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Sachchai ko jane

  
  • PART 1


 
सच्चाई को जानो
ज़रा उस आदमी के बारे में सोचिए जो एक बस में सफ़र कर रहा है। बस कंडक्टर उसके पास आता है और उन दोनों के बीच यह बातचीत होती है :
बस कंडक्टर : टिकिट प्लीज़ (कृपया टिकिट दिखाइए)
यात्री : मेरे पास नहीं है।
बस कंडक्टर : आप कहाँ जा रहे हैं?
यात्री : मुझे नहीं मालूम!
बस कंडक्टर : क्या? आपको यह भी नहीं मालूम कि जाना    
  कहाँ है?
यात्री : क्या मुझे यह जानना चाहिए कि मुझे कहाँ 
    जाना है?
  अस्ल में मुझे इस बात का अन्दाज़ा ही नहीं 
  है कि मुझे कहीं जाने की ज़रूरत भी है।
बस कंडक्टर : आप इस बस में चढ़े ही क्यों थे, जबकि 
    आपको यह मालूम ही नहीं है कि आप जाना  
  कहाँ चाहते हैं?
यात्री : मुझे नहीं मालूम?
बस कंडक्टर : ??? (भ्रमित और उलझन का शिकार!)
यदि आप इसी बस में सफ़र कर रहे हों तो आप इस आदमी के बारे में क्या सोचेंगे? अब यदि हम इसी बातचीत को सामने रखकर इन्सानी ज़िन्दगी के बारे में सोचें और इसी तरह के प्रश्न करें कि हमें किसने पैदा किया? हमारा वुजूद (अस्तित्व) किस लिए है? मरने के बाद हमारा क्या होगा? क्या हम बे-मक़सद ही पैदा होते और बे-मक़सद ही मर जाते हैं। या इस ज़िन्दगी और मौत के पीछे वास्तव में कोई उद्देश्य है?
हम में से कितने हैं जो ऊपर उठाए गए प्रश्नों के सही उत्तर से अवगत हैं? महत्वपूर्ण बात यह है कि हम आज ज़िन्दा हैं और एक दिन मर जाएँगे, लेकिन क्या हम यह भी जानते हैं इससे आगे क्या होने वाला है?
प्रिय पाठको, हमें पूरी आशा है कि यह पुस्तिका आपके विचारों को प्रोत्साहित करेगी और धरती पर आपके अस्तित्व और उद्देश्य की ओर आपका मार्गदर्शन करेगी।
क्या हमारे जीवन और अस्तित्व का कोई उद्देश्य है?
सबसे पहले हम अपने आस-पास देखते हैं। यदि हम गुफा में नहीं रहते हैं तो हम अपने ही हाथों से बनाई हुई चीज़ों से घिरे होते हैं। अब ज़रा सोचिए कि हम इन चीज़ों को क्यों बनाते हैं? क्या इन्सानों द्वारा बनी इन चीज़ों का कोई उद्देश्य है? उत्तर निश्चित रूप से यही होगा कि ‘हाँ’, इन चीज़ों का उद्देश्य है। फिर हम अपने शरीर के अंगों को देखें। क्या हम अपने शरीर के किसी एक अंग के बारे में भी यह कह सकते हैं कि वह बेमक़सद है? आइए अब हम अपने चारों ओर की प्राकृतिक चीज़ों, जैसे पेड़ों और पहाड़ों पर नज़र डालते हैं। क्या इनका अस्तित्व बिना किसी उद्देश्य के है?
हम जानते और मानते हैं कि हर वह चीज़ जिसको हम बनाते हैं उसका कोई न कोई उद्देश्य होता है। इस तरह हमारे शरीर के अंगों का भी उद्देश्य है, और जिस तरह शारीरिक अंगों का कोई उद्देश्य है उसी तरह पेड़ों और पहाड़ों जैसी प्राकृतिक चीज़ों का भी उद्देश्य है। ज़रा सोचिए कि क्या यह मान लेना तर्कसंगत है कि पूरी मानव-जाति बग़ैर किसी उद्देश्य के वुजूद में आई है? निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यह मान लेना तर्कसंगत नहीं है। तो फिर क्या है हमारे जीवन का उद्देश्य ? क्यों है हमारा अस्तित्व? मात्र धन-दौलत और प्रसिद्धि हासिल करने के लिए? मात्र मौज-मस्ती के लिए? दुनिया का सबसे मालदार व्यक्ति बन जाने के लिए? निश्चित रूप से नहीं, हमारा अस्तित्व इससे कहीं अधिक के लिए है। अतएव सोचिए कि आख़िर क्या है हमारे जीवन का वास्तविक उद्देश्य?
कौन जानता है हमारे अस्तित्व का उद्देश्य?
हमारे अस्तित्व के उद्देश्य का फ़ैसला कौन करता है? आप कह सकते हैं कि ‘अपने अस्तित्व के उद्देश्य का फ़ैसला मैं ख़ुद करता हूँ।’ आइए एक पेन का उदाहरण लेते हैं। पेन का वास्तविक उद्देश्य क्या है? पेन का असल उद्देश्य लिखना है। पेन का यह उद्देश्य किसने तय किया? इस्तेमाल करने वाले ने या इस पेन के बनाने वाले ने? उत्तर है : उस व्यक्ति ने जिसने पेन को पहली बार बनाया। अगर इस्तेमाल करने वाला पेन को अपनी पीठ खुजलाने के लिए इस्तेमाल करता है तो इसका हम यह मतलब कभी नहीं निकालते कि बनाने वाले ने इस पेन को पीठ खुजलाने के लिए बनाया है। इसका अर्थ यह हुआ कि किसी चीज़ का उद्देश्य उसका बनाने वाला ही तय करता है कोई और नहीं।
ठीक इसी तरह एक इन्सान के रूप में अपने अस्तित्व के उद्देश्य के बारे में हम ख़ुद विचार कर सकते हैं और कोई न कोई उद्देश्य तय कर सकते हैं। लेकिन इस तरह हम अपने अस्तित्व का वास्तविक उद्देश्य नहीं जान सकते। हम अपने अस्तित्व के वास्तविक उद्देश्य के बारे में जान सकते हैं तो केवल अपने बनाने वाले से ही जान सकते हैं।
क्या हमारा कोई बनाने वाला है या हमारा अस्तित्व मात्र विवेकशून्य विकासवादी विचारधारा (Blind Evolution Theory) के तहत हुआ है?
बहुत से लोग हैं जिनकी परवरिश विज्ञान के माहौल में अधिक हुई है और धर्म से उनका वास्ता कम ही रहा है, इसलिए वे किसी बनाने वाले के मुक़ाबले में विकासवादी धारणा (यह धारणा कि कालक्रम से सजीवों का विकास हुआ है) में अधिक विश्वास रखते हैं। आइए अब हम इस विषय का विश्लेषण करते हैं।
जब आप किसी पुल, किसी इमारत या किसी गाड़ी को देखते हैं तो आप इससे इन्कार नहीं कर सकते कि इसका कोई बनाने वाला है, इसके अस्तित्व के पीछे कोई व्यक्ति या कम्पनी अवश्य है।
मानव-शरीर की विस्तृत और पेचीदा नियन्त्रण-व्यवस्था के बारे में आपका क्या विचार है? ज़रा मानव-मस्तिष्क के बारे में विचार कीजिए! यह किस तरह सोचता है, किस तरह काम करता है, किस तरह विश्लेषण करता है, मेमोरी (याद्दाश्त) में संचित सूचना को किस तरह हासिल करता है, किस तरह उस सूचना को जमा करता है, किस तरह एक सेकेंड के दस हज़ारवें हिस्से में इन सूचनाओं को छांटकर सूचीबद्ध करता है। (और इस सच्चाई को भी याद रखें कि इस पुस्तिका को पढ़ते हुए भी आप अपने दिमाग़ का इस्तेमाल कर रहे हैं।) फिर आप दिल के बारे में विचार करें। कल्पना करें कि आपका यह दिल किस तरह लगातार धड़कता रहता है और किस तरह इन्सान की पूरी ज़िन्दगी में इस धड़कन को बनाए रखता है। गुरदों (Kidneys) और जिगर (Liver) पर विचार कीजिए कि ये किस तरह अपना काम विभिन्न प्रकार से अंजाम देते हैं। शरीर में ख़ून को साफ़ करने वाले ये उपकरण एक ही समय में सैंकड़ों प्रकार की रासायनिक प्रक्रिया (Chemical Process) करते हैं और एक उचित एवं पर्याप्त मात्रा में शरीर के अन्दर विषाक्तता की मात्रा (Lovel of Toxicity) को बनाए रखते हैं। अपनी आंखों पर विचार कीजिए कि कैसे लाजवाब कैमरे लगे हुए हैं जो कि चीज़ों को व्यवस्थित और फोकस करते हैं, समझते हैं, मूल्यांकन करते हैं और रंगों को स्वयं ही प्राकृतिक रूप से पहचानकर प्रकाश की तीव्रता और दूरी के साथ व्यवस्थित करते हैं।
क्या मात्र अनियमित उत्परिवर्तन या विकास की क्रमिक प्रक्रिया की धारणा के द्वारा ऐसी सुन्दर, कार्यकुशल और पेचीदा व्यवस्था विकसित हो सकती है? क्या इतनी सुन्दर संरचना स्वयं बन सकती है? उदाहरण के रूप में, यदि आप किसी दीवार पर विभिन्न प्रकार के रंग फेंकें तो यह तो हो सकता है कि संयोग से कोई डिज़ाइन, जैसे हाथ या कोई चिड़िया बन जाए, किन्तु यह सम्भव नहीं है कि मोना लीज़ा नामक सुन्दर स्त्री की ख़ूबसूरत-सी तस्वीर बन जाए। हमारे शरीर की संरचना मोना लीज़ा की तस्वीर से कहीं ज़्यादा पेचीदा और जटिल है। अतएव कोई बुद्धि कैसे यह स्वीकार कर सकती है कि किसी डिज़ाइनर के बिना ही इस सुन्दरतम डिज़ाइन का अस्तित्व है?
आइए अब हम कायनात के बारे में सोचते हैं। हमारी धरती सौर मण्डल में मौजूद बहुत से ग्रहों में से एक है। और हमारा सौर मण्डल विस्तृत और असंख्य आकाशगंगाओं में से एक है। हमारी आकाशगंगा कायनात में मौजूद लाखों आकाशगंगाओं में से एक है। हम कायनात में उच्चतम प्रकार की प्रबन्ध-व्यवस्था देख सकते हैं। उदाहरण के लिए चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का पता हम पहले से ही लगा सकते हैं। यह भी सम्भव है कि अगले सैंकड़ों वर्षों के लिए सूर्य के अस्त होने और उदय होने का समय मालूम कर लिया जाए। यह हिसाब लगाना इसलिए सम्भव हो सका कि सितारों और ग्रहों के बीच सामंजस्य, समन्वय और सन्तुलन पाया जाता है। यह कायनात में अतिउत्तम डिज़ाइन और असाधारण नमूने का बहुत की बेहतरीन उदाहरण है।
क्या इनता सुन्दर और परिपूर्ण डिज़ाइन मात्र संयोग या एक धमाके के द्वारा वुजूद में आ सकता था? मात्र संयोग से चीज़ें कैसे वुजूद में आती हैं इस पर हम एक उदाहरण के द्वारा विचार करते हैं। विभिन्न रंगों की 1 से 10 नम्बरों की दस गोलियाँ लीजिए और उन्हें एक थैले में डालकर ज़ोर से हिलाइए ताकि वे आपस में मिल जाएँ। अब आँखें बन्द कर लीजिए और थैले में से 1 से 10 तक की गोलियों को क्रमवार निकालने की कोशिश कीजिए। गोलियों को क्रमवार निकाल पाने की कितनी सम्भावना है? करोड़ों बार प्रयास करने के बाद आप शायद एक बार ही ऐसा कर सकें और यह बात केव दस गोलियों के साथ है। अब ज़रा सोचिए इस बात की कितनी सम्भावना है कि ये लाखों-करोड़ों सितारों और ग्रह मात्र संयोग से इतने सामंजस्य, समन्वय और स्पष्टता के साथ वुजूद में आ जाएँ? इसका उत्तर वास्तव में है ‘ज़ीरो’ (अर्थात् इसकी कोई सम्भावना ही नहीं की जा सकती है)। इससे स्पष्ट होता है कि इतनी विशाल कायनात को बनाने वाले का इन्कार करना कोई बुद्धिमानी की बात नहीं है।
यदि हर चीज़ का बनाने वाला कोई न कोई है तो ख़ुदा का बनाने वाला कौन है?
ब्रह्मांड विज्ञान की प्रसिद्ध थ्योरी के अनुसार कायनात की शुरुआत 14 बिलियन वर्षों पहले अन्तरिक्ष में एक घटना के द्वारा हुई, जिसे ‘बिग-बेंग’ के नाम से जाना जाता है। कायनात की शुरुआत के साथ-साथ ‘समय’ भी, जिससे हम किसी चीज़ की शुरुआत और अन्त को नापते हैं, वुजूद में आया। जितनी भी चीज़ें इस दुनिया में पैदा की गईं उनका वुजूद ‘समय’ पर ही आधारित है; क्योंकि वे सब जन्म लेती (अर्थात् शुरू होती) और मरती (यानी उनका अन्त होता) हैं। वह ईश्वर जिसने इस कायनात को पैदा किया वह उससे भी पहले मौजूद था जब ‘समय’ वुजूद में आया, इसलिए वह इस ‘समय’ से आज़ाद है। इस प्रकार उस ईश्वर का न आदि (शुरुआत) है और न अन्त, वह हमेशा से है। ज़रा इस किताब के बारे में सोचिए जिसे अभी आप पढ़ रहे हैं। क्या यह किताब हमेशा से मौजूद थी? क्या इसका कोई बनाने वाला या लिखने वाला नहीं होगा (जो इस किताब से पहले मौजूद होगा)?
अच्छा अब ज़रा एक सैनिक के बारे में सोचिए जिसे अपना लक्ष्य मिल गया, लेकिन अभी उसे गोली चलाने के लिए अपने उच्च अधिकारी की अनुमति की आवश्यकता है। अब वह उच्च अधिकारी उससे कहता है कि मैं भी अपने से उच्च अधिकारी के मातहत हूँ। मुझे भी अपने से उच्च अधिकारी की अनुमति की आवश्यकता है। लेकिन वह उच्च अधिकारी कहता है कि मैं भी अपने से उच्च अधिकारी के मातहत हूँ, मुझे भी अपने से उच्च अधिकारी की अनुमति की आवश्यकता है। अब वह उच्च अधिकारी कहता है कि मैं भी अपने से उच्च अधिकारी के मातहत हूँ, मुझे भी अपने से उच्च अधिकारी की अनुमति की आवश्यकता है। ज़रा सोचिए कि यदि मातहती की यह चेन अन्तहीन हो तो क्या वह सैनिक कभी अपने लक्ष्य पर गोली चला पाएगा। निश्चित रूप से नहीं। सैनिक अपने लक्ष्य पर गोली उसी समय चला सकता है जबकि उस चेन में कोई एक अधिकारी ऐसा हो जो निर्णय लेने में किसी का मातहत न हो और वह किसी से सलाह मशवरा किए बग़ैर फ़ैसला लेने का अधिकार रखता हो।
जब हम इस सिद्धान्त को कायनात पर लागू करते हैं तो हम बहुत आसानी से इस नतीजे पर पहुँच जाते हैं कि कायनात के आरम्भ का यही बिन्दू वह सत्ता है जो किसी की भी मातहत नहीं है और स्वतन्त्रतापूर्वक फ़ैसले लेती है। इसी स्वतन्त्र सत्ता को स्रष्टा (बनाने वाला) या ईश्वर कहते हैं।
ख़ुदा (God) कौन है?
शब्द ख़ुदा (God) बहुत-से अर्थों में इस्तेमाल किया जाता है। यह निर्भर करता है भाषा पर, विश्वास पर, दर्शन और संस्कृति पर। कुछ लोगों के लिए वही ख़ुदा है जो उनकी ज़रूरत में उनकी मदद कर दे। कुछ दूसरे लोगों के लिए उनके माता-पिता ही उनके ख़ुदा हैं। कभी-कभी प्रसिद्ध और अपने जीवन में कामयाब समझे जाने वाले लोग ख़ुदा का स्थान ले लेते हैं। लालची लोगों के लिए पैसा ही ख़ुदा है और कुछ लोगों के लिए प्राकृतिक तत्त्व भी ख़ुदा हैं। भोले-भाले लोगों के लिए तो हर चीज़ ख़ुदा है।
लेकिन वास्तव में ख़ुदा का अर्थ समझना बहुत आसान है। अगर हमसे पूछा जाए कि माँ कौन है? तो निश्चित रूप से इसका उत्तर होगा कि वह जो बच्चे को जन्म देती है। हम मदर टेरेसा को भी ‘मदर’ कहते हैं। हालाँकि मदर टेरेसा को वह स्थान प्राप्त नहीं हो सकता जो हमारी वास्तविक माँ को प्राप्त है। हमें ज़बरदस्ती किसी को अपनी माँ बनाने का अधिकार नहीं है; हमारी असली माँ वही है जिसने हमको जन्म दिया है।
बिल्कुल इसी तरह ख़ुदा या ईश्वर केवल वही है जिसने हमें और इस पूरी कायनात को पैदा किया। लोग चाहे किसी को ख़ुदा कहने लगें, लेकिन हमारा असली ख़ुदा उसके सिवा कोई और नहीं हो सकता जिसने हमें और इस पूरे ब्रह्माण्ड को पैदा किया। हमारे पास इस बात का कोई विकल्प नहीं है कि हम जिसको पसन्द करें उसको अपना ख़ुदा चुन लें। वह सत्ता जिसने हमको पैदा किया एक अकेला ख़ुदा है। ख़ुदा की मख़लूक़ (पैदा की हुई चीज़ों) में से, चाहे वह कितनी ही महान क्यों न हो, कोई चीज़ भी ख़ुदा नहीं हो सकती।
क्या है जीवन का उद्देश्य?
हमें सिर्फ़ और सिर्फ़ इसलिए पैदा किया गया है कि हम उसी एक ख़ुदा की पूजा और उपासना करें, (और किसी मख़लूक़ यानी पैदा की हुई चीज़ों की पूजा-उपासना न करें) उसी की आज्ञा का पालन करें। हमारे जीवन का उद्देश्य यह है कि हम ‘‘अपने जीवन को ईश्वर के मार्गदर्शन के अनुसार व्यतीत करें।’’ एक सफल और कामयाब व्यक्ति वही हो सकता है जो अपने जीवन को उसी ईश्वर के आदेशों के अनुसार व्यतीत करे, ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करे और इस प्रकार मरने के बाद की ज़िन्दगी में कामयाब हो जाए।
ख़ुदा हम से अपना आज्ञापालन क्यों कराना चाहता है?
माँ-बाप आशा करते हैं कि उनके बच्चे दिन-प्रतिदिन के मामलों में उनकी आज्ञा का पालन करें, क्योंकि यह उनका स्वाभाविक अधिकार है कि उनकी आज्ञा का पालन किया जाए। ठीक इसी प्रकार अध्यापक भी अपने विद्यार्थियों से आशा करते हैं कि शिक्षा के मामले में वे उनकी आज्ञा का पालन करें। जिसने हमको पैदा किया, वह ख़ुदा भी हमसे आशा करता है कि हम उसकी आज्ञा का पालन करें क्योंकि स्रष्टा या ख़ालिक़ होने के नाते वह इसका हक़ रखता है।
वाहन तभी अच्छे चलते हैं जबकि उनमें कम्पनी द्वारा बताया गया अच्छा तेल डाला जाए, अच्छे पुर्ज़े लगाए जाएँ, अच्छे टायर लगाए जाएँ और उनमें ठीक प्रकार और उचित मात्रा में हवा भरी जाए। हम कम्पनी द्वारा निर्धारित इन चीज़ों को अपनी पसन्द के अनुसार बदलने की कोशिश नहीं करते, क्योंकि हमें भरोसा है कि इस वाहन का बनाने वाला ख़ूब अच्छी तरह जानता है कि इसके लिए क्या ज़्यादा बेहतर है। ठीक इसी प्रकार हमारा पैदा करने वाला ही सबसे बेहतर जानता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है। इसलिए ज़िन्दगी गुज़ारने का एक रास्ता उसने बताया है जो पूर्ण समर्पण और आज्ञापालन का रास्ता है।
क्या ईश्वर ने मनुष्य के लिए अपना मार्गदर्शन भेजा है?
ख़ुदा ने हमें यूँ ही भटकने के लिए नहीं छोड़ दिया है, उसने हमारा मार्गदर्शन किया है। अगर हम मनुष्य की तुलना किसी मशीन से करते हैं तो हम अपनी भावनाओं और विचारों के आधार पर दुनिया की सबसे जटिल और पेचीदा मशीन हैं। और एक जटिल तथा पेचीदा मशीन को ठीक प्रकार इस्तेमाल करने के लिए हमें मार्गदर्शन और एक निर्देशक की आवश्यकता होती है।
ईश्वर ने मानव-जाति को यह बताने के लिए कि एक अच्छा जीवन किस प्रकार व्यतीत किया जाए, अच्छे और नेक लोगों को चुना। ये नेक लोग ख़ुदा की ओर से भेजे हुए पैग़म्बर या दूत थे। जो मार्गदर्शक पुस्तिकाएँ (Instruction Manuals) उनके द्वारा भेजी गईं वे ईश्वर की ओर से अवतरित पुस्तकें कहलाती हैं।
पैग़म्बर या दूत कौन हैं?
ख़ुदा ने हम इन्सानों में से ही सबसे अच्छे और महान लोगों को चुना और उन्हें अपना पैग़म्बर या दूत बनाया। वे केवल इन्सान थे, उनके अन्दर कोई दैवीय गुण नहीं था। वे मानव-जाति के लिए रहनुमा (पथ-प्रदर्शक) और आदर्श बनकर खड़े हुए।
दुनिया में पैग़म्बरों और दूतों के द्वारा ईश्वर का सन्देश हर देश और क्षेत्र के लोगों को मिला। उनमें से कुछ पैग़म्बरों के नाम (क़ुरआन के अनुसार) इस प्रकार हैं : हज़रत नूह, हज़रत इबराहीम, हज़रत दाऊद, हज़रत सुलैमान, हज़रत मूसा, हज़रत ईसा (इन सब पर ईश्वर की दया और कृपा हो) इत्यादि।
ख़ुदा ख़ुद ज़मीन पर क्यों नहीं आया?
ख़ुदा और इन्सान एक-दूसरे के स्पष्टतः भिन्न हैं। इनमें किसी प्रकार की तुलना नहीं की जा सकती। अगर ख़ुदा इन्सान बन जाए तो वह ख़ुदा नहीं हो सकता।
उदाहरण के रूप में :
1. ख़ुदा मरता नहीं है, इन्सान मर जाता है।
2. ख़ुदा समय और काल (Time and Space) का पाबन्द नहीं है, इन्सान समय और काल का पाबन्द है। जब कोई कहता है कि ख़ुदा इन्सान बन गया तो इसमें बड़ा विरोधाभास होता है।
3. फिर इन्सान सख़्त प्रकार की सीमाओं में जकड़ा हुआ है। उदाहरण के रूप में : इन्सान वह नहीं सुन सकता जो एक कुत्ता सुन सकता है। इन्सान वह नहीं देख सकता जो एक उल्लू देख सकता है। अगर ख़ुदा इन्सान बन जाता है तो इसका मतलब यह होगा कि वह इन सब सीमाओं में बंध जाएगा, क्योंकि ये बातें ईश्वर के उच्च गुणों के प्रतिकूल हैं।
इसलिए नतीजा यह निकलता है कि कोई या तो ख़ुदा ही हो सकता है या फिर इन्सान; लेकिन दोनों नहीं हो सकता।
अब कोई कह सकता है कि चूँकि ख़ुदा सब कुछ कर सकता है इसलिए वह एक ही समय में ख़ुदा भी हो सकता है और इन्सान भी। 
सबसे पहले यह जानने की ज़रूरत है कि इस बात का क्या मतलब है कि ‘ख़ुदा सब कुछ कर सकता है? क्या ख़ुदा अन्याय कर सकता है? क्या ख़ुदा झूठ बोल सकता है? निश्चित रूप से उत्तर होगा ‘नहीं’। कारण यह कि अन्याय और झूठ ऐसे दुर्गुण हैं जो ख़ुदा के उच्च गुणों के प्रतिकूल हैं। इस बात का नतीजा यह निकला कि ख़ुदा सिर्फ़ वही काम करेगा जो उसकी ख़ुदाई को शोभा देते हैं। हम समझ सकते हैं कि ‘‘ख़ुदा का इन्सान बनना’’ उसकी ख़ुदाई को शोभा नहीं देता क्योंकि इन्सान ख़ुदा के सामने उत्तरदायी है।
अगर हम यह मान लें कि ख़ुदा ख़ुद धरती पर आता है, तो वह तमाम इन्सानों के मार्गदर्शन का काम अंजाम नहीं दे सकता। वह इन्सानों के लिए एक आदर्श कैसे होगा? क्योंकि एक आम आदमी कह सकता है कि सदाचारी काम तो ख़ुदा ही कर सकता है, हम क्योंकि इन्सान हैं इसलिए हम तो अच्छे काम कर पाने के क़ाबिल ही नहीं हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि ख़ुदा का इन्सान के रूप में आना हमारे लिए आदर्श नहीं हो सकता। क्योंकि वह उन सीमाओं में बंधा नहीं होता जिन सीमाओं में हम बंधे होते हैं। फिर वह अपनी दैवीय शक्ति से अपनी समस्याओं को आसानी के साथ हल कर सकता है, जबकि हम इन्सानों को इन्हें हल करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इन सब बातों से यह सिद्ध होता है कि इन्सान के लिए सबसे अच्छा आदर्श कोई इन्सान ही हो सकता है, जैसे कि पैग़म्बर या दूत।
मुहम्मद (सल्ल॰) कौन थे?
मुहम्मद (ईश्वर की उन पर कृपा हो) नुबूवत या ईशदूतत्व श्रृंखला के अन्तिम पैग़म्बर या सन्देष्टा थे। उनको समस्त मानव-जाति और रहती दुनिया तक के लिए पैग़म्बर बनाकर भेजा गया था। मुहम्मद (सल्ल॰) से पहले ईश्वर के जितने दूत भेजे गए उनको जाति विशेष या काल विशेष के लिए भेजा गया था।
पैग़म्बरों की शिक्षाएँ क्या थीं?
तमाम पैग़म्बरों की शिक्षाओं के महत्वपूर्ण अंशों का सार यह है—
1. ख़ुदा की उपासना और इबादत करो, उसी को समर्पित हो जाओ, उसी की आज्ञा का पालन करो क्योंकि वही स्रष्टा है जिसने हमें पैदा किया है। (अतः स्रष्टा की उपासना करो सृष्ट की नहीं।) किसी भी व्यक्ति या चीज़ को ख़ुदा का स्थान मत दो। ख़ुदा के वुजूद का इन्कार न करो। ख़ुदा के साथ किसी को शरीक न करो।
2. दुनिया में हम जो कुछ करते हैं, मरने के बाद उसके लिए ख़ुदा के सामने जवाबदेह हैं।
क़ुरआन क्या है?
क़ुरआन ख़ुदा की तरफ़ से उसके आख़िरी पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) पर अवतरित आख़िरी किताब (मार्गदर्शन) है। पूरा क़ुरआन ईशवाणी है, इसके अन्दर मुहम्मद (सल्ल॰) के कहे हुए शब्द नहीं हैं। क़ुरआन पूरी मानव-जाति का मार्गदर्शन करने के लिए आया है और यह उसकी महान सेवा है।
ख़ुदा के गुण क्या हैं?
ख़ुदा के कुछ गुण इस प्रकार हैं—
1. ख़ुदा एक है।
2. ख़ुदा को किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है। वह सीमाओं के तमाम बन्धनों से आज़ाद है।
3. ख़ुदा को किसी ने पैदा नहीं किया है (अर्थात् उसके माता-पिता नहीं हैं), न उसकी पत्नी है और न बच्चे।
4. ख़ुदा का कोई शरीक नहीं है न उसकी ज़ात में और न उसके किसी गुण (शक्ति, ज्ञान, बुद्धिमत्ता और दया इत्यादि) में। 
5. ख़ुदा कभी थकता नहीं है।
6. ख़ुदा से न भूल होती है न चूक।
7. ख़ुदा से कोई ग़लती नहीं होती।
8. ख़ुदा की दया और रहमत तमाम इन्सानों के लिए होती है और वह जाति, रंग और नस्ल के आधार पर उनके बीच कोई भेदभाव नहीं करता।
क्या एक से अधिक भी ख़ुदा हो सकते हैं?
तीन लोग नौकरी पाने के लिए इंटरव्यू को जाते हैं। नौकरी केवल एक व्यक्ति के लिए है। तीनों अपने-अपने ख़ुदाओं से नौकरी के लिए प्रार्थना करते हैं। अगर हम मान लें कि ख़ुदा बहुत-से हैं तो हर एक अपने ख़ुदा से नौकरी पाने के लिए प्रार्थना करेगा। हमारे पास देने के लिए नौकरी केवल एक ही है जिसके लिए तीनों लोग उम्मीद लगाए बैठे हैं। और तीनों ख़ुदा अपने उपासक को नौकरी दिलाना चाहेंगे। इस परिस्थिति में नौकरी किसको मिलेगी? निश्चित रूप से यह मामूली-सी चीज़ तीनों ख़ुदाओं के बीच झगड़ा पैदा कर देगी। दुनिया में इस तरह की अनगिनत घटनाएं रोज़ होती हैं और उन सबको ख़ुदा के समर्थन की आवश्यकता होगी। अगर हम एक से अधिक ख़ुदा मान लें तो पूरी कायनात में अव्यवस्था और गड़बड़ी फैल जाएगी।
क्या ख़ुदा को किसी चीज़ की ज़रूरत हो सकती है? क्या ख़ुदा के बीवी और बच्चे हो सकते हैं? क्या ख़ुदा के मां-बाप हो सकते हैं?
यदि हम कल्पना करें कि ख़ुदा को किसी चीज़ की ज़रूरत है तो कोई होना चाहिए जो उसकी ज़रूरत को पूरी कर सके। इसका मतलब यह होगा कि उसके पास वह कुछ होगा जो ख़ुदा के पास नहीं है। तब तो ख़ुदा उस व्यक्ति के बग़ैर अधूरा है। उदाहरण के लिए हम इन्सानों को अपने जोड़े (पति को पत्नी की और पत्नी को पति) की ज़रूरत होती है, क्योंकि हमें किसी साथी की ज़रूरत होती है। अगर ख़ुदा को पत्नी की ज़रूरत है तो इसका मतलब यह होगा कि उसे सन्तुष्टि के लिए एक पत्नी की आवश्यकता है। यह बात ख़ुदा को ज़रूरतमन्द और पत्नी पर निर्भर बना देती है। और यह विचार ख़ुदा के स्वभाव के विपरीत है। इस प्रकार यह विचार कि ख़ुदा की पत्नी है अत्यंत हास्यास्पद विचार है।
जब ख़ुदा की कोई पत्नी नहीं है तो स्पष्ट है कि उसके बच्चे भी नहीं हैं। यदि ख़ुदा के मां-बाप हैं तो इसका मतलब यह होगा कि अपने मां-बाप से पहले उसका अस्तित्व ही नहीं होगा। इसका मतलब यह हुआ कि एक विशेष समय या काल से पहले ख़ुदा का अस्तित्व ही नहीं होगा और यह बात ख़ुदा की निश्चित परिभाषा के विपरीत है। इसलिए ख़ुदा के मां-बाप भी नहीं हैं।

क्या ख़ुदा थकता भी है? क्या ख़ुदा से भूल-चूक होती है?
ख़ुदा सर्वशक्तिमान है। इसलिए उसे थकान नहीं होती। ख़ुदा सब कुछ जानने वाला है। इसलिए उससे कोई भूल-चूक भी नहीं हो सकती।
यदि ख़ुदा के जैसा कोई दूसरा है तो वह भी ख़ुदा होने का दावा कर सकता है, और इसका मतलब यह होगा कि एक से अधिक ख़ुदा हैं, लेकिन यह भी असंभव और अतर्कसंगत है, जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं।
क्या मौत के बाद ज़िन्दगी है?
किसी चीज़ पर अधिकार मिलने का मतलब है कि उसकी हमें जवाबदेही करनी है। एक नौकर अपने मालिक (बॉस) के सामने अपने कामों के लिए जवाबदेह है। इस दुनिया में हर एक अपने-अपने स्तर और पद के अनुसार किसी न किसी के सामने जवाबदेह है। यह जीवन का बुनियादी सत्य है। ठीक इसी प्रकार हमारा स्रष्टा, जो कि वास्तविक, सर्वोच्च और सर्वोत्तम सत्ता है, इस बात का अधिकार रखता है कि हम से जवाब तलब करे कि हमने दुनिया में क्या काम किए। यदि जवाबदेही न हो तो कभी न्याय स्थापित नहीं किया जा सकता।
दुनिया का एक दिन ख़ात्मा हो जाएगा। पहले इन्सान ‘आदम’ से लेकर आख़िरी इन्सान तक क़ियामत (न्याय) के दिन जीवित करके उठाए जाएंगे और उनसे उनके कामों के बारे में पूछा जाएगा। जिन लोगों ने एक ख़ुदा की पूजा-उपासना की होगी, अच्छे और भले काम किए होंगे और अपने जीवन को ख़ुदा के मार्गदर्शन के अनुसार व्यतीत किया होगा, वे इनाम पाएंगे। जिन लोगों ने ख़ुदा की नाफ़रमानी (अवज्ञा) की होगी उनको सज़ा दी जाएगी। इनाम के तौर पर जन्नत (स्वर्ग) होगी और सज़ा के तौर पर दोज़ख़ (नरक)। जन्नत या दोज़ख़ की ज़िन्दगी सदा-सर्वदा के लिए यानी अनन्तकाल के लिए होगी।
क्या वास्तव में दोबारा उठाए जाने और 
न्याय के दिन की ज़रूरत है?
हरेक इन्सान चाहता है कि उसके साथ इन्साफ़ हो। भले ही चाहे दूसरों के लिए वह इन्साफ़ न चाहता हो, लेकिन कम से कम अपने साथ तो ज़रूर चाहता है। वे तमाम लोग जिन्होंने अन्याय और अत्याचार को सहन किया है निश्चित रूप से यह चाहते हैं कि अन्यायी और अत्याचारी को सज़ा दी जाए। हर आम व्यक्ति ज़रूर चाहेगा कि हर लुटेरे और बलात्कारी को सबक़ सिखाया जाना चाहिए! ज़रा सोचिए! क्या इस दुनिया में दण्ड-व्यवस्था के तहत पूर्ण और ठीक-ठीक न्याय किया जा सकता है? कहा जाता है कि हिटलर ने अपने बर्बर शासनकाल में बहुतों को मौत के घाट उतार दिया था। अगर क़ानून के तहत उसे गिरफ़्तार कर लिया जाता तो उसे अधिक से अधिक क्या सज़ा दी जा सकती थी। अधिक से अधिक उसको फाँसी के तख़्ते पर लटका दिया जाता। किन्तु यह सज़ा केवल एक व्यक्ति को मारने की होती। बाक़ी और लोगों की मौत की सज़ा का क्या होगा?
हमने जजों को एक ही आदमी को कई बार उम्रक़ैद की सज़ा देते हुए सुना है जो कि अपराध किए जाने से लेकर 100 साल तक की हो सकती है। यह इसलिए कि अपराधी इतने सालों की सज़ा का पात्र था। लेकिन क्या वास्तव में 100 साले पूरे हो जाने या उसकी मौत होने से सज़ा पूरी हो जाती है? सत्य और पूर्ण न्याय यह होगा कि पीड़ित की क्षतिपूर्ति (Compensation) भी की जाए। उन निर्दोष लोगों की क्या क्षतिपूर्ति की जाएगी जिनको ज़ालिम तानाशाहों ने बेदर्दी के साथ मार दिया हो। हम उनकी क्षतिपूर्ति कैसे कर सकते हैं क्योंकि वे तो पहले ही मर चुके हैं। बहुत-से सदाचारी और नेक लोगों को सताया गया और बहुतों को मौत के घाट उतार दिया गया। क्या आप इस बात पर विचार नहीं करते कि ऐसे सदाचारी और नेक लोगों को उनके नेक कामों का फल मिलना चाहिए। (तो आख़िर वह कौन सा स्थान है और वह समय कब आएगा जहाँ उनको उनके अच्छे कामों का फल मिल सके।)
थोड़ा विचार करने से ही हम इस नतीजे पर पहुँचेंगे कि वास्तव में मरने के बाद एक ऐसे जीवन की आवश्यकता है जिसमें लोगों को इस दुनिया में किए गए कामों का पूरा-पूरा बदला मिल सके। ख़ुदा जो कि सबसे अधिक न्याय करने वाला है, लोगों को बिना इनाम या सज़ा दिए यूँ ही नहीं छोड़ेगा।
स्वर्ग या नरक का जीवन सदा-सर्वदा के लिए अर्थात् अनन्तकाल के लिए है जो कभी ख़त्म न होगा, ख़ुदा इन्साफ़ करते हुए इनाम या सज़ा दे सकता है। ठीक इसी प्रकार ख़ुदा अच्छे, नेक और निर्दोष लोगों को, जिनको इस जीवन में सताया गया, इनाम दे सकता है।

क्या मरने के बाद हमारा दोबारा उठाया जाना सम्भव है?
हम सब जानते हैं कि किसी भी चीज़ का पहली बार बनाया जाना मुश्किल होगा। उसी चीज़ को दोबारा बनाना बहुत आसान है। जब हमें पहली बार बनाने में ख़ुदा को कोई मुश्किल नहीं हुई तो दूसरी बार बनाने और मरने के बाद हमें ज़िन्दा करके उठाने में क्या मुश्किल होगी। मरने के बाद हमें दूसरी ज़िन्दगी देना ख़ुदा के लिए वास्तव में बहुत आसान है। 
इस्लाम शब्द का अर्थ क्या है?
‘इस्लाम’ अरबी का शब्द है जो कि ‘सिल्म’ या ‘सलम’ से बना है। ‘सलम’ का अर्थ होता है ‘शान्ति’ और ‘सिल्म’ का अर्थ है ‘समर्पण’। इस प्रकार इस्लाम का अर्थ है पूरी कायनात के स्रष्टा ‘ईश्वर के सामने समर्पण करके शान्ति प्राप्त कर लेना’।
इस्लाम की स्थापना किसने की?
आम लोगों की सोच के विपरीत इस्लाम कोई नया धर्म नहीं है। इसकी स्थापना मुहम्मद (सल्ल॰) ने नहीं की है। इस्लाम हमारे पैदा करने वाले ख़ुदा का बताया हुआ ज़िन्दगी गुज़ारने का वह रास्ता है जिसे सबसे पहले इन्सान हज़रत आदम (अलै॰) को दिया गया और उनके बाद हम सब लोगों को दिया गया, जो उनके बाद आए। यह बात अच्छी तरह समझी जा सकती है कि सभी पैग़म्बरों ने, जो कि अल्लाह की तरफ़ से भेजे गए थे, जैसे हज़रत नूह, हज़रत इबराहीम, हज़रत मूसा, हज़रत सुलैमान, हज़रत दाऊद, हज़रत ईसा (ईश्वर की उन सब पर कृपा व दया हो) इत्यादि, ज़िन्दगी का एक ही रास्ता बताया और वह है सर्वशक्तिमान ख़ुदा के सामने ‘समर्पण’। ज़िन्दगी के इसी तरीक़े को अरबी में हम ‘इस्लाम’ कहते हैं।
क्या ‘अल्लाह’ सिर्फ़ मुसलमानों का ख़ुदा है?
(कुछ लोगों का विचार है कि ‘अल्लाह’ केवल मुसलमानों का है) इस विचार के विपरीत ‘अल्लाह’ केवल मुसलमानों का ख़ुदा नहीं है। ‘अल्लाह’ उस सर्वशक्तिमान ख़ुदा का अरबी नाम है जिसने हर चीज़ को पैदा किया, मुझे भी और आपको भी। अरबी बोलने वाले यहूदी और इसाई भी ख़ुदा के लिए ‘अल्लाह’ शब्द ही इस्तेमाल करते हैं।
अंग्रेज़ी का शब्द ‘वाटर’, हिन्दी का ‘पानी’, कन्नड़ का ‘नीरू’ और अरबी का ‘मा’ एक ही बात की तरफ़ इशारा करते हैं। भाषा की भिन्नता के कारण ‘एक गिलास पानी’ का अर्थ बदल नहीं जाता। इसी तरह अंग्रेज़ी का ‘गॉड’, हिन्दी का ‘ईश्वर’ और अरबी का ‘अल्लाह’ शब्द उसी एक ख़ुदा के लिए बोले जाते हैं जिसने इस पूरी कायनात को पैदा किया, मुझे भी और आपको भी।
कौन-सा घोर पाप है जिसे ख़ुदा माफ़ नहीं करेगा?
ख़ुदा ने ऐलान किया है कि वह उस व्यक्ति को माफ़ नहीं करता जो जानने के बाद भी इन बातों को अपनाता है—
1. किसी को ख़ुदा का साझी ठहराता है या किसी को पूजा-उपासना में, आज्ञापालन और समर्पण में उसका समकक्ष ठहराता है।
2. ख़ुदा के वुजूद का इन्कार करता है। 
ख़ुदा इस पाप का हरगिज़ माफ़ नहीं करेगा जब तक कि कोई व्यक्ति मरने से पहले तौबा (पश्चाताप या भूल सुधार) न कर ले।
पूजा-उपासना, आज्ञापालन या समर्पण में ख़ुदा का समकक्ष कैसे ठहराया जाता है?
जो व्यक्ति निम्नलिखित कामों को करता है, ख़ुदा में साझी ठहराने का पाप करता है—
1. प्राकृतिक वस्तुओं, जैसे हवा, पानी और आग इत्यादि या मानव निर्मित चीज़ों, जैसे पत्थर की मूर्तियों, तस्वीरों, बुज़ुर्गों और महात्माओं की क़ब्रों इत्यादि, के सामने सिर झुकाना, उनसे प्रार्थना करना, उनकी पूजा और आराधना करना इत्यादि।
2. इन्सानों को ख़ुदा का बेटा, उसकी पत्नी या ख़ुदा के जैसे गुणों वाला ठहराकर उन्हें ख़ुदा मान लेना।
3. फ़रिश्तों या काल्पनिक देवताओं, जैसे अग्नि, वायु या ग्रहों इत्यादि की पूजा-उपासना करना। ये वास्तव में ख़ुदा की पैदा की हुई चीज़ें हैं जिस तरह और बहुत-सी दूसरी चीज़ें उसने पैदा की हैं। फ़रिश्ते निष्कपट रूप से ईश्वर का आज्ञापालन करते हैं और अवज्ञा करने की इच्छा भी उनके अन्दर नहीं पाई जाती।
ख़ुदा का साझी ठहराना इतना बड़ा अपराध क्यों है?
सर्वशक्तिमान ख़ुदा को इन्सानों की पूजा-आराधना और कृतज्ञता की कोई ज़रूरत नहीं है। ख़ुदा तमाम इच्छाओं और ज़रूरतों से पाक है। ये हम इन्सान ही हैं जो ख़ुदा और उसकी दया की ज़रूरत महसूस करते हैं। अब सवाल पैदा होता है कि ‘‘ख़ुदा को इस बात की चिन्ता क्यों है कि लोग उसमें विश्वास करते हैं या नहीं करते?’’ तो इसका जवाब निम्नलिखित है—
1. ख़ुदा अविश्वास को पसन्द नहीं करता है। जैसा कि हम पहले व्याख्या कर चुके हैं कि ख़ुदा ने हमको पैदा ही इसलिए किया है कि उसी एक अकेले की पूजा-आराधना की जाए और उसी की ग़ुलामी की जाए। ख़ुदा के साथ साझी ठहराना या किसी इन्सान या चीज़ को उसका समकक्ष ठहराना या उसके अस्तित्व का इन्कार कर देना हमारे उस उद्देश्य के विरुद्ध है जिसके लिए हमें पैदा किया गया है। यह अपने स्रष्टा का घोर अपमान है।
2. ख़ुदा में विश्वास न करना अपनी पूरी जीवन-व्यवस्था को जोखिम में डाल देना है और ऐसा करने से पूरी दुनिया बुराइयों और भ्रष्टाचार से भर जाएगी। जब कोई व्यक्ति ईश्वर में विश्वास नहीं रखता या उसके साथ साझी ठहराता है तो वह ईश्वर की परम सत्ता और ख़ुदाई मार्गदर्शन को रद्द कर देता है। ऐसे लोग अपनी इच्छाओं के दास बन जाते हैं। भूल जाते हैं कि वे किसी के सामने उत्तरदायी भी हैं। और यही सोच दुनिया में बुराई की असल जड़ बन जाती है।
3. ख़ुदा के साथ साझी ठहराना सबसे ऊँचे दरजे की नाइन्साफ़ी और नमकहरामी है। अगर हम अपने चारों तरफ़ और ख़ुद अपने-आपको देखें तो हम पाएँगे कि ख़ुदा की बेशुमार नेमतें हमारे ऊपर बरस रही हैं जैसे हमारा प्यारा-सा परिवार, हमारे बच्चे, हमारे चलने-फिरने और देखने की योग्यताएँ और क्षमताएँ इत्यादि। उसकी सृष्टि में कितनी सुन्दरता है!
क्या यह नमकहरामी और नाशुक्री नहीं है कि हम उसके सिवा किसी और को ख़ुदा बनाएँ? हम उस सत्ता के साथ किसी दूसरे को साझी ठहराकर कैसे उसके इतने बड़े नाशुक्रे बन सकते हैं? क्या ख़ुदा को न मानना वास्तव में नाशुक्री और नाइन्साफ़ी नहीं है जबकि ख़ुदा की हमारे ऊपर दया और बहुत-सी नेमतें बरस रही हैं? हम एक धर्मपरायण व्यक्ति कैसे बन सकते हैं, जबकि हम ख़ुदा के क़ानूनों और आदेशों का कोई सम्मान नहीं करते और जबकि हम उसके बुत बनाते हैं जबकि यह कार्य उस महान सत्ता की महिमा के प्रतिकूल है?
इसका क्या सुबूत है?
ख़ुदा हम से यह आशा नहीं करता कि हम अन्धविश्वासी बनें। हमने जो बातें भी ऊपर बयान की हैं उनका सुबूत अल्लाह की आख़िरी किताब, क़ुरआन है। क़ुरआन वह ईशवाणी है जो पूर्ण रूप से सुरक्षित है। क़ुरआन में भूविज्ञान (Geology), भ्रूणविज्ञान (Embryology), ज्योतिष विज्ञान (Astronomy), समुद्र विज्ञान (Oceanography), विधिशास्त्र (Law), मनोविज्ञान (Psychology), वनस्पति विज्ञान (Botany), भौतिक विज्ञान (Physics), जन्तु विज्ञान (Zoology) आदि विभिन्न प्रकार के विज्ञान का उल्लेख किया गया है। क़ुरआन उन लोगों को जो उस पर विश्वास नहीं रखते इस बात की खुली चुनौती देता है कि वे इसकी एक बात को भी ग़लत सिद्ध नहीं कर सकते। इस किताब का रचयिता (अल्लाह) कहता है कि ‘‘क्या ये क़ुरआन पर सोच-विचार नहीं करते? यदि यह अल्लाह के सिवा किसी और की तरफ़ से होता तो वे इसमें बहुत-सी बेमेल बातें पाते।’’ (क़ुरआन, सूरा-4 निसा, आयत-82)
आश्चर्य होता है कि क़ुरआन ने सदियों पहले भविष्य में होने वाली खोजों की तरफ़ स्पष्ट संकेत दे दिए थे। चूँकि मुहम्मद (सल्ल॰) एक इन्सान थे इसलिए सम्भव नहीं था कि उनको ख़ुद से भविष्य के ज्ञान के बारे में मालूम हो जाता। इस आधार पर निश्चित रूप से क़ुरआन ईशवाणी है।
निष्कर्ष
इस पुस्तिका का उद्देश्य किसी की भावनाओं को चोट पहुँचाना बिल्कुल नहीं है, न हम किसी के बारे में कोई बुरी भावना रखते हैं। हमारा एक मात्र उद्देश्य ईश्वर के सन्देश को लोगों तक पहुँचाना है और उनको उनके जीवन उद्देश्य से अवगत कराना है। हमारा यक़ीन है कि समाज-सुधार का एक मात्र रास्ता यही है कि लोग अपने जीवन 
उद्देश्य को जानें। हमें अपने पैदा करने वाले सर्वशक्तिमान ईश्वर के आदेशों के अनुसार जीवन व्यतीत करना चाहिए। यदि हम ऐसा करते हैं तो निस्सन्देह यह दुनिया स्वर्ग समान बन जाएगी।