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पैग़म्बर (सल्ल0) की बातें (हदीस -संग्रह)

संकलन - अब्दुर्रब करीमी

  
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बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम।
‘‘अल्लाह, अत्यन्त दयावान, कृपाशील के नाम से'

 

पैग़म्बर (सल्ल0) की बातें  (हदीस -संग्रह)

दो शब्द

मौजूदा हालात में ज़रूरत महसूस की जा रही है कि अल्लाह के आख़िरी पैग़म्बर (अन्तिम ईशदूत) हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की शिक्षाओं (हदीसों) का एक ऐसा संग्रह प्रकाशित किया जाए जिससें आम लोग शिक्षाओं को जान सकें। 

प्रस्तुत पुस्तक ‘‘पैग़म्बर (सल्ल0) की बातें'' को तैयार करने का उदे्दश्य भारत के लाखों-करोड़ों भाइयों और बहनों को यह बताना है कि हज़रत  मुहम्मद (सल्ल0) किसी ख़ास देश और क़ौम के लिए नहीं, बल्कि सबके पैग़म्बर (ईशदूत) है। इसी को देखते हुए इस पुस्तक में कुछ ऐसी हदीसों को इकट्ठा किया गया है जिनमें मालूम होगा कि समाज में एक साथ रहते हुए बिना देश-धर्म और भेद-भाव के हमपर एक-दूसरे के क्या अधिकार मालूम होते हैं।  इसमें शामिल विषयों को देखकर पढ़नेवाले ख़ुद महसूस करेंगे कि यह किताब वक़्त की एक अहम ज़रूरत है।

लगभग दस साल पहले उदयपुर (राजस्थान) के एक हिन्दू भाई ने हज़रत  मुहम्मद (सल्ल0) की ऐसी ही हदीसें पढ़ने के बाद एक पत्र में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा था कि, ‘‘ऐसी शिक्षाएँ सुनहरे शब्दों में लिखे जाने योग्य हैं।  मुझें नहीं मालूम था कि मुहम्मद साहब ने ऐसी बातें कहीं है।''

इस किताब को तीन अध्यायों में बाँटा गया है।  पहले अध्याय में हज़रत  मुहम्म्द (सल्ल0) के पवित्र जीवन से सम्बन्धित उनके साथियों अर्थात् सहाबा की बताई हुई बातें हैं, ताकि पढ़नेवाले को अल्लाह के पैग़म्बर के व्यवहार, आचरण और जीवन व्यतीत करने के दूसरे मामलों के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी हासिल हो सके।  इसी अध्याय में एक लम्बी हदीस है जिसमें रोम के बादशाह हिरक़्ल और क़ुरैश के सरदार अबू-सुफ़ियान की बातचीत का वर्णन है।  इससे यह समझना आसान होगा कि इस्लाम का कट्टर दुश्मन भी अल्लाह के पैग़म्बर की सच्चाई, अमानतदारी, चरित्र और आचरण की पवित्रता का किस तरह एतिराफ़ करता है, बल्कि कोशिश के बावजूद रोम के बादशाह के सामने कोई ऐसी मामूली बात भी पेश नहीं कर पाता जिससे पैग़म्बर (सल्ल0)  के  बारे में कोई ग़लत राय क़ायम की जाए। दूसरे अध्याय में बन्दों के अधिकारों के बारें में हदीसें हैं।  तीसरे अध्याय में समाज को बिगाड़ने और ख़राब करनेवाली बुराइयाँ जैसे सूद (ब्याज), रिश्वत, दुष्कर्म जैसे विषय शामिल हैं।

इस किताब में शामिल हदीसों का अनुवाद आसान अन्दाज में पेश करने की कोशिश की गई है।  हर हदीस से बात स्पष्ट हो जाती है  इसलिए किसी हदीस की व्याख्या की ज़रूरत नहीं महसूस हुई।

उम्मीद है कि इस किताब को पढ़ने से आम लोगों, ख़ासकर देशवासियों के दिलों में  हज़रत  मुहम्मद (सल्ल0) के प्रति आदर और सम्मान बढ़ेगा, ग़लतफहमियाँ दूर होंगी और वे अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0)  की शिक्षाओं को जानेंगे और साथ ही उनके पैग़ाम  को समझने की कोशिश करेंगे।
-अब्दुर्रब करीमी      15-03-2015 ई0


हदीसों के बारे में

हदीसों की सुरक्षा के प्रबन्ध अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) के ज़माने ही से मौखिक और लिखित दोनों तरीक़ों से हुआ है।  इल्मे-हदीस (हदीस-शास्त्र) का इतिहास बिलकुल सुरक्षित और भरोसेमन्द है।  अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) के सहाबा (साथियों) ने आप (सल्ल0) की कही हुई बातों और सुन्नतों (व्यवहार) को महफ़ूज़ रखने और बाद में जानेवालों तक पहुँचाने में मामूली-सी भी सुस्ती नहीं की।  बड़े सहाबा जैसे हज़रत  अबू-बक्र (रज़ि0) हज़रत  अली (रज़ि0) हज़रत  अबू-हुरैरा (रज़ि0) आदि के पास हदीसों के सहीफ़े (लिखे हुए पृष्ठ) मौजूद थे यह बात पक्के यक़ीन के साथ कही जा सकती है।  सहाबा (रज़ि0) के दौर तक दस हज़ार से ज़्यादा हदीसें लिखित रूप में आ चुकी थीं।

बाद में मुहद्दिसीन (हदीसों को लिखित रूप में संकलित करनेवाले लोग) और इस्लामी आलिमों ने हदीसों के सहीह और कमज़ोर होने को परखने के लिए बहुत कड़े नियम बनाए ताकि इसमें कोई ऐसी बात न आ जाए जो अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने न कही हो चाहे वह बात अपनी जगह पर कितनी ही अच्छी क्यों न हों।

किताब में आनेवाले पारिभाषिक शब्द

हदीस: हदीस कर मतलब है ‘बात'। इस्लामी परिभाषा में अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की कहीं हुई बात, व्यवहार और तरीक़े को हदीस कहते हैं।

सहाबी: उस ख़ुशक़िस्मत व्यक्ति को कहते हैं जिसने ईमान की हालत में अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत  मुहम्मद (सल्ल0) को देखा हो, उनसे मुलाकात की हो और ईमान ही की हालत में उसका इन्तिक़ाल हुआ हो।  सहाबी का बहुवचन ‘सहाबा' है।

सहाबिया: उस ख़ुशक़िस्मत महिला को कहते हैं जिसने ईमान की हालत में अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) को देखा हो, और ईमान ही की हालत में उसका इन्तिकाल हुआ हो।  सहाबिया का बहुवचन ‘सहाबियात' है।

ताबिई: वह ख़ुशक़िस्मत व्यक्ति है जिसने ईमान की हालत में किसी सहाबी से मुलाक़ात की हो और इसी हाल में इन्तिक़ाल हुआ हो। ताबिई का बहुवचन ‘ताबिईन' है।

सल्ल0: ‘सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम'। अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत  मुहम्मद के नाम के  साथ इस्तेमाल होता है।  इसका मतलब है, ‘‘उनपर अल्लाह की रहमत और सलामती हो।''
रज़ि0: ‘रज़ियल्लाहु अन्हु'। इसका मतलब है, ‘‘अल्लाह उनसे राज़ी हो''।  इसे सहाबी या सहाबिया के नाम के  बाद लिखते हैं। 

इस किताब में हदीस की जिन किताबों से हदीसें ली गई हैं उन किताबों और तैयार करनेवालों के नाम नीचे लिखे जा रहे है-

बुख़ारी: अबू-अब्दुल्लाह मुहम्मद-बिन-इसमाईल अल-बुख़ारी
(194 हि0/809 ई0-256 हि0/870 ई0)
मुस्लिम: अबुल-हुसैन असाकिरुद्दीन मुस्लिम-बिन-अल-हज्जाज
(206 हि0/821 ई0-261 हि0/875 ई0)
तिरमिज़ी: मुहम्मद-बिन-ईसा अत-तिरमिज़ी
(209 हि0/824 ई0-279 हि0/892 ई0)
अबू-दाऊद: अबू-दाऊद सुलैमान-बिन-माजा
(202 हि0/817 ई0-275 हि0/889 ई0)
इब्ने-माजा: मुहम्मद-बिन-यज़ीद-बिन-माजा
(209 हि0/824 ई0-273 हि0/886 ई0)
नसई: अबू-अब्दुर्रहमान अहमद-बिन-शुऐब अन-नसई
(215 हि0/830 ई0-303 हि0/915 ई0)
बैहक़ी: अबू-बक्र अहमद-बिन-हुसैन बैहक़ी
(384 हि0/994 ई0-458 हि0/1066 ई0)

अल-मुअ्जमुल-कबीर बस-सग़ीर अल-औसत (तबरानी): अबूल-क़ासिम सुलैमान-बिन-अहमद-बिन-अय्यूब तबरानी
(260 हि0/873 ई0-300 हि0/970 ई0)
मुवत्ता: मालिक-बिन-अनस
(93 हि0/712 ई0-179 हि0/795 ई0)
मुसनद अहमद: अबू-अबदिल्लाह अहमद-बिन-मुहम्मद-बिन-हम्बल अश्शैबानी
(164/780/हि0 - 241/885 ई0)
मिश्कातुल-मसाबीह: मुहम्मद-बिन-अबदिल्लाह अल-ख़तीब अत्तबरी
(740 हि0/1340 ई0 मृ0)

पैग़म्बर (सल्ल0) के बारे में
दुश्मन की गवाही

 

रोम का बादशाह हिरक्ल ईसाई था और इंजील का आलिम था।  इंजील की भविष्यवाणियों और गवाहियों के मुताबिक़ एक नए पैग़म्बर  के आने के इन्तिज़ार में था।  जब उसे मालूम हुआ कि अरब के मक्का शहर में हज़रत  मुहम्मद (सल्ल0) ने पैग़म्बर होने का दावा किया है तो उसे यह जानने की ख़ाहिश हुई कि इंजील की भविष्यवाणियों के अनुसार पैग़म्बर की जो अलामतें (लक्षण) और ख़ासियतें (विशेषताएँ) होती है, वे हज़रत  मुहम्मद (सल्ल0) में मौजूद है या नहीं ? इसी दौरान मक्का के कुछ कारोबारी लोगों से हिरक़्ल की मुलाक़ात हुई। उन लोगों में क़ुरैश के सरदार अबू-सुफ़ियान भी थे।  अबू-सुफ़ियान उस वक़्त इस्लाम और हज़रत  मुहम्मद (सल्ल0) के कट्टर दुश्मन थे।  रोम के बादशाह हिरक़्ल ने उनसे जो बात की उसे ख़ुद अबू-सुफ़ियान ने इस तरह बयान किया है-

रोम के बादशाह हिरक़्ल ने मुझे अपने दरबार में बुलाया और मुझसे मुहम्मद (सल्ल0) के बारे में पूछा।  हिरक़्ल का पहला सवाल यह था कि उस व्यक्ति (मुहम्मद) का ख़ानदान कैसा है ? मैंने कहा कि वह बहुत ही शरीफ़ ख़ानदान से सम्बन्ध रखता है।

हिरक़्ल: क्या तुममें से किसी ने इससे पहले पैग़म्बरी का दावा किया था?
अबू-सुफ़ियान: नहीं।

हिरक़्ल: क्या उसके बाप-दादाओं में कोई बादशाह गुज़रा है ?
अबू-सुफ़ियान: नहीं।

हिरक़्ल: उसकी पैरवी (अनुसरण) करनेवाले बा-असर लोग हैं या कमज़ोर ?
अबू-सुफ़ियान: कमज़ोर।

हिरक़्ल: उसकी पैरवी करनेवालों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही या कमी?
अबू-सुफ़ियान: बढ़ोत्तरी हो रही है।

हिरक़्ल: उसकी पैरवी करनेवालों में कोई ऐसा भी है जो उसके धर्म से नाख़ुश होकर फिर गया हो ?

अबू-सुफ़ियान: नहीं।
हिरक़्ल: पैग़म्बरी के दावे से पहले कभी तुमने उसपर झूठ की तुहमत (लांछन) लगाई थी ?
अबू-सुफ़ियान: नहीं।
हिरक़्ल: वह वचन भंग करता है ?

अबू-सुफ़ियान: नहीं।  अलबत्ता अभी जो उसके साथ सुलह का समझौता हुआ है, उसपर देखेंगे कि वह उसकी पाबन्दी करता है या नहीं।  (इस एक बात के सिवा अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत  मुहम्मद सल्ल0 के बारे में मैं कोई बात भी अपनी तरफ़ से दाख़िल न कर सका।)
हिरक़्ल: क्या तुम्हारी कभी उससे जंग हुई है ?
अबू-सुफ़ियान: जी हाँ।

हिरक़्ल: जंग का नतीजा क्या हुआ ?
अबू-सुफ़ियान: जंग में कभी उसका पलड़ा भारी रहा, कभी हमारा।
हिरक़्ल: वह किस बात की शिक्षा देता है ?

अबू-सुफ़ियान: वह कहता है कि एक ख़ुदा की उपासना (इबादत) करो और उसके साथ किसी को शरीक (साझी) न ठहराओ।  बाप-दादाओं की बातें (अज्ञानता) छोड़ दो।
वह हमें नमाज पढ़ने, सच बोलने, पाकदामनी (नेकचलनी) अपनाने और रिश्ते-नातों के अधिकार अदा करने की शिक्षा देता है।

इस बातचीत के बाद हिरक़्ल ने दुभाषिए (तर्जुमान) से कहा कि अबू-सुफ़ियान से कहो कि मैंने तुमसे मुहम्मद के ख़ानदान के बारे में पूछा तो तुमने कहा कि वह बहुत ही शरीफ़ ख़ानदान का है; तो पैग़म्बर हमेशा शरीफ़ ख़ानदानों में से बनाए जाते हैं।
मैंने पूछा कि क्या इससे पहले तुममें से किसी ने पैग़म्बर होने का दावा किया था तो तुमने जवाब दिया कि नहीं।  अगर इससे पहले तुममें से किसी ने यह दावा किया होता तो मैं समझता कि यह उसी दावे का असर है।

मैंने पूछा कि उसके बाप-दादाओं में से कोई बादशाह हुआ है? तो तुमने कहा कि नहीं ।  अगर ऐसा होता तो मैं समझता कि वह बाप-दादा की (खोई हुई) सल्तनत हासिल करना चाहता है।

मैंने तुमसे पूछा कि पैग़म्बरी के दावे से पहले कभी तुमने उसपर झूठ का इलज़ाम लगाया था तो तुमने जवाब दिया कि नहीं।  मैं नहीं समझता कि जो आदमी लोगों से झूठ न बोलता हो, वह ख़ुदा पर झूठ बाँध सकता है।

मैंने तुमसे सवाल किया कि बा-असर लोग उसकी पैरवी करनेवाले हैं या कमज़ोर तो तुमने जवाब दिया कि कमज़ोर लोग; तो पैग़म्बरों की पैरवी करनेवाले ऐसे ही लोग होते हैं।
मैंने पूछा कि उसके माननेवालों में बढ़ोत्तरी हो रही है या कमी तो तुमने बताया कि बढ़़ोत्तरी हो रही है। यही हाल ईमान का है कि वह बढ़ता ही रहता है, यहाँ तक कि वह मुकम्मल (पूर्ण) हो जाता है।

मैंने पूछा कि कोई व्यक्ति उसके धर्म को क़बूल करने के बाद उससे नाख़ुश होकर फिर जाता है कि नहीं ? तो तुमने जवाब दिया कि नहीं।  और यही हालत ईमान की है कि जब वह दिलों में उतर जाता है तो फिर निकलता नहीं।

मैंने पूछा कि क्या उसने  वचन भंग किया है तो तुमने कहा कि नहीं। तो पैग़म्बरों का चरित्र ऐसा ही होता है।  वे कभी वचन और समझौता भंग नहीं करते।
मैंने तुमसे पूछा कि वह किस बात की शिक्षा देता है, तुमने बताया कि वह एक ख़ुदा (ईश्वर) की उपासना और इबादत करने और उसके साथ किसी को साझी न ठहराने की शिक्षा देता है, मूर्तिपूजा से मना करता है, नमाज़ पढ़ने, सच बोलने और पाकदामनी (नेकचलनी) अपनाने का हुक्म देता है।

अगर तुम्हारी ये बातें सच हैं, तो एक दिन उसकी पहुँच यहाँ रोम तक होगी।  मुझे मालूम था कि एक पैग़म्बर आनेवाला है, लेकिन यह नहीं समझता था कि वह तुममें से होगा।  अगर मेरे लिए उसकी सेवा में हाज़िर होना मुमकिन होता तो मैं मुश्किलों के बावजूद उससे मिलता और अगर मैं उसकी ख़िदमत में हाज़िर होता, तो उसके क़दम धोने का श्रेय प्राप्त करता।

  पैग़म्बर (सल्ल0) का आचरण    (हदीसों की रोशनी में)

(1) हज़रत  आइशा (रज़ि0 कहती हैं कि जब अल्लाह के पैग़म्बर (हिरा नामक गुफा से ) घर लौटे तो उनपर कपकपी छाई हुई थी। (अपनी पत्नी) हज़रत  ख़दीजा (रज़ि0) के पास आए और कहा, ‘‘मुझे (कम्बल) ओढ़ा दो।‘‘ उनको ओढ़ा दिया गया। जब डर कुछ कम हुआ तो उन्होनें हज़रत  ख़दीजा (रज़ि0) को पूरा क़िस्सा सुनाया और कहा, ‘‘मुझे अपनी जान का ख़तरा महसूस हो रहा है।‘‘ ख़दीजा ने कहा, ‘‘हरगिज़ नहीं! अल्लाह की क़सम, वह आपको हरगिज़ रुसवा न करेगा! आप रिश्तेदारों का ख़याल रखते हैं, दूसरो का बोझ उठाते हैं, ज़रूरतमन्दों के काम आते हैं, मेहमानों की ख़ातिरदारी करते हैं और सत्य की राह पर चलने में जो मुसीबतें आती हैं उसमें आप मदद करते हैं।‘‘     (हदीस: बुख़ारी)

 

(2) हज़रत  अनस-बिन-मालिक (रज़ि0) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) व्यवहार और आचरण में  (सब) लोगों से उत्तम थे।
       (हदीस: मुस्लिम)

 

(3) हज़रत  अनस-बिन-मालिक (रज़ि0) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत, सबसे ज़्यादा दानशील और सबसे ज़्यादा बहादुर थे।   (हदीस: बुख़ारी)

 

(4) हज़रत  अनस (रज़ि0) कहते हैं, ‘‘मैंने दस साल तक अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) की सेवा की।  उन्होंने कभी (किसी भी मामलें में) मुँह से ‘उफ़' तक नहीं कहा, और न किसी काम के बारे में यह कहा कि यह क्यों किया और किसी काम के न करने पर यह नहीं कहा कि यह (काम) क्यों नहीं किया।'' (हदीस: तिरमिज़ी)

 

(5) हज़रत  अबू-अब्दुल्लाह जदली कहते हैं कि मैंने हज़रत  आइशा (रज़ि0) से अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) के आचरण के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) न गाली  देते थे, न अपशब्द बोलते थे, न वे बाज़ारों में चीखते-चिल्लाते थे और न कभी उन्होंने बुराई का बदला बुराई से  दिया, बल्कि वे माफ़ कर  दिया  करते थे।‘‘     (हदीस: तिरमिज़ी)


(6) हज़रत  अनस (रज़ि0) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) की ज़बान गाली-गलौज, अपशब्दों और लानत-फटकार से पाक थी।  कभी किसी पर ग़ुस्सा होते तो सिर्फ़ इतना कहते कि इसे क्या हो गया है, इसकी पेशानी मिट्टी में लिथड़े। (हदीस: बुख़ारी)

 

(7) हज़रत  जाबिर (रज़ि0) कहते हैं कि ऐसा कभी नहीं हुआ कि पैग़म्बर (सल्ल0) से कोई चीज़ माँगी गई हो और उन्होंने देने से मना किया हो।  (हदीस: बुख़ारी)

 

(8) हज़रत  अबू-हुरैरा (रज़ि0) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) खाने में कभी ऐब नहीं निकालते थे।  अगर पसन्द होता तो खा लेते वरना छोड़ देते।     (हदीस: बुख़ारी)

 

(9) हज़रत  आइशा (रज़ि0) कहती हैं कि हम अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) के घरवाले महीना-महीना इस हाल में गुज़ारते कि आग (खाना पकाने के लिए) जलाई न  जाती।  हमारी गुज़र-बसर सिर्फ़ खजूर और पानी पर  होती थी।        (हदीस: मुस्लिम)

 

(10) हज़रत  इब्ने-अब्बास (रज़ि0) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) लगातार कई रातें भूख की हालत में गुज़ारते। उनको और उनके घरवालों के पास  रात का  खाना न होता, हालाँकि जो रोटी वे खाते वह अधिकतर जौ की होती थी।   (हदीस: तिरमिज़ी)

 

(11) हज़रत  मालिक-बिन-दीनार (रज़ि0) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने रोटी या गोश्त पेट भरकर नहीं खाया, सिवाय उस  समय जबकि वे लोगों (सहाबा) के साथ खाना खा रहे हों।
(हदीस: शमाइले-तिरमिज़ी)

 

(12) हज़रत  अबू-मूसा अशअरी (रज़ि0) कहते हैं कि हज़रत  आइशा (रज़ि0) ने हमें एक चादर और एक मोटी लुंगी निकालकर दिखाई और फ़रमाया, ‘‘अल्लाह के पैग़म्बर का इन्तिक़ाल इन दो कपड़ों में हुआ। (हदीस: बुख़ारी)

 

(13) हज़रत  आइशा (रज़ि0) फ़रमाती है कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) का बिस्तर, जिसको वे सोने के लिए  इस्तेमाल करते थे, चमड़े का था जिसमें खजूर के रेशे भरे हुए थे।  (हदीस: बुख़ारी)

 

(14) हज़रत  अब्दुल्लाह-बिन-मसऊद (रज़ि0) कहते हैं कि एक बार अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) चटाई पर सो गए थे। जब उठे तो आपके पहलू में निशान पड़ गए थे।  यह देखकर हमने कहा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर, अगर हम आपके लिए नर्म बिस्तर का प्रबन्ध कर दें तो क्या हरज है?'' पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ मुझे दुनिया से क्या लेना है।  दुनिया से मेरा नाता इतना ही है जैसे कोई (यात्री) किसी पेड़ की छाया में (थोड़ी देर के लिए) रुक जाए और फिर उसको छोड़कर चला जाए।‘‘ (हदीस: तिरमिज़ी)

 

(15) हज़रत  आइशा (रज़ि0) फ़रमाती हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) इस हाल में इस दुनिया से विदा हुए कि उनकी जिरह (कवच) एक यहूदी के पास तीस साअ (लगभग 95 1/2 किलो जौ) के बदले में रहन (गिरवी) रखी हई थी।  (हदीस: बुख़ारी)

 

(16) हज़रत  आइशा (रज़ि0) कहती हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) इस हाल में दुनिया से विदा हुए कि मेरी अलमारी (घर) में कोई ऐसी चीज़ नहीं थी जिसे कोई जानदार खा सकता हो, सिवाय थोड़े-से जौ के, जो मेरी अलमारी में रखे हुए थे।  मैं उसे बहुत दिनों तक खाती रही यहाँ तक कि मैंने उसको (एक दिन) नाप लिया जिसके बाद वह ख़त्म हो गया।   (हदीस: मुस्लिम)

 

(17) हज़रत  आइशा (रज़ि0) कहती हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने न कोई दिरहम-दीनार (धन-दौलत) छोड़ा, न कोई बकरी और ऊँट।  (हदीस: मुस्लिम)


 

अध्याय-2
बन्दो का अधिकार (हदीस की रोशनी में)
समाज-सेवा
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया ‘‘सारी दुनिया अल्लाह का परिवार है।  अल्लाह को सबसे अधिक प्रिय वह (व्यक्ति है जो उसके बन्दों से अच्छा व्यवहार करता है।‘‘         (हदीस: मिशकात)

(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘अल्लाह (अपने बन्दों पर) मेहरबान (दयालु) है और वह मेहरबानी (दयालुता को पसन्द करता है।'' (हदीस: बुख़ारी)

(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘दया करनेवालों पर रहमान (दयावान प्रभु) रहम करेगा। धरतीवालों पर दया करो, आसमानवाला तुमपर दया करेगा।''   (हदीस: तिरमिज़ी)

(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) इस बात में शर्मिन्दगी नहीं महसूस करते थे कि ग़रीब, विधवा और मिसकीन (दरिद्र) के साथ चलकर जाएँ और उसकी आवश्यकता पूरी करें।     (हदीस: नसई)

(5) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘अल्लाह के बन्दों को कष्ट न दो।'' (हदीस: अबू-दाऊद)

(6) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ अपने भाई की सहायता करो, चाहे वह ज़ालिम हो या मज़लूम।'' एक आदमी ने पूछा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर, मज़लूम की सहायता तो मैं करता हूँ। मगर ज़ालिम की सहायता क्यों करूँ ? '' पैग़म्बर (सल्ल0) फ़रमाया, ‘‘उसको ज़ुल्म से रोक दो, यही उसकी सहायता है।''   (हदीस: बुख़ारी, मुस्लिम)


बराबरी, भाई-चारा

(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने अपने अंतिम हज के अवसर पर एक लाख बीस हज़ार से अधिक सहाबा (रज़ि0) को संबोधित करते हुए  फ़रमाया, ‘‘ऐ लोगों, तुम सब का रब एक है और तुम सबके बाप एक हैं।  किसी अरबी (अरबवासी) को किसी अजमी (अरब के बाहर के निवासी) पर कोई बरतरी (श्रेष्ठता) नहीं है, न किसी अजमी को किसी अरबी पर, न किसी गोरे को किसी काले पर, न किसी काले को किसी गोरे  पर, सिवाय परहेज़गारी (ईशपराणता) के, अल्लाह के निकट सबसे प्रतिष्ठित वह है जो तुममें ज़्यादा परहेज़गार (ईशपरायण) है।''    (हदीस: बैहक़ी)

(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘अल्लाह ने तुमसे दूर कर दिया अज्ञानकाल के घमण्ड को और अपने बाप-दादा के नाम पर एक-दूसरे से बड़ा बनने को। अब दो ही प्रकार के लोग हैं, मोमिन, अल्लाह से डरनेवाला और दुष्कर्मी, दुर्भाग्य का मारा हुआ।  सारे मनुष्य आदम की सन्तान हैं और आदम मिट्टी से बने है।‘‘ (हदीस: तिरमिज़ी)
(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘अल्लाह उस इनसान पर दया नहीं करता जो स्वयं दूसरे इनसानों पर दया नहीं करता।'' (हदीस: बुख़ारी, मुस्लिम)

(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘तुममें से जो इसकी सामर्थ्य रखता हो कि अपने (इनसानी) भाई की सहायता कर सके तो उसे यह काम अवश्य करना चाहिए।'' (हदीस: मुस्लिम)

(5) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘बदगुमानी से बचो, क्योंकि बदगुमानी सबसे बुरा झूठ है।  लोगों के दोष न खोजो, न टोह में लगो, एक-दूसरे से ईर्ष्या न करो और न आपस में कपट रखो, बल्कि ऐ अल्लह के बन्दो! (आपस में) भाई-भाई बन जाओ।''  (हदीस: मुस्लिम)


ग़ैर-मुस्लिमों के अधिकार

यूँ तो इस  पुस्तक में बयान की गई बातें मुस्लिम और ग़ैर-मुस्लिम सभी के लिए हैं, मगर वे लोग जो इस्लाम में नहीं है, उनके  कुछ ख़ास अधिकार भी रखे गए हैं-

(1) हज़रत  असमा (रज़ि0) कहती हैं कि हुदैबिया के समझौते के ज़माने में मेरी ग़ैर-मुस्लिम माँ मेरे पास आईं, मैने हज़रत  मुहम्मद (सल्ल0) से पूछा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर ! मेरी माँ मेरे पास आई हैं, जबकि वे इस्लाम में दाख़िल नहीं हुई हैं, क्या मैं उनकी सेवा कर सकती हूँ? '' अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘हाँ, उनके साथ अच्छा व्यवहार  करो।''
    (हदीस: बुख़ारी)

(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिसने किसी ऐसे ग़ैर-मुस्लिम को क़त्ल किया जिसके साथ समझौता था, वह जन्नत (स्वर्ग) की सुगन्ध भी नहीं पाएगा।'' (हदीस: बुख़ारी)

(3) हज़रत जाबिर (रज़ि0) कहते हैं कि हमारे सामने से एक जनाज़ा (अर्थी) गुज़रा तो अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) उसके सम्मान में खड़े हो गए। उनके साथ हम भी खड़े हो गए। हमने कहा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर ! यह  तो  एक यहूदी (ग़ैर-मुस्लिम) का जनाज़ा है। ‘‘पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘क्या वह इनसान नहीं था?'' (हदीस: बुख़ारी)
(4) हज़रत  मुहम्मद (सल्ल0) से कहा गया कि मूर्ति-पूजा करनेवालों (बहुदेववादियों) के विरुद्ध अल्लाह से दुआ करें तो पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘मैं बद्दुआ देने के लिए नहीं, दया करने के लिए पैदा किया गया हूँ।'' (हदीस: मस्लिम)

(5) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ख़बरदार, जो आदमी किसी ग़ैर-मुस्लिम पर जिसके साथ समझौता हुआ तो ज़ुल्म करेगा या उसके हक़ में किसी तरह की कमी करेगा या उसकी ताक़त से ज़्यादा उसपर भार डालेगा या उसकी मर्ज़ी के बिना कोई चीज़ उससे छीन लेगा उसके विरुद्ध क़ियामत (प्रलय) के दिन मैं ख़ुद अल्लाह के सामने (ग़ैर-मुस्लिम की तरफ़ से) दावा पेश करूँगा।‘‘ (हदीस: अबू-दाऊद)
(6) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिसने किसी ज़िम्मी (इस्लामी राज्य के अधीन रहनेवाला ग़ैर-मुस्लिम) को क़त्ल किया तो अल्लाह ने जन्नत उस (क़त्ल करनेवाले) पर हराम कर दी।''     (हदीस: नसई)

 

औरतों के अधिकार
(1) हज़रत  जाबिर-बिन-अब्दुल्लाह (रज़ि0) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने हज के अवसर पर (अपने अभिभाषण में) फ़रमाया ‘‘लोगो, औरतों के मामले में अल्लाह से डरते रहो, क्योंकि तुमने उन्हें अल्लाह की अमानत के तौर पर हासिल किया है।''  (हदीस)

(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जन्नत माँ के पैरों के नीचे है।‘‘
  (हदीस: मिश्कात)
(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जो मुसलमान लड़कों को लड़कियों पर श्रेष्ठ न समझे और औरत की बेइज़्ज़ती (नाक़द्री) न करे, अल्लाह उसे स्वर्ग प्रदान करेगा।''   (हदीस: तिरमिज़ी)

(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘क़ियामत (प्रलय) के बाद जब स्वर्ग का दरवाज़ा खोलूँगा तो देखूँगा कि एक महिला मुझसे पहले जन्नत में दाख़िल होना चाहती है।  मैं पूछूँगा कि तू कौन है? वह बताएगी कि मैं यतीम (अनाथ) बच्चों की माँ हूँ।''    (सीरतुन्नबी)

(5) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने  फ़रमाया, ‘‘मैने लोगों को उन दो कमज़ोरों, यतीम और औरत, के अधिकारों के बारें में सख्त चेतावनी दी है।" (हदीस: नसई)

 


माँ-बाप के अधिकार

(1) हज़रत  अब्दुल्लाह-बिन-अम्र (रज़ि0) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ अल्लाह की ख़ुशी बाप की ख़ुशी में है और अल्लाह की नाख़ुशी बाप की नाख़ुशी में है।‘‘   (हदीस: तिरमिज़ी)
(2) हज़रत  अबू-उमामा (रज़ि0) कहते हैं कि एक आदमी ने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) से पूछा, ‘‘बच्चों पर माँ-बाप के क्या अधिकार हैं?"  अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘तुम्हारे माँ-बाप तुम्हारा स्वर्ग भी हैं और नरक भी (यानी माँ-बाप की सेवा करके स्वर्ग में जा सकते हो और उनकी नाफ़रमानी (अवज्ञा) करके या उन्हें दुख देकर नरक में अपना ठिकाना बना  सकते हो)।" (हदीस: इब्ने-माजा)
(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘किसी का अपने माँ-बाप को गाली देना बहुत बड़ा गुनाह (पाप) है।" अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) के साथियों (सहाबा) ने कहा, ‘‘ कोई अपने माँ-बाप को गाली कैसे दे सकता है!" पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जब कोई दूसरे के माँ-बाप को गाली देता है तो दूसरा भी उसके माँ-बाप को गाली देता है।‘‘    (हदीस: बुख़ारी)

(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने एक सहाबी (रज़ि0) ने कहा, ‘‘मेरी सेवा और अच्छे व्यवहार का सबसे ज़्यादा हकदार कौन है?" पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘तुम्हारी माँ।" सहाबी के पूछने पर उन्होंने तीन बार माँ का हक़ बताया।  उसके बाद फ़रमाया कि तुम्हारा बाप (तुम्हारे अच्छे व्यवहार का हकदार है)।"   (हदीस: बुख़ारी, मुस्लिम)
(5) हज़रत  मुआविया (रज़ि0) कहते हैं कि उनके बाप जाहिमा अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) की सेवा में  हाज़िर हुए और कहा, ‘‘मैं जिहाद में जाना चाहता हूँ।  आपसे सलाह चाहता हूँ।" पैग़म्बर (सल्ल0) ने पूछा, ‘‘क्या तुम्हारी माँ (जिन्दा) है?" उन्होंने कहा, ‘‘हाँ।" पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘तुम उनकी सेवा करो ! स्वर्ग माँ के पैरों के नीचे है (यही तुम्हारे लिए जिहाद है)।"        (हदीस: अहमद, नसई)
(6) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘लोगो, अपने माँ-बाप का आज्ञापालन करो! तुम्हारी सन्तान तुम्हारा आज्ञापालन करेगी। पवित्र जीवन गुज़ारो! तुम्हारी औरतें अच्छे चरित्र-आचरणवाली होंगी।" (हदीस: तबरानी)


   

औलाद (सन्तान) के अधिकार

(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ तुम अपनी औलाद की इज़्ज़त करो और उन्हें अच्छी तहज़ीब (संस्कार) सिखाओ।" (हदीस: इब्ने-माजा)

(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ अल्लाह जिसको सन्तान दे उसे चाहिए कि उसका अच्छा नाम रखे, उसको अच्छी शिक्षा दे, अच्छी आदतें और ढंग सिखाए।  फिर जब वह बालिग़ (व्यस्क) हो जाए तो उसकी शादी करे।  अगर उसने सही समय पर शादी नहीं की और सन्तान ने कोई पाप कर लिया तो वह (बाप) उस पाप में हिस्सेदार माना जाएगा।"
(हदीस: बैहक़ी फ़ी-शुअबिल-ईमान)
(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिसने तीन बेटियों की परवरिश की, उन्हें अच्छा अदब सिखाया (अर्थात् अच्छे संस्कार दिए), उनकी शादी की और  उनके साथ अच्छा व्यवहार किया, वह स्वर्ग में जाएगा।''
(हदीस: अबू-दाऊद)
(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘किसी बाप ने अपनी सन्तान को अच्छे अदब (शिष्टाचार, अच्छी आदतें और अच्छे संस्कार) से बेहतर कोई तोहफ़ा नहीं दिया।'' (हदीस: तिरिमज़ी)
(5) हज़रत  आइशा (रज़ि0) कहती हैं कि मेरे पास एक औरत अपनी (दो) बच्चियों के साथ कुछ  माँगने आई (ये तीनों भूखी थीं)।  उस समय मेरे पास उन्हें देने के लिए एक खजूर के सिवा कुछ नहीं था।  मैंने वही दे दी।  उसने खजूर के दो टुकड़े किए और एक-एक टुकड़ा दोनों बच्चियों को दे दिया, ख़ुद उसमें से कुछ नहीं खाया (जबकि वह ख़ुद भी भूखी थी)।  फिर वह चली गई।  उसके चले जाने के बाद पैग़म्बर (सल्ल0) घर आए तो मैंने उनको उस औरत के बारे में बताया।  उन्होंने फ़रमाया, ‘‘जिस किसी को भी बच्चियों के द्वारा परीक्षा में डाला गया और उसने उनके साथ अच्छा व्यवहार किया तो ये बच्चियाँ (प्रलय के दिन) उसके लिए नरक से बचने का साधन बन जाएँगी।'' (हदीस: बुख़ारी, मुस्लिम)

 

पति-पत्नी के अधिकार
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ ईमानवालों में सबसे बढ़कर ईमानवाला वह है  जिसका अख़लाक़ (आचरण) अच्छा हो।  तुममें बेहतरीन (श्रेष्ठ) लोग वे हैं जो अपनी पत्नियों से अच्छा व्यवहार करते हैं। (हदीस: तिरमिज़ी)
(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘मोमिन (ईमानवाले) पति के लिए उचित नहीं कि वह (अपनी) पत्नी से घृणा करे। अगर उसे उसकी कोई आदत पसन्द नहीं है तो उसकी किसी दूसरी आदत को पसन्द भी तो करता है।''    (हदीस: मुस्लिम)
(3) हज़रत  मुआविया क़ुशैरी (रज़ि0) के पूछने पर अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘तुम अपनी पत्नियों को वह खिलाओ जो ख़ुद खाते हो और उन्हें वह पहनाओ जो तुम पहनते हो, उनकी पिटाई न करो और उन्हें बुरा न कहो!'' (हदीस: अबू-दाऊद)
(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘दुनिया ‘मताअ' (पूँजी) है और इसकी (दुनिया की) सर्वोत्तम पूँजी नेक पत्नी है।''      (हदीस: मुस्लिम)
(5) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने अपने आख़िरी हज के मौक़े पर फ़रमाया, ‘‘लोगो, अपनी पत्नियों के बारे में अल्लाह से डरो।  तुमने उनको अल्लाह की अमानत के  तौर पर अपनाया है।  अल्लाह के आदेश से वे तुमपर हलाल (वैध) हुई हैं।  पत्नियों पर तुम्हारा यह हक़ है कि वे तुम्हारे बिस्तर पर ऐसे व्यक्ति को न आने दें जिसको तुम पसन्द नहीं करते।  अगर  वे (पत्नियाँ) ऐसी ग़लती करें तो तुम उनको हल्की सज़ा दे सकते हो।  तुम्हारे ऊपर उनका अधिकार यह है कि तुम उचित ढंग से उनके लिए खाने-कपड़े का प्रबन्ध करो।''    (हदीस: मुस्लिम)
(6) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘तुममें सबसे अच्छा आदमी वह है जो अपनी बीवी की निगाह में अच्छा हो।''     (हदीस: मिश्कात)
(7) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘अगर किसी आदमी के पास दो पत्नियाँ हों और वह उनके बीच न्याय और समानता का मामला न करे तो वह क़ियामत (प्रलय) के दिन इस हालत में आएगा कि उसका आधा धड़ गिर गया होगा।''   (हदीस: तिरमिज़ी)
(8) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिस औरत की मौत इस हाल में हुई कि उसका पति उससे ख़ुश था तो वह स्वर्ग में जाएगी।''
  (हदीस: तिरमिज़ी)
(9) हज़रत  अबू-हुरैरा (रज़ि0) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) से पूछा गया, ‘‘कौन-सी पत्नि अच्छी है।?'' पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘अच्छी पत्नी वह है जिसको उसका पति देखे तो ख़ुश हो जाए, कोई आदेश दे तो उसे माने, अपने और अपने माल के सम्बन्ध में कोई ऐसा काम न करे जो पति को पसन्द न हो।''     (हदीस: नसई)

 

रिश्तेदारों और क़रीबी लोगों के अधिकार
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘रिश्तों को तोड़नेवाला स्वर्ग में नहीं जाएगा।''     (हदीस: बुख़ारी)
(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जो व्यक्ति यह पसन्द करे कि उसकी रोज़ी (अजीविका) में बढ़ोत्तरी हो और उसकी उम्र लम्बी हो तो वह रिश्तेदारों के साथ अच्छा व्यवहार करे।''     (हदीस: बुख़ारी)
(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘तीन तरह के लोग स्वर्ग में नहीं जाएँगे। एक, हमेशा शराब पीनेवाला। दूसरा रिश्ते-नातों को तोड़नेवाला।  तीसरा जादू पर यकीन करनेवाला।''
(हदीस: अहमद)
(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘उस क़ौम पर (अल्लाह की) रहमत (दयालुता) नहीं उतरती जिसमें रिश्तों को तोड़नेवाला मौजूद हो।'' (हदीस: बैहक़ी)
(5) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जो तुमसे सम्बन्ध तोड़े तुम उससे सम्बन्ध जोड़ो! जो तुमपर अत्याचार करे तुम उसे क्षमा कर दो।'' (हदीस: मिशकात)
(6) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘रिश्ते-नाते जोडनेवाला वह आदमी नहीं है जो बदले के तौर पर ऐसा करे।  बल्कि रिश्ता जोड़नेवाला अस्ल में वह है  जो इस हाल में भी रिश्ता जोड़े जबकि उसके साथ रिश्ता तोड़ने का व्यवहार किया जाए।'' (हदीस: बुख़ारी)
(7) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘मिसकीन (दरिद्र) को सदक़ा (दान) देना केवल सदक़ा है और ग़रीब रिश्तेदार को सदक़ा देना सदक़ा भी है और रिश्ता निभाना भी।'' (हदीस: नसाई, तिरमज़ी)

 

पड़ोसी के अधिकार
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘वह व्यक्ति जन्नत में नहीं जाएगा जिसकी बुराई और उपद्रवों से उसका पड़ोसी  सुरक्षित न हो।''
   (हदीस: मुस्लिम)
(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जो अल्लाह और आख़िरत (मरने के बाद दोबारा ज़िन्दा किए जाने) पर  ईमान रखता हो उसे अपने पड़ोसी से अच्छा व्यवहार करना  चाहिए।''     (हदीस: बुख़ारी)
(3) हज़रत  अब्दुल्लाह-बिन-अब्बास (रज़ि0) ने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) को यह कहते हुए सुना, ‘‘वह मोमिन (ईमानवाला) नहीं जो पेट भरकर खाए और  उसका पड़ोसी  भूखा रहे।'' (हदीस: मिशकात)
(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘पड़ोसी का अधिकार तुमपर यह है कि अगर वह बीमार हो जाए तो उसकी बीमारपुर्सी करो, मर जाए तो उसके जनाज़े (क्रिया-कर्म) में शरीक हो, कर्ज़ माँगे तो उसको कर्ज़ दो, कोई  ऐसा काम करे जो तुम्हें पसन्द न हो तो उसे अनदेखा कर दो, उसे कोई ख़ुशी हासिल हो ते शुभकामनाएँ दो। तकलीफ़ पहुँचे तो तसल्ली दो। अपना मकान इस तरह ऊँचा न करो कि उसके घर की हवा रुक जाए।  तुम्हारे घर पकनेवाली चीज़ों की गन्ध से उसे तकलीफ़ न पहुँचे।  अगर खाने की सुगन्ध उसके घर पहुँचती हो तो जो कुछ तुमने पकाया है उसके घर भी भेजो।''(हदीस: तबरानी)

 

मेहमानों के अधिकार
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘यह सुन्नत (पैग़म्बर सल्ल0 का तरीक़ा) है कि आदमी अपने मेहमान के साथ घर के दरवाज़े तक जाए।'' (हदीस: इब्ने-माजा)
(2) एक व्यक्ति ने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) से पूछा कि, ‘‘इस्लाम की कौन-सी चीज़ अच्छी है,'' पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘तुम खाना खिलाओ और सलाम करो चाहे तुम उसे पहचानते हो या न पहचानते हो।'' (हदीस: बुख़ारी)
(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जो कोई अल्लाह और आख़िरत (मरने के बाद उठाए जाने) के दिन पर यक़ीन रखता हो तो उसे अपने मेहमान का आदर करना चाहिए।  उसकी ख़ातिरदारी बस एक दिन और एक रात की है और मेहमानी तीन दिन और तीन रातों की। उसके बाद जो हो वह सदक़ा (दान) है और मेहमान के लिए जाइज़ नहीं कि वह अपने मेज़बान के पास इतने दिन ठहर जाए कि उसे तंग कर डाले।'' (हदीस: बुख़ारी)
(4) एक व्यक्ति ने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) की सेवा में हाज़िर होकर खाना माँगा।  पैग़म्बर (सल्ल0) ने उसके खाने के लिए अपनी  एक पत्नी के पास भेजा।  वहाँ मालूम हुआ कि पानी के सिवा कुछ नहीं है।  फिर उन्होंने एक-एक करके तमाम पत्नियों के पास भेजा और हर जगह से यही जबाव मिला।  पैग़म्बर (सल्ल0) के कहने पर एक अनसारी सहाबी ने उसे अपना मेहमान बनाया, वे उसे अपने घर ले गए।  पत्नी से मालूम हुआ कि बच्चों के भोजन के सिवा घर में कुछ नहीं है। पति के कहने पर पत्नी ने बच्चों को सुला दिया।  जब मेहमान खाना खाने के लिए बैठे तो पत्नी ने दीया ठीक करने के बहाने बत्ती बुझा दी।  मेहमान ने खाना खाया और मेज़बान उसके साथ बैठे यह ज़ाहिर करते रहे कि वे भी उनके साथ खा रहे है।  हालाँकि वे रात-भर भूखे रहे।  मेज़बान जब सुबह-सवेरे पैग़म्बर (सल्ल0) की सेवा में हाज़िर हुआ तो पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘अल्लाह मेज़बान मर्द और औरत से राज़ी हो गया।  उनके इस काम पर अल्लाह ने यह आयत (क़ुरआन, सूरा-59 हश्र, आयत-9) उतारी-‘‘वे दूसरे ज़रूरतमन्दों को अपने आपपर प्राथमिकता देते हैं, अगरवें वे भूखे रहे जाएँ।'' (हदीस: मिशकात)

 

मालिक और नौकर के अधिकार
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ ग़ुलाम (नौकर) का यह हक़ है  कि उसे अच्छे तरीक़े से खाना और कपड़ा दिया जाए और उसकी ताक़त से ज़्यादा उससे काम न लिया जाए।''        (हदीस: मुस्लिम)
(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जब किसी का सेवक खाना तैयार करके उसके पास लाए इस हाल में कि उसने गर्मी ओर धुएँ की तकलीफ़ सहन करके खाना तैयार किया है तो उसे पास बिठाकर अपने साथ खाना खिलाए। अगर खाना कम हो तो उसमें से कुछ सेवक को दे दे।''  (हदीस: मुस्लिम)
(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ये (गुलाम/सेवक) तुम्हारे भाई हैं, अल्लाह ने इनको तुमपर निर्भर कर दिया है।  अल्लाह जिसके पास ऐसे सेवक को कर दे उसे चाहिए कि उसको वही खिलाए जो ख़ुद खाता हो और वही पहनाए जो ख़ुद पहनता हो और उसको किसी ऐसे काम पर मजबूर न करे जो उसके बस से बाहर हो।  अगर ऐसा  काम उससे ले जो उसके बस से बाहर हो तो ख़ुद उस काम में उसकी मदद करे।'' (हदीस: बुख़ारी, मुस्लिम)
(4) एक आदमी ने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) से सवाल किया, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर ! हमें सेवक को कितनी बार क्षमा करना चाहिए ?'' वे चुप रहे।  तीसरी बार पूछने पर पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘हर दिन सत्तर बार।'' (हदीस: अबू-दाऊद)
(5) हज़रत  अली (रज़ि0) कहते हैं कि (दुनिया से विदा होने से पहले) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘अपने गुलामों और उन लोगों के बारे में अल्लाह से डरो जो तुमपर निर्भर हैं (यानी उनके अधिकार अदा करते रहो)।'' (हदीस: अबू-दाऊद)

कमज़ोरों और गरीबों के अधिकार

(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ मैं स्वर्ग के दरवाज़े पर खड़ा था।  मैंने देखा कि उसमें अधिकतर ग़रीब लोग जा रहे है।'' (हदीस: बुख़ारी)
(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘मैंने स्वर्ग में झाँका तो देखा कि उसमें ग़रीबों (निर्धनों) की बहुतायत है।''  (हदीस: बुख़ारी)
(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘अल्लाह तआला अपने उस ईमानवाले बन्दे से प्रेम करता है जो ग़रीब (निर्धन) और बाल-बच्चोंवाला होने के बावजूद सवाल करने (भीख माँगने) से बचता है।'' (हदीस: इब्ने-माजा)
(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘तुम मुझे ग़रीब (निर्धन) और कमज़ोर (निर्बल) लोगों में तलाश करो (मैं उनके साथ रहता हूँ) उनकी वजह से तुम्हें रोज़ी मिलती है और तुम्हारी सहायता की जाती है।'' (हदीस: तिरमिज़ी)
(5) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘लोगो, भूखों को खाना खिलाओं! बीमारों का  हाल मालूम करो ! क़ैदियों को रिहा कराओ।  सताए हुए लोगों की आह से बचो!''  (हदीस)
(6) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिस किसी में तीन बातें पाई जाएँ अल्लाह उसकी मौत को सरल बना देता है उसको स्वर्ग में प्रवेश कराता है-
     (1) कमज़ोरों के साथ नरमी।
     (2) माँ-बाप के साथ प्रेम और स्नेह।
     (3) सेवकों (और मातहतों) के साथ अच्छा व्यवहार।''
                                                            (हदीस: तिरमिज़ी)
(7) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘तुम्हें बूढ़ों और कमज़ोरों की वजह से ही अल्लाह की ओर से सहायता और रोज़ी (आजीविका) मिलती है।''     (हदीस: बुख़ारी)
(8) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘मैंने लोगों को इन दो कमज़ोरों-यतीम (अनाथ) और औरत-के अधिकारों के बारें में सख्त चेतावनी दी है।''  (हदीस: रियाज़ुस्सालिहीन)

 

बिधवा और बे-सहारा औरतों के अधिकार
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘बिधवा और मिसकीन (दरिद्र) के लिए दौड़-धूप करनेवाला उस आदमी की तरह है जो अल्लाह की राह में जिहाद (संघर्ष) करता है।''     (हदीस: बुख़ारी, मुस्लिम)
(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) अल्लाह को बहुत याद करते, बेहूदा और व्यर्थ बातों में कभी दिलचस्पी न लेते, नमाज़ लम्बी करते और ख़ुतबा (तक़रीर) थोड़ा देते और वे इस बात को बुरा नहीं समझते थे कि ग़रीब, विधवा और मिसकीन के साथ चलकर जाएँ और उसकी ज़रूरत पूरी करें।     (हदीस: नसई)
(3) एक ग़रीब (बेसहारा) औरत बीमार हुई तो अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) को उसकी ख़बर दी गई। - अल्लाह के पैग़म्बर गरीबों (बेसहारा लोगों) का हालचाल मालूम करते थे-पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जब उस (औरत) की मौत हो जाए तो मुझे ख़बर करना। रात को उसका जनाज़ा बाहर लाया गया (और उसे दफ़न किया गया)। पैग़म्बर (सल्ल0) के साथियों ने उस समय अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) को जगाना उचिन नहीं समझा।
जब सुबह को अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) को उस ग़रीब औरत की मौत  और जनाज़े के बारे में बताया गया तो पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘क्या मैंने तुम्हें आदेश नहीं दिया था कि मुझे उसकी मौत की सूचना देना? ''
सहाबा (रज़ि0) ने कहा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर! हमने उचित नहीं समझा कि रात के समय आपको जगाएँ (और घर से बाहर आने का कष्ट दें)।  फिर पैग़म्बर (सल्ल0) तशरीफ़ ले गए और उसकी क़ब्र पर लोगों को सफ़्फ़ (पंक्ति) में खड़ा किया और उसके जनाज़े पर चार तकबीरों के साथ मग़फ़िरत (क्षमा, मुक्ति और दया) की प्रार्थना की।'' (हदीस: नसई)

 

यतीम (अनाथ) के अधिकार
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘मैंने उन दो कमज़ोरों, अनाथ और औरत, के अधिकारों के बारे में (लोगों को) कड़ी चेतावनी दी है (कि उनका ध्यान रखा जाए)।'' (हदीस: नसई)
(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘मुसलमानों के घरों में सबसे उत्तम घर वह है जिसमें कोई यतीम (अनाथ) हो जिसके साथ अच्छा व्यवहार किया जाए, और मुसलमानों के घरों में सबसे बुरा घर वह है जिसमें कोई यतीम हो और उसके साथ बुरा व्यवहार किया जाए।'' (हदीस: इब्ने-माजा)
(3) हज़रत  अबू-हुरैरा (रज़ि0) कहते हैं कि एक आदमी ने अपने कठोर दिल होने की शिकायत अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) से की।  उन्होंने फ़रमाया, ‘‘यतीम (अनाथ) के सिर पर (प्यार और सरपरस्ती का) हाथ फेरा करो और मिसकीनों (दरिद्रों) और ज़रूरतमन्दों को खाना खिलाया करो।''
(हदीस: अहमद)
(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘मैं और अनाथ का लालन-पालन और सरपरस्ती करनेवाला दोनों स्वर्ग में इस तरह पास रहेंगे।'' पैग़म्बर (सल्ल0) ने बीच की उँगली और शहादत की उँगली (तर्जनी) से इशारा करते हुए उसकी नज़दीकी बताई।     (हदीस: बुख़ारी)
(5) हज़रत  जाबिर (रज़ि0) कहते हैं कि मैंने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) से पूछा, ‘‘मेरी सरपरस्ती में जो अनाथ है मैं उसको किस-किस कारण से (चेतावनी के लिए) दण्डित सकता हूँ?'' पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिस-जिस वजह से तुम अपने बेटे को दण्ड देते हो (उसी तरह) अनाथ को भी दण्ड दे सकते हो।  ख़बरदार, अपना माल बचाने के लिए अनाथ का माल बरबाद न करना और न उसके माल को अपनी जायदाद बना लेना।''   (हदीस: मुअजम तबरानी)

 

मजदूरों के अधिकार
(1) हज़रत  अब्दुल्लाह-बिन-उमर (रज़ि0) बयान करते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘मजदूर का मेहनताना उसका पसीना सूखने से पहले दे दो।'' (हदीस: इब्ने-माजा)
(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘अल्लाह कहता है कि तीन तरह  के लोग हैं  जिनके विरुद्ध क़ियामत (प्रलय) के दिन मेरी ओर से मुक़द्दमा दायर होगा। एक वे लोग जिन्होंने मेरे नाम पर कोई समझौता किया, फिर बिना किसी उचित कारण के उसे तोड़ डाला।  दूसरे वे जो किसी शरीफ़ और आज़ाद आदमी का अपहरण करें फिर उसे ग़ुलाम बनाकर बेचें। तीसरे वे लोग जो मज़दूर को काम पर लगाएँ, उससे पूरी मेहनत लें और उसकी मज़दूरी न दें।'' (हदीस: बुख़ारी)
(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जो व्यक्ति किसी मज़दूर को मज़दूरी पर रखे तो उसे चाहिए कि उसकी मज़दूरी पहले ही बता दे।''  (हदीस: मुसनद अहमद)

 

बीमारों के अधिकार
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘बीमार (रोगी) की बीमारपुर्सी करनेवाला वापसी तक स्वर्ग के बाग में रहता है।''    (हदीस: मुस्लिम)
(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जब तुम बीमार के पास जाओ तो उससे कहो, ‘‘अभी तुम्हारी उम्र बहुत है। यह बात अल्लाह के किसी फ़ैसले को रद्द नहीं करेगी लेकिन इससे बीमार का दिल ख़ुश हो जाएगा।''   (हदीस: तिरमिज़ी)
(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) जब किसी बीमार का हाल मालूम करने जाते तो यह दुआ करते, ‘‘ऐ लोगों के रब ! बीमारी की सख़्ती को इससे दूर कर दे, इसको ऐसी शिफ़ा (रोग-मुक्ति) दे जो किसी बीमारी को न छोड़े, तू शिफ़ा देनेवाला है, तेरे सिवा और कोई इसे ठीक नहीं कर सकता।'' (हदीस: मुस्लिम)
(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘तुम बीमार की देखभाल करो, भूखों को खाना खिलाओ और (बे-क़ुसूर) कैदी को (हवालात या जेल से) छुड़ाने का प्रबन्ध करो।''     (हदीस: बुख़ारी)
(5) हज़रत  अबू-हुरैरा (रज़ि0) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘क़ियामत (प्रलय) के दिन अल्लाह एक आदमी से कहेगा, ‘‘ऐ आदम के बेटे, मैं बीमार था तू मेरा हाल मालूम करने के लिए नहीं आया।'' वह कहेगा, ‘‘ऐ मेरे रब! मैं तेरी बीमारपुर्सी को कैसे आता ? तू तो सारी दुनिया का पालनहार है (बीमार होना तो तेरी शान के ख़िलाफ़ है)‘ अल्लाह कहेगा, ‘क्या तुझे नहीं पता था कि मेरा अमुक बन्दा बीमार पड़ा था ? मगर तू उसका हाल पूछने नहीं गया था।  क्या तुझे मालूम नहीं था कि अगर तू उसका हाल मालूम करने जाता तो मुझे उस (बीमार) के पास पाता ? ऐ आदम के बेटे, मैंने तुझसे खाना माँगा, तूने मुझे नहीं खिलाया।' बन्दा कहेगा, ‘ऐ मेरे रब! मैं तुझे कैसे खिला सकता हूँ, जबकि तू सारे जहान का पालनहार है?' अल्लाह कहेगा, ‘तुझे पता नहीं कि मेरे अमुक बन्दे ने तुझसें खाना माँगा था, मगर  तूने उसे नहीं खिलाया, अगर तू उसे खिलाता तो उस समय मुझे उसके पास पाता।  ऐ आदम के बेटे, मैंने तुझसे पानी माँगा, तूने मुझे पानी नहीं पिलाया।' बन्दा कहेगा, ‘ऐ मेरे रब! मैं तुझे कैसे पिला सकता हूँ? तू तो सारे जहान का पालनहार है। ‘ अल्लाह कहेगा, ‘तुझसे मेरे अमुक बन्दे ने पानी माँगा था, तूने उसे पानी नहीं पिलाया, याद रख, अगर तूने उसे पानी पिलाया होता तो मुझे उस  समय उसके पास पाता।'' (हदीस: मुस्लिम)

 

अपने से बड़ों के अधिकार
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘वह व्यक्ति हममें से नहीं जो बड़ों का आदर न करे, और छोटों से स्नेह का बरताव न करे।'' (हदीस: अहमद, तिरमिज़ी)
(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘लोगों को उनके स्थान और मंसब (पद) पर रखो (यानी उम्र के हिसाब से उनका आदर-सम्मान करो)।  (हदीस: अबू-दाऊद)
(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘सवार व्यक्ति पैदल चलनेवाले को सलाम करे, पैदल चलनेवाला बैठे हुए व्यक्ति को सलाम करे, छोटा गरोह बड़े गरोह को सलाम करे और छोटा (कम उम्र व्यक्ति) अपने बड़े को सलाम करे।''          (हदीस: बुख़ारी)
(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जो व्यक्ति किसी बूढ़े का आदर उसके बुढ़ापे की वजह से करेगा, अल्लाह ऐसे व्यक्ति के बुढ़ापे  के समय  ऐसे आदमी को नियुक्त कर देगा जो उसका आदर करेगा।'' (हदीस: तिरमिज़ी)

 

रास्ते के अधिकार
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘रास्तों से कष्टदायक चीज़ों को हटा देना भी सदक़ा (नेकी) है।''     (हदीस: बुख़ारी)
(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘मैंने स्वर्ग में एक व्यक्ति को देखा जो अपनी मर्ज़ी से उसकी (स्वर्ग की) नेमतों और लज़्ज़तों का मज़ा ले रहा था।  इसलिए कि उसने रास्ते से एक ऐसे पेड़ को काट दिया था जिससे गुज़रनेवालों को  कष्ट होता था।''    (हदीस: मुस्लिम)
(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘रास्तों पर बैठने से बचो! अगर वहाँ बैठने की मजबूरी ही है तो रास्ते का हक़ भी अदा करो!'' सहाबा (रज़ि0) ने पूछा, ‘‘रास्ते का हक़ क्या है?''पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘निगाहें (दृष्टि) नीची रखना, किसी को तकलीफ़ देने से बचना, सलाम का जवाब देना, अच्छी बातों के लिए लोगों को नसीहत करना और बुरी बातों से रोकना।''     (हदीस: बुख़ारी)

 

जानवरों के अधिकार
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने (जानवरों के) मुँह पर मारने और चेहरे पर दाग़ लगाने से मना किया है।  (हदीस: मुस्लिम)
(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘कोई  किसी पक्षी या  उससे छोटे-बड़े पशु और पक्षी को अकारथ मार डालेगा तो अल्लाह उस व्यक्ति से प्राण लेने के बारे में पूछगच्छ करेगा।'' (हदीस: अहमद, नसई)
(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘क्या तुम उस जानवर के बारे में अल्लाह से डरते नहीं जिसको अल्लाह ने तुम्हारे अधिकार में दे रखा है? क्योंकि वह मुझसे शिकायत करता है कि तुम उसे भूखा रखते हो और हमेशा उस (जानवर) से मेहनत का काम का लेते हो।''  (हदीस: मुस्लिम)
(4) हज़रत  अब्दुर्रहमान-बिन-अब्दुल्लाह (रज़ि0) अपने बाप से बयान करते हैं कि एक सफ़र में हम अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) के साथ थे। आप (सल्ल0) शौच के लिए गए, इसी बीच हमने एक छोटी-सी चिड़िया देखी जिसके दो छोटे बच्चे भी थे, हमने उन (सुन्दर) बच्चों को पकड़ लिया।  वह चिड़िया आई और हमारे सिर पर मंडराने लगी।  इसी बीच अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) तशरीफ़ लाए और फ़रमाया, ‘‘किसने इसके बच्चों को पकड़कर इसको तकलीफ़ पहुँचाई, इसके बच्चे वापस कर दो!''
(हदीस: अबू-दाऊद)
(5) हज़रत  अब्दुल्लाह-बिन-उमर (रज़ि0) का बयान है कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘एक औरत पर इसलिए यातना हुई कि उसने एक बिल्ली को क़ैद कर रखा था।  यहाँ तक कि वह (बिल्ली) इसी हालत में मर गई।  इसी वजह से वह औरत (नरक की) आग में दाख़िल हुई, वह न ख़ुद बिल्ली को खाने-पीने के लिए देती थी और न उसे छोड़ती थी कि वह जमीन के कीड़े-मकोड़े खा ले।'' (हदीस: बुख़ारी)
(6) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने ऐसे लोगों पर लानत (फटकार) भेजी है  जो किसी जानदार को निशाना बनाएँ (यानी उसपर निशानेबाजी का अभ्यास करें)।   (हदीस: बुख़ारी, मुस्लिम)
(7) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘एक आदमी रास्ते पर चल रहा था।  उसे ज़ोर की प्यास लगी। उसे एक कुआँ मिला, उसने कुएँ में उतरकर पानी पिया।  बाहर निकलकर देखता है कि एक कुत्ता ज़बान निकाले हाँफ रहा है, (अपनी प्यास बुझाने के लिए) गीली मिट्टी खा रहा है। उस आदमी ने देखा कि प्यास से उसकी हालत इस तरह हो गई है जैसी हालत उसकी हो गई थी।  फिर वह कुएँ में उतरा और अपनी जुराबों को पानी से भर लिया और बाहर निकलर कुत्ते को पिला दिया।  इस (कर्म) पर अल्लाह ने उसकी क़द्र की और उसको क्षमा कर दिया।'' लोगों नू पूछा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर! क्या जानवरों के मामले में भी हमारे लिए अच्छा बदला है?'' पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘हर तर जिगर (जानदार) में (तुम्हारे लिए) अच्छा बदला है।'' (हदीस: बुख़ारी, मुस्लिम)

अध्याय-3

सामाजिक बुराइयाँ

(हदीसों की रौशनी में)

जातीय पक्षपात

(1) हज़रत  अबू-फ़सीला कहते हैं कि मैने अल्लाह के पैग़म्बर से पूछा कि क्या अपने लोगों से मुहब्बत करना पक्षपात है।  पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘नहीं, यह पक्षपात नहीं है।  पक्षपात और साम्प्रदायिकता तो यह है कि आदमी अपने लोगों के अन्यायपूर्ण कामों में उनकी मदद करे।''
  (हदीस: मिशकात)


(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जो कोई ग़लत और अनुचित कामों में अपने क़बीले (कुटुम्ब, परिवार और वंश) का साथ देता है, उसकी मिसाल उस ऊँट की-सी है जो कुएँ में गिर पड़े फिर उसे उसकी दुम पकड़कर खींचा जाए।'' (हदीस: अबू-दाऊद)


(3) हज़रत  वासिला-विन-असफ़ल (रज़ि0) कहते हैं कि मैंने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) से पूछा, ‘‘पक्षपात क्या है ?'' पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘पक्षपात यह है कि तुम अन्याय के मामले में अपनी क़ौम की मदद करो।''
(हदीस: अबू-दाऊद)


(4) हज़रत  अबू-हुरैरा (रज़ि0) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘तुम्हारी जाहिलियत का घमण्ड और अपने बाप-दादा पर गर्व करने का तरीक़ा अल्लाह ने मिटा दिया है।  आदमी या तो अल्लाह से डरनेवाला मुत्तक़ी (परहेज़गार) होता है या अभागा नाफ़रमान।  तमाम इनसान अल्लाह का कुटुम्ब हैं और आदम मिट्टी से पैदा किए गए थे।'' (हदीस: तिरमिज़ी)

 

अमानत की हिफ़ाज़त
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जो तुम्हारे पास अमानत रखे उसे उसकी अमानत अदा कर दो और जो तुमसे ख़ियानत (चोरी) करे तो तुम उसमें ख़ियानत (विश्वासघात) न करो।''   (हदीस: तिरमिज़ी)
(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) फ़रमाया करते थे, ‘‘धागा और सुई (भी) अदा करो, और ख़ियानत से बचों, इसलिए कि यह ख़ियानत क़ियामत (प्रलय) के दिन पछतावे का सबब होगी।'' (हदीस: मिशकात)
(3) हज़रत  अब्दुल्लाह-बिन-उमर (रज़ि0) बयान करते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) के माल (बैतुल-माल) पर चैकीदारी (पहरे) के लिए कर-कराह नाम का एक व्यक्ति नियुक्त था।  (इसी बीच) वह मर गया।  पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘वह आग में है।'' (लोग वास्तविकता मालूम करने के लिए) उसे देखने गए, तो पता चला कि कर-कराह ने एक अबा (ओवरकोट) चुरा लिया था।    (हदीस: बुख़ारी)
(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ चार चीज़ें तुम्हें प्राप्त हों तो दुनिया की किसी चीज़ से वंचित होना तुम्हारे लिए नुक़सानदेह नहीं है-

  1.   अमानत की सुरक्षा  
  2.   सच बोलना  
  3.   अच्छा आचरण 
  4.   हलाल और पवित्र रोज़ी (आजीविका)।''   (हदीस: मिशकात)

(5) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिस किसी को हम किसी सरकारी काम पर नियुक्त कर दें और उस काम की तनख़ाह दें, वह अगर उस तनख़ाह के बाद और कुछ (अधिक) वुसूल करे तो वह ख़ियानत (बेईमानी) है।'' (हदीस: अबू-दाऊद)


(6) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘लोगो, जो कोई  हमारी हुकूमत में किसी काम पर लगाया गया और उसने एक धागा या उससे भी मामूली चीज़ छिपाकर इस्तेमाल की तो यह ख़ियानत (चोरी) है, जिसका बोझ उठाए हुए वह क़ियामत (प्रलय) के दिन अल्लाह के सामने उपस्थित होगा।'' (हदीस: अबू-दाऊद)

 

कारोबार और व्यवहार से सम्बन्धित
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘सच्चे और  अमानतदार  कारोबारी आख़िरत (परलोक) में पैग़म्बरों, सिद्दीक़ों (बहुत सच्चे लोगों) और शहीदों के साथ रहेंगे (यानी स्वर्ग में ऐसे व्यक्ति का स्थान बहुत ऊँचा होगा)।'' (हदीस: तिरमिज़ी)


(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘किसी व्यापारी के लिए वैध नहीं कि वह कोई माल बेचे और उसकी कमी ख़रीदार को न बताए।  इसी तरह किसी के लिए यह भी वैध नहीं कि (बेचे जानेवाले माल के) दोष को जानता हो फिर भी ख़रीदार को न बताए।'' (हदीस: अल-मुन्तक़ा)


(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘अल्लाह उस व्यक्ति पर रहम (दया) करे जो ख़रीदने-बेचने और (क़र्ज़ का) तक़ाज़ा करने में नरमी और उदारता से काम ले।''     (हदीस: बुख़ारी)


(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ख़रीदने-बेचने, (क्रिय-विक्रय) में ज़्यादा क़समें खाने से बचो! क्योंकि इससे कारोबार में बढ़ोत्तरी तो (सामयिक) होती है लेकिन फिर बरकत ख़त्म हो जाती है।'' (हदीस: मुस्लिम)


(5) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘अल्लाह उस व्यक्ति के साथ रहमत (दयालुता) का व्यवहार करेगा जो उस समय नरमी और शिष्टाचार से काम ले जब वह किसी को माल बेचे और जब वह किसी से माल ख़रीदे और जब वह किसी से क़र्ज़ का तक़ाज़ा करे।''    (हदीस: बुख़ारी)


(6) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिस व्यक्ति ने बताए बिना ऐबदार (जिसमें कोई ख़राबी हो) चीज़ बेच दी, वह हमेशा अल्लाह के ग़ज़ब (प्रकोप) में रहेगा और फ़रिश्ते उसपर फटकार भेजते रहेंगे।'' (हदीस: इब्ने-माजा)

 

जमाख़ोरी
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिस व्यापारी ने जमाख़ोरी (माल जमा करना) की वह पापी है।''   (हदीस: मिशकात)


(2) हज़रत  मुआज़ (रज़ि0) कहते हैं कि मैंने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) से सुना, ‘‘ कितना बुरा है ज़रूरत की चीज़ों को रोककर रखनेवाला आदमी! अगर चीज़ों का भाव गिरता है तो उसे  दुख होता है और अगर महँगाई बढ़ती है तो ख़ुश होता है।''    (हदीस: मिशकात)


(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जमाख़ोरी (माल महँगा होने क लिए) तो सिर्फ़ गुनाहगार की करता है।''    (हदीस: मुस्लिम)


(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिसने महँगाई के ख़याल से अनाज को चालीस दिनों तक रोके रखा, वह अल्लाह से बेताल्लुक़ हुआ  और अल्लाह  उससे बेताल्लुक़ हुआ।'' (हदीस: रुज़ैन)


(5) अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिस किसी ने (महँगा होने के इरादे से) अनाज को चालीस दिन तक रोके रखा फिर वह उसे ख़ैरात (अल्लाह की राह में दान) भी कर दे तो वह उसके लिए कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) नहीं होगा।'' (हदीस: रुज़ैन)


(6) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जो व्यापारी ज़रूरत की चीज़ों को नहीं रोकता, बल्कि समय रहते (अपने माल को) बाज़ार में लाता है, वह अल्लाह की रहमत (दयालुता) का हक़दार है।  अल्लाह उसे रोज़ी देगा। आम ज़रूरतों की चीज़ों को  रोकेनवाले पर अल्लाह की फटकार है।''(हदीस: इब्ने-माजा)


(7) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘बाज़ार में माल लानेवाले को रोज़ी मिलती है और जमा करनेवाले को फटकार है।''   (हदीस: इब्ने-माजा)


(8) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जो कोई खाने-पीने की चीज़ों की जमाख़ोरी करेगा, अल्लाह उसे कोढ़ और ग़रीबी में गिरफ़्तार कर देगा।'' (हदीस: इब्ने-माजा)

 

ग़ीबत (पीट-पीछे बुराई करना)
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने अपने साथियों (सहाबा) से पूछा, ‘‘ क्या तुम जानते हो ग़ीबत क्या है?'' सहाबा (रज़ि0) ने कहा, ‘‘अल्लाह और उसके पैग़म्बर ज़्यादा जानते हैं।'' पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ग़ीबत यह है कि तुम अपने भाई की चर्चा ऐसे ढंग से करो जिसे वह नापसन्द करे।'' लोगों ने पूछा, ‘‘अगर हमारे भाई में वह बात हो जो मैं कह रहा हूँ तब भी वह ग़ीबत है?'' अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘अगर वह उसके अन्दर हो तो यह ग़ीबत हुई और अगर वह बात उसक अन्दर नहीं पाई जाती तो यह बुहतान (मिथ्यारोपण, झूठा आरोप) है। '' (हदीस: मिशकात)


(2) एक आदमी ने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) से पूछा कि ग़ीबत क्या चीज़ है? पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘यह है कि तू किसी व्यक्ति की चर्चा इस प्रकार करे कि अगर वह सुने तो उसे बुरा लगे।'' उसने पूछा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर ! चाहे वह बात सही हो ?'' पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘अगर तू ग़लत कहे तो यह मिथ्यारोपण (झूठा आरोप) है।''  (हदीस: मुवत्ता इमाम मालिक)


(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘मरे हुए लोगों को बुरा न कहो (यानी उनकी ग़ीबत न करो)। इसलिए कि वे अपने कर्मो के साथ अपने रब के पास जा चुके है।''    (हदीस: बुख़ारी)


(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘पीठ-पीछे बुराई व्यभिचार से ज़्यादा बड़ा जुर्म है।'' सहाबा (रज़ि0) ने पूछा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर! पीठ-पीछे बुराई किस प्रकार व्यभिचार से बढ़कर सख़्त जुर्म है? '' पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ एक आदमी व्यभिचार करने के बाद जब तौबा (प्रायश्चित) करता है तो उसकी मग़फ़िरत हो जाती है (यानी वह अल्लाह की तरफ़ से माफ़ कर दिया जाता है) मगर ग़ीबत करनेवाले की मग़फ़िरत उस वक़्त तक नहीं होती जब तक कि वह व्यक्ति उसको माफ़ न कर दे जिसकी उसने ग़ीबत की है।''   (हदीस: मिशकात)

 

चुग़लख़ोरी
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘चुग़लख़ोरी करनेवाला स्वर्ग में नहीं जाएगा।''   (हदीस: बुख़ारी, मुस्लिम)


(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने चुग़लख़ोरी करने, ग़ीबत करने और ग़ीबत सुनने से मना किया है।         (हदीस: मिशकात)


(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘मेरे साथियों में से किसी के बारे में मुझे (बुराई की) कोई बात न पहुँचाए। इसलिए कि मैं चाहता हूँ कि मेरी मुलाक़ात तुम लोगों से इस हाल में हो कि मेरा सीना हर एक से साफ़ हो (यानी किसी की तरफ़ से मेरे दिल में कोई मैल या नाराज़ी मौजूद न हो)।''         (हदीस: तिरमिज़ी)

 

रिश्वत और ख़ियानत (बेईमानी)
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘रिश्वत देनेवाले और रिश्वत लेनेवाले पर अल्लाह की  फटकार और लानत है।''  (हदीस: बुख़ारी, मुस्लिम)


(2) हज़रत  अम्र-बिन-आस (रज़ि0) कहते हैं कि मैंने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) से सुना, ‘‘जब किसी क़ौम में बदकारी (व्यभिचार) आम हो जाती है तो अवश्य ही वह (क़ौम) अकालग्रस्त कर दी जाती है।  और जब किसी क़ौम में रिश्वत की बीमारी फैल  जाती है तो अवश्य ही उसपर डर और दहशत छा जाती है।''   (हदीस: मिशकात)


(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘सरकारी नौकरी में कर्मचारी (लोगों से) जो हदिया (गिफ़्ट, भेंट) वुसूल करते हैं, वह ख़ियानत (बेईमानी) है।''    (हदीस: मुसनद अहमद)


(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिस आदमी को हम किसी सरकारी काम पर नियुक्त कर दें और उस काम का वेतन उस आदमी को दें वह अगर उस वेतन के बाद और (कुछ) वुसूल करे तो यह ख़ियानत (बेईमानी) है।'' (हदीस: अबू-दाऊद)


(5) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘लोगो! जे कोई हमारी हुकूमत में किसी काम पर लगाया गया और उसने एक धागा या उसमें भी मामूली चीज़ छिपाकर इस्तेमाल की तो यह ख़ियानत (चोरी) है, जिसका बोझ उठाए हुए वह क़ियामत (प्रलय) के दिन अल्लाह के सामने हाज़िर होगा।''(हदीस: अबू-दाऊद)

 

सूद (ब्याज)
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘लानत है सूद (ब्याज) खानेवाले पर, सूद खिलानेवाले पर, सूदी लेन-देन के गवाहों पर और सूदी लेन-देन की दस्तावेज लिखनेवाले पर।''   (हदीस: बुख़ारी, मुस्लिम)


(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘सूद (से हासिल किया हुआ  माल) चाहे कितना ही अधिक हो जाए, मगर उसका नतीजा अभाव और कमी है।''    (हदीस: मुसनद अहमद, इब्ने-माजा)


(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘सूदख़ोरी से  सत्तर हिस्से हैं, उनमें सबसे कम और हल्का हिस्सा ऐसा है जैसे कोई अपनी माँ के  साथ व्यभिचार करे।'' (हदीस: इब्ने-माजा)


(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘सूद का एक दिरहम (सिक्का) भी जिसको आदमी जान-बूझकर खाए छत्तीस बार  ज़िना (व्यभिचार) करने से बढ़कर जघन्य अपराध है।'' (हदीस: अहमद)


(5) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जब तुममें से कोई व्यक्ति किसी को क़र्ज़ दे तो अगर वह क़र्ज़ लेनेवाला उसे कोई हदिया (गिफ़्ट, भेंट) दे या उसे सवारी के लिए अपना  जानवर पेश करे तो न वह उसका सवार हो और न उस हदिये (तोहफ़े)  को क़बूल करे, सिवाय इसके कि दोनों  के बीच पहले से  इस  तरह का मामला होता रहा हो (यानी तोहफ़ों का लेन-देन चलता रहा हो)।'' (हदीस - इब्ने-माजा)


(6) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिसने किसी के लिए सिफ़ारिश की फिर (सिफ़ारिश करानेवाले ने) उसे हदिया (तोहफ़ा) दिया और उसने उसको क़बूल कर लिया तो यक़ीनन वह सूद (ब्याज) के दरवाज़ों में से एक बड़े दरवाज़े में दाख़िल हो गया।'' (हदीस: अबू-दाऊद)

 

शराब
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘अल्लाह के लानत की है शराब पर और उसके पीनेवाले पर और पिलानेवाले पर, बेचनेवाले पर और ख़रीदनेवाले पर, निचोड़नेवाले (तैयार करनेवाले) और तैयार करानेवाले पर और ढोकर ले जानेवाले पर और उस व्यक्ति पर जिसके लिए वह ढोई गई हो।'' (हदीस: अबू-दाऊद)


(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जो अल्लाह पर ईमान और आख़िरत पर विश्वास रखता है वह उस दस्तरख़ान पर न बैठे जिसपर शराब पी जा रही हो।''     (हदीस: बुख़ारी)


(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने उस दस्तरख़ान पर खाना खाने से मना किया है जिसपर शराब पी जा रही हो। (हदीस: सुनन-दारमी)

(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘हर नशीली चीज़ शराब है और हर नशा हराम है।''     (हदीस: अहमद)


(5) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘शराब दवा नहीं है बल्कि वह तो ख़ुद बीमारी है।''    (हदीस: मुस्लिम)


(6) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिस (चीज़) की अधिक मात्रा नशा लाती हो उसकी थोड़ी मात्रा भी हराम (अवैध) है।''           (हदीस: अबू-दाऊद)

 

व्यभिचार और दुष्कर्म
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘क़ुरैश के जवानो, तुम अपनी  शर्मगाहों (गुप्ताँगों) की हिफ़ाज़त करना, व्यभिचार मत कर बैठना ! जो लोग पाकदामनी (पवित्रता) के साथ जीवन व्यतीत करेंगे वे स्वर्ग के हक़दार होंगे।'' (हदीस: अल-मुंज़िरी)


(2) हज़रत  अम्र-बिन-आस (रज़ि0) कहते हैं कि मैंने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) से फ़रमाते हुए सुना, ‘‘जिस क़ौम में ज़िना (व्यभिचार) बहुत फैल  जाता है  वह (क़ौम) अकालग्रस्त हो जाती है और जिस क़ौम में रिश्वतों की महामारी फैल जाती है उसपर रोब (डर) हावी कर दिया जाता है।                (हदीस: अहमद)


(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) के सहाबी हज़रत  अब्दुल्लाह-बिन-मसऊद (रज़ि0) कहते हैं कि मैंने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) से पूछा ‘‘कौन-सा गुनाह ज़्यादा बड़ा है ?'' उन्होंने फ़रमाया, ‘‘यह कि तू किसी को अल्लाह के समकक्ष ठहराए जब कि तुझे अल्लाह ने पैदा किया है।'' मैंने कहा, ‘‘फिर कौन-सा गुनाह बड़ा है?'' पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘तू अपनी सन्तान को क़त्ल करे इस डर से कि वह तेरे साथ खाएगा।'' मैंने पूछा, ‘‘ (इसके बाद) कौन-सा गुनाह ज़्यादा बड़ा है?'' उन्होंने फ़रमाया, ‘‘यह कि तू अपने पड़ोसी की पत्नी से ज़िना (व्यभिचार) करे।'' (हदीस: बुख़ारी, मुस्लिम) 


(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘इस्लाम में (औरतों की) इज़्ज़त के ख़रीदने-बेचने का कारोबार वैध नहीं है।'' (हदीस: अबू-दाऊद)


(5) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘आँखों का ज़िना (व्यभिचार) देखना है, कानों का ज़िना (ज़िना की बातें) सुनना है, और ज़बान का ज़िना (ज़िना की) बात करना है, और हाथ का ज़िना (शर्मगाह से) छेड़छाड़ करना है और पैरो का ज़िना (ज़िना की तरफ़) चलकर जाना है।  दिल (दुष्कर्म की) इच्छा करता है, उसके बाद गुप्तांग उस योजना को व्यवहारिक रूप देते हैं या छोड़ देते हैं।''    (हदीस: मुस्लिम)


(6) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘हर बुरी आँख चाहे वह मर्द की हो या औरत की ज़िना करनेवाली (व्यभिचार) है।''   (हदीस: तिरमिज़ी)

 

कन्या-वध
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिस व्यक्ति के यहाँ बेटी पैदा हो और वह उसे जीवित दफ़न न करे और उसका अपमान न करे और अपने बेटे को उससे बढ़कर न समझे, तो अल्लाह उसे स्वर्ग में दाख़िल करेगा।'' (हदीस: अबू-दाऊद)


(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिसने तीन बेटियों का पालन-पोषण किया, उन्हें अच्छें संस्कार सिखाए, उनकी शादी की और उनके साथ अच्छा व्यवहार किया तो वह  स्वर्ग में जाएगा।''     (हदीस: अबू-दाऊद)


(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिसने दो लड़कियों का भार उठाया यहाँ तक कि वे बालिग़ (व्यस्क) हो गईं, तो क़ियामत (प्रलय) के दिन मैं और वे इस तरह आएँगे।'' वह कहकर अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने अपनी दो उँगलियाँ एक साथ कर लीं।    (हदीस: मुस्लिम)


(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जिसने तीन बेटियों या बहनों का पालन-पोषण किया, उनको अच्छे अख़लाक़ (शिष्टाचार) सिखाए और उनपर मेहरबानी की, यहाँ तक कि अल्लाह उन्हें बेनियाज़ (निस्पृह) कर दे, अल्लाह ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग वाजिब (अनिवार्य) कर देगा।'' एक आदमी ने पूछा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर! दो के साथ अच्छा बरताव करने पर क्या यही बदला है ?'' पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ हाँ।'' इस हदीस को बयान करनेवाले हज़रत  इब्ने-अब्बास (रज़ि0) कहते हैं कि अगर एक लड़की के साथ अच्छा बरताव करने के बारे में सवाल करते तो अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) यही फ़रमाते कि वह भी इनाम का हक़दार है। (हदीस: मिशकात)


(5) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जब किसी के  यहाँ लड़की पैदा होती है तो अल्लाह उसके यहाँ फरिश्ते भेजता है  जो कहते हैं: ‘ऐ घरवालो, तुमपर सलामती हो।' वे लड़की को अपने परों की छाया में ले लेते हैं और उसके सिरपर हाथ फेरते हुए कहते हैं कि यह एक कमज़ोर जान है जो  एक कमज़ोर जाने से पैदा हुई है।  जो इस बच्ची की परवरिश करेगा, क़ियामत तक अल्लाह की मदद उसके साथ रहेगी।''  (हदीस: अल-मुअ्जमुस्सग़ीर अत-तबरानी)


(6) हज़रत  आइशा (रज़ि0) कहती हैं कि मेरे पास एक औरत अपनी दो लड़कियों को लेकर आई  और उसने कुछ माँगा (लेकिन) मेरे यहाँ सिर्फ़ एक खजूर ही मिल सकी।  मैंने वही उसे दे दी।  उसने उस खजूर को उन दोनों लड़कियों में बाँट दिया और ख़ुद कुछ न खाया।  इसके बाद वह उठ खड़ी हुई और घर से निकलकर चली गई।  (उसी वक़्त) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) तशरीफ़ लाए।  मैंने उनको पूरा माजरा बताया।  पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जो कोई इन लड़कियों के बारे में आज़माया जाए (यानी उसके यहाँ लड़कियों पैदा हों) और फिर वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करे तो ये लड़कियाँ उसको जहन्नम की आग से बचाएँगी।'' (हदीस: बुख़ारी, मुस्लिम)

 

रिश्ते-नाते तोड़ना
(1) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘रिश्तों को तोड़नेवाला स्वर्ग में नहीं जाएगा।''    (हदीस: मुस्लिम)


(2) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘उस क़ौम पर अल्लाह की रहमत (कृपा) नहीं होती जिस (क़ौम) में रिश्ते-नाते तोड़नेवाला मौजूद हो।'' (हदीस: बैहक़ी)


(3) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘जो कोई चाहता है कि उसकी  रोज़ी (आजीविका) में बढ़ोत्तरी पैदा हो और उसकी उम्र लम्बी हो,  वह रिश्तेदारों से अच्छा सुलूक करे।''     (हदीस: बुख़ारी)


(4) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘तीन तरह के लोग स्वर्ग में नहीं जा सकेंगे। (1) हमेशा शराब पीनेवाला (2) रिश्ते-नाते तोड़नेवाला (3) जादू पर यक़ीन करनेवाला।     (हदीस: अहमद)


(5) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘ज़ुल्म (अत्याचार) और रिश्ते-नाते तोड़ने के सिवा कोई गुनाह ऐसा नहीं है जिसके करेवाले को अल्लाह दुनिया में जल्द सज़ा दे, ऐसा करनेवाले के लिए क़ियामत के दिन भी (उसके लिए) सज़ा  तैयार रखी है।'' (हदीस: अबू-दाऊद)


(6) अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल0) ने फ़रमाया, ‘‘एक दूसरे के साथ कपट न रखो और न हसद (ईर्ष्या), एक-दूसरे के साथ दुश्मनी करो और न रिश्तों को तोड़ो ! और ऐ अल्लाह के बन्दो, आपस में भाई-भाई बन जाओ।''
  (हदीस: बुख़ारी, मुस्लिम)
संकलन - अब्दुर्रब करीमी