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इस्लाम में पाकी और सफाई

लेखक:- नसीम गाजी फलाही

  
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बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम।
‘‘ख़ुदा के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहमवाला है।''

इस्लाम में पाकी और सफ़ाई
 
दो शब्द: -
 
हमें और पूरे जगत् को ख़ुदा ने पैदा किया है और उसने हम इनसानों को सर्वश्रेष्ठ प्राणी (अशरफ़ुल -मख़लूक़ात) बनाया है। ख़ुदा ने अपनी योजना के तहत एक निश्चित और सीमित समय के लिए इनसानों को धरती पर भेजा है। इनसान के अन्दर वे सभी ताक़तें और सलाहियतें रखी गई हैं जो उस योजना और मक़सद को पूरा करने के लिए ज़रूरी हैं।

 

ख़ुदा ने हमारी हर ज़रूरत का सामान दुनिया में उपलब्ध किया हैं आर्थिक ज़रूरत का भी, रूहानी ज़रूरत का भी और मनोवैज्ञानिक ज़रूरत का भी। उस ज़रूरत का भी ख़याल रखा है जिसका ज़रूरत होना हमें मालूम है और उस ज़रूरत का भी मेहरबान ख़ुदा ने सामान जुटाया है जो है तो हमारी लाज़िमी ज़रूरत है
मगर हमें उसका पता नहीं।

 

इनसान वास्तव में एक रूह (आत्मा) है, जिसे एक भौतिक शरीर प्रदान किया गया है। यानी इनसान शरीर का नाम नहीं बल्कि वास्तव में उस रूह का नाम है जो शरीर में डाली गई है। इसलिए जब किसी इनसान की रूह निकल जाती है तो कहा जाता है कि वह मर गया है। हालांकि उसका शरीर सामने मौजूद होता है।

इनसान को इस दुनिया में भेजे जाने का मक़सद वास्तव में यह है कि वह अपने पैदा करने वाले ख़ुदा के मार्गदर्शन के तहत अपनी आत्मा को शुद्ध और विकसित करे। उसके अन्दर वे गुण पैदा करे जो ख़ुदा को पसन्द हैं और जिनको पैदा करने और परवान चढ़ाने का उसने आदेश दिया है। जैसे कि वह अपने स्रष्टा (ख़ुदा) को जाने, उससे उसका सम्बन्ध किस प्रकार का हो इसको समझे। अपने आपको उसके हवाले कर दे और उसका भक्त बने। सभी जानवरों के प्रति दयाभाव, हमदर्दी, क्षमाशीलता, सेवाभाव, प्रेमभाव आदि का मामला करे। वह ख़ुदा के साथ किसी को शरीक न करे, ख़ुदा की नाफ़रमानी से बचे। धोखा-फ़रेब, झूठ, कंजूसी, ज़ुल्म व ज़्यादती और इसी प्रकार के अन्य गन्दे कामों से दूर रहे।

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम।

 

‘‘वास्तव में इसी मक़सद को पूरा करने के लिए ख़ुदा का दीन ‘इस्लाम' आया है और उसने बड़े विस्तार के साथ इस सिलसिले में इनसानों की रहनुमाई की है।
इनसान की रूह को एक शरीर भी दिया गया है और इस शरीर की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बहुत-सी-माद्दी और भौतिक चीज़ें प्रदान की गई हैं। इस शरीर के सम्बन्ध में बहुत से आदेश दिए गए हैं उनमें से आदेश यह भी है कि शरीर और इससे सम्बन्धित अन्य चीज़ों को पवित्र और पाक-साफ़ रखा जाए। इस्लाम चाहता है कि इनसान का शरीर रूपी बर्तन भी पाक-साफ़ हो, और वह चीज़ भी पाक-साफ़ हो जो बर्तन के अन्दर है, यानी रूह या आत्मा। जहाँ तक रूह (आत्मा) को शुद्ध और पवित्र रखने की बात है तो इस किताब में इस विषय पर वार्ता करना हमारा असल मक़सद नहीं है। हमने इसके बारे में केवल कुछ इशारे ही किए हैं। इस विषय पर जानकारी के लिए अन्य पुस्तकें मौजूद हैं। प्रस्तुत पुस्तक में शरीर और शरीर से सम्बन्धित चीज़ों की सफ़ाई-सुथराई और पवित्रता के बारे में इस्लाम की बुनियादी शिक्षाओं और दृष्टिकोण को ही संक्षेप और सरल रूप में पेश करने की कोशिश की गई है। फिक़्ही मसाइल की तफ़सील से भी इस किताब में बहस नहीं की गई है। इस मक़सद के लिए फिक़्ह की किताबें देखी जा सकती हैं।

 

इस किताब को पढ़ने के बाद पाठकों को न केवल यह कि सफ़ाई एवं स्वच्छता व पवित्रता के बारे में सही जानकारी हासिल होगी, बल्कि उन पर यह हक़ीक़त भी खुल जाएगी कि इस्लाम में इसका क्या महत्व है? सफ़ाई, स्वच्छता एवं पवित्रता को ईश-उपासना, नमाज़ आदि के लिए ज़रूरी ठहराया गया है और सफ़ाई-सुथराई से लापरवाह लोगों को आख़िरत के अज़ाब से सावधान किया गया है। इस बात से इसका महत्व अच्छी तरह समझा जा सकता है।

मैं डॉ0 रज़ियुल-इस्लाम नदवी साहब और प्रिय मुहम्मद ज़ाहिद फ़लाही का शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने इस किताब को बेहतर और प्रामाणिक बनाने में ख़ास तौर से हदीसों के सिलसिलें में मदद की। ख़ुदा उनको इसका अच्छा बदला दे।

 

हमें उम्मीद है कि हम इस्लाम की शिक्षाओं से फ़ायदा उठाते हुए एक सेहतमंद और पाक-साफ़ समाज की तामीर में हिस्सा ले सकेंगे और इस प्रकार अपने पालनहार ख़ुदा की ख़ुशी हासिल करके उसकी मेहरबानियों और रहमतों के हक़दार बनेंगे
यह किताब उर्दू ज़बान में भी उपलब्ध है। 

नसीम ग़ाज़ी फ़लाही

 

इस्लाम में सफ़ाई-सुथराई की अहमियत

 सफ़ाई-सुथराई और स्वच्छता व पवित्रता का प्रभाव इनसान के दिल और दिमाग़ पर तो पड़ता ही है, इनसान और इनसानी समाज की सेहत की बेहतरी का भी इससे बड़ा गहरा सम्बन्ध है। सफ़ाई-सुथराई को हर इनसान फ़ितरी तौर पर पसन्द करता है, यह और बात है कि इसका तरीक़ा, मेयार और पैमाना लोगों की नज़र में अलग-अलग होता है।

इस्लाम हमारे पैदा करनेवाले पालनहार ख़ुदा की ओर से भेजे हुए मार्गदर्शन और हिदायत का नाम है, जिसमें इनसानों और इनसानी समाज के हर पहलू के लिए आदेश और निर्देश दिए गए हैं। इसी लिए सफ़ाई-सुथराई और पवित्रता को सिर्फ़ इनसान की अपनी इच्छा और पसन्द पर नहीं छोड़ा गया है, बल्कि इसके बारे में भी बड़ी बारीकी और विस्तार के साथ ख़ुदा की किताब ‘पवित्र क़ुरआन' और ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के कथनों (हदीसों) में निर्देश दिए गए हैं। फिर इन दोनों स्त्रोतों (क़ुरआन व हदीस) की रौशनी में इस्लामी आलिमों और धर्मशास्त्रियों (फ़ुक़हा) ने सफ़ाई-सुथराई और पवित्रता के सम्बन्ध में हर पहलू से रहनुमाई की है।

 

इस्लाम में सफ़ाई-सुथराई और पवित्रता की कितनी ज़्यादा अहमियत है, इसका अन्दाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस्लाम ने अपनी ज़्यादातर इबादतों और धार्मिक कामों को अदा करने के लिए सफ़ाई-सुथराई को लाज़िम कर दिया है, यानी पाक-साफ़ हुए बग़ैर ये इबादतें अदा ही नहीं की जा सकतीं। अगर कोई व्यक्ति पाकी और पवित्रता के बग़ैर इन्हें अंजाम देता है तो इस्लाम के अनुसार वे ख़ुदा के यहाँ क़बूल ही नहीं होंगी, बल्कि ऐसा आदमी उसका नाफ़रमान साबित होगा और गुनाहगार माना जाएगा और इस गुनाह की सज़ा उसे मरने के बाद की ज़िन्दगी (आख़िरत) में मिलेगी। सफ़ाई और पवित्रता के सम्बन्ध में इस्लाम की यह विशेषता है।

इस्लाम की एक विशेषता यह भी है कि उसने केवल ऊपरी सफ़ाई-सुथराई पर ही ज़ोर नहीं दिया, बल्कि वास्तविक पवित्रता की अवधारणा (तसव्वुर) भी पेश की। यह कहना ज़्यादा सही होगा कि इस्लाम ने सफ़ाई-सुथराई को पवित्रता प्रदान की है और हमें वास्तविक पवित्रता और उसकी रूह से अवगत कराया है।

 

क़ुरआन मजीद की हिदायतें

इस्लाम में सफ़ाई-सुथराई और पाकी की जो अहमियत है उसका अन्दाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) को ख़ुदा की ओर से जब लोगों की रहनुमाई के अहम काम पर लगाया गया, उस समय ख़ुदा ने उन्हें जो आदेश दिए उनमें एक आदेश सफ़ाई और पवित्रता का भी था। अतः फ़रमाया-

‘‘ऐ ओढ़ने-लपेटने वाले! (पैग़म्बर मुहम्मद!) उठो और (लोगों को) सावधान करने में लग जाओ। और अपने पालनहार ख़ुदा की बड़ाई बयान करो। अपने दामन को पवित्र रखो और गन्दगी से दूर रहो।''(क़ुरआन सूरा-74 मुद्दस्सिर, आयत 1-5)

क़ुरआन मजीद में पाक-साफ़ रहनेवालों के बारे में कहा गया-

‘‘बेशक ख़ुदा तौबा करनेवालों को और पाक-साफ़ रहनेवालों को पसंद करता है।'' (क़ुरआन सूरा-2 बक़रा, आयत-222)

तौबा (ख़ुदा से माफ़ी माँगने) और पाकी व सफ़ाई में परस्पर बड़ा गहरा सम्बन्ध है। तौबा इनसान को अन्दर से पाक-साफ़ करती है और सफ़ाई बाहर से। यानी तौबा मन को पाक करती है और सफ़ाई तन को।

 

नमाज़ इस्लाम की एक अहम इबादत है। हर मुसलमान मर्द-औरत पर दिन में पांच बार नमाज़ अदा करना फ़र्ज़ (अनिवार्य) है। इस इबादत को अदा करने से पहले हर प्रकार से पाक-साफ़ होना ज़रूरी होता है, जैसा कि आगे इसकी कुछ तफ़सील बयान की गई है। इतना ही नहीं, बल्कि क़ुरआन में आदेश है कि नमाज़ अदा करते वक़्त तन-मन की सफ़ाई के साथ-साथ ज़ाहिरी तौर पर एक शरीफ़ाना लिबास भी इख़्तियार किए रहें। कहा गया-
‘‘हर नमाज़ के वक़्त अपनी ज़ीनत (बनाव-संवार) इख़्तियार किए रहो।'' (क़ुरआन, सूरा-7 आराफ़, आयत-31)

 

नमाज़ के वक़्त जीनत इख़्तियार करने का मतलब यह है कि तुम्हारा लिबास और वेश-भूषा शरीफ़ाना होनी चाहिए, जिससे मालूम हो कि तुम ख़ुदा के दरबार में हो।

 

पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की हिदायतें

ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने पाकी और सफ़ाई के बारे में अपने अनुयायियों को बड़े विस्तार से निर्देश दिए हैं और अपने अमल व व्यवहार से रहती दुनिया तक के लिए एक बेहतरीन नमूना पेश फ़रमाया है।

एक अहम बात:- पहले यहाँ बात को अच्छी तरह-समझ लेना ज़रूरी है कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के आदेशों और निर्देशों की हैसियत मुसलमानों के लिए उपदेश और सलाह मशवरे की नहीं, बल्कि आदेश और हुक्म की है, जिन पर चलना हर मुसलमान के लिए ज़रूरी है। क़ुरआन में ख़ुदा कहता है -

‘‘रसूल (पैग़म्बर) जो आदेश तुम्हें दे उस पर चलो और जिस बात से तुम्हें रोके उससे रूक जाओ।'' (क़ुरआन, सूरा-59 हश्र, आयत-7)

 

क़ुरआन ने अपने माननेवालों को स्पष्ट आदेश दिया है कि वे पैग़म्बर (सल्ल0) के जीवन को अपने लिए नमूना (आदर्श) बनाएं। क़ुरआन में है -
‘‘बेशक तुम्हारे लिए ख़ुदा के पैग़म्बर में एक बेहतरीन नमूना (उत्तम आदर्श) है।'' (क़ुरआन, सूरा-33 अहज़ाब, आयत-21)

 

पैग़म्बर जो कुछ करता है और जो कुछ कहता है वह ख़ुदा के हुक्म और उसकी मरज़ी के मुताबिक़ करता और कहता है, इसलिए पैग़म्बर की बात ख़ुदा की बात होती है। इसी लिए पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया -

‘‘जिसने मेरी बात मानी उसने ख़ुदा की बात मानी और जिसने मेरी नाफ़रमानी की उसने ख़ुदा की नाफ़रमानी की।'' (हदीस: बुख़ारी- 2957, मुस्लिम-1835)

यहाँ पैग़म्बर की इस हैसियत और मक़ाम को बयान करने से हमारा मक़सद यह बताना है कि पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल0) ने सफ़ाई-सुथराई के बारे में जो आदेश दिए है उनकी हैसियत कानूनी है, जिनको मानना और उन पर अमल करना हर उस व्यक्ति के लिए ज़रूरी है जो इस्लाम का मानने वाला है। सफ़ाई और पाकी के बारे में पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल0) की जो शिक्षाएं है उनका उल्लेख आगे आ रहा है।


सफाईः ईमान का तक़ाज़ा

 

दा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया -
‘‘ईमानवाला कभी नापाक (अपवित्र) नहीं रहता।''
(हदीस: बुख़ारी-285, मुस्लिम-371)

 

यानी नबी (सल्ल0) का फ़रमान है कि नापाक और गंदा रहने वाला व्यक्ति ईमानवाला हो ही नहीं सकता। अगर वह कभी नापाक हो जाता है या कोई गन्दगी उसको लग जाती है तो वह इस हालत में देर तक नहीं रहता, बल्कि जल्द-से-जल्द पाक-साफ़ होने की कोशिश करता है। क्योंकि ईमानवाला तो साफ़-सुथरा और हमेशा पवित्र रहता है। इसी प्रकार एक जगह और फ़रमाया -

 

‘‘स्वच्छता व पवित्रता और सफ़ाई-सुथराई आधा ईमान है।''
(हदीस: मुस्लिम-223)

 

ईमान को दो भागों मे बाँटा जा सकता है। आधा ईमान तो यह है कि इनसान अपनी आत्मा और रूह को गन्दगी और अस्वच्छ न होने दे। अपने दिल और दिमाग़ को ग़लत विचारों, अधर्म और शिर्क, गुमराही और अन्धकार से बचाए रखे। वह कोई अनैतिक (ग़ैर-अख़लाक़ी) और अश्लील काम न करे। वह उन विचारों, आस्थाओं और धारणाओं (अक़ीदों) को अपनाए जो सत्य के अनुकूल और बरहक़ हों और अपने विचारों और ख़यालों को शुद्ध रखे। अपने किरदार को अच्छा बनाए।

 

बाक़ी आधा ईमान यह है कि इनसान बाहरी गन्दगियों को दूर करके अपने शरीर, कपड़े और जगह वग़ैरा की सफ़ाई पर पूरा ध्यान दे। इन्हीं दोनों प्रकार की सफ़ाई-सुथराई और स्वच्छता व पवित्रता से ईमान मुकम्मल होता है। जो लोग अपने आपको इस प्रकार निर्मल और पाक-साफ़ रखते हैं, वे अपने पालनहार ख़ुदा के प्यारे बन जाते हैं।
एक हदीस में नहाने और वुज़ू करने का उल्लेख इस्लाम की तारीफ़ (परिभाषा) और इस्लाम की मूल -धारणाओं और इबादतों के साथ किया गया है तथा नहाने और वुज़ू करने को इस्लाम की पहचान बताया गया है -

 

 

अब्दुल्लाह-इब्ने-उमर (रज़ि0) ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) से रिवायत करते हैं कि ख़ुदा के फ़रिश्ते हज़रत जिबरील (अलैहि0) ने आप (सल्ल0) से पूछा कि ‘‘इस्लाम क्या है?'' आप (सल्ल0) ने जवाब दिया, ‘‘इस्लाम यह है कि तुम इस बात का इक़रार करो और गवाही दो कि ख़ुदा एक है और मुहम्मद (सल्ल0) ख़ुदा के पैग़म्बर हैं, नमाज़ क़ायम करो, ज़कात (दान) दो, (काबा का) हज और उमरा करो, नहाने की ज़रूरत पड़ जाए तो नहाओ, ठीक ढंग से वुज़ू करो और रमज़ान के रोज़े रखो। ''
जिबरील (अलैहि0) ने पूछा, ‘‘अगर मैं ये सब काम कर लूं तो मुस्लिम हो जाऊँगा?'' पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘हाँ।''

 

 

हदीस: सहीह इब्ने-खुज़ैमा-3065
इस्लाम की शिक्षाओं और ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के आदेशों को देखा जाए तो मालूम होगा कि इस्लाम ने स्वच्छता और पवित्रता को पूरा-पूरा महत्व दिया है और इसमें कोई कमी नहीं की है। सफ़ाई-सुथराई और पवित्रता तथा स्वच्छता के सिलसिले में ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की कुछ अन्य हिदायतें आगे आ रही हैं।

 

 

सबसे पहला काम: सफ़ाई

ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया -

‘‘तुम में से जब कोई सोकर उठे तो अपने हाथ को बर्तन में न डाले, बल्कि पहले उसे तीन बार धो ले। क्योंकि उसे नहीं मालूम कि उसके हाथ ने रात कहाँ गुज़ारी है।'' (हदीसः मुस्लिम-278)

यह हदीस हमें बताती है कि सोकर उठने बाद सबसे पहले हाथों को धोना चाहिए, बिना हाथ धोए किसी बर्तन में हाथ नहीं डालना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति बिना हाथ धोए पानी के बर्तन में हाथ डालता है तो वह पूरे पानी ही को गन्दा कर डालता है।

एक दूसरे मौक़े पर पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया -

‘‘‘जब तुम में से कोई सोकर उठें और हाथ-मुँह धोए तो नाक को तीन बार अच्छी तरह साफ़ करे........।'' हदीसः बुख़ारी-3295, मुस्लिम-238

इसी तरह ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0)ने रात को सोने से पहले भी वुज़ू करने की हिदायत की है। फ़रमाया-

‘‘जब तुम अपने बिस्तर पर जाने लगो तो वुज़ू करो, जैसे नमाज़ के लिए वुज़ू करते हैं।'' (हदीस: बुख़ारी बुखारी-6311, मुस्लिम-2710)अगर सोने से पहले वुज़ू कर लिया जाए तो इसे पाकी और सफ़ाई तो हासिल हती ही है, साथ ही इनसान की मानसिक व शारीरिक स्थिति पर भी इसका बहुत अच्छा असर पड़ता है। आजकल डॉक्टर और हकीम भी अच्छी नींद और मानसिक सुकून के लिए मुँह और हाथ-पांव धोकर सोने का मशवरा देते हैं।

 


पेशाब-पाख़ाना के सिलसिले में हिदायतें

 

ग़ुस्लख़ाने में पेशाब न करना

ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने ग़ुस्लख़ाने मे पेशाब करने से मना किया है क्योंकि यह काम सफ़ाई के पहलू से ठीक नहीं है। फ़रमाया -

‘‘तुममें से कोई व्यक्ति अपने ग़ुस्लख़ाने में पेशाब न करे।''

 

(हदीस: अबू-दाउद-27, इब्ने-माजा, 304, नसई-36)
ग़ुस्लख़ाना इसलिए होता है कि आदमी उसमें नहा-धोकर पाक-साफ़ हो और उसके मन में सफ़ाई का एहसास पैदा हो। लेकिन अगर नहाने की जगह पर ही पेशाब किया जाए तो यह चीज़ सफ़ाई के पहलू से कभी उचित नहीं हो सकती। ऐसी जगह नहाकर भी आदमी के मन में एक प्रकार की नापाकी का एहसास बाक़ी रहेगा।

 

आजकल ऐसे आधुनिक ग़ुस्लख़ाने बनने लगे हैं जिनके अन्दर पाख़ाना-पेशाब की जगह अलग बनी होती है और नहाने की जगह अलग होती है। ऐसे ग़ुस्लख़ाने उक्त आदेश के अन्तर्गत नहीं आते।


आम रास्तो को साफ़ रखना

 

ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने आम स्थानों पर, नदी के घाट पर, साए (छाँव) के स्थानों और आम रास्तों पर पाख़ाना-पेशाब करने (और कूड़ा-करकट डालने) से मना किया है। वे फ़रमाते है -
‘‘तीन निन्दित (क़ाबिले-मलामत) चीज़ों से बचो, यानी घाटों, आम रास्तों और छायादार जगहों पर पाख़ाना-पेशाब मत करो।'' (हदीस: अबू-दाउद-26)

 

 

नदियों और तालाबों के घाट पर लोग नहाते-धोते है, आम रास्तों पर चलते-फिरते है और छायादार जगहों, जैसे पेड़ आदि के नीचे आराम करते है, इसलिए ऐसी जगहों के गन्दा होने से लोगों को परेशानी होती है और वे गन्दगी करनेवाले को बुरा-भला कहते हैं। सार्वजनिक स्थलों और आम रास्तों और गुज़रगाहों पर गन्दगी से प्रदूषण और बीमारियाँ भी फैलती हैं।
कुछ लोग पान आदि खाकर उसकी पीक आम रास्तों, दीवारों और सीढ़ियों वग़ैरा पर थूक देते हैं, ये और इस तरह की तमाम हरकतें इसी आदेश के तहत आती हैं। इसलिए ऐसा करने से बचना चाहिए और अपने किसी काम से लोगों को कष्ट नहीं देना चाहिए। लोगों को तकलीफ़ देना इस्लाम की नज़र में बहुत बुरा काम है, बल्कि ईमान के ख़िलाफ बात है। ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -

 

 

‘‘ख़ुदा के बन्दों को तकलीफ़ न दो। ''(हदीस: अबू-दाऊद-5161)
एक दूसरी हदीस में लोगों को तकलीफ़ देनेवाली चीज़ को रास्ते से हटा देने को ईमान का हिस्सा बताया गया है। हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि0) से रिवायत है कि ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -

 

‘‘ईमान की शाख़ें सत्तर से कुछ ऊपर हैं। उनमें सबसे ऊपर इस बात का इक़रार है कि ख़ुदा के सिवा कोई पूज्य (इबादत के लायक़) नहीं, और सबसे कमतर दरजे की शाख़ कष्ट और तकलीफ़ देनेवाली चीज़ को रास्ते से हटा देना है। और शर्म व हया भी ईमान की एक शाखा है।'' (हदीस: मुस्लिम-35)

आम जगहों ख़ासतौर से रास्तों और सड़कों को साफ़-सुथरा रखने की ज़िम्मेदारी शासन की बताई गई है, क्योंकि इतना बड़ा काम पाबन्दी के साथ बग़ैर शासन की मदद के पूरा किया जाना आसान नहीं है। इस्लामी दौर के शासक रास्तों और सड़कों आदि की सफ़ाई को अपनी ज़िम्मेदारी समझते थे,जैसा कि निम्न वाक़िए से मालूम होता है -

 

हज़रत हसन बसरी (रह0) बयान करते हैं कि हज़रत अबू-मूसा अशअरी (रज़ि0) जब गवर्नर की हैसियत से बसरा भेजे गए तो उन्होंने (वहाँ का चार्ज लेने के बाद) बसरावासियों से फ़रमाया -
‘‘हज़रत उमर रज़ि0 (इस्लामी धर्मशास्त्री) ने मुझे आप लोगों के पास भेजा है ताकि मैं आप लोगों को आप के रब की किताब और आप (के पैग़म्बर) की सुन्नत (यानी क़ुरआन व हदीस) की तालीम दूं और आपके रास्तों और सड़कों को साफ़-सुथरा रखने का प्रबन्ध करूँ (हदीसःदारमी मुकद्दमा-560)

 

आम रास्तों और सड़कों की सफ़ाई उसी वक़्त मुमकिन है कि जब आम लोग सफ़ाई के सिलसिले में जागरूक हों और अपनी ज़िम्मेदारियों का एहसास रखते हों। इसी एहसास को पैदा करने के लिए ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया -

‘‘ख़ुदा पाक और पवित्र है और पाकी व पवित्रता को पसन्द करता है। स्वच्छता वाला है स्वच्छता को पसन्द करता है। वह मेहरबान है और मेहरबानी करने को पसन्द करता है। वह दाता है और देने को पसन्द करता है। अतः तुम भी (पाक-साफ़ रहो और) अपने घरों के आंगन को पाक-साफ़ रखो............।'' (हदीस: तिरमिज़ी-2799)

 

पेशाब की छींटों से बचना

 

कुछ गन्दगियाँ ऐसी हैं जिनसे बचने की लोग आमतौर पर कोशिश नहीं करते। इनमें से एक पेशाब की छीटें भी हैं। इन से बचने की कोशिश तो दूर की बात है, बहुत-से लोग इसे गन्दगी ही नहीं समझते। पेशाब करके लोग सफ़ाई के लिए पानी आदि का 
स्तेमाल भी नहीं करते और पेशाब की बूँदें कपड़ो पर लगने देते हैं। ऐसे लोग समाज के हर वर्ग में मौजूद हैं, उनमें पढ़े-लिखे, सुसभ्य और सुसंस्कृत कहे जाने वाले भी हैं और धार्मिक लोग भी। इस्लाम की नज़र में यह एक गन्दगी है और इससे बचना और इस सिलसिले में सफ़ाई का ख़याल रखना ज़रूरी है। ख़ुदा के पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल0) ने न सिर्फ़ यह कि इससे बचने का हुक्म दिया है बल्कि इससे न बचने पर आख़िरत (परलोक) में सज़ा की चेतावनी भी दी है।

 

पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के एक साथी अबू-मूसा (रज़ि0) कहते हैं कि मैं एक दिन पैग़म्बर (सल्ल0) के साथ था। पैग़म्बर (सल्ल0) ने पेशाब करना चाहा तो वे एक दीवार के किनारे नर्म जगह गए और वहाँ पेशाब किया। वापस आकर फ़रमाया -

‘‘जब तुममें से कोई पेशाब करना चाहे तो ऐसी जगह जाए जहाँ पेशाब की छीटें न पड़ें।'' (हदीस: अबू-दाऊद-3)

हज़रत इब्ने-अब्बास (रज़ि0) कहते हैं कि ‘‘पैग़म्बर (सल्ल0) दो क़ब्रों के पास से गुज़रे और फ़रमाया कि इन दोनों क़ब्रवालों को अज़ाब दिया जा रहा है। और अज़ाब किसी बहुत बड़ी ग़लती पर नहीं दिया जा रहा, बल्कि इसलिए दिया जा रहा है कि इनमें से एक पेशाद से अपनी हिफ़ाज़त नहीं करता था और दूसरा लोगों की बुराई बयान करता फिरता था।''(हदीसःबुख़ारी-218)

पैग़म्बर (सल्ल0) के इस कथन से जहाँ यह बात मालूम होती है कि पेशाब की छीटों से इनसान का शरीर गन्दा हो जाता है, वहीं यह इशारा भी मिलता है किसी की बुराई करते फिरना अपने आप में एक गन्दी हरकत है जिससे आदमी दूसरे के नुक़सान से ज़्यादा अपना नुक़सान करता है और अपनी आत्मा (रूह) को गन्दा कर देता है। इस हदीस में भी तन और मन दोनों की सफ़ाई की अहमियत बताई गई है।

 

पैग़म्बर (सल्ल0) ने खड़े होकर पेशाब करने से भी मना किया है। ऐसा करने से अन्य कई अप्रिय बातों के अलावा पेशाब की छींटों के शरीर और कपड़ों पर पड़ने का अन्देशा रहता है।
हज़रत उमर (रज़ि0) कहते हैं कि ‘‘मै एक बार खड़े होकर पेशाब कर रहा था। पैग़म्बर (सल्ल0) ने कहा कि ऐ उमर, खड़े होकर पेशाब मत किया करो। उस दिन से मैंने कभी खड़े होकर पेशाब नहीं किया।'' (हदीसःतिरमिज़ी-12)

 

पेशाब की बूँदें अगर शरीर पर या कपड़े पर लगी हुई हों तो आदमी नमाज़ भी नहीं पढ़ सकता, इसलिए पेशाब करने के बाद मुख्य अंग (मूत्रेंद्रिय) को पानी से धोने का आदेश दिया गया है ताकि पेशाब की बूँदों से कपड़े नापाक (अपवित्र) न हों। पानी न मिलने की सूरत में मिट्टी या टिशू पेपर आदि से यह मक़सद हासिल किया जा सकता है।

 

छोटे बच्चों का पेशाब

बच्चा अगर किसी के कपड़े पर पेशाब कर दे तो ज़रूरी है कि पानी से धोकर उसे साफ़ किया जाए।अगर किसी आदमी के कपड़े पर पेशाब की छीटें पड़ी हो तो ऐसा आदमी उस वक़्त तक नमाज़ नहीं पढ़ सकता, जब तक कि वह कपड़ों को धोकर पाक न कर ले।

‘जिस जगह या जिस कपड़े पर नमाज़ पढ़नी हो, अगर उस जगह बच्चे ने पेशाब कर दिया है तो ज़रूरी है कि नमाज़ पढ़ने से पहले उस जगह और कपड़े को भी पानी से धोकर साफ़ कर लिया जाए।

 

पानी, साबुन आदि से सफ़ाई करना

पाख़ाने (शौच) के बाद पानी से पाकी हासिल करनी चाहिए तथा हाथ मिट्टी या साबुन से धोने चाहिएं, क्योंकि पाख़ाना करने के बाद बदबू हाथ में बाक़ी रह सकती है और यदि सिर्फ़ पानी से हाथ धोया गया तो इससे इस बात की अधिक संभावना रहती है कि हाथ गन्दगी के असर से पूरी तरह साफ़ न हो पाएं। ऐसा न करने से आदमी के अन्दर घृणा और नफ़रत का एहसास भी बना रहता है, साथ ही बीमारी फैलने का डर हर वक़्त मौजूद रहता है। इसलिए पाख़ाने (शौच) के बाद साबुन या पाक मिट्टी से हाथों को ज़रूर धो लेना चाहिए। ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) इस बात का बड़ा ख़याल रखते थे, जैसा कि नीचे लिखे इस वाक़िए से पता चलता है -

पैग़म्बर के साथी हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि0) कहते हैं कि ‘‘जब पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) पाख़ाने जाते तो मै बर्तन या छागल में पानी पहुंचाता । वे पाकी हासिल करते। फिर हाथ को ज़मीन पर रगड़ते (और धोते)। फिर मैं पानी का दूसरा बर्तन लाता, तब पैग़म्बर (सल्ल0) वुज़ू करते।''(हदीसःअबू-दाउद-45)

 

सफ़ाई करने में बाएं हाथ का स्तेमाल करना

इनसान को अपने हाथों से गन्दगी साफ़ करनी पड़ती है और इन्हीं हाथों से वह खाना भी खाता है। आम तौर से लोग दोनों हाथों को दोनों प्रकार के कामों के लिए इस्तेमाल करते हैं। उनके पास इस बारे में कोई रहनुमाई नहीं है। लेकिन इस्लाम ने इसके बारे में भी रहनुमाई की है कि नाक या पाख़ाना-पेशाब साफ़ करने के लिए हमेशा बायाँ हाथ इस्तेमाल करना चाहिए और खाने के लिए दायाँ हाथ! पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया -

 

‘‘ मै तुम्हारे लिए ऐसा हूँ जिस तरह बाप अपने बेटे के लिए होता है। इसलिए मै तुम्हें कुछ बातें सिखलाता हूँ। जब तुम पाख़ाना-पेशाब करो तो काबा की ओर मुख या पीठ मत करो। सफ़ाई के लिए कम-से कम तीन मिट्टी के ढेले इस्तेमाल करो। इस काम के लिए गोबर या हडडी का इस्तेमाल मत करो।

और सीधे हाथ से पाख़ाना-पेशाब मत साफ़ करो।" (हदीसःइब्ने-माजा-313)
एक दूसरी हदीस में है -

 

‘‘पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल0) खाने-पीने के काम और दूसरे पाक काम दाहिने हाथ से करते थे तथा गन्दगी आदि साफ़ करने और पाकी हासिल करने के लिए बायाँ हाथ इस्तेमाल करते थे।''(हदीस: अबू-दाउद-33)

 

मुँह और दाँतों की सफ़ाई 

इनसान की सेहत कि लिए मुँह और दाँतों की सफ़ाई निहायत ज़रूरी है, इस बात से किसे इन्कार हो सकता है। मुँह और दाँतों को सेहत और तन्दरुस्ती का दरवाज़ा कहा जाता है।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने मुँह की सफ़ाई के बारे में फ़रमाया -
‘‘मिसवाक (दातुन) करने से मुँह भी साफ़ होता है और परवरदिगार ख़ुदा भी ख़ुश होता है।'' (हदीस: किताब-30 बाब-27)

 

‘‘पैग़म्बर (सल्ल0) की बीवी हज़रत आइशा (रज़ि0) कहती हैं कि पैग़म्बर (सल्ल0) घर में आने के बाद सबसे पहले मिसवाक किया करते थे।'' (हदीसःमुस्लिम-253)

एक अवसर पर पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -

 ‘‘मैने तुम्हें ख़ूब मिसवाक करने की नसीहत की है।'' (हदीसः नसई-6)

पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल0) ख़ुद भी हमेशा मुँह को साफ़ रखते थे और अपने अनुयायियों को भी इसकी ताकीद किया करते थे कि वे अपने मुँह और दाँतों को साफ़ रखें। एक बार आप (सल्ल0) फ़रमाया -

 

‘‘जिस नमाज़ के लिए मिसवाक (दातुन) की जाए वह उस नमाज़ से सत्तर गुना बेहतर है जिस नमाज़ के लिए मिसवाक न की जाए।'' (हदीसःबैहिकी-162)

यानी मुँह और दाँतों को साफ़ रखना केवल एक सफ़ाई-सुथराई ही नहीं है, बल्कि वह एक इबादत भी है, जैसा कि नबी (सल्ल0) ने मिसवाक करके पढ़ी जानेवाली नमाज़ को बग़ैर मिसवाक किए पढ़ी जानेवाली नमाज़ से सत्तर गुना अधिक बेहतर कहा है।

खाने-पीने के बाद कुल्ली करना

इनसान जब भी कुछ खाए या दूध, शर्बत आदि पिए तो चाहिए कि खाने-पीने के बाद मुँह को अच्छी तरह साफ़ कर ले। इससे दाँतों की हिफाजत तो होगी ही सेहत पर भी इसका अच्छा असर पड़ेगा। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने इस बात का बड़ा एहतिमाम फ़रमाया है -

हज़रत अब्दुल्लाह-इब्ने अब्बास (रज़ि0) रिवायत करते है कि-

 ‘‘ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने दूध पिया, उसके बाद आप (सल्ल0) ने कुल्ली की और फ़रमाया कि इसमें चिकनाई होती है।'' (हदीसःबुख़ारी-211, मुस्लिम-358)

मतलब यह है कि दूध पीने के बाद मुँह को अच्छी तरह साफ़ कर लिया जाए ताकि उसकी चिकनाई आदि से दाँत खराब न हों।

 

एक दूसरी हदीस में है कि -

‘‘एक सफ़र में पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने और आप (सल्ल0) के साथियों ने सत्तू खाया, फिर सबने कुल्ली की, फिर नमाज़ पढ़ी।'' (हदीसःबुख़ारी-209)

सोकर उठने के बाद दाँतों की सफ़ाई करना

पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल0) दिन मे कई-कई बार मिस्वाक किया करते थे। जब सोकर उठते तो मिसवाक ज़रूर करते -

 

हज़रत आशा (रज़ि0) कहती हैं कि ‘‘ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) दिन और रात में जब भी सोते तो जागने पर वुज़ू से पहले मिस्वाक ज़रूरत करते।'' (हदीसःअबू-दाउद-57)

 

सोने से पहले भी मुँह और दाँतो को साफ़ करना बहुत ज़रूरी है। अगर सोते वक़्त आदमी के दाँत साफ़ नहीं हैं तो सोने के बाद मुँह में एक ख़ास तरह का तत्व पैदा हो जाता है, जो दाँतो और पेट के लिए बड़ा ही नुक़सानदेह होता है। अगर वह तत्व आदमी के पेट में चला जाता है तो उससे मेदे को भी बड़ा नुक़सान पहुँचता है। इस लिए सोने से पहले दाँतों को मिसवाक या ब्रश से ज़रूर साफ़ करना चाहिए। पैग़म्बर (सल्ल0) ने ज़िन्दगी भर इस बात पर अमल किया है और लोगों के लिए नमूना छोड़ा है। आजकल डॉक्टर और हकीम सोने से पहले नमक के गुनगुने पानी से कुल्ली करने का मशवरा देते हैं। 


खाने से पहले और खाने के बाद हाथों को धोना
 
खाना पकाने में भी और खाना खाने में भी सफ़ाई-सुथराई का पूरा ख़याल रखना ज़रूरी है। खाने से पहले और खाना खाने के बाद हमेशा हाथों को अच्छी तरह धो लेना चाहिए। ऐसा करना सफ़ाई के पहलू से तो ज़रूरी है ही, साथ ही सेहत के लिए भी बहुत ज़रूरी है। हो सकता है कि आदमी के हाथ में कोई गन्दी और हानिकारक चीज़ लगी हो और वह खाने के साथ पेट में चली जाए और फिर उसके 
ंफ़ेक्शन से आदमी किसी गंभीर रोग में ग्रस्त हो जाए। खाने से पहले अगर हाथों को साबुन से अच्छी तरह धो लिया जाए तो इससे खाना खाने वाले को इत्मीनान रहता है कि खाने में साफ़-सुथरा हाथ डाला गया है और वह बीमारियों से महफ़ूज़ रहता है।

 

हज़रत अनस-बिन-मालिक (रज़ि0) बयान करते है कि ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -
‘‘जिस व्यक्ति को यह बात पसन्द हो कि ख़ुदा उसके घर में ख़ूब भलाई और बरकत पैदा करे तो उसे चाहिए कि खाना खाने से पहले और उसके बाद हाथ धो लिया करे।'' (हदीसःइब्ने-माजा-3260)

 

एक दूसरी जगह फ़रमाया -

‘‘जिस आदमी के हाथ में रात को सोते वक़्त गोश्त (आदि) की बू मौजूद हो और फिर उसे कोई तकलीफ़ पहुँचे तो वह अपने आप ही को बुरा भला कहे।'' (हदीसःअबू-दाउद-3852)

ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने बड़े ही अच्छे तरीक़े से यह बात समझाई है कि खाने के बाद हाथों को अच्छी तरह साफ़ कर लेना चाहिए। इसमें ज़रा-सी लापरवाही इनसान और उसके घरवालों को बहुत तकलीफ़ पहुँचा सकती है। खाना खाने के बाद हाथों को अगर अच्छी तरह धोया नहीं गया तो सोने की हालत में कोई तकलीफ़देह और ज़हरीला जानवर, चूहा, कीड़ा-मकोड़ा हाथ में काट सकता है और 
ंफ़ेक्शन हो सकता है।

 


सलीक़े और ढंग से रहना

कुछ लोग मैले-कुचैले कपड़े पहनने और अपनी बेढंगी शक्ल व सूरत और हुलिया बनाने को दीनदारी और धार्मिकता समझते हैं। इस्लाम की नज़र में यह कोई दीनदारी नहीं है और न ही यह ख़ुदा को ख़ुश करनेवाला काम है। ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने ऐसा करने से मना फ़रमाया है। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के एक साथी हज़रत जाबिर (रज़ि0) कहते हैं -

 

‘‘पैग़म्बर (सल्ल0) हमारे यहाँ आए, वहाँ उन्होंने एक आदमी को देखा जो धूल-मिट्टी में अटा हुआ था और उसके बाल बिखरे हुए थे। पैग़म्बर (सल्ल0) ने कहा, ‘‘ क्या इस आदमी के पास कोई कंघा नहीं है जिससे यह अपने बालों को संवार लेता ?'' फिर आप (सल्ल0) ने दूसरे आदमी को देखा जिसने मैले-कुचैले कपड़े पहन रखे थे। उसे देखकर पैग़म्बर (सल्ल0) ने कहा, ‘‘क्या इस आदमी के पास कोई चीज़ (साबुन वग़ैरा) नहीं है, जिससे यह अपने कपड़े धो लेता ? (हदीसःअबू-दाउद-4062)

 

हज़रत अता-बिन-यसार एक वाक़िआ बयान करते है। एक बार की बात है कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) मस्जिद में बैठे हुए थे कि एक आदमी आया जिसके सिर और दाढ़ी के बाल बिखरे हुए थे। उसे देखकर पैग़म्बर (सल्ल0) ने हाथ से उसकी ओर इशारा किया। इसका मक़सद यह था कि जाकर अपने सिर और दाढ़ी के बाल ठीक करो! वह आदमी गया और बालों को ठीक-ठाक करने के बाद वापस आया। तब पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया,

 

‘‘क्या यह अच्छा नहीं है इस बात से कि आदमी के बाल उलझे हुए हों और वह ऐसा मालूम होता हो जैसे शैतान है।'' (हदीसःमालिक-4019)

अबू-अहवस (रज़ि0) अपने बाप से रिवायत करते हैं कि उनके बाप ने कहा कि मैं पैग़म्बर (सल्ल0) की ख़िदमत में हाज़िर हुआ। उस वक़्त मेरे जिस्म के कपड़े घटिया थे। नबी (सल्ल0) ने पूछा,‘‘ क्या तुम्हारे पास माल है?'' उन्होंने कहा, ‘‘हाँ'' । नबी (सल्ल0) ने पूछा कि किस तरह का माल है?उन्होंने जवाब दिया,‘‘हर तरह का माल ख़ुदा ने मुझे दिया है, ऊॅंट भी हैं, गायें भी हैं, बकरियाँ भी हैं, घोड़े भी हैं। '' पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया ‘‘जब ख़ुदा ने माल दे रखा है तो उसकी कृपाओं और मेहरबानियों का असर तुम्हारे जिस्म से भी ज़ाहिर होना चाहिए।'' (हदीसःनसई-5224, अहमद-4063)

 

अगर आदमी को ख़ुदा ने माल दे रखा हो तो उसे उससे फ़ायदा उठाना चाहिए, ऐसा न हो कि वह गन्दे और फटे-पुराने कपड़े पहनकर मुहताजों की-सी हालत बनाए रहे। यह ख़ुदा की नाशुक्री है। हाँ आदमी को माल का घमंड कभी नहीं करना चाहिए और न ऐसे कपड़े पहनने चाहिएं जिनसे घमंड और अहंकार ज़ाहिर होता हो।

 

लिबास ख़ुदा की नेमत है। इससे इनसान को फ़ायदा उठाना चाहिए। ख़ुदा ने क़ुरआन में फ़रमाया -

‘‘ऐ इनसानो! हमने तुम्हारे लिए लिबास (वस्त्र) उतारा ताकि वह तुम्हारे क़ाबिले-शर्म हिस्सों को ढांके और तुम्हारे लिए हिफ़ाज़त और ख़ूबसूरती का ज़रिआ बने।'' (क़ुरआन, सूरा-7, आराफ़, आयत-26)

 

ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -

‘‘जिस व्यक्ति के मन में तनिक भी घमण्ड होगा, वह जन्नत में न जा सकेगा'' इस पर एक व्यक्ति ने पूछा, ‘‘ आदमी चाहता है कि उसके कपड़े और जूते अच्छे हों (तो क्या वह जन्नत में न जा सकेगा?) ''

 पैग़म्बर (सल्ल0) ने कहा, ‘‘नहीं यह घमण्ड नहीं है। ख़ुदा तो जमील और ख़ूबसूरत है और जमाल व ख़ूबसूरती को पसन्द करता है। घमण्ड यह है कि ख़ुदा का हक़ अदा न किया जाए, उसकी नाफ़रमानी की जाए और उसके बन्दों को तुच्छ (हक़ीर) और नीच समझा जाए।'' (हदीसःमुस्लिम-91)

 

मस्जिद में सफ़ाई

 

ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया -
‘‘मस्जिद में थूकना ग़लती है, और वह तभी माफ़ हो सकती है जब उसे साफ़ कर दिया जाए।'' (हदीसःबुखारीः415, मुस्लिम-552)

 

इधर-उधर थूकना एक नापसन्दीदा काम है और सफ़ाई-सुथराई और पाकी के ख़िलाफ़ है, इसे कोई भी व्यक्ति पसन्द नहीं करता, बल्कि ऐसा करने वाले व्यक्ति को नफ़रत की निगाह से देखा जाता है। अनुचित जगह थूकना एक बुरी बात है, और मस्जिद तथा इबादतगाहों में थूकना तो और भी बुरा है। क्योंकि मस्जिद तो नमाज़ पढ़ने, ख़ुदा को याद करने और ख़ुदा से दुआएँ करने का पवित्र स्थान है। किसी को ऐसी जगह हरगिज़ नहीं थूकना चाहिए, बल्कि अगर कहीं थूक या कोई दूसरी गन्दी चीज़ नज़र आए तो उसे साफ़ कर देना चाहिए।
पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल0) की बीवी हज़रत आइशा (रज़ि0) से रिवायत है - 

 

‘‘पैग़म्बर (सल्ल0) ने काबा की दीवार पर थूक या बलग़म लगा हुआ देखा तो उन्होंने रगड़कर उसे साफ़ कर दिया।''(हदीसःबुख़ारी-407, मुस्लिम-549)
एक बार ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया - 

 

‘‘ये मस्जिदें पेशाब और दूसरी गन्दगियों के लिए उचित नहीं, क्योंकि ये तो ख़ुदा को याद करने, नमाज़ पढ़ने और पवित्र क़ुरआन पढ़ने के लिए हैं।'' (हदीसःमुस्लिम-258)
मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने के लिए चटा
याँ और दरियाँ बिछाई जाती हैं, उनको धूल-मिट्टी से बराबर साफ़ करते रहना चाहिए। इसी तरह मस्जिद की अलमारियों और ताक़ों और उनमें रखे हुए क़ुरआन मजीद के नुस्ख़ों वग़ैरा की सफ़ाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
आजकल मस्जिदों में वुज़ूख़ाने बने होते हैं, उनकी सफ़ाई का भी पूरा-पूरा इन्तिज़ाम होना चाहिए। इसी तरह मस्जिदों के बाहर या उनसे सटे हुए पेशाबख़ाने बनाए जाते हैं, उनकी सफ़ाई का भी पूरा ध्यान रखना ज़रूरी है।
  

बू वाली चीज़ों से बचना

पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने ऐसी चीज़ों को खाने से मना किया है जिनको खाने के बाद उनकी बू बाक़ी रहती है और दूसरे लोगों को इससे नफ़रत या तकलीफ़ होती है। जैसे कच्चा लहसुन, प्याज़ आदि।

ख़ास तौर से मस्जिद या ऐसी जगह जाने से पहले जहाँ बहुत से लोग इकटटा होते है, ऐसी चीज़ों को खाने से परहेज करना चाहिए। अगर किसी से मुलाक़ात करने जा रहे हों तब भी इस तरह की चीज़ों को खाकर नहीं जाना चाहिए। इस्लाम की यही शिक्षा है। 


हज़रत अनस (रज़ि0) बयान करते हैं कि ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -
‘‘जो व्यक्ति इस तरकारी (यानी कच्ची प्याज़, लहसुन, मूली आदि) को खाकर आए, तो वह हमारे क़रीब न आए और न वह हमारे साथ नमाज़ पढ़ें।'' (हदीसःबुख़ारी-856, मुस्लिम-562)
हज़रत मुआविया-बिन-क़ुर्रा अपने बाप से रिवायत करते हैं -

 

‘‘ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) ने इन दो तरकारियों लहसुन और प्याज़ से मना किया है और कहा है कि जो शख़्स उनको खाए वह हमारी मस्जिद के क़रीब न आए। और आप (सल्ल0) ने फ़रमाया, अगर इनको खाना ज़रूरी हो तो पकाकर इनकी बू को ख़त्म कर देना चाहिए।'' (हदीसःअबू-दाउद-3827)

लहसुन-प्याज़ पकाकर खाई जा सकती है, क्योंकि पकाने से इनकी बू ख़त्म हो जाती है। ये कोई हराम चीज़ें नहीं हैं। इन्हें तेज़ बू वाली होने की वजह से केवल कच्ची खाने से मना किया गया है।

बू वाली चीज़ों में तम्बाकू, बीड़ी और सिगरेट वग़ैरा भी आती हैं। इन चीज़ों के इस्तेमाल से बचना चाहिए और इनके इस्तेमाल के फ़ौरन बाद मस्जिद में नहीं जाना चाहिए। क्योंकि इनकी बू काफ़ी देर तक बाक़ी रहती है और इससे दूसरे लोगों को तकलीफ़ होती है।

 

इबादत (उपासना) के लिए पाकी (पवित्रता)

नमाज़ इस्लाम की एक बड़ी अहम इबादत है। इसके बिना कोई इनसान ख़ुदा की नज़र में मुसलमान कैसे हो सकता है ? मुसलमान होने के लिए ज़रूरी है कि नमाज़ पाबन्दी से अदा की जाए। यानी दिन में कम-से-कम पाँच बार नमाज़ ज़रूर पढ़ी जाए। इस बड़ी और अहम इबादत के लिए ज़रूरी है कि नमाज़ पढ़ने वाला पाक और साफ़ हो, उसके कपड़े भी पाक-साफ़ हों और जिस जगह नमाज़ पढ़ी जाए वह जगह भी पाक-साफ़ हो।

कुरनआन मजीद में नमाज़ के लिए वुज़ू करने का हुक्म दिया गया है -

 

‘‘ऐ ईमानवालो! जब तुम नमाज़ के लिए उठो तो तुम्हें चाहिए कि अपने मुँह और हाथों को कोहनियों तक धो लो। सिर पर मसह कर लो (यानी हाथ गीले करके सिर पर फेर लो) और पाँव टख़नों तक धो लो।'' (क़ुरआन, सूरा-5 माइदा, आयत-6)
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया -

 

‘‘बग़ैर वुज़ू के नमाज़ क़बूल नहीं होती।'' (हदीसःमुस्लिम-224)
नबी (सल्ल0) ने एक मौक़े पर फ़रमाया -

 

‘‘जन्नत की कुंजी नमाज़ है, और नमाज़ की कुंजी पाकी व सफ़ाई (वुज़ू) है।'' (हदीसःमुसनद अहमद-3330)

हज़रत इब्ने उमर (रज़ि0) रिवायत करते हैं कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया -

‘‘स्वच्छता और पवित्रता (पाकी) के बिना नमाज़ क़बूल नहीं होती, और हराम (अवैध) माल का दान (ख़ुदा के यहाँ) स्वीकार नहीं होता।''(हदीसःमुस्लिम-224)

इस हदीस में ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) ने तन के साथ-साथ मन की सफ़ाई पर भी ज़ोर दिया है। दान (सदक़ा) करने से इनसान का मन स्वच्छ होता है और उसको दिली सुकून हासिल होता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति हराम और अवैध माल का सदक़ै (दान) करता है तो उससे यह फ़ायदा हासिल नहीं हो सकता। हराम माल से दान करना ऐसा ही है जैसे कोई गन्दे और अपवित्र पानी से सफ़ाई और पाकी हासिल करे। गन्दे पानी से कभी पाकी हासिल नहीं हो सकती।

इस मौक़े पर एक हदीस का जिक्र करना ज़रूरी महसूस होता है, जिसमें पैग़म्बर (सल्ल0) ने नमाज़ को इनसान की अन्दरूनी और ज़ाहिरी दोनों पाकी का बेहतरीन ज़रिआ क़रार दिया है। फ़रमाया -

 

‘‘तुम्हारा क्या ख़याल है, अगर तुमें से किसी के दरवाज़े पर कोई नहर हो जिसमें वह रोजाना पांच बार नहाता हो, तो क्या उसके जिस्म पर कुछ भी मैल-कुचैल बाक़ी रहेगा ? '' 

लोगों ने कहा,‘‘कुछ भी मैल-कुचैल बाक़ी नहीं रहेगा।''
तब पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘यही मिसाल पाँचों वक़्तों की नमाज़ की है। ख़ुदा उनके ज़रिए से ग़लतियों को माफ़ फ़रमाता रहता है।'' (हदीसःअबू-दाउद-2868)

 

‘‘जब कोई इनसान दिन-भर में पांच वक़्त की नमाज़ पढ़ेगा और उसके लिए अच्छी तरह वुज़ू करेगा तो इससे उसकी ज़ाहिरी गन्दगी दूर होगी। जब वह नमाज़ में ख़ुदा को याद करेगा उससे अपनी ग़लतियों की माफी मांगेगा, आइन्दा गुनाह न करने और नेकी व भलाई का काम करने का वादा और अहद करेगा तो इससे उसके अन्दर की गन्दगी दूर होगी और वह हर तरह से पाक-साफ़ इनसान बन जाएगा।

 

क़ुरआन में हुक्म दिया गया है-

 ‘‘हर नमाज़ के वक़्त अपनी ज़ीनत (बनाव-संवार) इख़्तियार किए रहो''

(क़ुरआन, सूरा-7, आराफ़, आयत-31)

 

क़ुरआन में साफ़-सुथरे होकर और सलीक़े के कपड़े पहनकर नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया गया है। इससे भी सफ़ाई-सुथराई और सलीक़ामन्दी की अहमियत वाज़ेह होती है।

 

गन्दगी की क़िस्में और दूर करने के तरीक़े 

इस्लाम ने सफ़ाई-सुथराई और स्वच्छता के बारे मे शुद्धता एवं पवित्रता की एक अवधारणा (तसव्वुर) पेश की है जिसको मुख़्तसर तौर पर यहाँ बयान किया जा रहा है -
इस्लाम ने गन्दगी को दो हिस्सों मे विभाजित किया है। एक हक़ीक़ी (वास्तविक) गन्दगी है और दूसरी हुक्मी यानी वह गन्दगी जिसके गन्दगी होने का इल्म ख़ुदा के आदेशों से होता है।
हक़ीक़ी गन्दगी वह है जिसका गन्दगी होना सब पर ज़ाहिर होता है, जैसे पेशाब-पाख़ाना वग़ैरा। और हुक्मी गन्दगी ऐसी गन्दगी है जो देखने में नहीं आती, बल्कि उसका अधिक सम्बन्ध आदमी की हालत और उसकी नफ़्सियात (मनोस्थिति ) से है। यह एक प्रकार की दिखाई न देनेवाली नापाकी और अपवित्रता है किन्तु इसका प्रभाव और असर कुछ कम नहीं होता।
हक़ीक़ी गन्दगी भी दो तरह की होती है। एक बड़ी गन्दगी और दूसरी छोटी या हल्की गन्दगी। बड़ी गन्दगी में उन जानवरों का पेशाब-पाख़ाना वग़ैरा आता है जिनका गोश्त खाना इस्लाम ने हराम (अवैध) बतलाया है। जैसे कुत्ता, सूअर वग़ैरा। इनसान का पेशाब-पाख़ाना भी इसी के अन्तर्गत आता है।
 
हल्की गन्दगी में उन जानवरों का पेशाब-पाख़ाना आता है जो इस्लाम में हलाल हैं, जैसे बकरी, भेड़ आदि। इस्लाम ने इन सभी गन्दगियों से बचने का हुक्म दिया है। इन गन्दगियों से पाक रहकर ही आदमी नमाज़ पढ़ सकता है। गड़ी गन्दगी और हल्की गन्दगी से बचने और उन से पाक होने के तरीक़े के बारे में शरीअत के हुक्म (धर्मादेश) अलग-अलग हैं जो बिलकुल मुनासिब और समझ में आने वाले है। इनको सविस्तार फिक़्ह की दूसरी किताबों में देखा जा सकत है। यहाँ तफ़सील का मौक़ा नहीं है।
हक़ीक़ी गन्दगियों से पाक होने का तरीक़ा यह है कि उसे रगड़कर और धोकर साफ़ किया जाए।
दूसरी क़िस्म की गन्दगी यानी हुक्मी गन्दगी क़ुरआन मजीद और पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के बताए हुए तरीक़े के मुताबिक़ वुज़ू या ग़ुस्ल करके ही दूर हो सकती है। हुक्मी गन्दगी में उस वक़्त आदमी ग्रस्त होता है जबकि नीचे लिखी हालतों मे से कोई हालत पेश हो - 

 

1-पेशाब-पाख़ाना करने पर
 
पेशाब-पाख़ाना करने के बाद आदमी नापाक हो जाता है। इससे पाक होने के लिए वुज़ू करना ज़रूरी होता है। क़ुरआन मजीद में है -

 

‘‘...तुममें से कोई पेशाब-पाख़ाना करके आए तो वुज़ू करे।'' (क़ुरआन सूरा-5 माइदा, आयत-6)

 

2-जब अधो-वायु निकल जाए
 
अधो-वायु निकलने (हवा निकलने) पर आदमी हुक्मी गन्दगी में ग्रस्त हो जाता है, इससे पाक होने के लिए वुज़ू करना होगा। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया -
‘‘जब तुम में से किसी की अधो-वायु (हवा) निकल जाए तो वह वुज़ू करे।'' (हदीसः तिरमिज़ी-1164, अबू-दाउद-205)

 

3-नींद आ जाने पर
 
अगर नींद आ जाए तो सोकर उठने के बाद वुज़ू करना होगा। पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -

 

‘‘वुज़ू करना उसके लिए ज़रूरी है जो टेक लगाकर सो जाए, क्योंकि टेक लगाकर सोने से उसके जोड़ ढीले पड़ जाते हैं।''(और इससे अधो-वायु निकल जाने की सम्भावना होती है।) (हदीसःअबू-दाउद-202, तिरमिज़ी-77)

 

4-जिस्म से ख़ून निकलने पर

अगर जिस्म में कहीं से ख़ून निकल जाए तब भी वुज़ू करना होगा। जैसा कि पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -

‘‘हर बहने वाले ख़ून से वुज़ू ज़रूरी हो जाता है।'' (हदीसःदार-क़ुतनी-590)

 

5-सोहबत (रतिक्रिया) करने पर

अगर मियाँ-बीवी सम्भोग करें तो दोनों को ग़ुस्ल करना ज़रूरी है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया -

‘‘अगर व्यक्ति अपनी बीवी से सम्भोग करे तो ग़ुस्ल करना (दोनों के लिए) ज़रूरी है, चाहे वीर्य न निकले।'' (हदीसःबुख़ारी-291, मुस्लिम-348)

 

6-रज या वीर्य के गुप्तांग से बाहर निकल जाने पर 

हज़रत अबू-सईद (रज़ि0 से रिवायत है कि पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -
‘‘पानी के लिए पानी चाहिए। (हदीसःमुस्लिम-343)

 

मतलब यह है कि ग़ुस्ल उस वक़्त भी ज़रूरी हो जाता है जब किसी को स्वप्नदोष हो जाए। ऊपर लिखी दोनों बातें मर्द और औरत दोनों ही के लिए हैं।अगर किसी को इन दोनों बातों में से कोई पेश आ जाए तो ग़ुस्ल करना उसके लिए ज़रूरी होगा। इसके बिना वह न तो नमाज़ पढ़ सकता है, न क़ुरआन पढ़ सकता है और न ही मस्जिद में जा सकता है।

जिन लोगों को ऊपर लिखी हालत पेश आ जाए उनके बारे में क़ुरआन मजीद में फ़रमाया गया है -

‘‘अगर तुम जुनुबी (वह व्यक्ति जिसे स्वप्नदोष हो गया हो या जिसने सम्भोग किया हो) हो तो ग़ुस्ल करके पाक हो जाओ।'' (क़ुरआन सूरा-5 माइदा, आयत-6)

 

7-माहवारी आने पर 

अगर किसी औरत को माहवारी आए तो वह नापाक हो जाती है। माहवारी रुक जाने के बाद उसके लिए ज़रूरी है कि वह ग़ुस्ल करके पाक-साफ़ हो जाए।
हज़रत इब्ने उमर (रज़ि0) कहते है कि ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -
‘‘हाइज़ा (वह औरत जिसको माहवारी आ रही हो) और ‘जुनुबी' (वह व्यक्ति जिसे स्वप्नदोष हो गया हो या जिसने सम्भोग किया हो) क़ुरआन न पढ़ें।''(हदीसःतिरमिज़ी-131)

 

हज़रत आइशा (रज़ि0) से रिवायत है कि ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया -

‘‘इन घरों के दरवाज़े मस्जिद से फेर दो, क्योंकि मैं मस्जिद को उस औरत के लिए जाइज़ नहीं करता जिसे माहवारी आ रही हो और न ही ‘जुनुबी' के लिए जाइज़ करता हूँ। (हदीसःअबू-दाउद-232) 

हज़रत अली (रज़ि0) से रिवायत है कि ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -
‘‘रहमत के फ़रिश्ते उस घर में नहीं जाते जिसमें तस्वीर, कुत्ता या कोई ‘जुनुबी' हो (यानी ऐसा व्यक्ति हो जिसपर ग़ुस्ल ज़रूरी हो और उसने ग़ुस्ल न किया हो)।'' (हदीसःनसई-261)
अगर कोई नापाक हो गया हो यानी उसने कोई ऐसा काम किया हो जिसकी वजह से उस पर ग़ुस्ल वाजिब (ज़रूरी) हो गया है तो उसे चाहिए कि जल्द-से-जल्द नहाकर पाक-साफ़ हो जाए, नापाकी की हालत में न रहे।

 यहाँ इस बात का उल्लेख भी ज़रूरी मालूम होता है कि अगर किसी औरत के बच्चा जनने की वह से या गर्भपात होने की वजह से ख़ून आ रहा हो तो वह भी नापाकी की हालत में होती है। उसके लिए ज़रूरी होगा कि जब तक ख़ून आना बन्द न हो वह नमाज़ और क़ुरआन न पढ़े। जब ख़ूब बन्द हो जाए तो नहा-धोकर पाक-साफ़ हो जाए। इसके बाद नमाज़ भी पढ़े और क़ुरआन भी । इस्लामी शरीअत में इस तरह के ख़ून की मुददत ज़्यादा-से ज़्यादा चालीस दिन मुक़र्रर की गई है। यानी अगर यह ख़ून चालीस दिन के बाद भी जारी रहता है तो इस हालत में वह वुज़ू करके नमाज़ और क़ुरआन पढ़ सकती है।

 

वुज़ू और ग़ुसल का तरीक़ा

 अब हम यहाँ संक्षेप मे वुज़ू और ग़ुस्ल का तरीक़ा बयान करेंगे जो इस्लाम ने बताया है। पहले हम वुज़ू का तरीक़ा बयान करते हैं -

वुज़ू का तरीक़ा

वुज़ू कैसे किया जाता है? इस बारे में कई हदीसें हैं। एक हदीस यह है -

हज़रत उसमान-बिन-अफ़्फ़ान (रज़ि0) के ग़ुलाम हमरान से रिवायत है -
‘‘पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के एक साथी हज़रत उसमान (रज़ि0) ने वुज़ू करने के लिए पानी मंगवाया। पहले उन्होंने तीन बार अपने हाथों पर पानी डाला और उन्हें धोया। फिर बर्तन में दायाँ हाथ डालकर चुल्लू में पानी लिया और तीन बार कुल्ली की, नाक साफ़ की और चेहरा धोया। फिर तीन बार कोहनियों तक दोनों बाहों को धोया। फिर हाथ (भिगोकर) सिर (और कानों तथा गर्दन) पर फेरे। फिर तीन बार टख़नों तक दोनों पैरो को धोया।''
 

इसके बाद हज़रत उसमान (रज़ि0) ने कहा -

‘‘मैने पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) को इसी प्रकार वुज़ू करते देखा है।'' (हदीसःबुख़ारी-164, मुस्लिम-226)


वुज़ू करते वक़्त इस बात का ख़याल रखना ज़रूरी है कि जिन अंगों को धोना हे उन्हें अच्छी तरह और पूरी तरह धोया जाए, चाहे ऐसा करने में कुछ तकलीफ़ ही क्यों न उठानी पड़े। अकसर ऐसा होता है कि आदमी सर्दी के मौसम में वुज़ू में कोताही बरतने लगता है। इसी लिए पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -

 

‘‘क्या मैं तुम्हें ऐसी चीज़ न बताऊँ जिसकी वजह से ख़ुदा तुम्हारी ग़लतियों को माफ़ कर देगा और तुम्हारे दर्जों को बुलन्द कर देगा।'' सहाबा (रज़ि0) ने कहा, ‘‘ऐ ख़ुदा के पैग़म्बर! ज़रूर बताइए।''
आप (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘तकलीफ़ और नागवारी के बावजूद मुकम्मल वुज़ू करना।'' (हदीसःमुस्लिम-251)

 

वुज़ू करते वक़्त दाढ़ी के अन्दर उंगलियाँ डालकर अच्छी तरह साफ़ करना चाहिए। हज़रत उसमान (रज़ि0) कहते हैं -

 

‘‘ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) वुज़ू करते वक़्त दाढ़ी में ख़िलाल किया करते थे। (यानी दाढ़ी में उंगलियाँ डालकर अच्छी तरह सफ़ाई करते थे)।''
(हदीसःतिरमिज़ी-31)

 

इसी प्रकार हाथों और पैरो की उंगलियों के बीच में भी अच्छी तरह सफ़ाई करनी चाहिए, ताकि उनमें मैल-कुचैल बाक़ी न रहे।

 

हज़रत इब्ने-अब्बास (रज़ि0) रिवायत करते हैं कि ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -
‘‘जब तुम वुज़ू करो तो हाथों और पैरों की उंगलियों में ख़िलाल किया करो।'' (हदीसःतिरमिज़ी-39)

 

यह है वुज़ू, इसके करने से हुक्मी गन्दगी का असर जाता रहता है। इसके बाद ही मुसलमान नमाज़ पढ़ सकता है।

 

 

ग़ुस्ल का तरीक़ा
 
इस्लाम ने जिस तरह मुसलमान को पाक-साफ़ रहने के लिए वुज़ू का तरीक़ा बताया है, उसी तरह उसने ग़ुस्ल का तरीक़ा भी बताया है। ग़ुस्ल ज़रूरी होने पर आदमी जब तक इस्लाम के बताए हुए तरीक़े पर ग़ुस्ल नहीं कर लेता उस वक़्त तक वह अपवित्र (नापाक) ही रहेगा। इस हालत में न तो वह क़ुरआन पढ़ सकता हे और न नमाज़, और न ही वह ऐसी हालत में मस्जिद में जा सकेगा। ग़ुस्ल करने का तरीक़ा भी पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की सीरत से हमें मिलता है जो आप (सल्ल0) की बीवी हज़रत मैमूना (रज़ि0) ने बयान किया है -

 

 

‘‘हज़रत इब्ने अब्बास (रज़ि0) से रिवायत है कि हज़रत मैमूना (रज़ि0) ने कहा कि मैने पैग़म्बर (सल्ल0) के नहाने के लिए पानी रखा और एक कपड़े से परदा कर दिया। पैग़म्बर (सल्ल0) ने अपने दोनों हाथों पर पानी डाला और उन्हें धोया। फिर दायें से बायें हाथ पर पानी डालकर गुप्त अंग (शर्मगाह) साफ़ किया। फिर हाथ को ज़मीन पर रगड़ा और उसे धोया। फिर कुल्ली की और नाक में पानी डालकर साफ़ किया, फिर चेहरा धोया और बाहें धोईं, फिर सिर पर और पूरे जिस्म पर पानी डालकर नहाए। जब नहा चुके तो एक ओर को हट गए और अपने दोनों पैरों को धोया। .......और चले आए।'' (हदीसः बुख़ारी-276)
इस हदीस से मालूम होता है कि ग़ुस्ल में तीन बातें ज़रूरी है। अगर उनमें से कोई एक भी छूट गई तो ग़ुस्ल नहीं होगा और दोबारा ग़ुस्ल करना होगा।

 

1-कुल्ली करना 2- नाक में पानी डालना 3- पूरे जिस्म पर पानी डालकर नहाना कि जिस्म का कोई अंग तनिक भी सूखा न रह जाए।

ग़ुस्ल करते समय सिर के बालों और जिस्म को ख़ूब अच्छी तरह साफ़ करना चाहिए। हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि0) से रिवायत है कि ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया -

‘‘हर बाल के नीचे नापाकी (गन्दगी) होती है; इसलिए बालों को और जिस्म को ख़ूब अच्छी तरह साफ़ किया करो।''(हदीसःतिरमिज़ी-106)

 

कुछ अन्य अवसरों पर ग़ुस्ल के आदेश

ऊपर बताई गई हालतों मे तो ग़ुस्ल करना फ़र्ज़ (ज़रूरी) हो जाता है, इसलिए कि इन हालातों का सम्बन्ध किसी न किसी प्रकार की गन्दगी से होता है। इनमें से किसी भी हालत से गुज़रने के बाद आदमी गन्दगी में लिप्त हो जाता है, जिसके कारण आदमी न नमाज़ पढ़ सकता है और न क़ुरआन और न ही वह मस्जिद में जा सकता है, जब तक कि वह नहा-धोकर पाक-साफ़ न हो जाए। लेकिन इस्लाम ने इन हालातों के अलावा भी ग़ुस्ल करने की ताकीद की है, चाहे आदमी नापाक न हो तक भी। ग़ुस्ल करने के ऐसे कुछ अवसरों को यहाँ बयान किया जा रहा है।

 

जुमा के दिन ग़ुस्ल

 

हज़रत इब्ने-उमर (रज़ि0) से रिवायत है कि ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया-
‘‘जब तुम में से कोई जुमा की नमाज़ के लिए जाए तो उसे चाहिए कि ग़ुस्ल करके जाए।'' (हदीसःबुख़ारी-877)

 

इसी तरह आप (सल्ल0) ने यह भी फ़रमाया -

‘‘जुमा के दिन हर बालिग़ (व्यस्क) पर ग़ुस्ल करना ज़रूरी (वाजिब) है, और उसे मिसवाक (दातून) करनी चाहिए, और ख़ुशबू मिले तो वह भी लगानी चाहिए।'' (हदीसः बुख़ारी-880)

 

हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि0) से रिवायत है कि ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -
‘‘प्रत्येक मुसलमान के लिए ज़रूरी है कि वह सप्ताह में कम-से-कम एक बार ग़ुस्ल ज़रूर कर ले, और ग़ुस्ल यह है कि वह अपना सिर और जिस्म साफ़ करे।'' (हदीसःमुस्लिम-849)
 

 

ईद के दिन ग़ुस्ल

 

ईद के दिन ईद की नमाज़ से पहले ग़ुस्ल करना चाहिए। हज़रत नाफे (रह0) से रिवायत है कि अब्दुल्लाह-बिन-उमर (रज़ि0) ईदुल-फ़ित्र के दिन ईदगाह जाने से पहले ग़ुस्ल किया करते थे। (हदीसःमुवत्ता इमाम मालिक-785)
एहराम बांधने से पहले ग़ुस्ल

 

हज या उमरे के लिए एहराम बांधने से पहले ग़ुस्ल कर लेना चाहिए। हज़रत जैद-बिन-साबित (रज़ि0) अपने बाप से रिवायत करते हैं कि उन्होंने पैग़म्बर (सल्ल0) को देखा कि आप (सल्ल0) ने एहराम बांधने के लिए कपड़े उतारे और ग़ुस्ल किया। (हदीसःतिरमिज़ी-830)

एहराम उन ख़ास कपड़ों को कहते हैं जिनका पहनना उमरा या हज करने वालों के लिए ज़रूरी है।

 

मक्का मुअज़्ज़मा में दाख़िल होते वक़्त का ग़ुस्ल

 

जो मुसलमान मक्का मुअज़्ज़मा में दाख़िल होना चाहे, उसको चाहिए कि उस पाक नगर में दाख़िल होने से पहले ग़ुस्ल कर ले।
हज़रत इब्ने-उमर (रज़ि0) से रिवायत है कि पैग़म्बर (सल्ल0) जब भी मक्का मुअज़्ज़मा आते तो ज़ी-तुवा नामक जगह पर रात गुज़ारते और सुबह के वक़्त ग़ुस्ल करते और फिर मक्का मुअज़्ज़मा में दाख़िल होते।

 

(हदीसः बुख़ारी-491, मुस्लिम-1257)

 

मय्यत (मुर्दे) को ग़ुस्ल देना ज़रूरी है।

 

सफ़ाई-सुथराई की अहमियत इस्लाम में कितनी ज़्यादा है इसका अन्दाज़ा इस बात से भी होता है कि इस्लाम ने मय्यत को दफ़नाने से पहले ग़ुस्ल देने और उसको ख़ुश्बू लगाने और पाक-साफ़ कपड़ों का कफ़न देने का हुक्म दिया है।
हज़रत उम्मे-अतिय्या (रज़ि0) बयान करती है कि ‘‘(जब ख़ुदा के पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल0) की बेटी का इन्तिकाल हुआ तो) आप (सल्ल0) हमारे पास आए (हम उस वक़्त आप (सल्ल0) की बेटी को ग़ुस्ल दे रहे थे) और फ़रमाया कि इनको तीन बार या पांच बार या अगर ज़रूरत हो तो इससे ज़्यादा बार बेरी के पानी से ग़ुस्ल दो और आख़िर में काफ़ूर (या काफ़ूर की क़िस्म की कोई खशबूदार चीज़) भी लगा दो।.......(हदीसःबुख़ारी-1254)
मय्यत को ग़ुस्ल देनेवाले का ग़ुस्ल
 

 

मय्यत को ग़ुस्ल देने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह उसे ग़ुस्ल देने के बाद ख़ुद भी नहा ले।

 

हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि0) से रिवायत है कि ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -
‘‘अगर कोई शख़्स मय्यत (शव) को नहलाए तो उसे चाहिए कि वह भी नहा ले, और जो व्यक्ति उसे उठाए, उसे चाहिए कि वह वुज़ू कर ले।'' (हदीसःअबू-दाउद-3161)
पछना लगवाने के बाद ग़ुस्ल

 

पछना लगवाने के बाद नहाना चाहिए। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की बीवी हज़रत आइशा रज़ि0 कहती हैं -

‘‘पैग़म्बर (सल्ल0) इन चार वजहों से ज़रूर ग़ुस्ल करते थे, जब वे ‘जुनुबी' होते, जुमा के दिन, जब वे पछना लगवाते और जब किसी मय्यत (शव) को नहलाते।'' (हदीसः अबू-दाउद-348)

 

नहाने में साबुन का इस्तेमाल

नहाना जिस्म पर सिर्फ़ पानी बहा देने का नाम नहीं है बल्कि इस मौक़े पर साबुन वग़ैरा भी इस्तेमाल करना चाहिए ताकि जिस्म बच्छी तरह साफ़ हो जाए। जैसा कि हज़रत क़ैस-बिन-आसिम (रज़ि0) को पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने हुक्म दिया था कि वे पानी और बेरी से ग़ुस्ल किया करे।

(हदीसःतिरमिज़ी-605)

 

बेरी डालकर उबाले हुए पानी से नहाने से जिस्म का मैल साफ़ हो जाता है। आज इसकी आधुनिक शक्ल साबुन वग़ैरा है।
नहाते समय परदे का होना
 
 
नहाते समय परदे का ख़याल रखना ज़रूरी है।
 
हज़रत याला (रज़ि0) से रिवायत है कि पैग़म्बर (सल्ल0) ने एक व्यक्ति को देखा जो नंगे होकर खुले मैदान में नहा रहा था। आप (सल्ल0) मिम्बर पर गए और तक़रीर की। पहले आप (सल्ल0) ने ख़ुदा की तारीफ़ और ख़ूबी बयान की, फिर फ़रमाया, ख़ुदा बहुत हयादार (लज्जावान) है और परदे में है और हया और परदे को पसन्द करता है। इसलिए जब तुम में से कोई नहाए तो परदे में नहाए।'' (हदीसःअबू-दाउद-4012, नसई-406)

 

शर्म व हया इनसान और इनसानी समाज की वह ख़ूबी है जो उसे हैवानों से अलग करती है और उसके सर्वश्रेष्ठ प्राणी (अशरफ़ुल-मख़लूक़ात) होने की एक बड़ी पहचान है। लेकिन अपनी ज़िन्दगी के मक़सद को न समझने के कारण इनसान अपनी इस हैसियत को भूल जाता है और वह अपने वक़्ती मज़े और आनन्द के लिए शर्म व हया को त्यागकर जानवरों जैसी हरकतें करने लगता है।

इसी वक़्ती आनन्द और मज़े के लिए आज बेहयाई और बेशर्मी इस हद तक पहुंच चुकी है कि स्वीमिंग पूल्स में मर्द और औरतें एक साथ नहाते हैं और इसे आधुनिकता और सभ्यता की पहचान समझा जाता है। इसी तरह कुछ अवसरों पर नदी या नहर पर मर्द और औरतों को एक साथ नहाते देखा जा सकता है।

औरतों की बात तो छोड़िए इस्लाम तो मर्दों के लिए भी यह बात पसन्द नहीं करता कि वे बग़ैर पर्दे के खुले में नहाएं और शर्म व हया का ख़याल न रखें। इसी लिए ख़ुदा के पैग़म्बर ने जब एक व्यक्ति को खुले मैदान में बग़ैर परदे के नहाते देखा तो आप (सल्ल0) ने इस बात को गंभीरता से लिया और लोगों को मस्जिद में जमा करके ख़ुदा का वास्ता दिया और उन्हें ऐसा करने से रोका।

इस्लाम कैसा हयादार और पाक-साफ़ समाज बनाना चाहता है, इसका अन्दाजा इस शिक्षा से अच्छी तरह लगाया जा सकता है।


ग़ुस्ल के बारे मे एक ग़लतफ़हमी

मुसलमानों के बारे में बहुत-सी ग़लतफ़हमियों के साथ एक ग़लतफ़हमी यह पाई और फलाई जाती है कि वे हफ़्ते में सिर्फ़ एक दिन (जुमा के दिन) ही नहाते हैं और वे ऐसा इसलिए करते हैं कि उनके धर्म इस्लाम ने उन्हें ऐसा ही करने का हुक्म दिया है। ऊपर ग़ुस्ल के बारे में इस्लाम की जिन शिक्षाओं को बयान किया गया है, उनसे यह ग़लतफ़हमी पूरे तौर पर दूर हो जाती है।

हक़ीक़त यह है कि ‘‘हफ़्ते में सिर्फ़ एक दिन नहाना चाहिए,'' इस तरह की सिरे से कोई बात इस्लामी तालीमात में मौजूद ही नहीं है। आदमी रोज़ाना नहाए, इससे किसी को रोका नहीं गया है। जुमा के दिन के बारे में जो बात कही गई है वह यह है कि आदमी जुमा की नमाज़ पढ़ने जाए तो उसके लिए ज़रूरी है कि वह नहा-धोकर, साफ़-सुथरे कपड़े पहनकर और ख़ुशबू लगाकर जाए, क्योंकि जुमा की नमाज़ में बड़ी तादाद में लोग मस्जिद में जमा होते है। नीचे लिखे वाक़िए से यह बात बच्छी तरह वाज़ेह हो जाती है।

एक बार जुमा के दिन ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) मस्जिद में आए। मस्जिद तंग थी। काम-काज करनेवाले लोग बग़ैर नहाए और मैले कपड़ों ही में जुमा की नमाज़ के लिए चले आए थे। गर्मी का मौसम था, लोगों के पसीने की बू पूरी मस्जिद में फैल गई। पैग़म्बर (सल्ल0) ने इसे नापसन्द किया और फ़रमाया कि लोग अगर नहा-धोकर आते तो बेहतर था। उसी दिन से जुमा के दिन नहाने की अहमियत और ज़रूरत शरीअत में ज़रूरी क़रार पाई। (हदीसः बुख़ारी, मुस्लिम)

यहाँ यह बात सामने रहनी ज़रूरी है कि ख़ुदा ने हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) को अरब देश मे पैग़म्बर बनाकर भेजा था और उनके ज़रिए से अपनी हिदायत सारे इनसानों के लिए भेजने की व्यवस्था की थी। अरब में रेगिस्तान होने कीवजह से पानी की बड़ी कमी थी। वहाँ न नदियाँ थीं न-नहरें, न बहुत ज़्यादा कूएँ थे और न पानी हासिल करने का कोई दूसरा मुनासिब साधन। इसके बावजूद पाकी और सफ़ाई की अहमियत और ज़रूरत को देखते हुए ख़ुदा के दीन इस्लाम ने पाक-साफ़ पानी से गन्दगी साफ़ करने का हुक्म दिया और हर मुसलमान-मर्द व औरत के लिए दिन में कम-से-कम पांच बार नमाज़ के लिए वुज़ू और ज़रूरत के लिहाज़ से ग़ुस्ल का हुक्म दिया, बल्कि कुछ अवसरों पर इन्हें ज़रूरी ठहराया।


सफ़ाई और पाकी हासिल करने में पानी का इस्तेमाल किया जाता है। यहाँ इस्लाम की यह हिदायत भी सामने रहे कि वह ग़ैर-ज़रूरी तौर पर बेतहाशा पानी बहाने को मना करता है और इसे फ़ुज़ूलख़र्ची क़रार देता है। इसलिए ज़रूरत के लिहाज़ से ही पानी का इस्तेमाल करना चाहिए।

‘‘हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-अम्र-बिन-आस (रज़ि0) रिवायत करते है कि नबी (सल्ल0) हज़रत अहद (रज़ि0) के पास आए, वे वुज़ू कर रहे थे। नबी (सल्ल0) ने फ़रमाया ऐ सअद!वुज़ू में यह फ़ुज़ूलख़र्ची क्यों? सअद ने कहा, क्या वुज़ू में भी (पानी की) फ़ुज़ूलख़र्ची होती है? नबी (सल्ल0) ने फ़रमाया, हाँ, चाहे तुम बहती हुई नहर पर वुज़ू कर रहे हो।''
(हदीसःमुसनद अहमद-7065)

क़ुरआन में भी हर तरह की फ़ुज़ूलख़र्ची से रोका गया है -
‘‘फ़ुज़ूलख़र्ची न करो, क्योंकि फ़ुज़ूलख़र्ची करनेवाले शैतान के भाई हैं और शैतान अपने रब का नाफ़रमान है।''(क़ुरआन, सूरा-17 बनी-इस्राइल, आयत-26-27)
पानी ख़ुदा का अनमोल उपहार है जो उसने
नसानों और दूसरे जीव-जन्तुओं की ज़रूरत के लिए प्रदान किया है, इसलिए उसको बरबाद करने से बचना चाहिए। इसी वजह से नबी (सल्ल0) ने रुके हुए पानी में पेशाब या अन्य गन्दगी करके उसे गन्दा करने से मना किया है। हदीस में है -

‘‘हज़रत जाबिर (रज़ि0) रिवायत करते हैं कि नबी (सल्ल0) ने रुके हुए पानी में पेशाब (या अन्य गन्दगी) करने से मना किया है।''
(हदीसःमुस्लिम-282)

रुके हुए पानी में पेशाब और गन्दगी करने से वह पानी किसी के इस्तेमाल के लायक़ नहीं रहता। इस तरह यह पानी की बरबादी ही है। अगर कोई अनजाने में इस गन्दे पानी को इस्तेमाल करले तो वह निभिन्न प्रकार की बीमारियों का शिकार हो सकता है।

 

तयम्मुम

आदमी अगर बीमार है और पानी उसके लिए नुक़सानदेह है, या आदमी ऐसी जगह पर है जहाँ दूर-दूर तक पानी मौजूद नहीं और आदमी पर वुज़ू या ग़ुस्ल ज़रूरी हो गया है तो मजबूरी की ऐसी हालत में अगर आदमी पानी से वुज़ू या ग़ुस्ल किए बिना नमाज़ वग़ैरा पढ़ता है तो अपने नापाक होने का एहसास उसके अन्दर बाक़ी रहता है। इसलिए मजबूरी की इन हालतों में मेहरबान ख़ुदा ने पाकी हासिल करने के लिए और मन से नापाकी के एहसास को ख़त्म करने के लिए तयम्मुम करने का तरीक़ा बताया है। तयम्मुम यह है कि आदमी पाक-साफ़ मिट्टी पर हाथ मारकर अपने चेहरे और हाथों पर फेर ले। इस तरीक़े से आदमी पाक हो जाएगा और उसके भीतर से नापाकी का एहसास ख़त्म हो जाएगा और पाकी की अहमियत, ज़रूरत और उसकी क़द्र उसके भीतर बनी रहेगी।
क़ुरआन मजीद में है -

‘‘अगर तुम जुनुबी (यानी नापाकी की हालत में) हो तो (नहा धोकर) अच्छी तरह पाक हो जाओ। लेकिन अगर तुम बीमार हो या सफ़र की हालत में हो या तुममें से कोई पाख़ाना-पेशाब करके आए या तुमने बीवियों से सहवास किया हो और (वुज़ू या ग़ुस्ल वग़ैरा के लिए) पानी न मिले, तो पाक-साफ़ मिट्टी से तयम्मुम कर लो, यानी मिट्टी पर हाथ मारकर अपने चेहरों और हाथों पर फेर लो।'' (क़ुरआन, सूरा-5 माइदा, आयत-6)
मजबूरी की इन हालतों में पाकी हासिल करने और मन से नापाकी का एहसास ख़त्म करने के लिए तयम्मुम करने का जो तरीक़ा बताया गया है उससे यह साबित होता है कि इस्लाम एक साइंटिफ़िक और व्यावहारिक (अमली) धर्म है, जिसमें इनसानों की नफ़्सियात (मनोस्थिति), फ़ितरी ज़रूरतों और मजबूरियों का पूरा लिहाज़ रखा गया है।

 

माहवारी का ख़ून

औरतों को माहवारी (मासिक धर्म) की हालत होती है, इसलिए क़ुरआन में इस हालत में उनके साथ सम्भोग (सोहबत) से बचने का हुक्म दिया गया है और बताया गया है कि जब माहवारी का ख़ून आना बन्द हो जाए तो उन्हें नहा-धोकर पाक-साफ़ हो जाना चाहिए।

कहा गया -
‘‘(ऐ पैग़म्बर) लोग आपसे पूछते हैं कि माहवारी की हालत का क्या हुक्म है? (यानी इस हालत में बीवियों के साथ सहवास के बारे में क्या हुक्म है?) कह दीजिए कि वह एक गन्दगी की हालत है। इसलिए माहवारी की हालत में बीवियों से (सम्भोग करने से) परहेज़ करो जब तक कि वे पाक-साफ़ न हो जाएं। फिर जब वे अच्छी तरह पाक-साफ़ हो जाएं तो उनके पास जा सकते हो उस तरीक़े से जैसे ख़ुदा ने तुम्हें आदेश दिया है। बेशक ख़ुदा ख़ूब तौबा करनेवालों को पसन्द करता है। और पसन्द करता है उन लोगों को जो ख़ूब पाक-साफ़ रहते हैं।'' (क़ुरआन, सूरा-2 बक़रा, आयत-222)
माहवारी का ख़ून नापाक है और जिस कपड़े वग़ैरा पर वह लग जाता है वह भी नापाक हो जाता है, इस लिए उसे अच्छी तरह साफ़ करना ज़रूरी है। हज़रत असमा बिन्ते-अबू-बक्र (रज़ि0) कहती हैं कि ‘‘एक औरत ने ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्ल0) से पूछा कि अगर हममें से किसी औरत के कपड़े पर माहवारी का ख़ून लगा हो तो आपका क्या हुक्म है? हम क्या करें?'' पैग़म्बर (सल्ल0) ने जवाब दिया कि ‘‘अगर तुम में से किसी औरत के कपड़े पर माहवारी का ख़ून लग जाए तो उसे रगड़े, फिर थोड़ा पानी डालकर उसे साफ़ कर दे, फिर उस कपड़े में नमाज़ पढ़ी जा सकती है।'' (हदीसः बुखारीः307) वीर्य और अन्य सभी प्रकार की गन्दगी से कपड़े और जिस्म को पाक करने का इस्लाम हुक्म देता है।

 

कुत्ते का जूठा नापाक है
हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि0) कहते है कि ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया -
‘‘अगर कुत्ता तुम्हारे बर्तन में मुँह डाल दे तो उस को पाक-साफ़ करने का तरीक़ा यह है कि उस बर्तन को सात बार धोओ और पहली बार मिट्टी से धोओ।'' (हदीसः मुस्लिम-279)
यूँ तो उन बहुत-से जानवरों का जूठा नापाक है जिनका गोश्त नापाक (यानी खाना हराम) है, जैसे सूअर वग़ैरा, लेकिन कुत्ते के मुँह में इस तरह के कीटाणु पाए जाते हैं जो इनसान की सेहत के लिए इतने ज़्यादा नुक़सानदेह हैं कि अगर ये कीटाणु इनसान के ख़ून में शामिल हो जाएं तो वह कुत्ते की तरह भोंक-भोंककरमौत का शिकार हो जाता है। इसी लिए मेहरबान ख़ुदा ने अपने बन्दों को इस ख़तरे से बचाने के लिए अपने पैग़म्बर के ज़रिए से यह ख़ास हिदायत दी है कि कुत्ता अगर किसी बर्तन में मुँह डाल दे तो वह बर्तन नापाक (अपवित्र) हो जाता है और उसे तभी इस्तेमाल किया जा सकता है जब उसे सात बार धो लिया जाए। तथा धोने के लिए एक बार मिट्टी, राख या साफ़ करने वाली कोई दूसरी चीज़ इस्तेमाल की जाए।
अगर बर्तन में कोई चीज़ रखी हुई है तो वह भी कुत्ते के मुँह डालने से गन्दी हो जाती है और उसे भी इस्तेमाल करना मना है।
इस वजह से और कुछ दूसरी ख़राबियों की वजह से इस्लाम ने इस बात से भी मना किया है कि घरों में कुत्ता पाला जाए। बताया गया है कि जिस घर में कुत्ता पला हुआ हो उसमें ख़ुदा की रहमत के फ़रिश्ते नहीं आते। यानी ख़ुदा की रहमत से वह घर ख़ाली रहता है और ख़ुदा की नाराज़गी का सबब कनता है। जब घर में कुत्ता पला होगा तो उसे खाने-पीने की चीज़ों में मुँह डालने से रोक पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन होगा। हाँ खेत वग़ैरा की रखवाली के लिए कुत्ता पाला जा सकता है, मगर उसका आना-जाना घर में न हो।
हमें मेहरबान ख़ुदा का शुक्र गुज़ार होना चाहिए कि उसने हमें कितने बड़े ख़तरों से बचाने के लिए अपने पैग़म्बर के ज़रिए से हमारी रहनुमाई की। हमें चाहिए कि हम ख़ुदा की भेजी हुई शिक्षाओं पर अमल करें और उसकी भेजी हुई हिदायत की क़द्र करें।

 

सफ़ाई के बारे में कुछ दूसरी हिदायतें
दस फितरी बातें
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की बीवी हज़रत आइशा(रज़ि0) कहती हैं कि पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया -
‘‘दस चीज़ें प्राकृतिक और फ़ितरी हैं। (1) मूंछ काटना (2) दाढ़ी रखना (3) दातुन (मिसवाक) करना (4) नाक को पानी डालकर साफ़ करना (5) नाख़ून काटना(6) जोड़ों को धोना(7) बग़ल के बाल साफ़ करना (8) नाफ़ (नाभि) के नीचे के बाल साफ़ करना (9) पाख़ाना-पेशाब (शौच) के बाद पानी से पाकी हासिल करना। रिवायत करनेवाले कहते हैं कि मैं दसवीं चीज़ को भूल गया। शायद वह है (10) कुल्ली करना।'' (हदीसः मुस्लिम-26)
यूँ तो इस्लाम की सारी तालीमात इनसानी फ़ितरत के अनुकूल हैं, मगर इन दस बातों को ख़ास तौर से फ़ितरत के मुताबिक़ इसलिए कहा गया है कि इन्हें हर व्यक्ति तस्लीम करता है। इनका प्राकृतिक और फ़ितरी होना हर एक पर वाज़ेह है।
इस हदीस में यह बात बताई गई है कि इन दस बातों पर अमल होना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति इन बातों पर या इनमें से किसी एक पर भी अमल नहीं करता तो वह फ़ितरत के ख़िलाफ़ काम करता है।

शर्म व हया, ख़ुशबू और शादी

 ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया कि चार चीज़ें ऐसी हैं जिनको ख़ुदा के हर पैग़म्बर ने अपनाया है -

‘‘(1) शर्म व हया (2) इत्र (ख़ुशबू) लगाना (3) मिसवाक करना और(4) निकाह (शादी) करना।'' (हदीसः तिरमिज़ी-1080)
इस हदीस में मिसवाक करने के अलावा जिन तीन अन्य बातों का हुक्म दिया गया है, वे ये हैं-शर्म व हया, इत्र लगाना और निकाह (शादी) करना। इन सभी चीज़ों का सम्बन्ध किसी-न किसी पहलू से इनसान और इनसानी समाज की ज़ाहिरी या अन्दरूनी पाकी व सफ़ाई और सौन्दर्य और हुस्न से है। शर्म व हया वह ज़ेवर है जो इनसान की शख़्सियत को निहायत दिलकश (मनमोहक), ख़ुशनुमा और पाकीज़ा बना देता है। अगर किसी औरत या मर्द में शर्म व हया का गुण नहीं पाया जाता तो साफ़-सुथरे और चमक-दमक वाले कपड़े पहनने के बावजूद वह गन्दा और नापाक रहता है। बेशर्म व बेहया लोगों के पास बैठना तक कोई पसन्द नहीं करता। जब तक आदमी के भीतर अच्छी आदतें और ख़ूबियाँ मौजूद न हों, सिर्फ़ ज़ाहिरी तौर पर सफ़ाई-सुथराई इख़्तियार कर लेने से वह पवित्र (पाक) और अच्छे स्वभाव व मिज़ाज का नहीं कहा जा सकता। हयादार लोगों से जो समाज वुजूद में आता है उसकी ख़ूबियों का क्या कहना।
इत्र और ख़ुशबू लगाने की तालीम भी पैग़म्बर (सल्ल0) ने बार-बार दी है, क्योंकि इत्र (ख़ुशबू) लगाने और छिड़कने का मक़सद ही यह होता है कि इससे माहौल ख़ुशबू से भर जाए। लोग आपके पास बैठकर ख़ुशी महसूस करें और वायु प्रदूषण (माहौल) की घुटन और नुक़सान से बच सकें। इत्र और ख़ुशबू से एक फ़ायदा यह भी होता है कि उसकी महक से बहुत-से कीटाणु या तो भाग जाते हैं या नष्ट हो जाते हैं। इत्र के इस्तेमाल से बहुत-सी बीमारियाँ ख़त्म हो जाती हैं और इनसान मानसिक और ज़ेहनी तनाव से भी बचा रहता है। इसी लिए इबादतगाहों में जाते समय ईद की नमाज़ पढ़ने के लिए निकलते समय या ऐसी जगह पर जाते समय जहाँ बहुत-से लोग जमा होते हैं, इत्र और ख़ुशबू लगाने का हुक्म इस्लाम ने दिया है।
निकाह (शादी) भी इनसान और इनसानी समाज को अख़लाक़ी गन्दगियों से बचने का एक बेहतरीन तरीक़ा है। समाज के जब भी कोई दो व्यक्ति (मर्द-औरत) शादी के इरादे से एक ख़ास तरीक़े के अनुसार शादी के बन्धन में बंधते है तो इस सम्बन्ध को जाइज़ और पवित्र सम्बन्ध समझा जाता है। लेकिन अगर कोई औरत-मर्द शादी के अलावा किसी और तरीक़े से सम्बन्ध बनाते हैं तो उसे पाकीज़ा समाज में अवैध और अश्लील समझा जाएगा। इसी लिए इस्लाम ने अश्लील व अस्वच्छ माहौल को ख़त्म करने के लिए और एक अत्यन्त स्वच्छ और सभ्य (मुहज़्ज़ब) माहौल बनाने के लिए निकाह के तरीक़े (विवाह-पद्धति) पर ज़ोर दिया है।
 

तन और मन की सफ़ाई के लिए दुआएँ 

आम तौर से यह समझा जाता है कि सफ़ाई और स्वच्छता केवल इस बात का नाम है कि इनसान के कपड़े और जिस्म के अंग देखने में साफ़-सुथरे नज़र आएँ। इस्लाम की नज़र में सफ़ाई और पवित्रता की अवधारणा (तसव्वुर) इससे कहीं बढ़कर है। वह बाहरी पाकी के साथ-साथ इनसान के अन्दरून मन, हृदय और आत्मा (रूह) और उसके कर्मों और आचरण को भी पाक देखना चाहता है और वह उसका तरीक़ा भी बताता है।
मन को साफ़ रख पाना एक बड़ा ही मुश्किल काम है। इसके लिए बड़ी साधना, अभ्यास और मज़बूत इरादे की ज़रूरत है। इसी लिए इस महान कार्य में ख़ुदा की मदद और तौफ़ीक़ (योगदान) की बड़ी ज़रूरत होती है। पाकी और सफ़ाई की यह व्यापक अवधारणा (तसव्वुर) हर समय इनसान के दिल व दिमाग में ताज़ा रहे वह इससे ग़ाफ़िल न हो पाए, इस मक़सद को हासिल करने के लिए इस्लाम में कुछ दुआएँ सिखाई गई हैं, जो सफ़ाई के विभिन्न मौक़ों पर पढ़ी जाती हैं। अगर इनसान इन दुआओं को इनके मानी और मतलब को समझते हुए पढ़ने का अपने को सादी बना ले तो पाकी और सफ़ाई का बड़ा मक़सद हासिल होने में इनसे बड़ी मदद मिलती है। ऐसी ही कुछ दुआएँ नीचे लिखी जा रही हैं-

 

पेशाब-पाख़ाने के लिए जाने से पहले की दुआ
 
अल्ला-हुम-म इन्नी अऊज़ु बि-क मिनल ख़ुबुसि वल-ख़बाइस।
(हदीसः बुख़ारी-142)
‘‘ऐ ख़ुदा! मै शैतान मर्दों और शैतान औरतों से तेरी पनाह चाहता हूँ।'' 

पेशाब-पाख़ाने के बाद की दुआ

 अल्हम्दु लिल्लाहिल-लज़ी अज़- ह-ब अनिल अज़ा व आफ़ानी

(हदीसः इब्ने-माजा-301)
‘‘तमाम तारीफ़ें और शुक्र ख़ुदा के लिए है जिसने मुझसे तकलीफ़देह चीज़ दूर कर दी, और मुझे सलामती बख़्शी।''
 
ग़ुफ़रा-न-क। (हदीसः अबू-दाउद-30)
ऐ ख़ुदा! मै तेरी बख़्शिश और मग़फ़िरत (क्षमा) चाहता हूँ।'' 
 

वुज़ू , ग़ुस्ल और तयम्मुम के वक़्त की दुआ 

अल्ला हुम्मग़-फ़िरली ज़म्बी व वस्सिअ ली फ़ी दारी व बारिक ली फ़ी रिज़क़ी (हदीसः सुनन-नसई अल कुबरा-9908)
‘‘ऐ ख़ुदा! तू मेरे गुनाह माफ़ कर दे और मेरे घर में ख़ुशहाली और कुशादगी दे और मेरी रोज़ी मे बरकत दे। ''

 

वुज़ू, ग़ुस्ल और तयम्मुम के बाद की दुआ 

अशहदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाहु वह-दहू ला शरी-क-लहू व अशहदु अन-न मुहम्मदन अबदुहू व रसूलुहू।
अल्ला हुम्मज- अलनी मिनत-तव्वाबी-न वज-अलनी मिनल मु-त-तह-हिरीन। (हदीसः तिरमिज़ी-55)
‘‘मै गवाही देता हूँ कि ख़ुदा के सिवा कोई माबूद (उपास्य) नहीं, वह अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं। और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (सल्ल0) उसके बन्दे और उसके पैग़म्बर हैं। 
ऐ ख़ुदा ! तू मुझे तौबा करनेवालों और ख़ूब सफ़ाई और पाकीज़गी इख़्तियार करने वालों में शामिल कर।'' 
 

कपड़े पहनते वक़्त की दुआ
 
अल्हम्दु लिल्लाहिल- लज़ी कसानी मा उवारी बिही औरती व अ-त जम्मलु बिही फ़ी हयाती। (हदीसः तिरमिज़ी-3560, इब्ने- माजा-3557)
‘‘सारी तारीफ़ और शुक्र ख़ुदा के लिए है जिसने मुझे पहनाया, जिससे मैंने अपने गुप्तांगों (शर्मगाह) को छिपाया, और इससे मैं अपनी ज़िन्दगी में ज़ीनत (सौन्दर्य) हासिल करता हूँ।''
आईना देखते वक़्त की दुआ
अल्लाहुम-म अहसन-त ख़लक़ी फ़-अहसिन ख़ुलुक़ी।
(हदीसः अहमद-1/402, 6/68, 155)
‘‘ऐ ख़ुदा! तूने मेरी सूरत अच्छी बनाई तो मेरी सीरत (चरित्र) भी अच्छी बना दे।'' 
 

दुआओं का असली मक़सद 
 
ऊपर सफ़ाई-सुथराई और पाकी के मौक़ों पर पढ़ने के लिए जो दुआएं लिखी गई हैं उनका मक़सद सिर्फ़ यही नहीं है कि बस उनको ज़बान से पढ़ लिया जाए, बल्कि उनका मक़सद यह है कि उनमें जो शिक्षाएं दी गई हैं, उनको अपनी ज़िन्दगी में दाख़िल किया जाए। इन दुआओं में इनसान जो दावे करता है या जो चीज़ ख़ुदा से मांगता है, उसको हासिल करने के लिए बराबर कोशिश की जाए।
 
इन दुआओं के शब्दों और मानी पर विचार करने से जो बातें सामने आती हैं और जो शिक्षाएं मिलती हैं, वे मुख़्तसर तौर से ये हैं -
1-शैतान हमारे साथ लगा हुआ है जो हमें गन्दगी में फंसाना चाहता है, इसलिए हमें उससे चैकन्ना रहना चाहिए और ख़ुदा से मदद मांगनी चाहिए कि वह शैतान की चालों से हमें बचाए। क्योंकि ख़ुदा की मदद के बिना शैतान और शैतानी कामों से बचना मुमकिन नहीं। जिस तरह ज़ाहिरी गन्दगी से बचना ज़रूरी है और उससे बचने के लिए इनसान फ़ितरी तौर पर कोशिश करता हैतथा गन्दगी से पाक होने के बाद राहत व सुकून महसूस करता है, उसी तरह यह बात भी ज़रूरी है कि इनसान अन्दरूनी गन्दगियों यानी ग़लत विचारों, ग़लत धारणाओं, ग़लत कामों-छल-कपट, झूठ, अत्याचार, फितना-फसाद, लड़ाई, झगड़े जुआ, शराब वग़ैरा से भी बचे और अपने अन्दर अच्छी धारणाएं और अच्छे विचार पैदा करके अच्छे आचरण और अच्छे किरदार के साथ आत्म-सुधार करके पवित्रात्मा (पाकीज़ा रूह) बनने की कोशिश करे ताकि उसकी रूह भी राहत व सुकून महसूस करे।
 
इन दुआओं से यह बात भी मालूम होती है कि यह बड़ा और पाकीज़ा मक़सद उसी वक़्त हासिल हो सकता है जब इनसान अपने पैदा करनेवाले ख़ुदा को पहचाने और उसी को अपना एक मात्र माबूद (उपास्य) स्वीकार करे। वह न केवल उसकी बन्दगी और इबादत करे, बल्कि ज़िन्दगी में हर काम उसकी शिक्षाओं और आदेशों के मुताबिक़ करे और साथ ही ख़ुदा के भेजे हुए पैगम्बरों की शिक्षाओं पर अमल करे।
 
इनसान से जो ग़लतियाँ और गुनाह हुए हैं, वह उनसे तौबा करे, उन पर ख़ुदा से माफ़ी मांगे और आइन्दा उनसे दूर रहने का इरादा व अहद करे। इसके लिए ज़रूरी है कि इनसान अपने पालनहार ख़ुदा से अपने ताल्लुक़ को मज़बूत करे और उसकी तरफ़ रुजू हो। उसके दिल व दिमाग में यह एहसास ज़िन्दा रहे कि वह बन्दा और दास है और अपने हर काम में ख़ुदा का मुहताज है। उसके लिए ज़रूरी है कि ख़ुदा से मदद मांगे और उसकी दी हुई नेमतों पर उसका दिल से शुक्र अदा करता रहे।
इन दुआओं से यह भी मालूम होता है कि सेहत इनसान के लिए बहुत बड़ी नेमत है, इसलिए उसकी क़द्र करनी चाहिए। एक सेहतमंद जिस्म में सेहतमंद और सकारात्मक विचार जन्म लेते हैं, और सेहतमंद विचारवाले लोगों से मिलकर ही सेहतमंद समाज वुजूद में आ सकता है-ऐसा समाज जिसमें ख़ुशहाली हो और एक-दूसरे के लिए दिलों में मुहब्बत, हमदर्दी और कुशादगी हो।
 
आख़िर में एक बात यह भी याद रखनी चाहिए कि मेहरबान ख़ुदा हमें अपनी रहमतों और बरकतों से नवाज़ना चाहता है, तभी तो उसने हमारे मार्गदर्शन और रहनुमाई का इन्तिज़ाम किया है। हमें चाहिए कि हम हर तरह की गन्दगियों से अपने तन और मन को स्चच्छ रखें, ताकि दुनिया और आख़िरत में हम उसकी रहमतों के हक़दार बन सकें। याद रखिए कि ख़ुदा की रहमत उन लोगों पर नहीं हुआ करती जिनका तन भी गन्दा हो और मन भी।