एकेश्वरवाद मानव-प्रकृति के
पूर्णतः अनुकूल है
एकेश्वरवाद दिल की दुनिया बदल देने वाली एक क्रान्तिकारी, कल्याणकारी, सार्वभौमिक, सर्वाधिक महत्वपूर्ण और मानव-प्रकृति के बिल्कुल अनुकूल अवधारणा है, जो आदमी को सिर्फ़ और सिर्फ़ एक अल्लाह या ईश्वर की बन्दगी और दासता की शिक्षा देती है। एक अल्लाह के आगे सजदा करने या झुकने वाला आदमी बाक़ी सारे बनावटी और नक़ली ख़ुदाओं के सजदे और दासता से छुटकारा पा जाता है और अल्लाह की नज़र में सारे इनसान एक समान हो जाते हैं। अल्लाह की नज़र में किसी के बड़ा या छोटा होने का मानदण्ड उसका कर्म है। जिसका कर्म जितना अच्छा होगा, वह उतना ही बड़ा और ऊंचा होगा और जिसका कर्म जितना बुरा होगा वह उतना ही छोटा या अधम और नीच होगा। आदमी का कर्म ही उसे लोक-परलोक में सफल या असफल बनाएगा और स्वर्ग या नरक में ले जाएगा।
इस विशाल और सुव्यवस्थित कायनात की रचना एक सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, तत्वदर्शी और दूरदर्शी ईश्वर ने अपनी अनुपम और असीम शक्ति से की है, वह इसको शून्य से अस्तित्व में लाया है। उसी अल्लाह के ज्ञान एवं तत्वदर्शिता के तहत यह सब कुछ एक अत्यन्त सुव्यवस्थित एवं अनुशासित तरीक़े से संचालित हो रहा है। दुनिया में इससे ज़्यादा ग़लत बात कभी नहीं कही गई है कि यह कायनात किसी रचयिता के बिना अपने आप बन गई है; क्योंकि इस संसार का एक ही स्रष्टा और स्वामी है और वही सम्पूर्ण मानवजाति का वास्तविक पूज्य-प्रभु है, उसके सिवा कोई दूसरा ईष्ट-पूज्य नहीं है—
‘‘अल्लाह ही उपास्य है, उसके सिवा कोई ईष्ट-पूज्य नहीं।’’
(क़ुरआन, सूरा-4 निसा, आयत-87)
इसलिए पवित्र क़ुरआन में सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही ईश्वर के आगे झुकने को कहा गया है—
‘‘न सूरज को सजदा करो, न चांद को, अल्लाह को सजदा करो जिसने उन सबको पैदा किया है।’’
(क़ुरआन, सूरा-41 सजदा, आयत-37)
किसी भी मामले में कोई भी ईश्वर का साझीदार या समकक्ष नहीं। वह सर्वशक्तिमान है और हर चीज़ पर सामर्थ्य रखता है। कोई चीज़ उसकी शक्ति और सत्ता से बाहर नहीं, लाभ-हानि, स्वास्थ्य, बीमारी, सम्मान, अपमान, धन-दौलत, सत्ता, आजीविका के साधन, सन्तान, जीवन, मृत्यु और भाग्य सब कुछ उसी के हाथ में हैं और सब कुछ उसी की ओर से है, हर चीज़ के ख़ज़ाने उसी के पास हैं।
बहुदेववाद वास्तव में सृष्टि-पूजा का नाम है अर्थात् सृष्टि की विभिन्न वस्तुओं और जीव-जन्तुओं को ईश्वर अथवा उसका समकक्ष समझकर उनकी पूजा-अर्चना का नाम बहुदेववाद है। दूसरे शब्दों में, किसी सृष्ट जीव-जन्तु या पदार्थ को ईश्वर का सहभागी और समकक्ष ठहराना, उसके गुणों में किसी को साझीदार मानना और उसके अधिकारों एवं प्रभुत्व में किसी को साझीदार और समकक्ष ठहराना ही बहुदेववाद है, जो अल्लाह की निगाह में सबसे बड़ा अन्याय, अत्याचार और महापाप है।
सोच-विचार का सामान्य तरीक़ा
यह छोटी-सी पुस्तक, जो इस समय आपके हाथों में है और जिसके अध्ययन की शुरुआत आप कर रहे हैं, बहुत संक्षिप्त ही सही, लेकिन इसके छोटे-से आकार को देखकर आप स्वाभाविक रूप से बहुत-सी वास्तविकताओं को मजबूरन स्वीकार करते हैं। पुस्तक को देखकर आप मानते हैं कि इसका एक लेखक है, जिसने किसी उद्देश्य के लिए इसको लिखा है, कोई कम्पोज़ करने वाला है, जिसने इसको कम्पोज़ किया है, कोई छापाख़ाना है जहां से यह छपी है, कोई जिल्द बनाने वाला है, जिसने इसकी जिल्द बनाई है, और ज़रूर ही कोई प्रकाशक है जिसकी मेहनत और कोशिश से यह पुस्तक अपनी तैयारी के विभिन्न चरणों से गुज़रकर इस पूर्ण रूप में आपको सोच-विचार हेतु प्रेरित करने के लिए आपके हाथों तक पहुंची है।
यह रेडियो, जो केवल आपके घर की शोभा ही नहीं, एक अहम ज़रूरत भी है; इससे लाभ उठाकर आप न केवल मार्कोनी (Marconi) के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, बल्कि उसकी असाधारण बुद्धि उसकी शोध-भावना, आविष्कार, उसकी लगन, कठोर परिश्रम और प्रयास को भी दिल से स्वीकार करते हैं।
यह तेज़ रफ़्तार रेल, जो प्रत्येक देश की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है और संसार का कोई भाग शायद ही ऐसा होगा, जहां जॉर्ज स्टीफेन्सन के इस सर्वाधिक लाभदायक आविष्कार से लाभ न उठाया जा रहा हो। इससे लाभ उठाकर आप न केवल इसके आविष्कारक जॉर्ज स्टीफेन्सन के अस्तित्व को मानने पर मजबूर होते हैं, बल्कि हृदय से उसके आभारी भी होते हैं कि उसने अपने आश्चर्यजनक प्रयास, अनुसंधान-कार्य, निरन्तर परिश्रम और लगन से संसार वालों के लिए एक अत्यन्त लाभकारी चीज़ का आविष्कार कर दिया है।
हवा के कन्धों पर भारी जहाज़ को उड़ते देखकर आप स्वाभाविक रूप से विज्ञान के इस आश्चर्यजनक आविष्कार से प्रभावित होते हैं और यह लौह-पक्षी आपको केवल इसी पर विवश नहीं करता कि आप विलबर राइट (Wilbar Wright) और ऑरविल राइट (Orville Wright), दो अमेरिकी बन्धुओं के अस्तित्व को स्वीकार करें, बल्कि ठीक तौर पर आपसे यह ख़ामोश और स्वाभाविक अपेक्षाएं भी रखता है कि आप उनकी अनुपम प्रतिभा, स्थाई प्रवृत्ति, त्याग, बलिदान, सतत् कठोर परिश्रम, अपने लक्ष्य के प्रति असाधारण लगाव और समर्पण-भाव को भी स्वीकार करें।
यह आपके सोचने-समझने और विचार-विमर्श करने का एक सामान्य तरीक़ा है। जीवन में प्रतिदिन आप इसी प्रकार विभिन्न चीज़ों पर चिन्तन-मनन करते और अपनी स्वाभाविक जिज्ञासाओं और प्रश्नों का उत्तर मालूम करके किसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। सोचने-विचारने का यह अन्दाज़ इतना सरल, नैसर्गिक, तर्कपूर्ण और प्रामाणिक है कि इसके विरुद्ध मन के किसी हिस्से में भी कभी कोई शंका पैदा नहीं होती। कर्म को देखकर कर्ता की कल्पना, आविष्कार को देखकर आविष्कारक की कल्पना, उद्योग को देखकर उद्योगपति का ध्यान सामान्य बुद्धि (Common Sense) की बात है और यह बात इतनी जानी-पहचानी और स्वाभाविक है कि संसार का प्रत्येक व्यक्ति न केवल इससे परिचित है, बल्कि यही उसके चिन्तन-मनन और सोच-विचार का सामान्य तरीक़ा भी है।
हठधर्मी और असामान्य विचारशैली
आप ही सोचिए, अगर कोई मूर्ख आपको यह बताने लगे कि यह रेडियो, यह रेलगाड़ी, यह जहाज़ किसी आविष्कारक के असाधारण सतत् प्रयास और कठोर परिश्रम का परिणाम नहीं, बल्कि आकस्मिक घटना का परिणाम हैं, स्वयं कुछ धातुएं संयोग से मिल गईं, स्वयं कुछ विशेष प्रकार के पुर्ज़े ढल गए, अपने आप इनमें एक व्यवस्था और क्रम पैदा हो गया और अपने आप रेडियो, रेलगाड़ी, जहाज़ अस्तित्व में आ गए और मनुष्य इनसे लाभ उठाने लगे और रही यह किताब तो इसका अस्तित्व भी एक संयोग ही का परिणाम है, न इसका कोई लेखक है जिसने प्रयास करके कुछ सामग्री एकत्र की है और इसे एक क्रम प्रदान किया है, न किसी छापेख़ाने में यह छपी है, न किसी जिल्दसाज़ ने इसकी जिल्द बनाई है और न किसी प्रकाशक ने इसके छापने का बोझ उठाया है; स्वयं इसकी रचना हो गई, अपने आप कुछ काग़ज़ इकट्ठा हुए, अपने आप किताब लिख गई और स्वतः किताब छप गई, अपने आप इसकी जिल्द बन गई और अपने आप छपकर आपके हाथ में आ गई, तो आप हैरत से कहने वाले का मुंह तकते रहेंगे और क्षण भर के लिए भी यह न सोचेंगे कि यह व्यक्ति होश-हवास में यह सब कुछ कह रहा है, यह चिन्तन-मनन नहीं सरासर हठधर्मी है। मनुष्य की सोच न इस हठधर्मी पर ध्यान दे सकती है और न इस मूर्खता और बुद्धिहीनता में उसे कभी कोई सन्देह हो सकता है।
बुद्धि-विवेक एवं शिष्टाचार की मांग
फिर यह भी एक जानी-मानी वास्तविकता है कि किसी काम, किसी आविष्कार और किसी उद्योग को देखकर आदमी केवल उसके कर्ता, आविष्कारक और उद्योगपति के अस्तित्व ही को स्वीकार नहीं करता, बल्कि उस काम, आविष्कार और उद्योग का महत्व, लाभ, आवश्यकता और उपयोगिता की दृष्टि से उसके कर्ता, आविष्कारक और उद्योगपति के बुद्धि-विवेक, ज्ञान एवं तत्त्वदर्शिता, महानता और श्रेष्ठता की भी अनुभूति करता है और उसके लिए अपने बुद्धि-विवेक और सोच-समझ के अनुसार कृतज्ञता, आभार, प्रेम और आदर-सम्मान की भावनाएं भी उसके दिल में पैदा होती हैं।
जो व्यक्ति खुली आंखों से इन रचनाकारों, आविष्कारकों और विचारकों के महान कार्यों को देख रहा हो, उनके द्वारा बनाई या आविष्कार की हुई वस्तुओं से लाभ उठा रहा हो, और उनके कारण अपने सुख-चैन और आराम के लिए तरह-तरह के सामान इकट्ठा कर रहा हो, उसकी सद्बुद्धि, सज्जनता और मानवता की मांग इसके सिवा कुछ न होगी कि वह उन रचनाकारों, आविष्कारकों और विचारकों का उपकार माने, उनकी समस्त असाधारण और अनुपम सेवाओं को स्वीकार करे, उनके ज्ञान, कृपा, कठोर परिश्रम, त्याग और बलिदान को स्वीकार करे, उनकी शोध-भावना और अपने अभियान से गहरे लगाव और लगन की प्रशंसा करे, उनके निरन्तर किए गए प्रयासों का आदर-सम्मान करे और उनको धन्यवाद दे।
रहा वह व्यक्ति जो इन कृपादानों और वरदानों से लाभ उठाने, सुख-चैन और आराम की सुख-सुविधाएं प्राप्त करने में तो बड़ा तत्पर और चालाक हो, लेकिन वह उन रचनाकारों और आविष्कारकों की सेवाओं को न माने, उनकी उपेक्षा करे और उसके दिल में उनके लिए आभार और उपकार की कण भर भी कोई भावना न हो, तो ऐसा व्यक्ति न केवल यह कि बुद्धि एवं विवेक से वंचित है, बल्कि सज्जनता और मानवता के बहुमूल्य गुणों से भी ख़ाली है।
कायनात का संक्षिप्त अध्ययन
अब ज़रा नज़र उठाकर अपने चारों ओर फैली हुई विशाल, व्यापक और अथाह कायनात का अवलोकन कीजिए कायनात की अनुपम सुन्दरता, सुदृढ़ व्यवस्था, पूर्ण सन्तुलन और समरसता, आश्चर्यजनक सम्बन्ध और क्रमबद्धता, सूर्य, चन्द्रमा तथा दूसरे ग्रहों की सुव्यवस्थित परिक्रमा, रात-दिन का नियमानुसार आना-जाना, भू-मण्डल पर बसने वाले अनगिनत प्राणियों के भरण-पोषण और आजीविका प्रदान करने के पूर्ण एवं अटल प्रबन्ध पर विचार कीजिए।
मनुष्य के समुचित और सन्तुलित शरीर और इसमें मौजूद आश्चर्यजनक शक्तियों, दिल-दिमाग़ तथा सोचने-समझने की अथाह सामर्थ्य और कायनात को वशीभूत करने की उमंग और दृढ़ संकल्प-शक्ति पर विचार कीजिए।
मानव-जीवन के अस्तित्व और पालन-पोषण के लिए सूर्य, चन्द्रमा, धरती, आकाश और हवा में पूर्ण सामन्जस्य, और एकत्व सेवा-कार्य और आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यापक एवं पूर्ण प्रबन्ध पर ध्यान दीजिए। वातावरण में सांस लेने के लिए हवा का असीमित भण्डार, प्यास बुझाने के लिए पानी का आश्चर्यजनक प्रबन्ध, भूख मिटाने के लिए तरह-तरह के खाद्य पदार्थ, अनाज और फल, सौन्दर्य रसिकता की पूर्ति के लिए सुबह और शाम की मनमोहकता, फूलों का निखार, आराम और शान्ति के लिए रात की आरामदेह और ख़ामोश गोद, दौड़-धूप के लिए प्रकाशमान दिन, दिल की राहत के लिए सुकून देने वाले जोड़े, आंखों की ठण्डक और इत्मीनान के लिए प्यारी औलाद, ज़िन्दगी को ऐश और आराम का पालना बनाने के लिए ख़ानदान और भाई-बन्धुओं की मुहब्बत और सहारे, प्राकृतिक शक्तियों से काम लेने के लिए उन्हें वशीभूत करने की असीम शक्ति और दिल व दिमाग़ में नई-नई चीज़ें आविष्कार करने की आश्चर्यजनक क्षमताओं पर सोच-विचार कीजिए।
यह अवलोकन और अध्ययन आप रात-दिन कर रहे हैं और पल भर रुके बिना बराबर कायनात की नेमतों से फ़ायदा उठा रहे हैं। धरती से पैदा होने वाले स्वादिष्ट, मीठे, लाभदायक फलों, ग़ल्लों और तरकारियों से दिन-रात फ़ायदा उठा रहे हैं। साफ़ एवं स्वच्छ पानी से प्यास बुझा रहे हैं, सुबह के ठण्डे और नर्म झोंकों से आनन्द ले रहे हैं। बादलों से बरसने वाले पानी से अपने बाग़ों और खेतों को सींच रहे हैं, वातावरण में मौजूद हवा के अथाह भण्डार में सांस ले रहे हैं, सूरज की रौशनी, रात की ठण्डक, सुबह का सुहावना वातावरण और शाम की रंगीनी से शान्ति पा रहे हैं। मां-बाप का अनुपम प्रेम और स्नेह, पत्नी का अतुलनीय साथ, सन्तान का सुखद और आनन्ददायक साथ आपकी ज़िन्दगी को ऐश और आराम का गहवारा बना रहे हैं। कायनात की प्राकृतिक शक्तियों को वशीभूत करके रात-दिन प्रगति के मार्ग पर लगातार आगे बढ़ रहे हैं और उन अनगिनत नेमतों से लाभान्वित होने और एक-दूसरे से आगे निकल जाने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं।
कायनात के अध्ययन की स्वाभाविक मांग
विचार कीजिए; यह सब कुछ जो आप देख रहे हैं, महसूस कर रहे हैं और बरत रहे हैं, इनकी स्वाभाविक मांग क्या है? आपका दिल गवाही देगा कि इस विशाल और सुव्यवस्थित कायनात के पीछे अवश्य ही एक सर्वशक्तिमान, एक तत्वदर्शी और दूरदर्शी मालिक और शासक की महान हस्ती मौजूद है।
यह सब कुछ न अपने आप हुआ है और न अपने आप हो रहा है। इस कायनात का एक रचयिता (Designer) है जिसने अपनी शक्ति और इरादे से इसकी योजना बनाई और इसको शून्य से अस्तित्व में लाया और इसका एक स्वामी और शासक है, जिसके ज्ञान एवं तत्वदर्शिता के तहत यह सब कुछ अत्यन्त सुव्यवस्थित एवं अनुशासित ढंग से हो रहा है। यह सब कुछ यूं ही बिना किसी उद्देश्य और बिना किसी कारण के नहीं है, बल्कि एक महान उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक योजना और स्कीम के साथ हो रहा है।
दुनिया में इससे ज़्यादा ग़लत बात कभी नहीं कही गई है कि यह कायनात किसी रचयिता के बिना अपने आप पैदा हो गई है और यह किसी सर्वशक्तिमान और तत्वदर्शी ईश्वर की सर्वोच्च और सर्वोत्तम रचना नहीं है, बल्कि भौतिक पदार्थों (Matters) के हज़ारों वर्ष की प्राकृतिक प्रक्रिया का आकस्मिक परिणाम है।
एक मामूली-सी पुस्तक और मामूली-सी मशीन का हाल यह है कि वह अपने आप नहीं बन जाती, तो यह लम्बी-चौड़ी, विशाल और व्यापक कायनात, जिसका एक मामूली-सा हिस्सा हमारी यह ज़मीन है, किसी स्रष्टा के बिना कैसे पैदा हो सकती है? बुद्धि-विवेक तथा सूझ-बूझ रखने वाला कोई व्यक्ति यह कैसे स्वीकार कर सकता है कि यह कायनात एक आकस्मिक घटना का परिणाम है जो अनायास ही घटित हो गई है। इसका कोई बनाने वाला नहीं है या कुछ शक्तियां इसके विभिन्न हिस्सों को अस्तित्व में लाई हैं या फिर ज़िन्दगी का यह सारा हंगामा मात्र भ्रम और अनुमान का पैदा किया हुआ है इसकी वास्तविकता कुछ भी नहीं है, जबकि इन संकल्पनाओं के पीछे न कोई वैज्ञानिक आधार है, न कोई प्रमाण है और न सद्बुद्धि का ही इन संकल्पनाओं से कोई सम्बन्ध है।
फिर जगत् के अध्ययन का तक़ाज़ा केवल इतना ही नहीं है कि आप स्रष्टा के अस्तित्व को स्वीकार करें, बल्कि विश्व की विशालता और व्यापकता, उसका आश्चर्यजनक अनुशासन, सामंजस्य, सन्तुलन और सुव्यवस्था, उसका बेमिसाल सौन्दर्य और उसका उद्देश्य इस वास्तविकता की तरफ़ मार्गदर्शन करता है कि वह स्रष्टा ही नहीं, बल्कि सबसे बेहतरीन स्रष्टा है और अकेला वही स्रष्टा है और वही इस अथाह कायनात पर शासन कर रहा है। वह कायनात को पैदा करके इससे अलग नहीं हो गया, बल्कि वह हर पल इस पर शासन और इसका संचालन कर रहा है और कभी इससे बेसुध और लापरवाह नहीं हुआ है। थकान, सुस्ती, ऊंघ, नींद और लापरवाही जैसी कमज़ोरियों से वह बिल्कुल मुक्त और पाक है। वह बहुत ही तत्वदर्शी और ज्ञानवान है, उसका कोई कार्य तत्वदर्शिता और हिक्मत से ख़ाली नहीं है। कायनात की रचना, उसका संचालन, प्रबन्ध स्रष्ट जीवों के पालन-पोषण और शासन-व्यवस्था में कोई दूसरा उसका साझीदार नहीं, वह अपनी हस्ती और गुणों में अकेला और बेमिसाल है। वही सारे सर्वोच्च गुणों का मालिक है, ये गुण न किसी दूसरी हस्ती में हो सकते हैं और न कोई दूसरी हस्ती इन सर्वोच्च गुणों में ख़ुदा की साझीदार है और न ख़ुदा के अधिकार, सत्ता और इस विशाल कायनात के संचालन में किसी दूसरे का कण भर भी किसी तरह का दख़ल है। विशुद्ध एकेश्वरवाद की यह अवधारणा एक ऐसी स्पष्ट वास्तविकता है, जो कायनात के कण-कण से प्रकट हो रही है। इनसान अगर साफ़ दिल के साथ खुली आंखों से कायनात का निरीक्षण, अध्ययन और अवलोकन करे तो वह अवश्य ही इस सच्चाई को पा लेगा।
क़ुरआन का आह्वान
क़ुरआन इसी रौशन सच्चाई की ओर पूरी मानवजाति को बुलाता है और इस सच्चाई को समझाने और दिल में बिठाने के लिए यही सादा और स्वाभाविक अन्दाज़ अपनाता है। वह तर्क-वितर्क और शास्त्रार्थ का शुद्ध तर्कपूर्ण अन्दाज़ नहीं अपनाता, वह इनसान की प्रकृति से अपील करता है, बुद्धि-विवेक की सोई हुई शक्तियों को जगाता है और इनसान को विभिन्न प्रकार से झिंझोड़ता है कि संसार की निशानियों से ग़फ़लत और लापरवाही के साथ न गुज़रो, खुली आंखों से कायनात का अवलोकन और निरीक्षण करो, कायनात की रचना और इसकी आश्चर्यजनक व्यवस्था पर विचार करो। ज़मीन-आसमान और ख़ुद इनसान के अस्तित्व में फैली हुई शिक्षाप्रद निशानियों पर सोच-विचार करो। तुम्हारी सद्बुद्धि और नेक फ़ितरत अवश्य ही इस परिणाम पर पहुंचेगी कि इस संसार का एक ही स्रष्टा और स्वामी है और वही इन्सानों का वास्तविक माबूद (पूज्य-प्रभु) है, उसके सिवा कोई दूसरा माबूद नहीं। अब रहे ये प्रश्न कि वास्तविक पूज्य-प्रभु के साथ आदमी का सही सम्बन्ध क्या है? उसकी हस्ती और गुणों का सही ज्ञान क्या है? उसकी बन्दगी और उपासना का सही तरीक़ा क्या है? और उसकी प्रसन्नता किस प्रकार हासिल की जा सकती है? तो इन मूल प्रश्नों के सही उत्तरों को प्राप्त करना बुद्धि-विवेक की पहुंच से बाहर है। यही वह स्थान है जहां से धर्म की आवश्यकता की शुरुआत होती है और इन्सान ईश्वर के मार्गदर्शन का इच्छुक और अभिलाषी होता है। क़ुरआन का दावा यह है कि ईश्वर ने हर दौर में इन्सान की इस आवश्यकता को पूरा किया है और हमेशा अपने दूतों के द्वारा मार्गदर्शक ग्रन्थ भेजकर मनुष्य का मार्गदर्शन किया है। क़ुरआन भी इसी तरह का एक अनुपम मार्गदर्शक ग्रन्थ है, जो पूरी मानवजाति के मार्गदर्शन के लिए अवतरित हुआ है और यह उन सारे मार्गदर्शक ग्रन्थों का अन्तिम और सर्वांगपूर्ण संस्करण है जो इससे पूर्व अवतरित हो चुके हैं। ख़ुदा की हस्ती और गुण का सही और प्रमाणिक ज्ञान, उसके एक और केवल एक होने की सही और प्रामाणिक अवधारणा (एकेश्वरवाद), उसकी बन्दगी और उपासना का सही, सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय तरीक़ा केवल वही है, जो क़ुरआन प्रस्तुत करता है; मगर क़ुरआन की शिक्षा को समझने और उसके मार्गदर्शन से लाभान्वित होने के लिए बुनियादी शर्त यह है कि आदमी अज्ञानता, पूर्वाग्रह, पक्षपात, हठधर्मी और पूर्वजों का अन्धा अनुसरण जैसी भावनाओं से दिल को साफ़ करके एक सत्य को जानने वाले की हैसियत से उसका अध्ययन करे, और उसके बुलावे पर विशुद्ध बुद्धि की रौशनी में विचार करे। क़ुरआन बिना किसी भेद-भाव के सम्पूर्ण मानव-जाति का आह्वान करता है—
‘‘ऐ लोगो! बन्दगी करो अपने उस रब (पालनहार प्रभु) की जो तुम्हारा और तुमसे पहले जो लोग हुए हैं उन सबका पैदा करने वाला है, तुम्हारे बचने की आशा इसी प्रकार हो सकती है। वही तो है जिसने तुम्हारे लिए धरती का बिछौना बिछाया, आकाश की छत बनाई, ऊपर से पानी बरसाया और उसके द्वारा हर प्रकार की पैदावार निकालकर तुम्हारे लिए रोज़ी जुटाई। अतः जब तुम यह जानते हो तो दूसरों को अल्लाह का समकक्ष न ठहराओ।
और अगर तुम्हें इस बात में सन्देह है कि यह किताब जो हमने अपने बन्दे पर उतारी है, यह हमारी है या नहीं, तो इस जैसी एक ही सूरा बना लाओ और अपने मत के सारे ही लोगों को बुला लो, एक अल्लाह को छोड़कर बाक़ी जिस-जिसकी चाहो सहायता ले लो, अगर तुम सच्चे हो तो यह काम करके दिखाओ। लेकिन अगर तुमने ऐसा न किया, और निश्चय ही कभी नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईंधन बनेंगे मनुष्य और पत्थर, जो जुटाई गई है सत्य को न मानने वालों के लिए।’’
(क़ुरआन, सूरा-2 बक़रा, आयत-21-24)
चार महत्वपूर्ण वास्तविकताएं
क़ुरआन की ये चार आयतें चार महत्वपूर्ण वास्तविकताओं की ओर मार्गदर्शन करती हैं और हर ऐसे व्यक्ति को सोच-विचार करने की दावत देती हैं जो सत्य प्रेमी हो और जिसका दिल-दिमाग़ सत्य के स्वागत के लिए हर समय खुला हुआ हो—
1. शिर्क (बहुदेववाद) के लिए संसार में कोई तर्क और आधार नहीं, इसलिए बुद्धि-विवेक और ज्ञानवान व्यक्ति के लिए कदापि उचित नहीं कि वह बहुदेववाद में लिप्त हो।
2. एकेश्वरवाद एक स्पष्ट वास्तविकता है। एक ही ईश्वर ने मनुष्य को पैदा किया है और वही उसका पालन-पोषण कर रहा है। इसलिए बुद्धि एवं विवेक की मांग यह है कि इन्सान एक ही वास्तविक ईश्वर की उपासना करे।
3. एकेश्वरवाद पूरी मानवजाति के लिए एक सर्वमान्य, सामान्य कृपादान और दयालुता है। यह किसी जाति विशेष का जातीय विश्वास नहीं है। इसलिए हर इन्सान के लिए सही रवैया यही है कि वह एकेश्वरवाद की वास्तविकता को समझे और स्वीकार करे।
4. एकेश्वरवाद और पालनहार प्रभु की बन्दगी और उपासना की केवल वही अवधारणा सही, लोकप्रिय और सर्वमान्य है जो क़ुरआन ने प्रस्तुत की है। इसके विरुद्ध जो कुछ है वह पूर्णतः असत्य और खण्डन करने योग्य है।
अब हम संक्षेप में इन चारों वास्तविकताओं का स्पष्टीकरण प्रस्तुत करते हैं—
शिर्क (बहुदेववाद) एक निराधार विचारधारा
बहुदेववाद वास्तव में सृष्टि-पूजा का नाम है। इसके तीन रूप हैं—
1. ईश्वर की हस्ती में किसी सृष्ट जीव या पदार्थ को साझीदार मानना।
2. ईश्वर के गुणों में किसी सृष्ट जीव या पदार्थ को साझीदार मानना।
3. ईश्वर के अधिकारों में किसी सृष्ट जीव या पदार्थ को साझीदार मानना।
ईश्वर की हस्ती में साझीदार ठहराने का अर्थ
ईश्वर की हस्ती में किसी दूसरे को साझीदार मानने का अर्थ यह है कि सृष्ट जीव में से किसी को उसका बेटा, बेटी, मां-बाप ठहराया जाए और सृष्ट जीव को उसकी हस्ती का अंश माना जाए, जैसा कि यहूदी हज़रत उज़ैर (अलैहि॰) को ख़ुदा का बेटा क़रार देते हैं और ईसाई हज़रत ईसा (अलैहि॰) को ख़ुदा का बेटा क़रार देते हैं या जैसा कि भारत में बहुदेववाद को मानने वाले देवी-देवताओं के बारे में यह धारणा रखते हैं और कुछ गरोह तो सृष्टि की प्रत्येक वस्तु को ईश्वर या ईश्वर का अंश ठहरा देते हैं और किसी चीज़ को भी ईश्वर की हस्ती से अलग नहीं समझते अर्थात् वे प्रत्येक जीव-जन्तु या वस्तु को ईश्वर का रूप मानते हैं और उसकी पूजा-अर्चना करते हैं।
क़ुरआन इस धारणा का घोर खण्डन करता है—
‘‘कह दीजिए, अल्लाह एक है। अल्लाह सबसे निरपेक्ष है और सब उसके मुहताज हैं। न उसकी कोई सन्तान है और न वह किसी की सन्तान, और न कोई उसका समकक्ष है।’’
(क़ुरआन, सूरा-112 इख़लास, आयत-1-4)
‘‘और उन लोगों ने जिन्नों को अल्लाह का साझीदार ठहरा दिया, हालांकि इनको उसने पैदा किया है और किसी ज्ञान और प्रमाण के बिना उसके लिए बेटे और बेटियां गढ़ लीं, हालांकि वह पवित्र और उच्च है उन सम्बन्धों से जो ये लोग बयान करते हैं।’’ (क़ुरआन, सूरा-6 अनआम, आयत-100)
ईश्वर के गुणों में साझीदार ठहराने का अर्थ
ईश्वर के गुणों में किसी सृष्ट जीव को साझीदार बनाने का अर्थ यह है कि जो सर्वोच्च गुण, ज्ञान और तत्वदर्शिता, अधिकार और सामर्थ्य, रचना-कार्य और दूरदर्शिता आदि ईश्वर के लिए ही ख़ास हैं और उसकी हस्ती में ख़ुद मौजूद हैं; किसी प्राणी को उनमें ईश्वर का साझीदार माना जाए और यह समझा जाए कि इस प्राणी में भी ये गुण पाए जाते हैं। मिसाल के तौर पर, पैदा करना ईश्वर का विशेष गुण है और केवल ईश्वर ही संसार का एकमात्र स्रष्टा (पैदा करने वाला) है। यह मानना कि ईश्वर के सिवा किसी सृष्ट जीव ने भी संसार या इसके किसी अंश को पैदा किया है चाहे वह बुद्धिमत्ता हो या आकाश हो या कोई और चीज़।
जैसा कि यूनानी दार्शनिकों का विचार था कि ईश्वर ने विवेक प्रथम को पैदा किया। विवेक प्रथम ने विवेक द्वितीय और आकाश प्रथम को पैदा किया और फिर इसी क्रम से सम्पूर्ण सृष्टि की रचना हुई। हिन्दू धर्म के मानने वालों में जो बात ज़्यादा लोकप्रिय है वह यह है कि ‘‘ईश्वर ने पहले पानी पैदा किया, जिस पर एक सुनहरा अण्डा तैर रहा था। फिर वह उस अण्डे में दाख़िल हुआ और ब्रह्मा बनकर प्रकट हुआ। यही सबसे पहला सृष्ट जीव है। फिर ब्रह्मा ने देवता, आकाश चन्द्रमा, सूर्य, संसार और इन्सान पैदा किए।’’
(इस्लाम का हिन्दुस्तानी तहज़ीब पर असर, उर्दू, पृष्ठ-25)
ईरान के मजूसी (अग्निपूजक) दो स्रष्टा मानते थे, एक अच्छाई का जन्मदाता जिसको वे ‘यज़दान’ कहते थे और दूसरा बुराई का जन्मदाता जिसको वे ‘अहुरमन’ कहते थे। क़ुरआन इस बहुदेववाद का खण्डन करता है और कहता है कि धरती और आकाश, मानव और पूरी सृष्टि मात्र एक ईश्वर की रचना है और इस कार्य में कोई दूसरा उसका साझीदार नहीं और न किसी सृष्ट जीव में यह गुण मौजूद है—
‘‘ऐ लोगो! एक मिसाल दी जाती है, ध्यान से सुनो। जिन पूज्यों को तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारते हो, वे सब मिलकर अगर एक मक्खी भी पैदा करना चाहें, तो नहीं कर सकते। और (उनका हाल तो यह है कि) अगर मक्खी उनसे कोई चीज़ छीन ले जाए तो वे उसे छुड़ा भी नहीं सकते। सहायता चाहने वाले भी निर्बल और जिनसे सहायता चाही जाती है वे भी निर्बल।’’
(क़ुरआन, सूरा-22 हज्ज, आयत-73)
‘‘मैंने आकाश और धरती पैदा करते समय उनको नहीं बुलाया था और न स्वयं उनको बनाने में उन्हें सम्मिलित किया था। मेरा यह काम नहीं है कि गुमराह करने वालों को अपना सहायक बनाया करूं।’’ (क़ुरआन, सूरा-18 कह्फ़, आयत-51)
इसी तरह पूरी कायनात का अत्यन्त सुव्यवस्थित ढंग से प्रबन्ध और संचालन भी वह अकेले कर रहा है, कोई दूसरी हस्ती ऐसी नहीं, जो इस प्रबन्ध-व्यवस्था, सामर्थ्य और अधिकार में ख़ुदा के साथ सम्मिलित हो—
‘‘और कहो : प्रशंसा है उस अल्लाह के लिए, जिसने न किसी को बेटा बनाया, न कोई शासन ही में उसका साझीदार है, और न बेबस है कि कोई उसका हिमायती हो और उसकी बड़ाई बयान करो, उच्च कोटि की बड़ाई।’’
(क़ुरआन, सूरा-17 बनी-इसराईल, आयत-111)
इसी तरह ज्ञान और तत्वदर्शिता भी ईश्वर का विशेष गुण है। सिर्फ़ वही है जो कायनात की अगली-पिछली वास्तविकताओं और समस्त खुली-छिपी बातों से पूरी तरह अवगत है, और इस कार्य में कोई भी उसका साझीदार नहीं है—
‘‘और सारे उच्चतर गुण ख़ुदा ही के लिए हैं। वह प्रभुत्वशाली और तत्वदर्शी है।’’ (क़ुरआन, सूरा-16 नह्ल, आयत-60)
ईश्वर के अधिकारों में साझीदार ठहराने का अर्थ
ईश्वर के अधिकारों में साझीदार ठहराने का अर्थ यह है कि उसकी उपासना और पूजा, आज्ञापालन और दासता में किसी और को सम्मिलित किया जाए। जब ख़ुदा ही स्रष्टा, स्वामी, पालनहार और शासक है और समस्त सर्वोच्च गुण उसी के लिए हैं तो उपासना और आज्ञापालन का पात्र भी केवल वही है। केवल वही इसका हक़दार है कि उसकी ओर पलटा जाए और उसके आगे सजदा किया जाए, केवल उसी की पनाह ढूंढ़ी जाए, केवल उसी से दुआ की जाए और केवल उसी की चाहत और प्रसन्नता को जीवन का उद्देश्य बनाया जाए, केवल उसी से मुहब्बत की जाए, केवल उसी से डरा जाए और केवल उसी के नाम पर क़ुरबानियां की जाएं। इन समस्त अधिकारों में कोई दूसरा उसका साझीदार नहीं—
‘‘तुम अल्लाह को छोड़कर जिन्हें पूज रहे हो, वे तो केवल बुत हैं और तुम एक झूठ गढ़ रहे हो। वास्तव में अल्लाह के सिवा जिनकी तुम पूजा करते हो वे तुम्हें कोई रोज़ी भी देने का अधिकार नहीं रखते। अल्लाह से रोज़ी मांगो और उसी की बन्दगी करो और उसके आगे कृतज्ञता दिखाओ। उसी की ओर तुम पलटाए जाने वाले हो।’’ (क़ुरआन, सूरा-29 अनकबूत, आयत-17)
उपासना और आज्ञापालन का एक स्पष्ट प्रदर्शन सजदा है, और केवल अल्लाह ही का यह हक़ है कि इन्सान उसके आगे सजदा करे—
‘‘अल्लाह की निशानियों में से हैं ये रात और दिन और सूर्य और चन्द्रमा। तुम लोग न तो सूरज को सजदा करो, न चांद को, बल्कि उस अल्लाह ही को सजदा करो, जिसने उन सारी चीज़ों को पैदा किया है, अगर वास्तव में तुम उसी की बन्दगी (उपासना) करने वाले हो।’’ (क़ुरआन, सूरा-41 सजदा, आयत-37)
मार्गदर्शन और हिदायत केवल अल्लाह का काम है और उसी का हक़ है कि उसका आज्ञापालन किया जाए—
‘‘उनसे कहो : तुम्हारे ठहराए हुए साझीदारों में से कोई भी ऐसा है जो सच्चाई की राह दिखाता हो? आप कहिए कि अल्लाह ही सत्य का मार्ग दिखाता है। फिर बताओ जो सत्य का मार्ग दिखाता है वह ज़्यादा हक़दार है कि उसका अनुसरण किया जाए या वह जो ख़ुद ही मार्ग न पाता हो, जब तक कि उसे मार्ग न दिखाया जाए? आख़िर तुम्हें क्या हो गया है, तुम कैसे-कैसे फ़ैसले करते हो?’’ (क़ुरआन, सूरा-10 यूनुस, आयत-35)
कायनात की हर चीज़ ईश्वर के आज्ञापालन में लगी हुई है। वही इस लायक़ है कि इन्सान उसका डर रखे और उसके सिवा किसी दूसरी हस्ती का डर न रखे—
‘‘अल्लाह का आदेश है कि ‘दो-दो पूज्य-प्रभु न बना लो। पूज्य-प्रभु तो बस एक ही है। अतः तुम मुझी से डरो।’ जो कुछ आकाशों और धरती में है सब उसी का है। और विशुद्ध धर्म उसी का (पूरी कायनात में) चल रहा है। फिर क्या अल्लाह को छोड़कर तुम किसी और का डर रखोगे?’’
(क़ुरआन, सुरा-16 नहल, आयत-51,52)
इसी तरह अपने मन की इच्छाओं की पूजा और अपने जैसे इन्सानों की उपासना और आज्ञापालन भी ख़ुदा के अधिकारों में शिर्क है—
‘‘फिर क्या तुमने कभी उस व्यक्ति की दशा पर भी विचार किया, जिसने अपने मन की इच्छा ही को अपना उपास्य बना रखा है?’’ (क़ुरआन, सूरा-45 जासिया, आयत-23)
‘‘उन्होंने अल्लाह से हटकर अपने धर्मज्ञाताओं और संसार-त्यागी सन्तों और मरयम के बेटे ईसा को अपना रब बना लिया—हालांकि उन्हें इसके सिवा और कोई आदेश नहीं दिया गया था कि अकेले ईष्ट-पूज्य की वे बन्दगी करें, जिसके सिवा कोई और ईष्ट-पूज्य नहीं। उसकी महिमा के प्रतिकूल है वह शिर्क जो ये लोग करते हैं।’’ (क़ुरआन, सूरा-9 तौबा, आयत-31)
क़ुरआन बहुदेववाद के सारे रूपों का खण्डन करता है और उन तमाम तौर-तरीक़ों का भी खण्डन करता है, जिनसे किसी तरह भी शिर्क का प्रदर्शन होता है। वह शिर्क को सरासर झूठ क़रार देता है, वह कहता है, शिर्क के लिए कोई बौद्धिक और ठोस बुनियाद, कोई तर्क और कोई प्रमाण नहीं है। यह मात्र भ्रम और गुमान, अज्ञान और अन्धा अनुसरण और बहुत ही आधारहीन विचारधारा है। यह सरासर अन्याय और अत्याचार है जिसका नतीजा इस दुनिया में भी अपमान और तबाही है और मरणोत्तर जीवन में भी बहुत बड़ा घाटा, शिक्षाप्रद अपमान और सदैव के लिए दुखदायी यातना है। यह एक ऐसी ज्ञानहीन विचारधारा है जिससे कायनात की प्रकृति कदापि मेल नहीं खाती और सम्पूर्ण संसार की व्यवस्था पूर्ण रूप से इसका खण्डन करती है—
‘‘और जो कोई अल्लाह के साथ किसी दूसरे पूज्य को पुकारता है उसके पास इसका कोई प्रमाण नहीं है।’’
(क़ुरआन, सूरा-23 मोमिनून, आयत-117)
‘‘लोगों ने अल्लाह के कुछ साझीदार ठहरा रखे हैं। (ऐ नबी!) इनसे कहो (अगर वास्तव में वे अल्लाह के अपने बनाए हुए साझीदार हैं तो) तनिक उनके नाम लो कि वे कौन हैं? क्या तुम अल्लाह को एक नई बात की सूचना दे रहे हो, जिसे वह अपनी धरती में नहीं जानता? या तुम लोग बस यूं ही जो मुंह में आता है, कह डालते हो?’’ (क़ुरआन, सूरा-13 रअद, आयत-33)
ख़ुदा के सिवा दूसरे सारे गढ़े हुए माबूद (उपास्य) अटकल और भ्रम की पैदावार हैं और यह सबसे बड़ा अपराध है कि मनुष्य किसी ज्ञान और प्रमाण के बिना दूसरों को ख़ुदा की ख़ुदाई में साझीदार बनाने लगे—
‘‘जान लो! आकाशों के बसने वाले हों या धरती के, सबका स्वामी अल्लाह है और जो लोग अल्लाह के सिवा कुछ (अपने मनगढ़ंत) साझीदारों को पुकार रहे हैं, वे निरे भ्रम और अटकल के पीछे चल रहे हैं और वे निरी अटकल दौड़ाते हैं।’’
(क़ुरआन, सूरा-10 यूनुस, आयत-66)
‘‘और जिसने अल्लाह के साथ किसी और को साझीदार ठहराया, उसने तो बहुत ही बड़ा झूठ रचा और घोर पाप की बात की।’’ (क़ुरआन, सूरा-4 निसा, आयत-48)
किसी को ईश्वर का साझीदार ठहराना बहुत बड़ा ज़ुल्म और अत्याचार है, इससे बड़ा कोई ज़ुल्म और अत्याचार नहीं—
‘‘याद करो जब लुक़मान अपने बेटे को सदुपदेश दे रहा था, तो उसने कहा : मेरे बेटे! अल्लाह के साथ किसी को साझी न ठहराना। निश्चय ही शिर्क (बहुदेववाद) बहुत बड़ा ज़ुल्म है।’’
(क़ुरआन, सूरा-31 लुक़मान, आयत-13)
शिर्क मानव-प्रकृति का सबसे बड़ा अपमान और भयंकर तबाही है—
‘‘और जो कोई अल्लाह के साथ साझी ठहराए तो मानो वह आकाश से गिर गया। अब या तो उसे पक्षी उचक ले जाएं या वायु उसको बहुत ही दूरस्थ स्थान पर ले जाकर पटक फेंके।’’
(क़ुरआन, सूरा-22 हज, आयत-31)
आसमान से गिरने का अर्थ यह है कि शिर्क की गन्दगी में गिरने वाला वास्तव में प्रकृति की अत्यन्त ऊंचाई और बुलन्दी से अपमान के गहरे गड्ढे में गिर गया, क्यों मानव-प्रकृति केवल उसी हस्ती को अपना माबूद (उपास्य) क़रार दे सकती है जो बुलन्दी और महानता का मात्र अकेला स्रोत है और सबसे निम्नकोटि के प्राणियों के समक्ष उपासना और दासता करना प्रकृति की घोर गिरावट और बहुत बड़ा अपमान है। मानव-प्रकृति की वास्तविक ज़िन्दगी और जागृति यही है कि वह एकेश्वरवाद पर क़ायम रहे, एकेश्वरवाद को छोड़कर शिर्क को स्वीकार करना वास्तव में मानव-प्रकृति की मौत है। एकेश्वरवाद की बुलन्दी से शिर्क के गड्ढे में गिरने वाला इन्सान वास्तव में एक मुर्दा लाश है, जिसको मुरदार खाने वाले जानवर नोच-नोचकर खाएं, या हवा के तेज़ झोंके बेइज़्ज़ती और अपमान के साथ ले जाकर दूर किसी गहरे गड्ढ़े में पटक दें। बहुदेववाद लोक-परलोक (दुनिया और आख़िरत) की तबाही और अपमान है, असत्य गम्भीर अपराध और बदतरीन बग़ावत है और ऐसी घोर नमक हरामी और कृतघ्नता है कि इसका परिणाम सदैव के लिए दुखदायी यातना और ईश्वरीय प्रकोप और विपदा है—
‘‘बेशक जिन लोगों ने बछड़े को पूज्य बनाया, वे अवश्य अपने पालनहार प्रभु के प्रकोप में ग्रस्त होकर रहेंगे और सांसारिक जीवन में अपमानित होंगे। झूठ गढ़ने वालों को हम ऐसा ही दण्ड (बदला) देते हैं।’’ (क़ुरआन, सूरा-7 आराफ़, आयत-152)
‘‘निश्चय ही तुम और तुम्हारे वे आराध्य, जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पूजते हो, सब नरक का ईंधन है। और तुम सबको उसी घाट उतरना है।’’ (क़ुरआन, सूरा-21 अंबिया, आयत-98)
बहुदेववाद की धारणा पर आप जितना अधिक सोच-विचार करेंगे, यह वास्तविकता स्पष्ट होती जाएगी कि बहुदेववाद के उद्भव और विकास में बुद्धि-विवेक और चिन्तन-मनन का कोई दख़ल नहीं है। इसकी शुरुआत भ्रम, कल्पना, अनुमान और अज्ञान के कारण हुई है और इसको अपनाने वाले वही लोग होते हैं जो सोच-विचार, बुद्धि-विवेक और चेतना तथा अनुभूति की शक्तियों से ख़ुद को वंचित कर लेते हैं, और जानवरों की तरह नासमझी की ज़िन्दगी गुज़ारते हैं—
‘‘उनके पास दिल है, किन्तु वे उनसे सोचते नहीं। उनके पास आंखें हैं, किन्तु वे उनसे देखते नहीं। उनके पास कान हैं, किन्तु वे उनसे सुनते नहीं। वे पशुओं के समान हैं, बल्कि उनसे भी अधिक गए—गुज़रे। ये वे लोग हैं जो अचेत अवस्था में खोए गए हैं।’’ (क़ुरआन, सूरा-7 आराफ़, आयत-179)
बहुदेववाद की वास्तविकता और कमज़ोरियां स्पष्ट होने से अपने आप यह वास्तविकता उजागर हो जाती है कि एकेश्वरवाद ही एक स्पष्ट और अटल सच्चाई है और उसी पर ईमान लाना बुद्धि एवं विवेक का प्रमाण है।
एकेश्वरवाद एक स्पष्ट वास्तविकता
एकेश्वरवाद एक स्पष्ट और जानी-पहचानी सच्चाई है; इन्सान की सद्बुद्धि और शुद्ध प्रकृति पर अगर अज्ञानता, पक्षपात, हठधर्मी और बाप-दादा के अन्धानुकरण के परदे पड़े हुए न हों तो एकेश्वरवाद उसकी एक जानी-पहचानी पूंजी है, बुद्धि एवं विवेक का तक़ाज़ा है। क़ुरआन एकेश्वरवाद का सबसे महान, प्रामाणिक और सर्वशक्तिमान आवाहक है; एकेश्वरवाद की जो व्यापक, पूर्ण और स्पष्ट धारणा क़ुरआन प्रस्तुत करता है, वह दुनिया के किसी दूसरे धर्मग्रन्थ में नहीं मिल सकती। क़ुरआन एकेश्वरवाद की सर्वाधिक सशक्त, बुद्धिसंगत और तर्कसंगत अवधारणा प्रस्तुत करता है और ज्ञान और प्रमाण की रौशनी में साबित करता है कि मानवजाति का कल्याण और सफलता इस वास्तविकता से जुड़ी है कि वह दिल के पूरे इत्मीनान के साथ ख़ुदा के एकत्व को स्वीकार करे, हिम्मत और हौसले के साथ उसका प्रदर्शन करे और दिल-दिमाग़ को शिर्क की हर मिलावट से पाक करके पूरी एकाग्रता के साथ ख़ुदा के एक और केवल एक होने की गवाही दे और एकेश्वरवाद ही की बुनियाद पर अपने विचार एवं व्यवहार का निर्माण करे।
एकेश्वरवाद पर ईमान का अर्थ
एकेश्वरवाद को मानने का अर्थ केवल इस हक़ीक़त को स्वीकार करना ही नहीं है कि ख़ुदा एक है। यह मात्र एक दार्शनिक धारणा नहीं है, जिसका सम्बन्ध केवल दिमाग़ से हो। यह दिल की दुनिया बदल देने वाली एक ऐसी क्रान्तिकारी अवधारणा है जिसका व्यावहारिक जीवन से बड़ा गहरा सम्बन्ध है। ख़ुदा के एक होने (एकेश्वरवाद) पर ईमान लाने वाले की ज़िन्दगी उस व्यक्ति से बिल्कुल भिन्न होगी जो एकेश्वरवाद का इन्कारी है। एकेश्वरवाद एक ऐसी क्रान्तिकारी अवधारणा है, जो व्यक्ति और समाज के विचार-व्यवहार, चरित्र-आचरण और सभ्यता-संस्कृति में एक स्पष्ट और पूर्ण परिवर्तन कर देती है और हर देखने वाली आंख महसूस कर लेती है कि यह वह व्यक्ति नहीं रहा है जो एकेश्वरवाद को स्वीकार करने से पहले था।
दुनिया में एक पाक-साफ़, सम्माननीय और सफल जीवन एकेश्वरवाद की अवधारणा अपनाकर ही हासिल हो सकता है और मौत के बाद की दुनिया में भी सम्मान, बड़ाई, सफलता, ख़ुदा की प्रसन्नता और हमेशा की कामयाबी उसी का हिस्सा है जो इस दुनिया में निष्ठापूर्वक एकेश्वरवाद पर ईमान लाए और उसी के अनुसार ज़िन्दगी व्यतीत करे। एकेश्वरवाद से वंचित इन्सान, ज्ञान-विवेक, न्याय, तत्वदर्शिता, मान-सम्मान, मागदर्शन, क्षमा और कल्याण-सफलता और हर प्रकार की भलाई से वंचित है।
क़ुरआन में एकेश्वरवाद की अवधारणा
यह सम्पूर्ण सृष्टि और ख़ुद इन्सान एक ईश्वर की रचना है। उसके सिवा न कोई दूसरा स्रष्टा है और न इस रचना-कार्य में कोई दूसरी हस्ती उसके साथ सम्मिलित है। उसने किसी मिसाल के बिना मात्रा अपने आदेश और इच्छा से उसको पैदा किया और उसी के आदेश और इच्छा से यह क़ायम है—
‘‘अल्लाह हर चीज़ का स्रष्टा है और वही हर चीज़ का निगहबान है।’’ (क़ुरआन, सूरा-39 ज़ुमर, आयत-62)
‘‘वह आकाशों और धरती का पैदा करने वाला है। जिस बात का वह निर्णय करता है, उसके लिए बस कह देता है कि ‘हो जा’ और वह हो जाती है।’’ (क़ुरआन, सूरा-2 बक़रा, आयत-117)
इसके सिवा यहां जो कुछ है, वह उसकी रचना है, केवल उसी की हस्ती सदैव से है और सदैव रहेगी। उसके सिवा कोई चीज़ अनादि और अनन्त नहीं।1 हर चीज़ नश्वर है और सिर्फ़ उसी की हस्ती सदैव बाक़ी रहने वाली है। वह जीवन्त सत्ता है, उसको कभी मौत न आएगी।
‘‘कायनात की हर चीज़ विनष्ट होकर रहेगी। सिर्फ़ ख़ुदा की हस्ती हमेशा रहने वाली है।’’
(क़ुरआन, सूरा-28 क़सस, आयत-88)
कायनात को उत्पन्न करने के बाद उस स्रष्टा ने उससे सम्बन्ध नहीं तोड़ लिया है, बल्कि वह इस पर निरन्तर शासन कर रहा है। वही कायनात का वास्तविक स्वामी है। धरती और आकाश में उसी का आदेश चल रहा है। वह सुस्ती, थकान, बेपरवाही, ऊंघ, नींद, कमज़ोरी, कोताही इत्यादि हर प्रकार की कमियों और ग़लतियों से पूर्णतः रहित और परे है—
‘‘कोई पूज्य-प्रभु नहीं सिवाय अल्लाह के, जो अकेला है, सब पर क़ाबू रखने वाला। आकाशों और धरती का पालनहार-प्रभु है; उन सारी ही चीज़ों का जो इस ज़मीन और आसमानों के बीच हैं।’’ (क़ुरआन, सूरा-38 साद, आयत-65,66)
पैदा करना भी ख़ुदा ही का काम है और आदेश देना भी उसी का अधिकार है; न पैदा करने में उसका कोई साझीदार और सहायक है और न आदेश देने में कोई दूसरा उसका साझीदार है—
‘‘वास्तव में तुम्हारा पूज्य-प्रभु अल्लाह ही है; जिसने आकाशों और धरती को छह दिनों में पैदा किया। फिर वह अपने राजसिंहासन पर विराजमान हुआ। जो रात को दिन पर ढांक देता है और फिर दिन रात के पीछे दौड़ा चला आता है, जिसने सूर्य, चन्द्रमा और तारे पैदा किए, जो उसके हुक्म से अपने काम में लगे हुए हैं। सुन लो! उसी का काम है पैदा करना और उसी का अधिकार है आदेश देना। अत्यन्त बरकत वाला है अल्लाह, सारे संसार का स्वामी।’’ (क़ुरआन, सूरा-7 आराफ़, आयत-54)
‘‘अल्लाह ही पूज्य है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह जीवन्त सत्ता है, सबको सम्भालने वाला और क़ायम रखने वाला।’’
(क़ुरआन, सूरा-3 आले-इमरान, आयत-2)
ईश्वर का ज्ञान हर चीज़ पर आच्छादित है, कोई चीज़ उससे छिपी हुई नहीं, वह हर खुली-छिपी चीज़ से अवगत है। वह सीनों के भेदों और दिल की नीयतों तक से अवगत है। मानव के मन-मस्तिष्क का कोई विचार, कोई एहसास और कोई भावना उस सर्वज्ञ की नज़रों से छिपी हुई नहीं है, वह हर समय अपने बन्दों के साथ है—
‘‘उसी के पास परोक्ष की कुन्जियां हैं जिन्हें उसके सिवा कोई नहीं जानता। जल और थल में जो कुछ है, वह सबसे अवगत है। वृक्ष से गिरने वाला कोई पत्ता ऐसा नहीं जिसका उसे ज्ञान न हो। धरती के अन्धकारमय परदों में कोई दाना ऐसा नहीं जिससे वह अवगत न हो। आर्द्र (गीली) और शुष्क (सूखी) सब कुछ एक स्पष्ट किताब में मौजूद है।’’
(क़ुरआन, सूरा-6 अनआम, आयत-59)
‘‘क्या तुमको ख़बर नहीं है कि धरती और आकाशों की हर चीज़ का अल्लाह को ज्ञान है? कभी ऐसा नहीं होता कि तीन आदमियों में कोई गुप्त बातचीत हो, वहां वह ज़रूर ही उनका चैथा होता है और पांच हों तो वह उनका छठा होता है। उससे कम या अधिक जितने भी हों ख़ुदा उनके साथ होता है, चाहे कहीं भी हों। फिर जो कुछ ये करते रहे हैं, ख़ुदा क़ियामत (पुनरुत्थान या महाप्रलय) के दिन उनको बता देगा। यह सच है कि अल्लाह को हर चीज़ का पूरा-पूरा ज्ञान है।’’
क़ुरआन, सूरा-58 मुजादला, आयत-7)
‘‘कोई चीज़ राई के दाने के बराबर भी हो और किसी चट्टान में या आकाशों या धरती में कहीं भी छुपी हुई हो, अल्लाह उसे निकाल लाएगा। निस्सन्देह अल्लाह अत्यन्त सूक्ष्मदर्शी, ख़बर रखने वाला है।’’ (क़ुरआन, सूरा-31 लुक़मान, आयत-16)
वह हर चीज़ पर सामर्थ्य रखता है, कोई चीज़ उसकी सामर्थ्य और अधिकार से बाहर नहीं। लाभ-हानि, स्वास्थ्य, बीमारी, सम्मान, अपमान, धन-दौलत, सत्ता, आजीविका के साधन, सन्तान, जीवन, मृत्यु और भाग्य सब कुछ उसी के हाथ में है और सब कुछ उसी की ओर से है, हर चीज़ के ख़ज़ाने उसी के पास हैं—
‘‘अल्लाह को कोई चीज़ विवश करने वाली नहीं है, न आकाशों में और न धरती में। वह सब कुछ जानता है और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।’’ (क़ुरआन, सूरा-35 फ़ातिर, आयत-44)
‘‘भलाई बस तेरे ही वश में है। निस्सन्देह तुझे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।’’ (क़ुरआन, सूरा-3 आले-इमरान, आयत-26)
‘‘अल्लाह ही की है आकाशों और धरती की बादशाही। वह जो चाहता है, पैदा करता है। जिसे चाहता है, लड़कियां देता है और जिसे चाहता है लड़के देता है। जिसे चाहता है लड़के और लड़कियां मिला-जुलाकर देता है और जिसे चाहता है बांझ कर देता है। वह सब कुछ जानता और हर चीज़ की सामर्थ्य रखता है।’’
(क़ुरआन, सूरा-42 शूरा, आयत-49,50)
वही सारी सृष्टि का पालनहार और सभी को रोज़ी देने वाला है। रोज़ी की कुन्जियां उसी के पास हैं। रोज़ी में तंगी और विस्तार उसी के हाथ में है—
‘‘इनसे पूछो: कौन तुमको आकाश और धरती से रोज़ी देता है? सुनने और देखने की शक्तियां किसके अधिकार में हैं? कौन निर्जीव में से सजीव को और सजीव में से निर्जीव को निकालता है? कौन इस जगत्-व्यवस्था का उपाय कर रहा है? वे अवश्य कहेंगे कि अल्लाह! कहो : फिर तुम उससे डरते क्यों नहीं? यही अल्लाह तुम्हारा वास्तविक पूज्य-प्रभु है।’’
(क़ुरआन, सूरा-10 यूनुस, आयत-31)
वही ज़रूरतें पूरी करने वाला और मुश्किलों से निकालने वाला है। वही सबकी फ़रयाद सुनता और दुआ क़बूल करता है। वही सबकी मुरादें पूरी करने वाला और सहायता और समर्थन करने वाला है। वही हिदायत देता और क्षमादान देता है और वही तौबा क़बूल करने वाला है।
‘‘उसी को पुकारना सत्य है और ये लोग उसको छोड़कर जिन हस्तियों को पुकारते हैं, वे उनकी प्रार्थनाओं का कोई उत्तर नहीं दे सकतीं। उन्हें पुकारना तो ऐसा है जैसे कोई व्यक्ति पानी की ओर हाथ फैलाकर उससे निवेदन करे कि तू मेरे मुंह तक पहुंच जा, हालांकि पानी उस तक पहुंचने वाला नहीं।’’
(क़ुरआन, सूरा-13 रअद, आयत-14)
इस उदाहरण का सारांश यह है कि इच्छाओं को पूरी करना और बिगड़े हुए कामों को बनाना केवल अल्लाह का काम है, किसी दूसरे के वश और अधिकार में कुछ भी नहीं है—‘‘कौन है जो मुसीबत में फंसे हुए इन्सान की दुआ सुनता है, जबकि वह उसे पुकारे और कौन उसकी तकलीफ़ दूर करता है? और कौन है जो तुम्हें धरती का अधिकारी बनाता है? क्या अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य-प्रभु भी (यह कार्य करने वाला) है? तुम लोग कम ही सोचते हो।’’ (क़ुरआन, सूरा-27 नम्ल, आयत-62)
‘‘और जब मेरे बन्दे आप से मेरे बारे में पूछें तो उन्हें बता दीजिए कि मैं उनसे निकट ही हूं। पुकारने वाला जब मुझे पुकारता है, मैं उसकी पुकार सुनता हूं और उत्तर देता हूं।’’
(क़ुरआन, सूरा-2 बक़रा, आयत-186)
‘‘और वही तो है जो अपने बन्दों की तौबा क़बूल करता है और उनकी ग़लतियों को माफ़ करता है और वह सब जानता है जो कुछ तुम करते हो।’’ (क़ुरआन, सूरा-42 शूरा, आयत-25)
वह अपनी हस्ती और गुणों, अधिकारों और सत्ता में अकेला है, कोई उसका सहभागी और समकक्ष नहीं, वही उपास्य है। बन्दगी, उपासना, आज्ञापालन, दासता, सजदा, रुकूअ, नज़्र, क़ुरबानी सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी के लिए है; उसके सिवा कोई इबादत और उपासना के योग्य नहीं—
‘‘अल्लाह ही उपास्य है, उसके सिवा कोई ईष्ट-पूज्य नहीं।’’
(क़ुरआन, सूरा-4 निसा, आयत-87)
‘‘आपके रब (पालनहार) का अन्तिम फ़ैसला है कि केवल उसी की बन्दगी (उपासना) करो, उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो।’’ (क़ुरआन, सूरा-17 बनी इसराईल, आयत-23)
‘‘न सूरज को सजदा करो, न चांद को, अल्लाह को सजदा करो जिसने उन सबको पैदा किया है।’’
(क़ुरआन, सूरा-41 सजदा, आयत-37)
हिदायत देना केवल उसी का अधिकार है, उसी का क़ानून जाइज़ और सही क़ानून है, केवल वही अपने बन्दों का शासक और बादशाह है, उसके सिवा सब उसकी प्रजा हैं। प्रजा का काम क़ानून बनाना नहीं, बल्कि क़ानून की पैरवी करना है। क़ानून ख़ुदा ही बनाता है और अपने बन्दों में से किसी एक अच्छे और बुज़ुर्ग इन्सान को चुनकर उसपर अपना क़ानून अवतरित करता है और उसको अपना रसूल नियुक्त करता है। ख़ुदा ने अपने रसूल, हर दौर और हर क़ौम में नियुक्त किए हैं। यह रसूल ख़ुद भी उसी क़ानून की पूरी पैरवी करते हैं और दूसरों को भी क़ानून की पैरवी पर उभारते हैं। यह रसूल ख़ुदा की निगरानी में इन्सानी समाज का सुधार करते हैं। फ़ितना-फ़साद, बिगाड़ और बुराइयों को मिटाते हैं और ख़ुदा की मरज़ी और मार्गदर्शन के अनुसार एक अच्छे और स्वच्छ समाज का निर्माण करते हैं।2
वह सब आवश्यकताएं पूरी करता है, सब उसके मुहताज हैं और वह किसी का मुहताज नहीं, वह निस्पृह (बेनियाज़) है—
‘‘अल्लाह निस्पृह है (सब उसके मुहताज हैं और वह किसी का मुहताज नहीं )।’’ क़ुरआन, सूरा-112 इख़लास, आयत-2)
‘‘वह सबको खिलाता है और उसको कोई नहीं खिलाता (वह खाने-पीने की इच्छाओं से बेनियाज़ है)।’’
(क़ुरआन, सूरा-6 अनआम, आयत-14)
पूछ-गछ करने वाला और अच्छे-बुरे कर्मों के अनुसार बदला (फल) देने वाला वही है। वह ज्ञान, तत्वदर्शिता और न्याय और इन्साफ़ के आधार पर निष्पक्ष फ़ैसला करेगा। उसका फ़ैसला अटल है। किसी की हिम्मत नहीं जो उसके फ़ैसले के ख़िलाफ़ सांस ले सके। वह सब पर हावी है। उसके समक्ष कोई ग़लत सिफ़ारिश नहीं कर सकता।3 उसके सामने केवल वही मुंह खोल सकता है जिसको बोलने की अनुमति दी जाए। सिर्फ़ वही कह सकता है जिसको कहने की इजाज़त दी जाए और केवल उसी के हक़ में कह सकता है जिसके हक़ में कहने की इजाज़त दी जाए—
‘‘उस दिन किसी की सिफ़ारिश कुछ फ़ायदा न देगी, सिवाय उसके जिसको ख़ुदा सिफ़ारिश की अनुज्ञा दे और उसका बोलना ख़ुदा को पसन्द हो।’’ (क़ुरआन, सूरा-20 ता॰हा॰, आयत-109)
‘‘और ख़ुदा के समक्ष किसी की सिफ़ारिश फ़ायदा न देगी, मगर उस व्यक्ति के लिए जिसके बारे में सिफ़ारिश की वह अनुमति दे।’’ (क़ुरआन, सूरा-34 सबा, आयत-23)
वह औलाद के सहारे और वैवाहिक आवश्यकताओं से परे है। वह ज़रूरतों से ऊपर है, न उसकी कोई पत्नी है, न पुत्र और न पुत्री और न उसका कोई ख़ानदान है, वह तनहा और अद्वितीय है—
‘‘हालांकि वह निरपेक्ष और उच्च है उन बातों से जो ये लोग कहते हैं। वह तो आकाशों और धरती का आविष्कारक है। उसका कोई पुत्र कैसे हो सकता है, जबकि कोई उसकी जीवन-संगिनी ही नहीं है।’’ (क़ुरआन, सूरा-6 अनआम, आयत-100,101)
‘‘और कहो : ‘प्रशंसा है उस अल्लाह के लिए जिसने न तो अपना कोई बेटा बनाया और न कोई शासन ही में उसका साझीदार है और न वह बेबस है कि कोई उसका मददगार हो।’ और उसकी बड़ाई बयान करो, उच्च कोटि की (पूर्ण) बड़ाई।’’
(क़ुरआन, सूरा-17 बनी इसराईल, आयत-111)
क़ुरआन की तर्क-विधि
क़ुरआन ने एकेश्वरवाद के एक-एक बिन्दु पर अत्यन्त स्पष्ट और विस्तार से चर्चा की है और अत्यन्त स्वाभाविक रूप में कायनात की रचना, इन्सान की रचना, जगत्-व्यवस्था, प्रकृति के परिदृश्य और स्वयं मनुष्य के अस्तित्व से दिल में उतर जाने वाले और आंखें खोल देने वाले अनेक तर्क प्रस्तुत किए हैं कि अगर इन्सान इनसाफ़ और सच्ची चाहत के साथ इन पर सोच-विचार करे तो वह क़ुरआन में प्रस्तुत की गई वास्तविकता में अपनी प्रकृति के अनुसार बिल्कुल ठीक-ठीक जवाब पाएगा और अपने दिल में यक़ीन और विश्वास की ठण्डक और शान्ति महसूस करेगा।
ईश्वर का अस्तित्व और उसके प्रमाण
ईश्वर का अस्तित्व एक स्पष्ट और जानी-पहचानी वास्तविकता है, अगर कोई हठधर्म ख़ुदा का इन्कार करने की मूर्खता करे भी तो यह सच्चाई है कि वह इस इन्कार पर अपने दिल और आत्मा में शान्ति और सन्तोष कभी नहीं पा सकेगा। यह अत्यन्त विशाल कायनात, यह सुन्दर आकाश और इसके नीले दामन पर सुव्यवस्थित रूप से बिखरे हुए अनगिनत चमकते मोती, यह ज़मीन को गर्मी पहुंचाने और ग़ल्लों और फलों को पकाने वाला प्रकाशमान सूरज, यह ठण्डी और मस्त कर देने वाली चांदनी प्रदान करने वाला सुन्दर चांद और यह सूरज और चांद का अत्यन्त व्यवस्थित तरीक़े से उदय होना और डूब जाना, यह रात-दिन का आना-जाना, यह दिन की भाग-दौड़, यह रात की ख़ामोशी और शान्ति, यह पानी से लदी हुई हवाएं और उनके चलने की तत्वदर्शितापूर्ण व्यवस्था, यह हर प्रकार के ख़ज़ाने उगलने वाली ज़मीन, ये भांति-भांति के ग़ल्ले, ये मेवे और सब्ज़ियां, यह अथाह समन्दर और इसके सीने को चीरकर चलने वाली नौकाएं और पहाड़ जैसे जहाज़ और जल-थल में रहने वाले समस्त प्राणियों को जीविका प्रदान करने वाली आश्चर्यजनक व्यवस्था, ये घने-घने जंगल, ये ऊंचे-ऊंचे पहाड़, ये हरे-भरे लहलहाते खेत और यह तुच्छ बूंद से मां के पेट में अन्धकारमय परदों में पलने वाली और ग़ैर-मामूली योग्यता रखने वाली रचना और इसके पालन-पोषण की अनुपम व्यवस्था, तात्पर्य यह कि कायनात की एक-एक चीज़ पुकार-पुकारकर कह रही है कि ख़ुदा की हस्ती यक़ीनी है और वही हर चीज़ की बेहतरीन रचना करने वाला है—
‘‘वह अल्लाह ही तो है जिसने तुम्हारे लिए धरती को ठहरने का स्थान बनाया और आकाश को छत बना दिया। जिसने तुम्हारा रूप बनाया और बड़ा ही अच्छा बनाया। जिसने तुम्हें अच्छी पाक चीज़ों की रोज़ी दी। वही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है। बेहिसाब बरकतों वाला है अल्लाह, सारे संसार का पालनहार-प्रभु। वही जीवन का स्रोत है, उसे मौत नहीं। उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। अतः उसी को तुम पुकारो। अपने धर्म (दीन) को उसी के लिए विशुद्ध करके। सारी प्रशंसा अल्लाह, सारे संसार के पूज्य-प्रभु ही कि लिए है।’’ (क़ुरआन, सूरा-40 मोमिन, आयत-64,65)
‘‘वह तुम्हारी माओं के पेटों में तीन-तीन अन्धकारमय परदों के भीतर तुम्हें एक के पश्चात् एक सृजनरूप देता चला जाता है। यही अल्लाह तुम्हारा पूज्य-प्रभु है, राज्य उसी का है। उसके अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं। फिर तुम किधर फिरे जाते हो?’’
(क़ुरआन, सूरा-39 अज़-ज़ुमर, आयत-6)
मां के पेट में तुच्छ बूंद भिन्न-भिन्न रूपों में बदलती रहती है। पहले उस बूंद को लोथड़े की शक्ल दी जाती है, फिर उस लोथड़े को गोश्त की एक बोटी बना दिया जाता है, फिर उस बोटी में हड्डियां प्रकट होती हैं, फिर हड्डियों पर गोश्त चढ़ाया जाता है। इस तरह यह तुच्छ बूंद रचना और विकास के विभिन्न मरहलों से गुज़रती है और मां के पेट में अन्धकारमय परदों के अन्दर विभिन्न रूपों में बदलते हुए जीवन की आत्मा पाती है, और फिर महान योग्यताओं का रूप बनकर प्रकट होती है। तुच्छ बूंद से इन्सान जैसी महान हस्ती की रचना किसका कारनामा है? गोश्त के इस ढांचे में जान डालना और उसको समझ, चेतना, बुद्धि-विवेक, शोध एवं आविष्कार की असाधारण योग्यताओं से सुशोभित करना किसका चमत्कार है? यही ख़ुदा है।
एकेश्वरवाद के प्रमाण
संसार की व्यवस्था के अध्ययन, अवलोकन और कायनात के दृश्यों पर सोच-विचार करने से ख़ुदा के अस्तित्व पर विश्वास के साथ-साथ यह यक़ीन भी हासिल होता है कि वह अकेला है और किसी पहलू से भी कोई दूसरी हस्ती उसकी साझीदार या समकक्ष नहीं है—
‘‘तुम्हारा ख़ुदा एक ही ख़ुदा है, उस करुणामय और दयावान के सिवा कोई और पूज्य-प्रभु नहीं है (इस कायनात की निशानियों पर सोच-विचार करो तो यह वास्तविकता तुम पर स्पष्ट हो जाएगी)। निस्सन्देह आकाशों और धरती की संरचना में, रात और दिन के निरन्तर एक-दूसरे के बाद आने में, उन नौकाओं और जहाज़ों में जो मनुष्यों के फ़ायदों की चीज़ें लेकर नदियों और समन्दरों में चलते हैं, वर्षा के उस पानी में जिसे अल्लाह ऊपर से बरसाता है, फिर उसके द्वारा धरती को उसके निर्जीव हो जाने के बाद जीवित करता है, और अपनी इस व्यवस्था के कारण धरती में हर प्रकार के जीवधारियों को फैलाता है; हवाओं की गर्दिश में और उन बादलों में जो आकाश और धरती के बीच (काम पर) नियुक्त किए गए हैं, अनगिनत निशानियां हैं उन लोगों के लिए जो बुद्धि से काम लेते हैं और सोच-विचार करते हैं।’’ (क़ुरआन, सूरा-2 बक़रा, आयत-163,164)
धरती और आकाश का यह विशाल साम्राज्य, उसकी आश्चर्यजनक और उद्देश्यपूर्ण व्यवस्था और सन्तुलन, कायनात में अनगिनत ग्रहों का सुव्यवस्थित चक्र, हवा, पानी, बादल, सूरज, चांद और अनगिनत वस्तुओं में गहरा सम्बन्ध और सहयोग, कायनात की अनन्त शक्तियों में अर्थपूर्ण सन्तुलन और व्यवस्था, रात-दिन का एक-दूसरे के बाद सोद्देश्य आना-जाना और सामूहिक रूप से कायनात में असाधारण सहयोग और सम्बन्ध और प्रबल प्राकृतिक नियमों की व्यवस्थित सीमाएं, इस सच्चाई के जीते-जागते उदाहरण हैं कि कायनात के इस विशाल कारख़ाने को चलाने वाला एक ही तत्वदर्शी, ज्ञानवान ख़ुदा है, इस प्रबल व्यवस्था में न किसी दूसरे को कोई दख़ल है और न ही कुछ शक्तियां मिल-जुलकर इस व्यवस्था को चला रही हैं। अगर एक से अधिक ख़ुदा होते तो यह सारी व्यवस्था अस्त-व्यस्त होकर रह जाती—
‘‘यदि आकाश और धरती में एक अल्लाह के सिवा दूसरे ईष्ट-पूज्य भी होते, तो धरती और आकाश दोनों की व्यवस्था बिगड़ जाती। अतः महान और उच्च है अल्लाह, सिंहासन का स्वामी, उन बातों से जो ये लोग बना रहे हैं।’’
(क़ुरआन, सूरा-21 अंबिया, आयत-22)
न केवल कायनात की व्यवस्था, बल्कि ख़ुद मानव-प्रकृति भी इसी सच्चाई की गवाही देती है। समन्दर की तेज़ और प्रचण्ड तूफ़ानी लहरों में जब नौकाएं किनारे से दूर हिचकोले खाने लगती हैं और इन्सान ख़ुद को मौत की गोद में गिरता हुआ महसूस करने लगता है तो अचानक मानव-प्रकृति जाग उठती है और उस समय कट्टर से कट्टर बहुदेववादी भी सारे झूठे माबूदों (ईष्ट-पूज्यों) को भूलकर केवल एक ख़ुदा को पूर्ण विशुद्ध भाव के साथ पुकारने लगता है कि ऐ ख़ुदा! तू ही इस संकट से छुटकारा दिला सकता है, तेरे सिवा किसी के पास कोई शक्ति नहीं है—
‘‘वह अल्लाह ही है जो तुमको थल और जल में चलाता है। अतएव जब तुम नौकाओं में सवार होकर अनुकूल हवा पर प्रसन्न और हर्षित होकर यात्रा कर रहे होते हो और फिर अचानक प्रतिकूल प्रचण्ड हवा का ज़ोर होता है और हर ओर से लहरों के थपेड़े लगते हैं और यात्री समझ लेते हैं कि तूफ़ान में घिर गए, उस समय सब अपने दीन-धर्म को अल्लाह ही के लिए विशुद्ध करके उससे दुआएं मांगते हैं कि ‘अगर तूने हमको इस संकट और विपत्ति से बचा लिया तो हम अवश्य ही तेरे आभारी होंगे।’’
(क़ुरआन, सूरा-10 यूनुस, आयत-22)
एकेश्वरवाद की व्यापक अवधारणा
पवित्र क़ुरआन में एकेश्वरवाद की व्यापक अवधारणा को इन शब्दों में स्पष्ट किया गया है—
‘‘अल्लाह, वह जीवन्त नित्य सत्ता, जो सम्पूर्ण जगत् को सम्भाले हुए है, उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं है। वह न तो सोता है और न उसे ऊंघ लगती है। आकाशों और धरती में जो कुछ है, उसी का है। कौन है जो उसके यहां उसकी अनुमति के बिना सिफ़ारिश कर सके? जो कुछ लोगों के सामने है उसे भी वह जानता है और जो कुछ उनसे ओझल है उसे भी वह जानता है और उसके ज्ञान में से कोई चीज़ उनके ज्ञान की पकड़ में नहीं आ सकती; यह और बात है कि किसी चीज़ का ज्ञान वह स्वयं ही उनको देना चाहे। उसका राज्य आकाशों और धरती पर छाया हुआ है और उनकी देख-रेख और सुरक्षा उसके लिए कोई थका देने वाला कार्य नहीं है। बस वही एक माहन और सर्वोपरि सत्ता है।’’ (क़ुरआन, सूरा-2 बक़रा, आयत-255)
‘‘भला वह कौन है जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया और तुम्हारे लिए आकाश से जल बरसाया। फिर उसके द्वारा वे शोभायमान बाग़ उगाए जिनके वृक्षों का उगाना तुम्हारे वश में न था? क्या अल्लाह के साथ कोई अन्य पूज्य-प्रभु भी इन कार्यों में साझीदार है? (नहीं) बल्कि यही लोग सन्मार्ग से हटकर चले जा रहे हैं। और वह कौन है जिसने धरती को ठहरने का स्थान बनाया और उसने नदियां बहाईं और उसमें मेख़ें गाड़ दीं और जल के दोनों भण्डारों के बीच परदे डाल दिए? क्या अल्लाह के साथ कोई और पूज्य-प्रभु भी (इन कार्यों में सहभागी) है? नहीं, बल्कि इनमें से अधिकतर लोग ज्ञानहीन हैं।’’
(क़ुरआन, सूरा-27 नम्ल, आयत-60-61)
‘‘और वह कौन है जो मुसीबत में पड़े इन्सान की प्रार्थना सुनता है, जबकि वह उसे पुकारे और कौन उसकी तकलीफ़ दूर करता है? और (कौन है जो) तुम्हें धरती का अधिकारी बनाता है? क्या अल्लाह के साथ कोई अन्य पूज्य-प्रभु भी (यह कार्य करने वाला) है? तुम लोग कम ही सोचते हो।’’
(क़ुरआन, सूरा-27 नम्ल, आयत-62)
‘‘और वह कौन है जो थल और जल के अन्धेरों में तुम्हें मार्ग दिखाता है और कौन अपनी दयालुता के आगे हवाओं को मुख्य सूचना लेकर भेजता है? क्या अल्लाह के साथ कोई अन्य पूज्य-प्रभु भी (यह कार्य करता) है? बहुत उच्च है अल्लाह, उस बहुदेववादी कर्म से, जो ये लोग करते हैं।’’
(क़ुरआन, सूरा-27 नम्ल, आयत-63)
‘‘और वह कौन है जो प्रथम बार पैदा करता और फिर उसकी पुनरावृत्ति करता है? और कौन तुमको आकाश और धरती से रोज़ी देता है? क्या अल्लाह के साथ कोई अन्य पूज्य-प्रभु भी (इन कार्यों में सहभागी) है? कहो: ‘लाओ अपना प्रमाण, यदि तुम सच्चे हो।’ उनसे कहो: ‘अल्लाह के सिवा आकाशों और धरती में किसी को भी परोक्ष का ज्ञान नहीं है और वे तुम्हारे पूज्य तो यह भी नहीं जानते हैं कि कब वे उठाए जाएंगे।’’
(क़ुरआन, सूरा-27 नम्ल, आयत-64-65)
एकेश्वरवाद की एकमात्र विशुद्ध अवधारणा
एकेश्वरवाद को मानने वाले और एकेश्वरवाद को अपनाने का दावा करने वाले यूं तो बहुत-से गरोह हैं, लेकिन एकेश्वरवाद की एकमात्र सही अवधारणा क़ुरआन ही प्रस्तुत करता है। इसके अतिरिक्त जो भी अवधारणाएं प्रस्तुत की जाती हैं, वे पूर्ण रूप से असत्य और अस्वीकार करने योग्य हैं। इस सबसे बड़े दावे का आधार पूर्वाग्रह और संकीर्ण दृष्टि नहीं है, बल्कि बुद्धि-विवेक और सत्यप्रियता की भावना है और इस दावे की सच्चाई थोड़े से सोच-विचार से आसानी से समझ में आ सकती है।
एकेश्वरवाद व पालनहार प्रभु की इबादत का प्रामाणिक ज्ञान
इस स्पष्ट वास्तविकता से कौन इन्कार करने की हिम्मत कर सकता है कि ख़ुदा के जानने का सही और विश्वसनीय ज्ञान और उसकी इबादत (उपासना) का पसन्दीदा और प्रामाणिक तरीक़ा केवल वही हो सकता है, जो अल्लाह ने ख़ुद अपने बन्दों को बताया है और यह कि अल्लाह ने अपने बन्दों को अपनी हस्ती और गुणों का एक ही ज्ञान और अपनी बन्दगी और इबादत का एक ही तरीक़ा बताया है। यह बात बुद्धि के बिल्कुल विरुद्ध है कि वह अपनी बन्दगी और इबादत की परस्पर विरोधी अवधारणाएं और तौर-तरीक़े अपने बन्दों को बताए। जानने योग्य बात केवल यह है कि ख़ुदा की हस्ती और गुणों का सही ज्ञान और उसकी इबादत का वह प्रामाणिक और पसन्दीदा तरीक़ा क्या है? और यह हर सत्यप्रिय आदमी का परम कर्तव्य है कि वह उस सही ज्ञान और जीवन-व्यवस्था को मालूम करे। इससे बड़ी नासमझी और मूर्खता क्या होगी कि ज्ञान एवं बुद्धि से काम लिए बिना और किसी जीवन-व्यवस्था पर इस पहलू से संतुष्टि हासिल किए बिना आदमी आंखें बन्द किए बाप-दादा की धार्मिक अवधारणाओं और रस्मों-रिवाजों से चिमटा रहे और बाप-दादा का अन्धानुकरण करता रहे या ज़िन्दगी की गाड़ी इच्छाओं के हवाले करके निश्चिन्त हो जाए।
क़ुरआन का दावा और उसका सन्तोषजनक प्रमाण
क़ुरआन का दावा यह है कि एकेश्वरवाद का सही ज्ञान और इबादत (उपासना) का सही तरीक़ा केवल वही है जो क़ुरआन प्रस्तुत करता है। इसके विपरीत एकेश्वरवाद और उपासना का जो भी तरीक़ा है वह पूर्णरूप से ग़लत और असत्य है। इसलिए क़ुरआन ही वह प्रामाणिक और सुरक्षित ग्रन्थ है जो ख़ुदा ने अवतरित किया है। इस दावे का सन्तोषजनक प्रमाण ख़ुद क़ुरआन और उसकी शिक्षाएं हैं।
क़ुरआन एक व्यापक, पूर्ण और स्पष्ट ग्रन्थ है। यह हर तरह के मतभेदों और विरोधाभास से मुक्त है। इसकी शिक्षाएं बुद्धि-विवेक की कसौटी पर खरी उतरने वाली और व्यावहारिक हैं। यह ज्ञान और तत्वदर्शिता का स्रोत और सरलता एवं सुस्पष्टता का अनुपम नमूना है। इसका मार्गदर्शन, विस्तृत ज्ञान, सही दृष्टिकोण, पक्षपातहीनता, सच्चाई और यथार्थ का दर्पण है। इसके सिद्धान्त अत्यन्त व्यापक, लचकदार और हर दौर की आवश्यकताओं के लिए लाभकारी और उपयोगी हैं। इसको स्वीकार करने वाला न ज़िन्दगी की किसी ज़रूरत में किसी दूसरे के मार्गदर्शन का मुहताज रहता है और न अपने दिल-दिमाग़ में सन्देह और शक की कोई चुभन महसूस करता है। इतना अनुपम और महानतम ग्रन्थ वही ख़ुदा अवतरित कर सकता है, जिसका ज्ञान पूरी कायनात पर आच्छादित हो, जिसके लिए वर्तमान, भूत और भविष्य सब वर्तमान हों, जिसके दृष्टिकोण में संकीर्णता और ग़लती की कोई आशंका न हो, जो मनुष्य की प्रत्येक आवश्यकता और प्रकृति की प्रत्येक अपेक्षा का पूर्ण और विश्वसनीय ज्ञान रखता हो और जो मनुष्य के मनोविज्ञान (Psychology) और उसके व्यवहार और जीवन-संघर्ष की शक्तियों से पूरी तरह अवगत हो और कोई छोटी से छोटी चीज़ भी उसकी नज़र से ओझल न हो। मनुष्य, जो ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अपने सारे विकास के बावजूद कायनात के बहुत थोड़े-से हिस्से के बारे में ही अत्यन्त सीमित ज्ञान प्राप्त कर सका है, जिसको अपने इतिहास का भी पूर्ण ज्ञान नहीं है, जो अपने भविष्य और उसकी आवश्यकताओं से भी पूरी तरह अवगत नहीं है और इसके साथ ही उसका ज्ञान ग़लतियों और कमियों से सुरक्षित भी नहीं है, क़दम-क़दम पर उसके ज्ञान की कमी और ग़लती सामने आती रहती है। यह इन्सान क़ुरआन जैसा पूर्ण और महान ग्रन्थ कैसे लिख सकता है; किताब लिखना तो दूर की बात यह तो क़ुरआन जैसी एक सूरा भी नहीं लिख सकता।
क़ुरआन जैसा उदाहरण प्रस्तुत करने में मानव असमर्थ
क़ुरआन चौदह सौ साल से निरन्तर चुनौती दे रहा है कि जो लोग भी क़ुरआन को ख़ुदा का उतारा हुआ मार्गदर्शक ग्रन्थ नहीं मानते, अगर वे सच्चे हैं तो अपने ज्ञान और विवेक का पूरा उपयोग करके अपनी पूरी शक्ति लगाकर इस जैसी एक ही सूरा लिखकर लाएं और क़ुरआन विश्वास की पूरी शक्ति से घोषणा करता है कि मनुष्य बिल्कुल भी ऐसा नहीं कर सकते—
‘‘और अगर तुम्हें इस बात में सन्देह है कि यह किताब जो हमने अपने बन्दे पर उतारी है, यह हमारी है या नहीं, तो इस जैसी एक ही सूरा बना लाओ। अपने मत के सारे ही लोगों को बुला लो; एक अल्लाह को छोड़कर बाक़ी जिस-जिसकी चाहो सहायता ले लो, अगर तुम सच्चे हो तो यह काम करके दिखाओ। लेकिन अगर तुमने ऐसा न किया और निश्चय ही कभी नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईंधन बनेंगे मनुष्य और पत्थर, जो जुटाई गई है सत्य के इनकारियों के लिए।’’
(क़ुरआन, सूरा-2 बक़रा, आयत-23,24)
सत्य को जानने वाले की सोच और फ़ैसले का सही अन्दाज़
क़ुरआन का यह दावा है कि ख़ुदा को जानने और उसकी इबादत (उपासना) का सही ज्ञान वही है जो क़ुरआन प्रस्तुत कर रहा है। मानव-जाति की सफलता उसी को स्वीकार करने में है; क्योंकि ख़ुदा का उतारा हुआ अन्तिम, प्रामाणिक और सुरक्षित मार्गदर्शक ग्रन्थ पवित्र क़ुरआन ही है। यह एक ऐसा चैंका देने वाला दावा है जो हर समझदार और सत्य का ज्ञान रखने वाले को झिंझोड़ता है कि अगर वह वास्तव में अपना भला चाहता है तो अज्ञानता, पक्षपात, लापरवाही, बाप-दादा का अन्धानुकरण और हठधर्मी का मार्ग छोड़कर साफ़ दिल-दिमाग़ के साथ गम्भीरता से इस दावे पर सोच-विचार करे और ख़ुदा ने सोचने, समझने, देखने, सुनने और फ़ैसला करने की जो शक्तियां दे रखी हैं उनसे काम लेकर अपनी ज़िन्दगी के बारे में कोई फ़ैसला कर ले; क्योंकि ज़िन्दगी केवल एक ही बार मिलती है, बार-बार नहीं। अगर आदमी ने ग़लत विश्वास पर ज़िन्दगी की नींव रखी तो वह सदैव के लिए असफल हो गया और अगर सही विश्वास पर जीवन का निर्माण किया तो दुनिया में भी सफल रहेगा और मरने के बाद भी सफलता और मुक्ति पाएगा—
‘‘स्पष्ट रूप से कह दो कि यह सत्य है तुम्हारे प्रभु की ओर से, अब जिसका जी चाहे मान ले और जिसका जी चाहे न माने। हमने तो अत्याचारियों के लिए एक आग तैयार कर रखी है, जिसकी लपटें उन्हें घेरे में ले चुकी हैं। वहां अगर वे पानी मांगेंगे तो ऐसे पानी से उनका सत्कार किया जाएगा जो तेल की तलछट जैसा होगा और उनका मुंह भून डालेगा; अत्यन्त बुरा है वह पेय और बहुत ही बुरा है वह विश्राम स्थल। रहे वे लोग जो ईमान लाएं और अच्छे कर्म करें, तो निश्चय ही हम सत्कर्मी लोगों का बदला अकारथ नहीं किया करते। उनके लिए सदाबहार बाग़ हैं, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। वहां सोने के कंगनों से आभूषित किए जाएंगे, बारीक और गाढ़े रेशमी हरित कपड़े पहनेंगे और ऊंची मसनदों पर तकिए लगाकर बैठेंगे। उत्तम प्रतिदान और उच्च श्रेणी का विश्राम स्थल!’’
(क़ुरआन, सूरा-18 कह्फ़, आयत-29-31)
फुटनोट
1. क़ुरआन की एकेवरवाद की अवधारणा में इस आस्था की कोई गुंजाइश नहीं है कि यहां जो कुछ है वह ख़ुदा ही है, ख़ुदा के अस्तित्व से अलग कोई चीज़ मौजूद नहीं है। वेदों में कायनात की रचना से सम्बन्धित विभिन्न धारणाएं पाई जाती हैं, मगर उन सबसे मज़बूत और प्रभावी रुझान यही सामने आता है कि यहां सिर्फ़ ख़ुदा ही का अस्तित्व है। डॉक्टर ताराचन्द उन विभिन्न वैदिक धारणाओं का ज़िक्र करने के बाद लिखते हैं—
‘‘रचना की इन समस्त धारणाओं से ‘वहदतुल-वुजूद’ (ब्रह्मवाद यानी यह सिद्धान्त कि संसार में केवल एक ईश्वर के सिवा और कुछ नहीं है) अवधारणा का साफ़ रुझान स्पष्ट होता है, क्योंकि रचना या तो इस तरह हुई कि इल्लतुल-इलल (First cause, मूल कारण, ईश्वर) ख़ुद कायनात में परिवर्तित हो गया या जो हस्ती कल्पना से परे थी वह सब पर हावी हो गई।’’ (इस्लाम का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव, पेज-25)
सत्य को जानने की चाहत की सर्वप्रथम और प्रबल अपेक्षा है कि अध्ययन करने वाला इस तरह के मौलिक मतभेद को निगाह में रखे और सत्यानुकूल ढंग से अनुकूल या प्रतिकूल राय क़ायम करे। उदारता का अनुचित और भ्रमात्मक दिखावा और नुमाइश की ख़ातिर हर बात को ठीक कहना और अनुकूल तथा प्रतिकूल को एक बताना ख़तरनाक धोखा है। यह भ्रमात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति कभी सच्चाई की तलाश में सफल नहीं हो सकता।
2. दुनिया से बिगाड़ और फ़ित्ना-फ़साद मिटाने के लिए ख़ुदा इन्सानी रूप धारण नहीं करता। क़ुरआन की एकेश्वरवादी धारणा के अनुसार अवतारवाद की कल्पना ग़लत है। ईश्वर रचना नहीं, रचयिता होता है। पैदा होना, मरना, आत्महत्या करना, शरीर और रूप वाला होना, खाना-पीना, पेशाब-पाख़ाना करना, इन्सानी या हैवानी इच्छाएं या भावनाएं रखना, काम-वासना का इच्छुक होना, पत्नी और बाल-बच्चों वाला होना, दुख और कष्ट सहना, कठिनाइयों में फंसना, दूसरों की मदद का मुहताज होना—ये सारी बातें स्रष्टा की शान के ख़िलाफ़ हैं। ख़ुदा अपने आप हमेशा से ही है और हमेशा रहेगा। न वह शरीर वाला और साकार है, न ही उसका कोई रूप-रंग है। वह तो निराकार है, अद्वितीय और अनुपम है, और हर तरह की कमियों और कमज़ोरियों से पाक है। मरयम के बेटे हज़रत ईसा (अलैहि॰) के बारे में ईसाइयों का विश्वास है कि वे ख़ुदा के बेटे हैं और उन्होंने इन्सानी रूप धारण कर लिया था। इसी तरह हिन्दू भाइयों की बहुत बड़ी संख्या रामचन्द्र जी और कृष्ण जी के बारे में यह मानती है कि वे विष्णु के अवतार हैं।
क़ुरआन ख़ुदा की सर्वोच्च और सर्वोत्तम अवधारणा प्रस्तुत करता है और कहता है कि ख़ुदा एक ऐसी निस्पृह (बेनियाज़) हस्ती है, जिसको प्राणी समझना बिल्कुल ही ग़लत है और ऐसा समझना ख़ुदा की शान के सरासर ख़िलाफ़ है।
हज़रत ईसा (अलैहि॰) के ख़ुदा होने के खण्डन में क़ुरआन यह दलील पेश करता है कि वे इन्सानी ज़रूरतें रखते थे—
‘‘मरयम के बेटे ईसा मसीह एक रसूल ही थे, जैसे कि उनसे पहले बहुत-से रसूल गुज़रे हैं और उनकी मां अत्यन्त सत्यवती थीं। वे दोनों मां-बेटे खाना खाते थे।’’ (क़ुरआन, सूरा-5 माइदा, आयत-75)
अर्थात् खाने-पीने की ज़रूरत रखने वाली और खाने के बाद की अपेक्षाओं से विवश प्राणी या जड़ पदार्थ भला ख़ुदा या ईश्वर कैसे हो सकते हैं? ख़ुदा तो वही है जो हर तरह की पराश्रयता और विवशता से रहित हो।
3. देवताओं के बारे में यह कल्पना कि वे सिफ़ारिश करके अपराधियों को ख़ुदा की पकड़ से छुड़ा लेंगे, क़ुरआनी एकेश्वरवादी अवधारणा के अनुसार बिल्कुल ग़लत कल्पना है। इसी तरह पैग़म्बरों या दूसरे बुज़ुर्गों के बारे में इसी तरह की आस्था रखना भी एकेश्वरवाद की अवधारणा के विरुद्ध है। ख़ुदा के समक्ष न इस तरह की सिफ़ारिश की गुंजाइश है और न उसके यहां किसी का इतना ज़ोर और दबाव है कि वह उसका फ़ैसला बदलवा सके या उस पर प्रभाव डाल सके उसके सामने सब मजबूर, बेबस और उसकी दया और कृपा के मुहताज हैं।