होने का झूठा विश्वास जड़ पकड़ गया। पवित्र क़ुरआन ‘किताब वालों’ को चेतावनी देते हुए कहता है—
ऐ किताब वालो! अपने धर्म में हद से आगे न बढ़ो और अल्लाह से लगाकर सत्य के अतिरिक्त कोई बात न कहो। मसीह, मरयम का बेटा, ईसा इसके सिवा कुछ न था कि अल्लाह का एक रसूल था और एक आदेश था जो अल्लाह ने मरयम की ओर भेजा और एक आत्मा थी अल्लाह की ओर से। 
(क़ुरआन, 4:171)
मरयम (अलैहि॰) का चमत्कारिक मातृत्व
जब फ़रिश्ता मानव-रूप में मरयम (अलैहि॰) के पास आया और उनसे कहा कि वे एक बच्चे को जन्म देंगी तो वे अपनी शील-पवित्रता के कारण उसका विश्वास न कर सकीं। क़ुरआन उन घटनाओं का क्रमबद्ध वर्णन करता है। मरयम (अलैहि॰) का गर्भवती होना, बच्चे का जन्म, इस जन्म पर लोगों का आश्चर्य और आपत्ति, यह चमत्कार कि बच्चा पालने में लोगों से बातें करता और उनकी आपत्ति का जवाब देता है, स्वयं को परमेश्वर का दास (बन्दा) घोषित करता है और अपना परिचय देता है कि वह परमेश्वर का दूत होगा जिसे परमेश्वर की ओर से प्रकाशना दी जाएगी।
(और ऐ नबी!) इस किताब में मरयम का हाल बयान करो, जबकि वह अपने लोगों से अलग होकर पूर्व की ओर एकान्तवासी4 हो गई थी और परदा डालकर उनसे छिप बैठी थी5। इस दशा में हमने अपनी एक आत्मा को (अर्थात फ़रिश्ते को) भेजा और वह उसके सामने एक पूरे मनुष्य के रूप में प्रकट हो गया। मरयम सहसा बोल उठी कि, ‘‘अगर तू कोई ईश्वर से डरने वाला आदमी है तो मैं तुझ से करुणामय ईश्वर की शरण मांगती हूं।’’ उसने कहा, ‘‘मैं तो तेरे रब का भेजा हुआ हूं और इसलिए भेजा गया हूं कि तुझे एक पवित्र लड़का दूं।’’ मरयम ने कहा, ‘‘मेरे यहां लड़का कैसे होगा जबकि मुझे किसी मर्द ने छुआ तक नहीं है और मैं कोई बदचलन औरत नहीं हूं।’’ फ़रिश्ते ने कहा, ‘‘ऐसा ही होगा, तेरा रब कहता है कि ऐसा करना मेरे लिए बहुत आसान है और हम यह इसलिए करेंगे कि उस लड़के को लोगों के लिए एक निशानी बनाएं और अपनी ओर से एक दयालुता। और यह काम होकर रहना है।’’
मरयम को उस बच्चे का गर्भ रह गया और वह उस गर्भ को लिए हुए एक दूर के स्थान पर चली गई। फिर प्रसव-पीड़ा ने उसे एक खजूर के वृक्ष के नीचे पहुंचा दिया। वह कहने लगी, ‘‘क्या ही अच्छा होता कि मैं इससे पहले ही मर जाती और मेरा नाम-निशान न रहता।’’ फ़रिश्ते ने पांयती से उसको पुकार कर कहा, ‘‘शोकाकुल न हो, तेरे प्रभु ने तेरे नीचे (पानी का) एक स्रोत बहा दिया है और तू तनिक इस वृक्ष के तने को हिला, तेरे ऊपर रस भरी ताज़ा खजूरें टपक पड़ेंगी। अतः तू खा और पी और अपनी आंखें ठण्डी कर। फिर यदि कोई आदमी तुझे दिखाई दे तो उससे कह दे कि, ‘‘मैंने करुणामय (ईश्वर) के लिए रोज़े की मन्नत मानी है, इसलिए मैं आज किसी से न बोलूंगी।’’
फिर वह उस बच्चे को लिए हुए अपनी जाति वालों में आई। लोग कहने लगे, ‘‘ऐ मरयम, यह तो तूने बड़ा पाप कर डाला। ऐ हारून की बहिन! न तेरा बाप कोई बुरा आदमी था और न तेरी मां ही कोई बदचलन औरत थी।’’ मरयम ने बच्चे की ओर संकेत कर दिया। लोगों ने कहा, ‘‘हम इससे क्या बात करें जो पालने में पड़ा हुआ एक बच्चा है?’’ बच्चा बोल उठा, ‘‘मैं अल्लाह का बन्दा हूं। उसने मुझे किताब दी, और नबी बनाया, और बरकत वाला किया जहां भी मैं रहूं, और नमाज़ और ज़कात (दान) की पाबन्दी का आदेश दिया जब तक मैं जीवित रहूं।’’ 
(क़ुरआन, 19:16-30)
कुंवारी मां से ईसा मसीह (अलैहि॰) का जन्म एक चमत्कार था। सर्वशक्ति-सम्पन्न अल्लाह की एक निशानी जो किसी भी जीव या निर्जीव वस्तु से सामान्य तथा प्रत्यक्ष प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध भी काम ले सकता है।
और मरयम के बेटे और उसकी मां को हमने एक निशानी बनाया और उनको एक उच्च धरातल पर रखा जो इत्मीनान की जगह थी और (पानी के) स्रोत उसमें प्रवाहित थे।                  
(क़ुरआन, 23:50)
ईसा मसीह के जन्म में यह बात निहित नहीं है कि परमेश्वर उनके पिता थे—पिता इस अर्थ में जैसा ग्रीक पौराणिक कथाओं में ज़्यूस लैटोना द्वारा जन्म लेने वाले अपोलो या यूरोपा द्वारा जन्म लेने वाले मीनोज़ के पिता थे। जहां तक परमेश्वर की ओर से ‘एक आत्मा’ शब्द के प्रयोग का प्रश्न है जिसे क़ुरआन के अनुसार मरयम के शरीर में फूंका गया, इससे यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि परमेश्वर ईसा मसीह (अलैहि॰) का पिता6 है। पवित्र क़ुरआन (32:9)7 में उल्लिखित है कि प्रत्येक मनुष्य के सृजन के समय परमेश्वर की ओर से आत्मा उसमें फूंकी जाती है। क़ुरआन (15:29)8 के अनुसार आदम के सृजन के समय यह आत्मा विशेष रूप में उनके शरीर में फूंकी गई।
पवित्र क़ुरआन का निश्चयपूर्वक दावा है कि मरयम (अलैहि॰)  सच्चरित्र थीं—
और (अल्लाह) इमरान की बेटी मरयम का उदाहरण देता है जिसने अपने सतीत्व9 की रक्षा की थी, फिर हमने उसके भीतर अपनी ओर से रूह (आत्मा)10 फूंक दी, और उसने अपने रब के बोलों और उसकी किताबों की पुष्टि की और वह आज्ञाकारी लोगों में से थी।                              (क़ुरआन, 66:12)
क़ुरआन की उपर्युक्त आयतों से यह निष्कर्ष निकलता है कि—
(i) मरयम, ईसा मसीह की मां उच्च, प्रतिष्ठित एवं प्रशंसनीय स्त्री थीं।
(ii) मरयम (अलैहि॰) जिनके बच्चे का जन्म बिना पिता के हुआ, सच्चरित्र थीं। यहूदियों द्वारा लगाए हुए लांछन का क़ुरआन खण्डन करता है।
(iii) परमेश्वर सर्वशक्ति-सम्पन्न है और वह मनुष्य को बिना पिता के उत्पन्न कर सकता है, जैसा कि उसने आदम और हव्वा को बिना पिता और मां के पैदा किया।
(iv) जहां ईसा मसीह (अलैहि॰) को परमेश्वर का पुत्र कहा गया है वहां पुत्र का अर्थ प्रतीकात्मक रूप में न लेकर शाब्दिक रूप में लेना त्रुटिपूर्ण है।

फुटनोट
1. अल्लाह को यह ज्ञात था कि मरयम, जन्म लेने वाली बालिका, साधारण लड़की नहीं बल्कि बड़ी होकर अल्लाह के एक दूत की मां बनने वाली है।
2. यहूदियों के क़ानून में एक बालिका ईश्वर की सेवा में अर्पित नहीं की जा सकती।
3. मूल अरबी में अक़लाम शब्द प्रयुक्त हुआ है जो क़लम का बहुवचन है। यह अरबों की रीति थी कि किसी विवाद का समाधान निकालने के लिए तीर या क़लम फेंका करते थे। उस समय यह विवाद उठ खड़ा हुआ था कि मरयम (अलैहि॰) का अभिभावक कौन हो, जिसे उनकी मां ने ईश्वर की सेवा में अर्पित किया था। इस प्रकार उनका निर्णय ज़करिया (अलैहि॰) के हित मैं हुआ था।
4. वे ‘बैतुल-लहम’ के पूर्वी भाग में एकान्तवासी होकर भक्ति एवं प्रार्थना में लीन हो गईं।
5. अर्थात् वे एकान्तवासी हो गईं ताकि प्रार्थना में लीन हो सकें और किसी पुरुष से कोई सम्पर्क न हो। इस पवित्रता और सतीत्व की अवस्था में एक फ़रिश्ता उनके पास आया।
6. परिशिष्ट ‘घ’ देखें।
7. ‘‘और उसके (मनुष्य के) भीतर अपनी आत्मा फूंक दी......’’
8. ‘‘जब मैं उसे (आदम को) पूरा बना चुकूं और उसमें अपनी आत्मा से कुछ फूंक दूं तो......’’
9. ईसा मसीह के जन्म के बाद यहूदियों ने मरयम (अलैहि॰) पर अपवित्रता का आरोप लगाया था। क़ुरआन ने इस आरोप का सख़्ती से खण्डन किया और कहा कि यह एक बड़ा लांछन लगाया गया। (क़ुरआन, 4:156 के अनुसार)
10. अर्थात् मरयम (अलैहि॰) किसी पुरुष सम्पर्क के बिना गर्भवती हुईं। ऐसा सिर्फ़ ईश्वरीय  चमत्कार से ही सम्भव है।

परिशिष्ट—‘क’
बाइबिल का कथन—ईसा मसीह या 
कोई अन्य जीव प्रभु नहीं

उचित है कि त्रिईश्वरवाद के पड़ने वाले प्रभाव पर गम्भीरतापूर्वक चिन्तन किया जाए। क्या बाइबिल स्पष्ट रूप से ईसा मसीह (अलैहि॰) को सर्वशक्ति-सम्पन्न, अन्तर्यामी, अनादि और अनन्त परमेश्वर घोषित करती है?
इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए एक दृष्टि पवित्र बाइबिल पर डालें—
यीशु ने उसे उत्तर दिया, ‘‘सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है : हे इसराईल सुन! प्रभु हमारा परमेश्वर एक ही प्रभु है।’’ 
(मरकु़स—12:29)
क्योंकि परमेश्वर एक ही है, और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही
बिचवई1 है, अर्थात् मसीह यीशु जो मनुष्य है। 
(1 तीमुथियुस—2:5)
तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना।   
(निर्गमन—20:3)
क्योंकि तुम्हें किसी दूसरे को ईश्वर करके दण्डवत् करने की आज्ञा नहीं, क्योंकि यहोवा जिसका नाम जलनशील है वह जल उठने वाला परमेश्वर है।                (निर्गमन—34:14)
हे इसराइल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है।                             (व्यवस्था विवरण—6:4)
यूहन्ना 5:37 के अनुसार परमेश्वर को कोई देख और सुन नहीं सकता। ईसा मसीह (अलैहि॰) को लोगों ने देखा और सुना जिन्हें परमेश्वर ने अपना दूत बनाकर भेजा और इसकी गवाही भी दी।
लूक़ा—4:1-13 के अनुसार शैतान यीशु की चालीस दिनों तक परीक्षा लेता रहा, जबकि याक़ूब—1:13 के अनुसार परमेश्वर की परीक्षा नहीं ली जा सकती। बाइबिल में परमेश्वर एवं ईसा मसीह (अलैहि॰) के लिए ‘पिता’ एवं ‘पुत्र’ शब्दों को प्रतीकात्मक रूप में प्रयुक्त किया गया है। वास्तविकता भिन्न अवस्था एवं स्वतंत्र अस्तित्व को दर्शाती है।
मेरा पिता मुझसे बड़ा है।                (यूहन्ना—14:28)
मैं अपने आप से कुछ नहीं करता।         (यूहन्ना—8:28)
हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूं। 
(लूक़ा—23:46)
हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर! तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?2 
(मरक़ुस—15:34)
तीमुथियुस—6:16, के अनुसार—परमेश्वर वह है जिसे न किसी मनुष्य ने देखा और न कभी देख सकता है। (जबकि लोग ईसा मसीह (अलैहि॰) को देखते थे, और देख सकते हैं।)
अतः मूर्तियों के सामने बलि की हुई वस्तुओं के खाने के विषय में—हम जानते हैं कि मूर्ति जगत में कोई वस्तु नहीं, और एक को छोड़ और कोई परमेश्वर नहीं।3        (कुरिन्थियों—8:4)
जिससे उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक लोग जान लें कि मुझ बिना कोई है ही नहीं, मैं यहोवा हूं और दूसरा कोई नहीं है।                                  (यशायाह—45:6)
हे पृथ्वी के दूर-दूर के देश के रहने वालो; तुम मेरी ओर फिरो और उद्धार पाओ! क्योंकि मैं ही परमेश्वर हूं और दूसरा कोई और नहीं है।                         (यशायाह—45:22)
क्योंकि यहोवा जो आकाश का सृजनहार है, वही परमेश्वर है; उसी ने पृथ्वी को रचा और बनाया, उसी ने उसको स्थिर भी किया; उसने उसे सुनसान रहने के लिए नहीं परन्तु बसने के लिए रचा है। वही यूं कहता है, ‘‘मैं यहोवा हूं, मेरे सिवाय दूसरा और कोई नहीं है।’’               (यशायाह—45:18)
वह (यहोवा) यूं कहता है, ‘‘मैं सबसे पहला हूं, और मैं ही अन्त तक रहूंगा, मुझे छोड़ कोई परमेश्वर है ही नहीं।’’ 
(यशायाह—44:6)
यहोवा की वाणी है, ‘‘तुम मेरे साक्षी हो और मेरे दास4 हो, जिन्हें मैंने इसलिए चुना है कि समझकर मेरी प्रतीति करो और यह जान लो कि मैं वही हूं। मुझ से पहले कोई परमेश्वर न हुआ और न मेरे बाद कोई होगा।’’     (यशायाह—43:10)
‘‘मैं ही यहोवा हूं और मुझे छोड़ कोई उद्धारकर्ता नहीं, मैंने ही समाचार दिया और उद्धार किया और वर्णन भी किया, जब तुम्हारे बीच में कोई पराया देवता न था; इसलिए तुम ही मेरे साक्षी हो।’’                       (यशायाह—43:11, 12)
हे प्रभु, देवताओं5 में से कोई भी तेरे तुल्य नहीं, और न किसी के काम तेरे कामों के बराबर हैं।      (भजन संहिता—86:8)
क्योंकि आकाश मण्डल में यहोवा के तुल्य कौन ठहरेगा? बलवन्तों के पुत्रों6 में से कौन है जिसके साथ यहोवा की उपमा दी जाएगी?                        (भजन संहिता—89:6)
यहोवा सारी जातियों के ऊपर महान है, और उसकी महिमा आकाश से भी ऊंची है। हमारे परमेश्वर यहोवा के तुल्य कौन है? वह तो ऊंचे पर विराजमान है। (भजन संहिता—113:4,5)
उसने कहा, ‘‘कल।’’ उसने कहा ‘‘तेरे वचन के अनुसार होगा, जिससे तुझे यह ज्ञात हो जाए कि हमारे परमेश्वर यहोवा के तुल्य कोई दूसरा नहीं है।’’                (निर्गमन—8:10)
यह सब तुझको दिखाया गया, इसलिए कि तू जान रखे कि यहोवा ही परमेश्वर है; उसको छोड़ और कोई है ही नहीं। 
(व्यवस्था विवरण—4:35)
इस कारण, हे यहोवा परमेश्वर, तू महान है, क्योंकि जो कुछ हमने अपने कानों से सुना है, उसके अनुसार तेरे तुल्य कोई नहीं, और न तुझे छोड़ कोई और परमेश्वर है। 
(2 शमुएल—7:22)
हे इसराईल के परमेश्वर! तेरे समान न तो ऊपर स्वर्ग में, और न नीचे पृथ्वी पर कोई ईश्वर है। तेरे जो दास अपने सम्पूर्ण मन से अपने को तेरे सम्मुख जान कर चलते हैं, उनके लिए तू अपनी वाचा पूरी करता है, और करुणा करता रहता है।                            (1 राजाओं—8:23)
हे यहोवा! जो कुछ हमने अपने कानों से सुना है, उसके अनुसार तेरे तुल्य कोई नहीं, और न तुझे छोड़ और कोई परमेश्वर है। 
(1 इतिहास—17:20)
मिस्र देश ही से मैं यहोवा, तेरा परमेश्वर हूं, तू मुझे छोड़ किसी को परमेश्वर करके न जानना, क्योंकि मेरे सिवाय कोई तेरा उद्धारकर्ता नहीं है।                     (होशे—13:4)
तब यहोवा सारी पृथ्वी का राजा होगा और उस दिन एक ही यहोवा और उसका नाम भी एक ही माना जाएगा। 
(ज़कर्याह—14:9)
परमेश्वर शब्द ईशदूतों (नबियों) के लिए भी प्रयुक्त किया गया है—
पवित्र बाइबिल (पुराना और नया नियम, दोनों ही) में परमेश्वर शब्द का इस्तेमाल ईशदूतों के लिए, अन्य लोगों के लिए और शैतान तक के लिए किया गया है। इसका अर्थ यह है कि ईसा मसीह (अलैहि॰) के लिए परमेश्वर शब्द के इस्तेमाल से वे परमेश्वर-तुल्य साबित नहीं किए जा सकते।
तब यहोवा ने मूसा से कहा, ‘‘सुन मैं तुझे फ़िरऔन के लिए परमेश्वर-सा ठहराता हूं, और तेरा भाई हारून तेरा नबी ठहरेगा।’’                              (निर्गमन—7:1)
परमेश्वर की सभा में परमेश्वर ही खड़ा है, वह ईश्वरों के बीच में न्याय करता है।                 (भजन संहिता—82:1)
मैंने कहा था, ‘‘तुम ईश्वर हो, और सबके सब परम्-प्रधान के पुत्र हो।’’                         (भजन संहिता—82:6)
और उन अविश्वासियों के लिए जिनकी बुद्धि इस संसार के ईश्वर ने अन्धी कर दी है ताकि मसीह जो परमेश्वर का प्रतिरूप है, उसके तेजोमय सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमके।                            (2 कुरिन्थियों—4:4)
फुटनोट
1. ‘बिचवई’—क़ुरआन के अनुसार रसूल (ईशदूत)
2. हिब्रू भाषा में ‘‘इलोई, इलोई ल मा शबकतनी?’’
3. क़ुरआन के शब्दों में ‘‘ला-इला-ह इल्लल्लाह’’ या ‘‘ला इला-ह इल्लाहु-व।’’
4. ‘दास’ शब्द क़ुरआन में समस्त मानव-जाति के लिए उपयोग किया गया है, इसमें मुहम्मद (सल्ल॰), ईसा मसीह (अलैहि॰) और सभी ईशदूत सम्मिलित हैं।
5. ‘‘देवता, देवताओं’’ शब्द बाइबिल में ईशदूतों के लिए भी प्रयुक्त किया गया है। इसी परिशिष्ट में आगे की पंक्तियां देखें।
6. ‘पुत्र’ शब्द समस्त मानव-जाति के लिए, ईश दूतों सहित, प्रतीकात्मक रूप में प्रयुक्त किया गया है। परिशिष्ट ‘घ’ देखें।

परिशिष्ट ‘ख’
त्रिईश्वरवाद का इतिहास
त्रिईश्वरवाद सिद्धान्त कोई नया नहीं है। ईसाई युग के आरम्भ से पहले यह अन्य धर्मों और मतों में प्रचलित था। उदाहरणस्वरूप—
1. ब्रह्मा, विष्णु और शिव का हिन्दु-त्रिवाद
2. ट्रांसफ़ॉरमेशन बॉडी (Transformation Body) इंजवायमेंट बॉडी (Enjoyment Body) और ट्रुथ बॉडी (Truth Body) का महायान बौद्ध त्रिवाद (Mahayana Buddhist triune)
3. होरास (Horas) ओसिरिस (Osiris) और आइसिस (Isis) का मिस्री त्रिवाद।
4. चन्द्र देवता, सूर्य देवता और स्वर्ग के देवता का पामीरा (Palmyra) त्रिवाद।
5. इशतर (Ishtar) सिन (Sin) और शामाश (Shmash) का बेबीलोनियन त्रिवाद।
6. रमसेस II (Ramess II) अमान रा (Amon-ra) और नट (Nut) का मिस्री त्रिवाद।
(1 ईश्वर + 1 ईश्वर + 1 ईश्वर = 1 ईश्वर का) यह ‘त्रियेक-परमेश्वर’ का सिद्धान्त ईसाई धर्म के आरम्भिक काल से पहले दूसरे मतों के लोगों में प्रचलित था, किन्तु पिछली 16 शताब्दियों से यह त्रियेक परमेश्वर का सिद्धान्त मौलिक ईसाई आस्था का महत्वपूर्ण अंश बन गया है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि इसकी उत्पत्ति, विकास, सिद्धान्त एवं चर्च द्वारा प्रतिपादन का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए।
सर्वप्रथम ‘त्रिईश्वरवाद’ शब्द का प्रयोग टरटूलिअन (Tertullian) (155-220 ई॰) द्वारा किया गया जो कि कार्थेज (Carthage) के थर्ड सेंच्युरी चर्च (III Century Church) का पुरोहित (Presbyter) और वकील था। उसने यह तर्क रखा कि पुत्र और पवित्र आत्मा ईश्वर के अस्तित्व का एक अंश हैं, किन्तु पिता के तत्व में सब सम्मिलित हैं।   (Interpreter’s Dictionary of Bible V. 4. P. 711)
त्रिईश्वरवाद का प्रतिपादन
ईशदूत ईसा मसीह तथा यूहन्ना, मत्ती, लूक़ा, मरक़ुस सारे शिष्य तथा पॉल भी त्रिईश्वर से पूर्णतः अनभिज्ञ थे। त्रिईश्वरवाद के सिद्धान्त का विवरण देते हुए डैविड एफ़ राईट (David F. Wright) जो कि एडिनब्रॉ (Edinburough) विश्वविद्यालय में चर्च विषयक (Ecclasiastical) इतिहास के वरिष्ठ व्याख्याता थे, अपनी किताब ‘अर्डमैन्स हैन्डबुक टू दि हिस्ट्री आफ़ क्रिश्चनिटि’ (Eardman’s Handbook to the History of Christianity) के अध्याय ‘काउंसिल्स एण्ड क्रीड्स’ (Councils and creeds) में लिखते हैं कि 318 ई॰ के आस-पास अलेग्ज़ेंड्रिया (Alexandria) के बारह पुरोहितों (Parishes) में से एक वरिष्ठ पुरोहित जो कि बाउकलिस (Baoucalis) का अधिकारी एरिअस (Arius) नामक था, उसने बिशप (Bishop) अलेग्ज़ेन्डर से गम्भीर असहमति प्रकट करते हुए ईशदूत ईसा मसीह के ईश्वर होने का खण्डन किया।
उसी समय दो पृथक घटनाएं घटीं और उसके पश्चात् रोमन सम्राट द्वारा चर्च को सरकारी स्वीकृति प्रदान की गई। एक ओर सम्राट कांसटेनटाइन (Constantine), रोमियों का अधर्मी सम्राट, अपनी प्रजा में धर्म परिवर्तन कर नए विश्वास अपनाने वालों की बढ़ती संख्या देख रहा था, जो कि उसके राज्य की आन्तरिक सुरक्षा के लिए ख़तरा नज़र आ रहे थे।
दूसरी ओर, 318 ई॰ में ईसाई पक्ष की ओर से विवाद का यह विषय ज़ोर पकड़ चुका था, जो कि अलेग्ज़ेंड्रिया में चर्च के दो व्यक्तियों के बीच आरम्भ हुआ था। जैसा कि पहले वर्णन किया गया कि यह विवाद एरिअस (Arius) और उसके बिशप अलेग्ज़ेन्डर (Alexander) के बीच आरम्भ हुआ। सम्राट कांटेसटाइन ने इस झगड़े को शान्त करने के अनेक प्रयास किए, किन्तु असफलता ही मिली। तब उसने 325 ई॰ में सशक्त निर्णय लिया और काउंसिल ऑफ़ नीसिया (Council of Nicea) का आयोजन किया।
काउंसिल ऑफ़ नीसिया की बैठक में इस बात पर मतदान कराया गया कि ईसा मसीह ईश्वर थे या नहीं? उनके परिणामकारी मतों ने ईशदूत ईसा (अलैहि॰) को ईश्वर का स्थान दे दिया। ‘इन्साइक्लोपीडिया ऑफ रिलिजन एण्ड इथिक्स—अध्याय एरियस’ के अनुसार इस तथ्य के व्यापक प्रमाण मौजूद हैं कि इनमें से अधिकतर लोग जिन्होंने इस निर्णय पर हस्ताक्षर किए, वास्तव में इस पर विश्वास नहीं रखते थे, किन्तु राजनीतिक हित के लिए ऐसा करने पर विवश थे। बहुमत ने ये हस्ताक्षर राजनीतिक दबाव में किए। 2030 उपस्थित जिनमें से केवल 318 ने त्रिईश्वरीय सिद्धान्त को स्वेच्छा से स्वीकार किया। अपने घरों को लौटने के बाद केवल कुछ लोग—जैसे—नीकोमीडिया के यूसिबिस (Eusebius of Nicomedia), शेल्डन के मेरिस (Maris of Chaledon) और नीसिया के थ्योनिस (Theognis of Nicea) सम्राट कांसटेनटाइन (Constantine) को यह लिखने का साहस जुटा सके कि उन्होंने नीसियन Nicean दस्तावेज़ पर जो हस्ताक्षर किए हैं उन पर उन्हें खेद है। Nicomedia के Eusebius ने लिखाः ऐ राजा, आपके डर से ईशनिन्दा का समर्थन कर हमने दुष्ट और अधर्मी कार्य किया है।
त्रिईश्वरवाद विश्वास का निर्माण
नीसियन काउंसिल के निर्णय के पश्चात् ईसाई एकेश्वरवाद सरकारी तौर पर एक ईश्वर में तीन के अनेकेश्वरवाद में परिवर्तित हो गया। यह सब कुछ रोमन अधर्मी सम्राट Constantine की सनक के अनुकूल और उसके राज्य की शक्ति और स्थिरता के लिए उचित था, जिसके परिणामस्वरूप चर्च को सरकारी मान्यता प्राप्त हुई। अब, आगे त्रिईश्वरवाद विश्वास के निर्माण का कठिन कार्य था।
इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका (Encylopaedia Britanica) के अनुसार इस विश्वास का निर्माण निम्न व्यक्तियों द्वारा किया गया।
1. Athenagoras (Encycl. Brit 1:667:2b)
2. Basil the Great (Encycl. Brit 1:938:1a)
3. Gregory of Nazianzus (Encycl. Brit 5:482:1b)
4. Gregory of Nyssa (Encycl. Brit. 5:483:2b)
5. Coppadocian Fathers (Encycl. Brit. 16:319:1b)
आरम्भिक ईसाई विश्वास के अनुसार—J.N.D. Kelly, Happer & Row Publications USA 1960 P. 252—त्रिईश्वरवाद विश्वास के निर्माण के मुख्य उत्तरदायी निम्नलिखित व्यक्ति थे—
पूर्वी चर्च में—
1. Cappadocian Fathers
2. Basil the Great (329-370)
3. Gregory of Nazinzus (329-391)
4. Basil’s younger brother Gregory of Nyssa (335-395)
पश्चिमी चर्च में—
1. Augustine of Hippo (d-430)
त्रिईश्वरवाद और उसका सिद्धान्त नया नियम (New Testament) में नहीं है
ईसाई विश्वास में पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का संयोजन ऐसा है जैसे एक ईश्वर में तीन। न तो त्रिईश्वरवाद शब्द और न ही स्पष्ट धारणा ‘नया नियम’ में दिखती है। 325 ई॰ में नीसिया काउंसिल ने महत्वपूर्ण निर्णय लिया और यह समाधान निकाला कि पुत्र में भी वही तत्व है, जो पिता में है। पवित्र आत्मा के सम्बन्ध में उसने कुछ नहीं कहा।
अगली आधी शताब्दी तक Athanasius नीसेन (Nicene) समाधान का समर्थन करता रहा और उसमें सुधार लाता रहा। चौथी शताब्दी के अन्त में, Basil of Caesarea, Gregory of Nyssa और Gregory of Nazianzus (The cappadocian fathers) के नेतृत्व में त्रिईश्वरीय विश्वास ने यह रूप धारण किया जो आज तक प्रचलित है।            
(इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका—शीर्षक ‘त्रिईश्वरवाद Trinity’)
त्रिईश्वरवाद—तीन शताब्दियों में संयोजित किया जाने वाला धार्मिक विश्वास
‘‘आज बीसवीं शताब्दी के मध्यकाल में त्रिईश्वरीय सिद्धान्त के बनने का इतिहास और इस रहस्य का स्पष्ट, वास्तविक और सरल विवरण कठिन है। त्रिईश्वरवाद के सम्बन्ध में रोमन चर्च और अन्य के विवाद एक धुंधली छवि की तरह हैं। बाइबिल के विद्वान, ईसाई मत के व्याख्याता और बड़ी संख्या में रोमन ईसाई विद्वान यह मानते हैं कि ‘नए नियम’ के संदर्भ में अनेकेश्वरवाद पर पूर्णतः सहमति पाई जाती है और उस पर विवाद लगभग असम्भव है। इसके समानान्तर इस आस्था (Dogma) के इतिहासकार और धार्मिक विद्वान (Theologian) इस तथ्य से सहमत हैं कि जब कोई त्रिईश्वरवाद को स्पष्ट करता है तो ईसाई धर्म के आरम्भिक काल से दूर होकर चौथी शताब्दी के अन्त में पहुंच जाता है। यह उसी युग की बात है जब एक अस्तित्व में तीन ईश्वर का अविवेकपूर्ण एवं अस्पष्ट विश्वास ईसाई धर्म की धारणा और जीवन का अंश बना......यह तीन शताब्दियों में संयोजित किया जाने वाला धार्मिक विश्वास था।’’         (New-Catholic Encyclopaedia, Vol. XIV P. 295)

परिशिष्ट- ‘ग’
चमत्कार और ईश्वरत्व
बाइबिल के शब्दों में

‘‘मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता; जैसा सुनता हूं वैसा न्याय करता हूं और मेरा न्याय सच्चा है, क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं परन्तु अपने भेजने वाले की इच्छा चाहता हूं। यदि मैं आप ही अपनी गवाही दूं, तो मेरी गवाही सच्ची नहीं।’’ —ईसा मसीह 
(यूहन्ना-5:30-32)
चमत्कार दिखाने से कोई व्यक्ति परमेश्वर नहीं बन जाता। ईसा मसीह (अलैहि॰) के अतिरिक्त दूसरे बहुत से ईशदूतों ने भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कृपा से चमत्कार दिखाए हैं किन्तु इससे यह कदापि सिद्ध नहीं होता कि इन महापुरुषों में ईश्वरीय गुण थे। पवित्र बाइबिल ईशदूत ईसा मसीह (अलैहि॰) के साथ-साथ दूसरे महापुरुषों द्वारा दिखाए गए चमत्कारों का भी वर्णन करती है।
कोढ़ी को चंगा करने का चमत्कार : ईसा मसीह कोढ़ी को भला-चंगा कर देते थे, किन्तु एलीशा ने भी ऐसा किया था। अराम (सीरिया) के राजा का सेना-पति नामान कोढ़ी था। एलीशा, परमेश्वर के भक्त ने चमत्कारिक रूप से उसे कोढ़ से शुद्ध कर दिया।                     (2 राजाओं-5:14)
अंधों का देखना : ईसा मसीह अन्धों को देखने योग्य बना देते थे। यह चमत्कार वे परमेश्वर की कृपा से करते थे। परमेश्वर की कृपा से एलीशा ने भी एक अन्धे व्यक्ति को देखने योग्य बनाया।                   (2 राजाओं-6:17)
मुर्दों को जीवित करना : ईशदूत ईसा मसीह मुर्दों को जीवित कर देते थे और एलिय्याह ने भी ऐसा चमत्कार दिखाया। 
(1 राजाओं-17:21-22)
एक मुर्दा बच्चे को जीवित किया : एलीशा ने एक मुर्दा बच्चे को जीवित किया।               (2 राजाओं-4:32 से 35)
(2 थोड़े भोजन में बहुत से लोगों को खिलाया : ईसा मसीह थोड़े से भोजन में बहुत से लोगों को खिला सकते थे। एलीशा ने भी ऐसा किया था।                 (राजाओं-4:42 से 44)
मृत हड्डियों का छूना : एक व्यक्ति का शव एलीशा की क़ब्र में उसकी हड्डियों से छूते ही जी उठा और अपने पांवों के बल खड़ा हो गया।                       (2 राजाओं-13:21)
लाठी का सर्प बनना : मूसा के हाथ की लाठी सर्प बन गई। 
(निर्गमन-4:3)
हाथ का श्वेत हो जाना : मूसा ने अपने हाथ को अपनी छाती में रखकर ढांपा, और जब उसे निकाला तो वह कोढ़ के कारण हिम की तरह श्वेत हो गया। जब दोबारा छाती पर हाथ रखकर ढांपा और फिर निकाला तो हाथ फिर सारी देह के समान हो गया।                                (निर्गमन-4:6,7)
अपाहिज व्यक्ति का चलने लगना : पाल ने एक जन्मजात अपंग व्यक्ति को देखा। उस पर निगाह डालकर कहा ‘‘अपने पैरों पर सीधा खड़ा हो जा।’’ और वह (व्यक्ति) चलने लगा। 
(प्रेरितों के कामों-14:8-10)

परिशिष्ट ‘घ’
बाइबिल में पुत्र, सन्तान, पिता, परमेश्वर, पवित्र-आत्मा शब्दों का प्रयोग

बाइबिल में परमेश्वर का पुत्र, परमेश्वर, पिता जैसे शब्द व्यापक रूप में आए हैं, कहीं-कहीं ‘परमेश्वर के बच्चे’ शब्द का प्रयोग भी किया गया है। इन शब्दों से सम्बन्धित श्लोकों के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि अंग्रेज़ी भाषा के शब्द जिन्हें हिबू्र से आरामी भाषा में फिर ग्रीक में फिर लैटिन में फिर यूरोपीय भाषाओं से अंग्रेज़ी में अनुवाद किया गया है, वह समान अर्थ नहीं रखते जो आज ईसाई धर्म में प्रचलित हैं और जिसके कारण ईसा मसीह (अलैहि॰) के तीन शताब्दियों के बाद त्रिईश्वरवाद के विश्वास का प्रचलन हुआ।
पुत्र, परमेश्वर के पुत्र और पिता शब्द प्रतीकात्मक रूप में प्रयुक्त हुए हैं, शाब्दिक अर्थ में नहीं
तब यहोवा ने मूसा से कहा, ‘जब तू मिस्र में पहुंचे तब ध्यान रहे कि जो चमत्कार मैंने तेरे वश में किए हैं उन सभी को फ़िरऔन को दिखलाना, परन्तु मैं उसके मन को हठीला करूंगा और वह मेरी प्रजा को जाने न देगा। और तू फ़िरऔन से कहना, ‘‘यहोवा यूं कहता है कि इसराईल मेरा पुत्र वरन् मेरा जेठा है।’’                           (निर्गमन-4:21,22)
मेरे नाम का घर वही (दाऊद) बनवाएगा, और मैं उसकी राजगद्दी को सदैव स्थिर रखूंगा। मैं उसका पिता ठहरूंगा, और वह मेरा पुत्र ठहरेगा। यदि वह अधर्म करे तो मैं उसे मनुष्यों के योग्य दण्ड से, और आदमियों के योग्य मार से ताड़ना दूंगा।                            (2 शमूएल-7:13-14)
वही (सुलैमान) मेरे नाम का भवन बनाएगा। वही मेरा पुत्र ठहरेगा और मैं उसका पिता ठहरूंगा, और उसकी राजगद्दी को मैं इसराईल के ऊपर सदा के लिए स्थिर रखूंगा। 
(1 इतिहास-22:10)
वे आंसू बहाते हुए आएंगे और गिड़गिड़ाते हुए मेरे द्वारा पहुंचाए जाएंगे, मैं उन्हें नदियों के किनारे-किनारे से और ऐसे चौरस मार्ग से ले आऊंगा, जिससे वे ठोकर न खाने पाएंगे क्योंकि मैं इसराईल का पिता हूं और एप्रैम मेरा जेठा है।
(यिर्मयाह-31:9)
तुम अपने परमेश्वर यहोवा के पुत्र हो, इसलिए मरे हुओं के कारण न तो अपना शरीर चीरना और न भौंहों के बाल मुंडाना। 
(व्यवस्था विवरण-14:1)
मैं उस वचन का प्रचार करूंगा जो यहोवा ने मुझ से कहा, ‘‘तू मेरा पुत्र है, आज तू मुझ से उत्पन्न हुआ।’’ 
(भजन संहिता-2:7)
जिससे तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भले और बुरे दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मी और अधर्मी दोनों पर मेंह बरसाता है। क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखने वालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिए क्या फल होगा? क्या महसूल लेने वाले भी ऐसा ही नहीं करते? यदि तुम केवल अपने भाइयों ही को नमस्कार करो, तो कौन-सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्य जाति भी ऐसा नहीं करते? इसलिए चाहिए कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।                           (मत्ती-5:45 से 48)
क्योंकि जिन्हें उसने पहले से जान लिया है, उन्हें पहले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों ताकि वह बहुत भाइयों में पहिलौठा ठहरे। फिर जिन्हें उसने पहले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी, और जिन्हें बुलाया उन्हें धर्मी भी ठहराया है; और जिन्हें धर्मी ठहराया उन्हें महिमा भी दी है। 
(रोमियों-8:29-30)
और वह आदम का और वह परमेश्वर का पुत्र था। 
(लूका-3:38)
वह (दाऊद) मुझे पुकार कहेगा, ‘तू मेरा पिता है, मेरा परमेश्वर और मेरे उद्धार की चट्टान है।’ फिर मैं उसको अपना पहिलौठा, और पृथ्वी के राजाओं पर प्रधान ठहराऊंगा। 
(भजन संहिता-89:26-27)
तब परमेश्वर के पुत्रों ने मनुष्यों की पुत्रियों को देखा कि वे सुन्दर हैं और उन्होंने जिस-जिस को चाहा उनसे विवाह कर लिया।                                 (उत्पत्ति-6:2)
तो भी इसराईलियों की गिनती समुद्र की बालू की सी हो जाएगी, जिनका मापना-गिनना अनहोना है; और जिस स्थान में उनसे यह कहा जाता था, ‘‘तुम मेरी प्रजा नहीं हो,’’ उसी स्थान में वे जीवित परमेश्वर के पुत्र कहलाएंगे।  (होशे-1:10)
एक दिन यहोवा परमेश्वर के पुत्र उसके सामने उपस्थित हुए, और उनके बीच शैतान भी आया।            (अय्यूब-1:6)
फिर एक और दिन यहोवा परमेश्वर के पुत्र उसके सामने उपस्थित हुए और उनके बीच शैतान भी उसके सामने उपस्थित हुआ।                                   (अय्यूब-2:1)
जबकि भोर के तारे एक संग आनन्द से गाते थे और परमेश्वर की सब पुत्र जय-जयकार करते थे।          (अय्यूब-38:7)
और दुष्टात्माएं भी चिल्लाती और यह कहती हुई कि ‘‘तू परमेश्वर का पुत्र है’’ बहुतों में से निकल गईं। पर वह उन्हें डांटता और बोलने नहीं देता था। क्योंकि जानती थीं कि वह मसीह है।’’                               (लूका-4:41)
परमेश्वर के न केवल पुत्र बल्कि पुत्रियां भी
बाइबिल में प्रतीकात्मक रूप से ईश्वर का ‘बेटा’, या ‘बेटे’ शब्द ही प्रयुक्त नहीं हुए हैं, बल्कि उस में ‘बेटियां’ शब्द का प्रयोग भी हुआ है और परमेश्वर के लिए, उन बेटियों के ‘पिता’ का शब्द—
और मैं तुम्हारा पिता हूंगा, और तुम मेरे बेटे और बेटियां होगे। यह सर्वशक्तिमान प्रभु का वचन है। 
(2 कुरिन्थियों-6:18)
मैं उत्तर से कहूंगा, ‘दे दे’ और दक्षिण से कि ‘रोक मत रख,’ मेरे पुत्रों को दूर से और मेरी पुत्रियों को पृथ्वी के छोर से ले आओ।                                (यशायाह-43:6)
निष्कर्ष
बाइबिल की अनूदित प्रतियों के अनुसार यदि ईसा मसीह (अलैहि॰) को ईश-पुत्र प्रतीकात्मक रूप में नहीं बल्कि शाब्दिक अर्थों में मान लिया जाए और इसलिए यह मान लिया जाए कि वे परमेश्वर का मूर्तरूप अर्थात स्वयं परमेश्वर हैं तो इस तर्क का बाइबिल स्वयं विरोध करती है, क्योंकि यह शब्द पवित्र बाइबिल में कम से कम पांच ईशदूतों के लिए तथा जन साधारण तक के लिए भी प्रयुक्त किया गया है—जैसा कि पुराना नियम और नया नियम के उपरोक्त दिए गए उद्धरणों से स्पष्ट है।
बाइबिल के इन श्लोकों के प्रकाश में ईसा मसीह का ईश-पुत्र, अन्तर्यामी, ईशगुण-सम्पन्न एवं परमेश्वर का मूर्तरूप मानना और उनकी पूजा करना कदापि उचित नहीं। यदि इस विश्वास को युक्ति संगत मान लिया जाए तो बाइबिल के अनुसार अन्य ईशदूत ही नहीं अपितु साधारण लोग भी परमेश्वर के बेटे, बेटियां और सन्तान होने के कारण पूजा के योग्य ठहरेंगे।

परिशिष्ट- ‘च’
अन्य भी पवित्र आत्मा से 
परिपूर्ण—बाइबिल

मरयम (अलैहि॰) का पति के बिना गर्भवती होना यह सिद्ध नहीं करता कि उनका गर्भ पवित्र आत्मा द्वारा ठहरा—जो त्रिईश्वरवाद का एक अंश था। इससे यह निष्कर्ष भी नहीं निकलता कि ईसा मसीह त्रिईश्वरवाद का एक अंश हैं, क्योंकि बाइबिल स्वयं यह स्पष्ट करती है कि अन्य कई लोग भी पवित्र आत्मा से परिपूर्ण थे।
नया नियम के कुछ कथन निम्नलिखित हैं—
वह (बरनाबास) एक भला मनुष्य था और पवित्र आत्मा और विश्वास से परिपूर्ण था; और बहुत से लोग प्रभु में आ मिले। 
(प्रेरितों-11:24)
हम इन बातों के गवाह हैं और वैसे ही पवित्र आत्मा भी जिसे परमेश्वर ने उन्हें दिया है जो उसकी आज्ञा मानते हैं। 
(प्रेरितों-5:32)
यह बात सारी मण्डली को अच्छी लगी, और उन्होंने स्तिफनुस नामक एक पुरुष को जो विश्वास और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण था......चुन लिया।                          (प्रेरितों-6:5)
क्योंकि कोई भी भविष्यवाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई, पर भक्तजन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।           (2 पतरस-1:21)
और पवित्र आत्मा के द्वारा, जो हम में बसा हुआ है, इस अच्छी धरोहर की रखवाली कर।       (2 तीमुथियुस-1:14)
क्योंकि वह (बपतिस्मा देने वाला यूहन्ना) प्रभु के सामने महान होगा; और दाखरस और मदिरा कभी न पीएगा, और अपनी माता के गर्भ ही से पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाएगा। 
(लूक़ा-1:15)
ज्यों ही इलीशिबा ने मरयम का नमस्कार सुना, त्यों ही बच्चा उसके पेट में उछला, और इलीशिबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गई।                                 (लूका-1:41)
 


परिशिष्ट-छ
बाइबिल और क़ुरआन/इस्लाम की शिक्षाओं में समानताएं

पवित्र बाइबिल में की जाने वाली कमी-बेशी और बहुत-सी मिलावटों को ईसाई धर्म के विद्वानों ने भी स्वीकार किया है।1 इसके बावजूद ‘नया नियम’ में ईसा मसीह (अलैहि॰) की, और पुराना नियम में दूसरे ईशदूतों से सम्बन्धित कुछ शिक्षाएं सुरक्षित हैं। ये शिक्षाएं क़ुरआन/इस्लाम की शिक्षाओं के अनुकूल हैं।
नीचे दी गई तालिका में ऐसी शिक्षाएं/उपदेश दिए गए हैं जिनकी शिक्षा ईसा मसीह (अलैहि॰) ने दी थी किन्तु बाद में चर्च ने उसे त्याग दिया। (सेंट पॉल2 का इसमें विशेष हाथ था) ये शिक्षाएं इस्लाम के सन्देश द्वारा पुनः प्रचलित कर दी गईं। इन शिक्षाओं को ईश्वरीय आदेश द्वारा ईशदूत मुहम्मद (सल्ल॰) पर अवतरित किया गया। ये इस्लाम धर्म की मौलिक अवधारणा के रूप में प्रचलित हैं और इस संसार के अन्तिम दिन तक प्रचलित रहेंगी।
फुटनोट
1. देखें परिशिष्ट ‘ज’
2. सेंट पॉल—ईसा मसीह (अलैहि॰) के पांच वर्षों के पश्चात् एक युवा यहूदी धर्म गुरु (रब्बी) सॉल ऑफ़ टारसस (Saul of Tarsus), जिसका रोमन नाम पॉल था, ने यह दावा किया कि उसे ईसा मसीह के दर्शन हुए हैं। उसका कथन था कि यदि ग़ैर-यहूदी ईसाई धर्म को स्वीकार करे तो उस पर ‘तौरात’ के क़ानून लागू न किए जाएं। पॉल के अनुसार (प्रेरितों-13:39) जो ईसा मसीह पर विश्वास रखे वह मूसा के क़ानून से स्वतंत्र है। नया नियम की 27 किताबें, जिन्हें चर्च ने सरकारी तौर पर स्वीकृति दी, उनमें 14 उसकी लिखी हुई हैं। ये किताबें ईसा मसीह की जीवनी और उपदेश का न वर्णन करती हैं और न उन्हें प्रस्तुत करती हैं। पॉल ने ईसा मसीह की शिक्षाओं को हिलैनिक (Graceo Roman) दर्शन में परिवर्तित कर डाला। ईसा मसीह के 34 वर्षों के बाद रोम में उसकी हत्या कर दी गई। मसीही धारणा के अनुयायीगण, इस बात को तर्कसंगत पाएंगे कि, इस्लाम स्वयं बाइबिल के ही प्रकाश में, उनके लिए बेहतर और यथोचित है। इससे, उनके इस्लाम के प्रति एक ताज़ा, वास्तविकतापूर्ण, बुद्धिसंगत और न्यायोचित रवैये का मार्ग प्रशस्त होता है।
क़ुरआन/इस्लाम की शिक्षा बाइबिल की शिक्षा
1. ईश्वर एक है। क़ुरआन की अनेक आयतों और ईशदूत मुहम्मद (सल्ल॰) के अनेक कथनों (हदीसों) के अनुसार पूर्ण एकेश्वरवाद इस्लाम धर्म का मौलिक विश्वास है।
(क़ुरआन, 112:1,3,4) 1. बाइबिल में एक ईश्वर की शिक्षा दी गई है। निर्गमन 20:3, 34:4, व्यवस्था विवरण 6:4, मर्क़ुस 12:29, और परिशिष्ट ‘क’
2. क़ुरआन में वर्णित किसी भी ईशदूत ने तथा ईशदूत मुहम्मद (सल्ल॰) ने कभी नहीं कहा कि मैं परमेश्वर हूं, मेरी पूजा करो। 2. बाइबिल के अनुसार किसी भी ईशदूत ने तथा ईशदूत ईसा मसीह ने कभी नहीं कहा कि मैं परमेश्वर हूं, परमेश्वर का अवतार हूं, परमेश्वर का पुत्र हूं, परमेश्वर का अंश हूं, मेरी पूजा करो।
3. बहुदेववाद का निषेध कर दिया गया। (क़ुरआन, 13:6;4:36;3:64;4:48,116;52:43) 3. बहुदेववाद, अधर्म की निन्दा की गई (यशायाह 43:10; 45:6, 18,22;44:6; निर्गमन 8:10; होशे 13:4; 1-इतिहास 17:20; मत्ती 12:29)
4. सूद (ब्याज) का लेना और देना अवैध घोषित किया गया। (2:275) 4. सूद (ब्याज) का लेना और देना वर्जित घोषित किया गया। 
(व्यवस्था विवरण 23:19)
5. ईमान वालों के लिए रोज़ा (उपवास) का अनुपालन अनिवार्य है। 
(क़ुरआन, 2:183) 5. ईसा मसीह उपवास किया करते थे। (मत्ती-4:2), और मूसा उपवास किया करते थे। 
(निर्गमन 34:88)
6. उपासना से पहले वुज़ू (हाथ मुंह नियमानुसार धोने की क्रिया) करना। (क़ुरआन, 5:6) और पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) का अमल। 6. मूसा, हारून वुज़ू करते थे। (हाथ मुंह धोते थे।) निर्गमन-40:30,31 और हज़रत मसीह तौरात की शिक्षा का अनुपालन करते थे।
7. सजदा (उपासना में धरती पर माथा टेकने की क्रिया) करना।
(क़ुरआन, 25:60; 27:25; 41:37;
53:62; 50:40; 7:206) 7. उपासना में मुंह के बल गिरना (मत्ती-26:39, उत्पत्ति-17:3, गिनती-16:22, 20:6, यहोशु-5:14, 7:6, 1 राजाओं-18:42)
8. स्त्रियों का परदा (क़ुरआन,24:31, 33:59) और पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) के अनेकानेक कथन। 8. स्त्रियों का परदा (उत्पत्ति-24:65, 38:14) और ‘‘जूइश वीमेन इन रब्बिनिक लिट्रेचर’’-पृ॰ सं॰ 239 लेखक-डॉ॰ मेनाकेम एम बेयर (Dr. Menachem M. Bayer)
9. अभिवादन ‘‘अस्सलामु-अलैकुम’’ (तुम पर सलामती हो-6:54)। क़ुरआन यह भी कहता है कि स्वर्ग में प्रवेश पाने वालों का स्वागत फ़रिश्ते उपर्युक्त शब्दों द्वारा करेंगे (7:46)। क़ुरआन ईमान वालों को निर्देश देता है कि वे सलामती के शब्दों से अभिवादन करते हुए घरों में प्रवेश करें। (24:27) 9. अभिवादन ‘‘तुम्हें शान्ति मिले’’ (यूहन्ना-20:19) ईसा मसीह से सम्बन्धित है। ‘‘तुम्हारा कल्याण हो।’’ ईशदूत दाऊद से सम्बन्धित है, जबकि उन्होंने कुछ जवानों को नाबाल की ओर भेजा और उन्हें निर्देश दिया कि वे नाबाल को अभिवादन कल्याण के शब्दों से करें। (1 शमूएल 25:6)
10. दान और दीन-दुखियों की सहायता अनिवार्य ठहराई गई। ‘‘उश्र’’ और ‘‘ज़कात’’ (क़ुरआन, 6:141;9:60) 10. (उत्पत्ति 41:34; निगर्मन 22:29-30) ‘‘दशमांश’’ अनिवार्य दान की प्रथा (उत्पत्ति-14:20) जिसकी पुष्टि ईसा मसीह द्वारा की गई।
11. ‘लहू’ (रक्त) पीना या खाना अवैध (क़ुरआन, 6-145) 11. लहू (रक्त) पीना या खाना निषिध (व्यवस्था विवरण 12:16; लैव्यवस्था 19:26)
12. सूअर का मांस खाना अवैध ठहराया गया। 
(क़ुरआन, 2:173; 5:3; 6:145) 12. सुअर का मांस खाना निषिध किया गया। लैव्यव्यवस्था-11:7,8 व्यवस्था विवरण- 14:8)
13. शराब पीने (मदिरा पान) से रोक दिया गया। (क़ुरआन, 5:90) 13. शराब पीने से मना कर दिया गया। (गिनती-6:3; लूका-1:15)
14. ‘ख़तना’ के आदेश दिए गए। (हदीस- बुख़ारी-भाग 7, क्रमांक 717 पृ॰ सं॰-717; हदीस- मुस्लिम भाग-1, क्रमांक 495 पृ॰ सं॰ 159) 14. उत्पत्ति 17:10-13; गलातियों 6:15, लूका-2:21
15. बहुपत्नीत्व की अनुमति दी गई। 
(क़ुरआन, 4:3) 15. उत्पत्ति 16:3; I शमूएल 27:3; 1 राजाओं 11:3; 2 इतिहास 11:21; व्यवस्था विवरण 21:15-16

परिशिष्ट ‘ज’
बाइबिल की विभिन्न प्रतियों के सम्बन्ध में ईशवाणी की ‘गंभीर एवं घोर त्रुटियों’ को ‘ठीक-ठाक’ करने के मानवीय प्रयासों का इतिहास

विलियम टिन्डेल (William Tyndale) ने बाइबिल के नए नियम का अनुवाद पहली बार हिब्रू और ग्रीक से अंग्रेज़ी भाषा में किया। उस पर यह आरोप लगाया गया था कि उसने स्वेच्छा से ग्रंथ के अनुवाद में परिवर्तन किए हैं। 1536 में उसे मृत्यु दण्ड दिया गया और उसे जला दिया गया। इसके बावजूद उसका अनुवाद दूसरे अंग्रेज़ी अनुवादों का आधार ठहरा, जिसमें पांच उल्लेखनीय हैं और जिन्हें 1535, 1537, 1539, 1560 और 1568 में अनुवाद किया गया।
किंग जेम्स वरज़न K J V (जिसे 1611 में अनुवाद किया गया) बाइबिल की प्राचीन प्रतियों के गूढ़ अध्ययन से यह ज्ञात हुआ कि इस प्रति में अत्यन्त गम्भीर और चिन्ताजनक त्रुटियां हैं, अतः इस प्रति का संशोधन आवश्यक है।
1881-1901 के बीच बाइबिल के कई अवैध प्रकाशन हुए, जिसमें अंग्रेज़ी अनुवाद की संशोधित प्रति (1881-1885) के मूल पाठ में हस्तक्षेप किया गया। यह हस्तक्षेप अमरिकी जनता के हित में किया गया था।
बत्तीस विद्वानों और परामर्श समिति के पचास प्रतिनिधियों को लेकर एक संस्था बनाई गई जिसने 1946 में ‘पुराना नियम’ का स्टैंडर्ड रिवाइज़्ड वरज़न (Standard Revised Version) प्रकाशित किया। और फिर 1951 में इसी वर्ज़न को ‘पुराना नियम’ एवं ‘नया नियम’ दोनों को शामिल करके प्रकाशित किया गया।
यह सुधार, परिवर्तन और एक प्रति के बाद दूसरी प्रति की रचना का संक्षिप्त वर्णन है जो कि (1535-1951) केवल 416 वर्षों के बीच पेश आई। पिछले 2000 वर्षों में बाइबिल के साथ क्या कुछ हुआ होगा इसका अनुमान लगाना भी कठिन है। यह एक महत्वपूर्ण स्थिति है जिस पर विद्वानों और इस मत के अनुयाइयों को गम्भीरतापूर्वक चिन्तन करना चाहिए।
अमेरिकन स्टैंडर्ड वरज़न (ASV)-1901
(यह किंग जेम्स वरज़न (KJV) 1611 का संशोधन है।)
विलियम टिण्डेल, जिसने हिब्रू और ग्रीक से बाइबिल का अनुवाद अंग्रेज़ी भाषा में किया, पर यह आरोप लगाया गया कि उसने जान-बूझकर धर्म ग्रंथ के अर्थ को बदल दिया है। उसके अनुवाद किए हुए ‘नया नियम’ को जला देने का आदेश दिया गया और उसे 1536 में मृत्युदण्ड दिया गया और जला दिया गया।
टिण्डेल का कार्य अंग्रेज़ी भाषा में आने वाली बाद की प्रतियों का मौलिक आधार है। इनमें से मुख्य प्रतियां हैं—
1. कॉवरडेल (Coverdale) 1535
2. थॉमस मेथीव (Thomas Matthew) 1537
3. ग्रेट बाइबिल (Great Bible) 1539
4. जनेवा बाइबिल (Geneva Bible) 1560
5. बिशप्स बाइबिल (Bishop’s Bible) 1568
6. लैटिन वल्गेट (Latin Vulgate) से ‘नया नियम’ का अनुवाद जिसे रोमन कैथोलिक विद्वानों ने किया, 1582 में रीम्स (Rheims) में प्रकाशित किया गया।
किंग जेम्स वरज़न (KJV) में अनेक गम्भीर त्रुटियां थीं। बाइबिल के ज्ञान-विकास और प्राचीन हस्तलिखित धर्म-ग्रन्थों की खोज ने यह प्रकट कर दिया कि किंग जेम्स वरज़न (KJV) में अनेक और अति गम्भीर त्रुटियां मौजूद हैं। इसलिए आवश्यक हो गया कि अंग्रेज़ी अनुवाद में संशोधन किया जाए। 1870 में चर्च के अधिकारियों की देख-रेख में यह काम सम्पन्न हुआ।
इंगलिश रिवाइज़्ड वरज़न (ERV) 1881-1885 में प्रकाशित हुआ।
अमेरिकन स्टैंडर्ड वरज़न (ASV), अमेरिकी धार्मिक विद्वानों द्वारा प्रकाशित किए जानेवाले वरज़न में उनकी पसन्द का ध्यान रखा गया, इसे 1901 में प्रकाशित किया गया।
1881 से 1901 के बीच इंगलिश रिवाइज़्ड वरज़न (ERV) का अवैध प्रकाशन हुआ जिसमें अमेरिकी जनता की रुचि के अनुसार हस्तक्षेप किया गया। इसलिए, इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ़ रिलिजन एजुकेशन (International Council of Religion Education, ICRE) ने 1928 में प्रकाशन के अधिकार सुरक्षित करा लिए।
इस बात की आवश्यकता महसूस की जा रही थी और ICRE ने इसकी सिफ़ारिश भी की थी कि 1901 वरज़न का ध्यानपूर्वक संशोधन किया जाए ताकि अंग्रेज़ी भाषा में एक ऐसा उत्तम और शुद्ध वरज़न तैयार हो जो प्रतिदिन की उपासना और विशेष अवसरों की उपासना दोनों के लिए लाभकारी हो।
समिति के बत्तीस विद्वानों ने परामर्श समिति के पचास प्रतिनिधियों के साथ काम किया। यह काम दो विभागों में विभाजित किया गया। एक विभाग ने पुराना नियम और दूसरे ने नया नियम पर काम किया और प्रत्येक विभाग ने दूसरे को अपना काम जांच के लिए भेजा। समिति के पदाधिकारी ने सम्पूर्ण सदस्यों के दो तिहाई मतों द्वारा परिवर्तन की सहमति दी।
‘नया नियम’ का रिवाइज़्ड स्टैंडर्ड वरज़न (Revised Standard Version) 1946 में प्रकाशित हुआ। RSV का यह प्रकाशन, जिसमें पुराना एवं नया नियम शामिल थे और इस वरज़न को 1951 में U.S.A. के नेशनल काउंसिल ऑफ़ द चर्चेस ऑफ़ क्राइस्ट (National Council of the Churches of Christ) के मतों द्वारा प्रकाशन की अनुमति प्रदान की गई थी।
अधिकतर संशोधन ‘प्राचीन प्रतियों1’ पर आधारित हैं (जिनका अनुवाद ग्रीक, अरामीक, सीरियाई एवं लैटिन भाषाओं में हुआ था)।
अंग्रेज़ी भाषा के क़रीब तीन सौ ऐसे शब्द KJV में इस्तेमाल किए गए जो आज की प्रचलित भाषा से भिन्न हैं।
RSV के शब्दों और मुहावरों में कुछ परिवर्तन किए गए ताकि अनुवाद शुद्ध और स्पष्ट हो। उदाहरणस्वरूप—अय्यूब 19:26; मत्ती 7:9; कुरिन्थियों 10:17; मत्ती 21:9; 27:54; मरक़ुस-15:39; यूहन्ना-16:23; 1 कुरिन्थियों-15:19; 1 तीमुथियुस-3:2, 12; 5:9 और तीतुस-1:6
•••
इस परिशिष्ट की सामग्री ‘द होली बाइबिल-रिवाइज़्ड स्टैण्डर्ड वर्ज़न’ प्रकाशक : थॉमस नेल्सन एन्ड संस, लंदन, टोरन्टो-1959 के प्राक्कथन पृष्ठ iii-vii से ली गई है।

फुटनोट
1. पुराना नियम की ‘प्राचीन प्रतियां’
SEPTUAGINT Greek version of the O.T.
SAMARITAN HEBREW TEST OF O.T.
SYRIAC VERSION OF O.T.
TARGUM
VULGATE LATIN VERSION OF O.T.

परिशिष्ट—‘झ’
क़ुरआन की ऐतिहासिक प्रामाणिकता

केवल पवित्र क़ुरआन ही एक ऐसा ईश्वरीय धर्म ग्रन्थ है जिसका पूर्ण अवतरण-काल इतिहास के पन्नों में सुरक्षित है। ईशदूत मुहम्मद (सल्ल॰) पर इसका अवतरण कब और कहां आरम्भ हुआ, कब और कहां अवतरण समाप्त हुआ, किस तरह इसका विवरण सुरक्षित रखा गया, ये सभी चिन्तन के महत्वपूर्ण बिन्दु हैं।
मुहम्मद (सल्ल॰) पर क़ुरआन का अवतरण जिबरील नामक फ़रिश्ते द्वारा 17 अगस्त 610 ई॰ में एक पर्वत की ‘हिरा’ नामक गुफा में आरम्भ हुआ। इस पर्वत का नाम अब जबल-ए-नूर (प्रकाश-पर्वत) है। यह ईशदूत मुहम्मद (सल्ल॰) के घर से 3-4 कि॰ मी॰ की दूरी पर मक्का शहर में स्थित है। ईशदूत मुहम्मद (सल्ल॰) 40 वर्ष की अवस्था में इस गुफा में पाबन्दी से जाया करते। कई-कई दिनों तक उस गुफा में ठहरते और जीवन की वास्तविकता, ईश्वर के अस्तित्व, उसकी सृष्टि तथा ईश्वर और मानव के सम्बन्ध पर चिन्तन करते।
ईशदूत के देहान्त से आठ दिन पूर्व, 31 मई 632 ई॰ को मदीना में क़ुरआन का अवतरण पूर्ण हुआ।
ईशदूत पर अवतरित होने वाले ग्रन्थ के एक-एक शब्द को कई तरीक़ों से सुरक्षित रखने की व्यवस्था की गई। जैसे—
1. ईश्वर की विशेष कृपा से क़ुरआन स्वयं ईशदूत मुहम्मद (सल्ल॰) को स्मरण करा दिया गया। (क़ुरआन स्वयं इसकी पुष्टि करता है।                           (75:16-17)
2. ईशदूत के साथी (सहाबा) अवतरित वाणी को ईशदूत के निर्देशानुसार लिख लिया करते थे। अवतरित क़ुरआन को लिखनेवाले (कातिबीने-क़ुरआन) की संख्या 41 थी। उनके नाम के साथ-साथ उनके पिता के नाम और क़बीलों की पहचान भी सुरक्षित रखी गई है।
3. ईशदूत मुहम्मद (सल्ल॰) के कुछ साथी (सहाबा) अवतरित क़ुरआन के एक-एक शब्द को याद कर लेते और कुछ ऐसे थे जो उसके कुछ भाग को याद करते। यह सिलसिला पिछले 1400 वर्षों से अधिक समय से लगातार जारी है। आज के युग में, ऐसे लाखों लोग (हाफ़िज़-ए-क़ुरआन) हैं जिन्हें क़ुरआन सूक्षतम शुद्धता के साथ पूरा याद है। इस तरह, क़ुरआन को पूरी सावधानी से सुरक्षित रखा गया है।
4. संसार के प्रत्येक भाग में क़ुरआन के कुछ अंशों का पाठ प्रतिदिन पांच बार की अनिवार्य प्रार्थना (फ़र्ज़ नमाज़) में तथा स्वैच्छिक प्रार्थना (नफ़्ल नमाज़) में भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त अनिवार्य उपवास (रोज़े) के महीने रमज़ान में रात को तरावीह की नमाज़ में सम्पूर्ण क़ुरआन का पाठ व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से किया जाता है। क़ुरआन-केन्द्रित इन सारी प्रार्थनाओं का सिलसिला पिछले 1400 वर्षों से भी अधिक समय से जारी है। इस प्रकार पवित्र क़ुरआन का मौलिक रूप आज भी सजीव रूप में शुद्धता एवं पूर्णता के साथ सुरक्षित है।
पवित्र क़ुरआन का संकलन स्वयं नबी हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के जीवन में हो चुका था और इस्लामी शासन के तीसरे ख़लीफ़ा हज़रत उस्मान-बिन-अफ़्फ़ान (रज़ि॰) 1 ने इसकी सात प्रतियां तैयार करवा कर सरकारी तौर पर इस्लामी शासन के सात विभिन्न महत्वपूर्ण स्थानों को भेज दी थीं। उनमें से कुछ मूल प्रतियां आज भी ताशक़न्द और स्तन्बोल आदि के संग्रहालयों में ज्यों की त्यों रखी हुई हैं, जिन्हें देखा जा सकता है। आज संसार के लगभग प्रत्येक भाग में क़ुरआन की करोड़ों प्रतियां मौजूद हैं, जिन्हें उन मूल प्रतियों से मिलाकर देखा जा सकता है। देखने वाला चकित होकर रह जाएगा जब वह उनमें एक शब्द का भी कोई अन्तर न पाएगा।
यह तथ्य भी ध्यान देने योग्य है कि क़ुरआन जिस (अरबी) भाषा में उतरा वह एक जीवन्त भाषा है। क़ुरआन के अवतरित होने के समय से आज तक यह भाषा लिखी, पढ़ी और बोली जा रही है। आज भी यह भाषा कई देशों की मातृभाषा है। इसलिए यह जिस भाषा में अवतरित हुआ उसी भाषा में ज्यों का त्यों सुरक्षित है।

फुटनोट
1. रज़ि॰ = ‘रज़ियल्लाहु अन्हु’-अर्थात् ‘अल्लाह उनसे राज़ी हो’। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के साथियों (सहाबा) का नाम आने पर दुआ के ये शब्द लिखे/बोले जाते हैं।
•••

Bibliography
Qur'an (Translation of the meaning)
1. 'The Holy Qur'an – English translation of the meaning and Commentary', by : Abdullah Yusuf Ali
Ministry of Hajj and Endowments. K.S.A. 1413 H.
2. 'Towards Understanding the Qur'an'
Abridged version of 'Tafheem-ul-Qur’an' (Urdu)
Tr. & Ed. in English, by : Zafar Ishaq Ansari
M.M.I. Publishers, New Delhi-25. March 2007
3. 'English Translation of the Meaning of The Qur'an'
by : Professor (Dr.) Syed Vickar Ahmad
Book of Signs Foundation. U.S.A. 2005
Bible
1. Holy Bible – New King James Version. The Gideons Intnl. India 2002.
2. Holy Bible – Revised Standard Version.
Thomson Nelson & Sons London – 1559.
Encyclopaedia
1. Encyclopaedia Britanica
2. New Catholic Encyclopaedia.
3. Encyclopaedia of Religion and Ethics
Books
1. What Did Jesus Really Say – Mish'al ibn Abdullah
Islamic Assembly of North America (IANA) U.S.A.; 1996
2. The Metaphor of GOD Incarnate
John Hick Westminister / John Knox Press. Kentucky.
3. Christian Doctrine
J.S. Whale. The Sydics of the Cambridge Univ. Press,
4. Early Christian Doctrines
J.N.D. Kelly, Happer & Row Publications U.S.A., 1960
5. Muhammd in the Bible
Professor Abdu'l-Ahad Dawud
(formerly Reverend David Benjamin Keldani. a Roman Catholic priest) Publ. Persidency of Shariyah Courts and Religious Affairs. Doha. Qatar. 4th Edition 1991.
6. Christian Muslim Dialogue
H.M. Baagil M.D.
K.S.A. Foreigners Guidance Centre. GASSIM Zone. 1991
7. The True Message of Jesus Christ
Dr. Abu Ameenah Bilal Philips
Dar al Falah. Sharjah. U.A.E. 1999
8. Islam and Christianity as Seen in the Bible.
Muslim Educational Society. Manama. Bahrain III Ed. 2001